पर्यावरण पारिस्थितिकी शब्दावली (प्रश्न उत्तर) | Environment Science 3 Marker Question Answer
पर्यावरण पारिस्थितिकी प्रश्न उत्तर
Environment Science 3 Marker Question Answer
पर्यावरण पारिस्थितिकी प्रश्न उत्तर
अन्योन्य क्रिया
- विभिन्न जीवों की परस्पर तथा पर्यावरण के साथ पारस्परिक क्रिया जिसमें वे एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तथा एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं।
अपघटक
- वे जीव जो जैविक पदार्थ को पुनः इसके अजैविक घटकों में परिवर्तित कर देते हैं। बैक्टीरिया किसी भी पारितंत्र में सबसे महत्वपूर्ण अपघटक होते हैं।
अपरद खाद्य श्रृंखला
- किसी पारितंत्र में जैविक पदार्थ का छोटे जीवों के माध्यम से स्थानांतरित होना । सामान्यतः इस प्रकार के जीव प्रमुख शाकाहारी नहीं होते बल्कि बचे हुए या अपरद भोजन का उपयोग करते हैं।
अपमार्जक
- वे जीव जो पर्यावरण में बचे हुए जैविक पदार्थ को खाते हैं। चूंकि ये जीव पर्यावरण को साफ रखने की भूमिका निभाते हैं इसलिए इन्हें अपमार्जक कहा जाता है। लकड़बग्घा तथा गिद्ध जैसे- जीवों को इस वर्ग में रखा जाता है।
अपृष्ठवंशी
- ऐसे जीव जिनमें रीढ़ की हड्डी नहीं होती ।
उत्पादकता
- प्रति इकाई क्षेत्रफल तथा प्रति इकाई समय जैविक पदार्थ के उत्पादन की दर ।
ऊर्जा दक्षता
- किसी प्राणी अथवा किसी पोषी समुदाय की भोजन के रूप में प्राप्त की गई ऊर्जा तथा जैव भार के रूप में संचित ऊर्जा का अनुपात.
एल्विडो
- किसी तल द्वारा प्राप्त सौर ऊर्जा के परावर्तन का अनुपात क्रमक जैविक अनुक्रमण की प्रक्रिया में एक अवस्था।
खरपतवार नाशक
- इस प्रकार की दवाएं जो फसलों को खरपतवार के रूप में उगने वाले पौधों से बचाने के लिए उपयोग की जाती है।
खाद्य श्रृंखला
- विभिन्न जीव-जंतुओं द्वारा भोजन के लिए किसी को खाना तथा किसी के द्वारा खाए जाने की प्रक्रिया।
खाद्य जाल
- परस्पर जुड़ी एक से अधिक खाद्यश्रृंखलाओं का मिश्रित स्वरूप
चारण श्रृंखला
- किसी पारितंत्र में जैविक पदार्थ का बड़े शाकाहारियों तथा मांसाहारियों के माध्यम से स्थानांतरण ।
जलवायविक चरम समुदाय
- एक ऐसा जैविक समुदाय जो क्षेत्रीय जलवायु से पूरी तरह से अनुकूलित होता है और जब तक पर्यावरण में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन न हो, तब तक स्थायी बना रहता है।
जैव भार
- किसी समस्त पारितत्र अथवा खाद्य श्रृंखला के एक पोषी स्तर पर उपस्थित जीव-जंतुओं का कुल भार जैव भार को कई बाद शुष्क जैव भार के रूप में भी मापा जाता है।
जैव विविधता
- किसी पारितंत्र अथवा क्षेत्र में समस्त पादपों तथा जंतुओं की विविधता। कई बार किसी क्षेत्र के जीनों को भी इसमें सम्मिलित किया जाता है।
जैव विविधता प्रखर स्थल
एक ऐसा क्षेत्र जिसमें प्रजातियों की स्थानिकता का स्तर काफी ऊँचा हो तथा इनका आशंका बांध भी हो।
जैव भू-रसायन चक्र
- किसी पारितंत्र में पोषक तत्वों का चक्रीय संचरण।
जैविक अनुक्रमण
- किसी क्षेत्र में जैविक समुदाय द्वारा अपने पर्यावरण में परिवर्तन करते हुए एक ऐसे स्थायी समुदाय का विकास जो अपने क्षेत्रीय पर्यावरण के साथ पूरी तरह से अनुकूलित हो।
जरायुज (सजीव प्रजक अथवा पिण्डज)
- ऐसे पौधे जिनके बीज फलों में या पौधों पर ही अंकुरित हो जाते और प्रकाश संश्लेषण करने लगते हैं। मैंग्रोव प्रजाति के अनेक पौधों में यह लक्षण पाया जाता है।
तापीय प्रदूषण
- जलराशियों के तापमान में उद्योगों आदि द्वारा गर्म पानी डाले जाने के परिणामस्वरूप वृद्धि।
दीप्ति मंदन
- वायुमंडल में धूल कणों आदि की वृद्धि से सूर्य से आने वाले प्रकाश में कमी होना।
द्रुम
- वृक्षों में पाए जाने वाले वलय। इनमें से प्रत्येक वलय वृक्ष में एक वर्ष की अवधि में हुई जैविक वृद्धि को दर्शाता है। दो निकटतम द्रुमों के बीच का अंतर वृद्धि की दर का परिचायक होता है।
द्रुम कालानुक्रम
