प्रमुख ऐतिहासिक महिलाएं| महान ऐतिहासिक महिलाएं | Famous Historic Women in Hindi
प्रमुख ऐतिहासिक महिलाएं, महान ऐतिहासिक महिलाएं, Famous Historic Women in Hindi
महान ऐतिहासिक महिलाएं (Famous Historic Women in Hindi)
सावित्री बाई फूलेः (1831-1897 )
- यह भारत की महान समाज सुधारक तथा मराठी कवियित्री थीं। यह देश के प्रथम कन्या विद्यालय तथा किसान विद्यालय की प्रधानाध्यापिका थीं। वह जीवनपर्यंत सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध लड़तीं रहीं। वह स्कूल जाती थीं तो लोग उन पर पत्थर, कूड़ा तथा गंदगी फेंकते थे। वह अपने झोले में साड़ी लेकर चलती थीं तथा विद्यालय पहुंचकर वस्त्र बदल लेतीं थीं।
रानी कमलापतिः
- भारत में मुगल साम्राज्य के पतन के बाद भोपाल से 55 किलोमीटर दूर चकला गिन्नौर में 750 ग्राम सम्मिलित थे। उस समय यहां गोंड़ राजा निजाम शाह का राज्य था, जिनकी सात रानियां थीं, जिनमें कृपाराम गौड़ की पुत्री कमलापति भी थी, जो अति सुन्दर थीं, रानी जितनी सुन्दर थी उतनी ही वीर और बुध्दिमान भी। निजाम शाह के परिवार का भतीजा चौनशाह का बाड़ी पर राज्य था, उसे अपने चाचा से ईष्या थी। उसने अपने चाचा की हत्या करने के लिए कई प्रयास किये थे। चौनशाह ने धोखे से निजाम शाह को विष दे दिया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। चौनशाह के षड्यंत्रों से बचने के लिये विधवा कमलापति और उसका एकमात्र पुत्र नवलशाह गिन्नौरगढ़ के किले में छुपे हुए थे, यह किला गौड़ राजाओं के समय में ही बना था जो चारों ओर से घने वनों से ढंका हुआ था। पति की हत्या का बदला लेने के लिए इन्होंने दोस्त मुहम्मद खान को राखी भेजकर भाई बना लिया तथा उसके सहयोग से अपने पति की हत्या का बदला चौनशाह से लिया।
नवाब कुदसिया बेगम (गौहर बेगम):
- यह भोपाल की प्रथम महिला शासिका तथा 8वीं नवाब थीं। इन्होंने भोपाल रियासत पर 1819 से लेकर 1837 तक राज किया। वह कुशल शासिका थीं। इन्होंने अपने शासन काल में अनेक आकर्षक ईमारतो तथा बावड़ियों का निर्माण करवाया। इनके द्वारा निर्मित गौहर महल आज भी भोपाल की शान है।
सिकंदरजहाँ बेगमः
- कुदसिया बेगम पश्चात उनकी पुत्री सिकंदर जहां अगली नवाब बनीं। इन्होंने 21 वर्षों तक भोपाल पर शासन किया। यह भोपाल के लिए स्वर्णिम युग माना जाता है। 1848 से 1868 तक शासन करने वाली सिकंदर जहां बेगम की उपलब्ध्यिों में जामा मस्जिद फिर से खुलवाना माना जाता है जिसे अंग्रेजों द्वारा बंद कर दिया गया था। 1857 के विद्रोह के बाद भोपाल में अंग्रेजों द्वारा दोहरी शासन पद्धति अपनायी गई। इसमें वास्तविक सत्ता का अधिकार उनके मामा फौजदार मोहम्मद के हाथ में दे दिया गया। बेगम सिंकदर जहां ने इस शासन पद्धति का विरोध किया और रियासत की बागडोर पुनः हासिल कर लीं।
नवाब शाहजहाँ बेगमः
