पृथ्वी का आंतरिक तापमान| Earth's internal temperature in Hindi

पृथ्वी का आंतरिक तापमान Earth's internal temperature in Hindi

पृथ्वी का आंतरिक तापमान| Earth's internal temperature in Hindi
 

पृथ्वी का आंतरिक तापमान

  • पृथ्वी की आंतरिक ऊष्मा का प्रमाण ज्वालामुखीगर्म झरनों तथा खानों और वेध छिद्र में मापे गए उच्च तापमान के माध्यम से ज्ञात होता है ग्रह की उग्र उत्पत्ति के दौरानग्रहाणुओं के टकराने से उत्पन्न उर्जा से बाह्य क्षेत्र गर्म हो गये। क्रोड में विभेदन से उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण उर्जा से पृथ्वी गहरायी तक गर्म हो गई। इसके अलावापृथ्वी के अंदर रेडियोसमस्थानिकों का क्षय भी लगातार ऊष्मा मुक्त करता रहता है।

 

  • ऊष्मा प्रवाह पृथ्वी की सतह के माध्यम से ऊष्मा के क्रमिक क्षय को इंगित करता है। धरती दो तरीकों से ठंडी होती है ऊष्मा का संचलन द्वारा प्रवाहन से तथा ऊष्मा के और अधिक तेज प्रवहण संवहन के माध्यम से स्थलमंडल में प्रवाहन ज्यादा प्रभावी हैजबकि पृथ्वी के आंतरिक भाग में संवहन अधिक प्रभावशाली है।

 

 

पृथ्वी का आंतरिक तापमान| Earth's internal temperature in Hindi

1 स्थलमंडल से संचलन

 

  • चट्टानें ऊष्मा का संचलन इतनी कठिनता से करती हैं कि 100 मीटर मोटाई के एक लावा प्रवाह को 1000°C से भू-सतह तापमान तक ठंडा होने में करीब 300 वर्ष लगते हैं । स्थलमंडल की बाहरी सतह के माध्यम से ऊष्मा के प्रवाह बहुत अंतराल में धीमी गति से ठंडा होने का कारण बनता है। ज्यों-ज्यों स्थलमंडल ठंडा होता जाता हैइसकी मोटाई बढ़ जाती हैजिस प्रकार किसी कटोरी में गरम मोम समय के साथ ठंडी और मोटी होती जाती है। धरती को कई प्लेटों में विभाजित किया गया है ये प्लेट सीमाओं पर लगातार निर्मित और नष्ट होती रहती हैं। स्थलमंडल गर्म पिघले हुये दुर्बलतामंडल के ऊपर स्थित है। संवहन धाराओं के माध्यम से स्थलमंडलीय प्लेटों में दुर्बलतामंडल से पहुंचने वाली गर्मी संचालन द्वारा खो जाती है।

 

2 प्रावार तथा क्रोड में संवहन

 

  • संवहनऊष्मा को संचलन की तुलना में ज्यादा कुशलता से स्थानांतरित करता है क्योंकि इसमें गर्म पदार्थ स्वयं भी गते करते हैं। कठोर स्थलमंडल के नीचे स्थित दुर्बलतामंडल तन्य (ductile) है। यह एक काफी श्यान (viscous) द्रव की तरह प्रवाह कर सकता है। प्रावार के ऊपरी हिस्से में संवहन धारायें उत्पन्न होती हैं जिसका कारण उच्च तापमान और दबाव के कारण उत्पन्न लचीलापन है।

 

  • प्रावार में संवहन को सतह पर विवर्तनिक प्लेटों की गति के माध्यम से व्यक्त किया गया है। इसके अलावा प्रावार की गहराई में तीव्र दबाव की वृद्धि होती है जिससे कि प्रावर का निचला भाग ऊपरी भाग की तुलना में आसानी से प्रवाहित होता है।

 

पृथ्वी के अंदर सबसे गहरी परत (आंतरिक क्रोड) एक ठोस लोहे की गेंद की तरह है। हालांकि यह बहुत गर्म है, परंतु इसका दबाव इतना अधिक है कि इसमें लोहा पिघल नहीं सकता। आंतरिक क्रोड के ऊपर बाह्य क्रोड है जो तरल लोहे का एक कवच है।

  • पृथ्वी के अंदर सबसे गहरी परत (आंतरिक क्रोड) एक ठोस लोहे की गेंद की तरह है। हालांकि यह बहुत गर्म हैपरंतु इसका दबाव इतना अधिक है कि इसमें लोहा पिघल नहीं सकता। आंतरिक क्रोड के ऊपर बाह्य क्रोड है जो तरल लोहे का एक कवच है। यद्यपि यह परत ठंडी है लेकिन फिर भी संभवतः 4000° से 5000°C तक गर्म है। इसके तापमान की सीमा 4400° C से लेकर 6100°C तक है। इस प्रकारबाहरी क्रोड दबाव ठोस अवस्था में होने के लिए पर्याप्त नहीं हैअतः यह तरल है।

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