जलीय पारिस्थितिकी तंत्र |Ecological System in Hindi
पारिस्थितिकी तंत्र (Ecological System in Hindi)
जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Aquatic Ecosystem)
जलीय पारिस्थितिकी तंत्र, थलीय पारिस्थितिकी तंत्र से भिन्न होता है। प्रकाश, तापमान, लवणता अक्षांश, जल घनत्व एवं सागर की गहराई के आधार पर सागरीय पारिस्थितिकी तंत्र निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) फोटिक अथवा प्रकाशित मंडल (Photic Zone)
(ii) इयुफोटिक मंडल (Euphotic Zone) ।
प्रकाशीय मंडल (Photic Zone)
- सागर की ऊपरी परत को प्रकाशीय मंडल कहते हैं जिसमें सूर्य का प्रकाश पहुँचता है इस परत की गहराई ऊष्णकटिबंध में लगभग 200 मीटर तथा मध्य अक्षांशों में इसकी गहराई लगभग 100 मीटर होती है। फोटिक मंडल के ऊपरी भाग को जैविक मंडल भी कहते हैं। फोटिक मंडल के नीचे अप्रकाशित मंडल (Euphotic Zone) पाया जाता है इसको अंधकार मंडल भी कहते हैं, जो प्रकाशमंडल की निचली परत (Bottom) तक पाया जाता है।
झील, पोखर तथा तालाबों के पारिस्थितिकी तंत्र ( Lakes and Ponds Ecosystem):
- झीलों तथा पोखरों का जल स्र रहता है अर्थात प्रवाहित नहीं होता। झील तथा तालाब सभी बायोम (Biomes) में पाये जाते हैं। इनका आकार भिन्न-भिन्न होता है, जो क्षेत्रफल में एक हेक्टयर से लेकर हजारों हेक्टेयर तक हो सकता है। उदाहरण के लिये केस्पियन सागर (Caspian Sea), सुपीरियर, विकटोरिया 'अफ्रीका' वेकाल तथा बाल्कश (Central Asia), कश्मीर की डल (Dal) तथा वूलर (Wular), झीलें मीठे जल पारिस्थितिकी तंत्र की उदाहरण हैं। उल्लेखनीय है कि मीठे पानी में लवण की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है।
- कम गहराई वाली झोलों में प्रायः भारी मात्रा में जैविक पदार्थ पाया जाता है जिससे ऐसी झीलों में फॉस्फेट की मात्रा बढ़ जाती है। फॉस्फेट चूँकि उर्वरक का काम करते हैं इसलिये ऐसी झीलों तथा जलाशयों में जैविक पदार्थों की मात्रा में भारी वृद्धि हो जाती है। इसके विपरीत, ऊँचे तथा खड़े ढलानों के निकट स्थित झीलों में फॉस्फेट की मात्रा एवं संचार तुलनात्मक रूप से कम होता है। ऐसी झीलों को ओलिगोट्रोफिक (Ologotrophic) झीलें कहते हैं।
सरिताएँ एवं नदियाँ (Streams and Rivers ) :
- सरिताओं एवं नदियों में जल का अपवाह निरंतर बना रहता है। वर्षा के मौसम में वर्षा की मात्रा के कारण जल-अपवाह में परिवर्तन भी होता रहता है। नदियों के अपवाह में जल की मात्रा के साथ-साथ जल बहाव की गति, तापमान, भौतिक तथा रासायनिक तत्वों में भी परिवर्तन होता रहता है। विश्व की बड़ी नदियों (नील, अमेजन यांगटिसी कियांग, मिसी-सीपी, मिसूरी, गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु इत्यादि) प्रायः हिमनदों ( Glaciers) से निकलती हैं। इन नदियों का जल तीव्र गति से बहता है तथा इनके बहते पानी में बहुत से जैविक (Planktons) पाये जाते हैं जो पानी में तैरते रहते हैं।
- नदियों के जल के निचले भाग में जहाँ मंद ढलान के कारण नदियों का जल प्रायः तुलनात्मक रूप से अधिक गंदला होता है, वहाँ भारी मात्रा में जैविक एवं सूक्ष्म जैविक अथवा पलेन्कटन (Planktons) तथा जूप्लेन्टन (Zooplanktons) उत्पन्न हो जाते हैं।
मानव द्वारा निर्मित पारिस्थितिकी तंत्र (Man Made Ecosystem)
- मानव द्वारा निर्मित पारिस्थितिकी तंत्र में ग्राम कस्बे नगर सामाजिक वृक्षारोपण, उद्यान, बाग-बगीचे, मछली घर, क्रीड़ास्थल तथा कृषि क्षेत्र सम्मिलित हैं। ये पारितंत्र अत्यधिक उत्पादक होते हैं, परंतु इनमें जैविक विविधता कम होती है। वास्तव में मानव द्वारा निर्मित पारितंत्र बाढ़, बीमारियों, कीटाणुओं तथा कीड़े-मकोड़ों एवं टिड्डी दलों से प्राय: बहुत प्रभावित होते हैं।
अग्नि पारिस्थितिकी (Fire Ecology)
- पारिस्थितिकी में आग लगना एक सामान्य प्रक्रिया है। पारिस्थितिकी में आग लगने से भी पारिस्थितिको वंशक्रम उत्पन्न होता है। सीमित रूप से जंगल इत्यादि में आग लगने से खरपतवार (Weeds) तथा हानिकारक जीव-जंतु नष्ट हो जाते हैं।
- प्रायः आग के कारण पारिस्थितिकी वंशक्रम (Ecological Succession) में बाधा उत्पन्न हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार, पृथ्वी के धरातल में 25 प्रतिशत भाग पर प्रतिवर्ष आग से पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन होता है। पिछले 50 वर्षों से अग्नि पारिस्थितिकी एक शोध का विषय रहा है। आज के वैज्ञानिक आग को पारितंत्र का एक महत्त्वपूर्ण घटक मानते हैं। वास्तव में बहुत से जंगलों में घास-फूस तथा झाड़ियों (Undergrowth) को जलाने के लिये आग लगाई जाती है। यदि ऐसे जंगलों के झाड़- झंकाड़ में आग न लगाई जाय तो वह बढ़ कर पूरे जंगलों के लिये हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं। विस्तृत मापक पर जंगलों में आग के कारण भी पारिस्थितिकी को भारी नुकसान पहुँच सकता है।
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