- नवाब सिकंदर जहां बेगम के बाद उनकी पुत्री शाहजहां बेगम नवाब बनीं। इन्होंने 1868-1901 तक भोपाल पर शासन किया। इनके शासनकाल में फौज, अदालत, पुलिस, वित्त एवं राजस्व विभाग अलग अलग कर दिए गए। ताजपोशी के तुरंत बाद इन्होंने राज्य भर का दौरा किया तथा अनेक सुधारकार्य करवाये। इनके शासन काल में तांबे के सिक्कों के स्थान पर चांदी का सिक्का प्रचलन में आया। इस प्रगतिशाली शासिका ने भोपाल में कई मस्जिदों और और आलीशान महलों का निर्माण करवाया। इनके शासन काल में एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद ताजुल मस्जिद का निर्माण प्रारंभ हुआ, परंतु धन की कमी के कारण इसे बाद में पूरा किया गया।
नवाब सुलतानजहाँ बेगम
- यह नवाब शाहजहां बेगम की पुत्री थी तथा 4 जुलाई 1901 में इनकी ताजपोशी हुई। शिक्षा के प्रचार प्रसार में इनका अत्यधिक झुकाव था। उन्होंने कई किताबें भी लिखीं जिनमें तुजके सुल्तानी, गौहर इकबाल अख्तर इकबाल हयाते कुदसी, हयाते शाहजहांनी, खुतवाते सुल्तानी, तजकराबाकी, हयाते सिकन्दरी, फलसफाये अखलाक, बागे अजब, हिदायते तीमारदारी एवं उमरे खानदानी आदि शामिल हैं। नवाब सुल्तान जहां बेगम द्वारा सदर मंजिल, बाग फरहत अफजा, जियाउद्दीन टेकरी पर अहमदाबाद पैलेस (कसरे सुल्तानी) आदि का निर्माण कराया गया। शाहजहांनाबाद और अहमदाबाद के बीच जनरल कोर्ट, रेवेन्यू कोर्ट, 1913 ई. में हमीदिया लाइब्रेरी, पुराने किले के पास चार बंगले तथा लार्ड मिन्टों के नाम पर मिंटो हाल तथा लाल पत्थरों की एडवर्ड म्यूजियम नामक इमारत बनवाई। इसके अलावा इनके दौर में कारखाने, पंचायतें और तहसीलें बनायी गई। मालगुजारी खत्म करके रईयतवारी का निजाम कायम किया गया।
सरोजनी नायडू: ( 1879-1849):
- इनका जन्म हैदराबाद में हुआ। सरोजनी नायडू बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि की थीं। उन्होंने 12 वर्ष की अल्पायु में ही 12वीं की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की थी। यह कवियित्री भी थीं। तीन पुस्तकों के प्रकाशन के उपरांत सुप्रसिद्ध कवियित्री बन गई। गांधीजी के विचारों से प्रभावित सरोजनी नायडू गांव-गांव घूमकर देश प्रेम का अलख जगाती थीं। 1964 में उनके सम्मान में भारत सरकार द्वारा डाक टिकट जारी किया गया।
दुर्गा भाभी (1902–1999) :
- क्रांतिकारियों को समय-समय पर सहयोग उपलब्ध करवाने वाली दुर्गा भाभी क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा की पत्नी थीं। 1930 में पति के शहीद होने के उपरांत भी दुर्गा भाभी क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न रहीं। 1930 में इन्होंने गवर्नर हैली पर गोली चला दी जिसमें गवर्नर बच गया और उसका सहयोगी घायल हो गया। इस घटना के बाद वह प्रमुख क्रांतिकारियों की जमात में शामिल हो गयीं। दिसम्बर 1928 में भगत सिंह ने दुर्गा भाभी के साथ ही वेश बदलकर यात्रा किया। चंद्रशेखर आजाद ने जिस पिस्तौल से गोली मारी थी वह पिस्तौल दुर्गा भाभी द्वारा ही उपलब्ध करवायी गई थी।
किरण मजूमदार