- वृक्षों में पाए गए हुमों के आधार पर उनके वर्द्धन काल का अनुमान लगाना।
पारिनिकेतन
- जीव-जंतुओं के एक सीमित समूह का पारितंत्र पारिस्थितिकी अध्ययन में यह सबसे छोटी इकाई होती है। सामान्यतः एक पारितंत्र में कई पारिनिकेतन हो सकते हैं।
पारिस्थितिकी विज्ञान
- जीव-जंतुओं तथा उनके पर्यावरण के सह-संबंधों तथा मध्य अन्योन्य क्रिया का अध्ययन करने वाला विज्ञान।
पारिस्थितिकी संतुलन
- किसी पारितंत्र में जैविक पदार्थ के उत्पादन तथा उपभांग में संतुलन की स्थिति।
पारितंत्र असंतुलन
- किसी पारितंत्र में जैविक पदार्थ के उत्पादन तथा उपभोग में विषमता की स्थिति।
पोषी स्तर
- खाद्य श्रृंखला का एक चरण, उदाहरण के लिए पादप उत्पादक खाद्य श्रृंखला के प्रथम पोषी स्तर पर तथा शाकाहारी द्वितीय पोषी स्तर पर होते हैं।
पोषी समुदाय
- एक पोषी स्तर पर रहने वाले अथवा एक पोषी स्तर से भोजन प्राप्त करने वाले जीवों का समुदाय।
प्राथमिक उत्पादकता
- किसी पारितंत्र में पादपों द्वारा प्रति इकाई क्षेत्रफल तथा प्रति इकाई समय जैविक पदार्थ के उत्पादन की दर ।
बृहत विविधता वाले क्षेत्र
- ऐसे क्षेत्र जहाँ सीमित क्षेत्रफल में अत्यधिक जैव विविधता पाई जाती हो।
मृदीय उपचरम
- अनुक्रमण में एक ऐसी परिस्थिति जहाँ कोई जैविक समुदाय (क्रमक) किसी पर्यावरण संबंधी गतिरोध के कारण लगभग स्थायी हो जाता है।
मरुदभिद
- वह जीव-जंतु जो मरुस्थलीय परिस्थितियों से अनुकूलित होते हैं।
वायव जड़ें :
- मैंग्रोव वनस्पति की पानी से ऊपर उभरी हुई जड़ें जिनसे ये वायुमंडल से विभिन्न गैसों का अवशोषण करते हैं।
वार्व:
- प्रतिवर्ष जमने और पिघलने वाली जलराशियों में पाई जाने वाली तलछट की परतें ।
विषमजनिक अनुक्रमण
- एक ऐसा अनुक्रमण जिसमें जैविक समुदायों के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पहले से उपस्थित होती हैं और जैविक समुदाय उनमें केवल मामूली परिवर्तन करते हैं। इस प्रकार के अनुक्रमण को अन्यत्रजनिक अनुक्रमण भी कहा जाता है।
स्थानिकता
- किसी वनस्पति अथवा जन्तु प्रजाति का किसी क्षेत्र विशेष में ही पाया जाना ।
स्थायी तुषार भूमि
- ऐसा क्षेत्र जहाँ मिट्टी में उपस्थित जल वर्ष भर जमी हुई अवस्था में रहता है।
सुपोषण
- जलराशियों में पादपों की मात्रा में तीव्र वृद्धि होना। आसपास के क्षेत्रों से बह कर आने वाले जल के साथ उर्वरकों की बड़ी मात्रा झीलों इत्यादि में आ जाती है जिससे यहाँ पर जलीय खरपतवार इत्यादि की वृद्धि दर ऊँची हो जाती है। इस अतिरिक्त जैविक पदार्थ की अत्यधिक वृद्धि तथा निक्षेपण के परिणामस्वरूप झीलों का भराव होने लगता है। जैविक पदार्थ के अधिक उत्पादन के साथ ही इन जलराशियों की जैविक ऑक्सीजन आवश्यकता में भी वृद्धि होती है तथा ऑक्सीजन की कमी के कारण जैविक पदार्थ का अपघटन बाधित होता है। यह भी जलराशियों के भराव में योगदान देता है।
स्वगत अनुक्रमण
- एक ऐसा अनुक्रमण जिसमें जैविक समुदाय स्वयं को स्थापित करने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है।
स्वस्थानिक संरक्षण
- जीव-जंतुओं के संरक्षण की ऐसी विधि जिसमें उनको उनके मूल निवास क्षेत्र में ही संरक्षण प्रदान किया जाता है।
शैवाल प्रस्फुटन
- झीलों इत्यादि के सुपोषण की ही भांति समुद्रों में भी कई बार शैवाल के उत्पादन में तीव्र वृद्धि होती पाई जाती है जिसे शैवाल प्रस्फुटन कहते हैं। इस वृद्धि का कारण समुद्रों में नदियों के रूप में आने वाले जल तथा अवसादों में पोषक तत्वों की बड़ी मात्रा का आना है। कृषि क्षेत्रों में रसायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से इस प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है।
शंकुधारी
- ऐसे पौधे या वृक्ष जिनके फल या बीज शंकु होते हैं। यद्यपि इस प्रकार के अनेक वृक्षों की आकृति भी शंक्वाकार होती है परंतु उनको यह नाम उनकी आकृति के आधार पर नहीं दिया जाता।
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