- शॉकिरण मजूमदार शॉ भारतीय महिला व्यवसायी, टेक्नोक्रेट, अन्वेषक और बायोकॉन की संस्थापक है, जो भारत के बंगलौर में एक अग्रणी जैव प्रौद्योगिकी संस्थान है। वे बायोकॉन लिमिटेड की अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक तथा सिनजीन इंटरनेशनल लिमिटेड और क्लिनिजीन इंटरनेशनल लिमिटेड की अध्यक्ष हैं। उन्होंने 1978 में बायोकॉन को शुरू कर किया और उत्पादों के अच्छी तरह से संतुलित व्यापार पोर्टफोलियो तथा मधुमेह, कैंसर- विज्ञान और आत्म-प्रतिरोध बीमारियों पर केंद्रित शोध के साथ इसे एक औद्योगिक एंजाइमों की निर्माण कंपनी से विकासित कर पूरी तरह से एकीकृत जैविक दवा कंपनी बनाया ।
कर्णम मल्लेश्वरीः
- कर्णम मल्लेश्वरी का जन्म 1 जून, 1975 को श्रीकाकुलम, आंध्र प्रदेश में हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत जूनियर वेटलिफ्टिंग चाँपियनशिप से की, जहां उन्होंने नंबर एक पायदान पर कब्जा किया। 1992 के एशियन चौंपियनशिप में मल्लेश्वरी ने 3 रजत पदक जीते। वैसे तो उन्होंने विश्व चैंम्पियनशिप में 3 कांस्य पदक पर कब्जा किया है, किन्तु उनकी सबसे बड़ी कामयाबी 2000 के सिडनी ओलंपिक में मिली, जहां उन्होंने कांस्य पर कब्जा किया और इसी पदक के साथ वे ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी।
सुनीता नारायणः
- पर्यावरणविद और राजनीतिक कार्यकर्ता सुनीता नारायण समाज की हरित विकास की समर्थक हैं। दशकों से वे पर्यावरण और समाज की मूलभूत समस्याओं के लिये जागरूकता फैलाने का काम कर रही हैं। वर्ष 2001 में उन्हें इसी संस्थान का निदेशक बना दिया गया था। उन्होंने समाज के उत्थान के लिये पानी से जुडी समस्याओं, प्रकृति और वातावरण से जुड़े मुद्दों आदि पर काम किया है।
गुलाबो सपेरा:
- कालबेलिया नृत्य राजस्थान के आदिवासी समाज कालबेलिया का पारंपरिक नृत्य है। जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कालबेलिया नर्तकी गुलाबो सपेरा ने पहचान दिलाई है। कम लोगों को पता होगा कि इस कलाकार को पैदा होते ही समाज की महिलाओं ने जमीन में गाड़ दिया था। अपनी मौसी की बदौलत उन्हें नया जीवन मिला। जिस समाज की रीति-रिवाजों के कारण उन्हें पैदा होने के एक घंटे बाद जमीन में गाड़ दिया गया था उसी समाज को उन्होंने दुनिया में पहचान दिलाई है।
शिवालिका
- भारत में पुरुषों की तरह अब महिलाओं में भी बॉडी बिल्डिंग का क्रेज बढ़ रहा है। कई लड़कियां अपनी बॉडी बनाने के लिए जिम में घंटों एक्सरसाइज करने लगी हैं। ऐसी ही एक बॉडी बिल्डर कोलकाता की रहने वाली सिबालिका साहा हैं, जिन्हें भारत की पहली महिला बॉडी बिल्डर कहा जाता है। 35 साल की सिबालिका ने वर्ल्ड चौम्पियनशिप-2012 में हिस्सा लिया था जिसमें वह पांचवे स्थान पर रहीं। ऐसा करने वाली वह भारत की पहली वुमन बॉडी बिल्डर हैं। उन्हें इंडियन सुपरवुमन भी कहा जाता है।
टेसी थामसः
- वैज्ञानिक टेसी थॉमस को 1988 से अग्नि प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम से जुड़ने के बाद से ही अग्निपुत्री टेसी थॉमस के नाम से भी जाना जाता है। उनकी अनेक उपलब्धियों अग्नि-2, अग्नि-3 और अग्नि-4 प्रक्षेपास्त्र की मुख्य टीम का हिस्सा बनना और सफल प्रशीक्षण है।
भूरी बाई:
- आज से कई साल पहले जब अपने पति के साथ मजदूरी की तलाश में भील आदिवासी महिला भूरी बाई भोपाल पहुंची उस वक्त शायद वह भी नहीं जानती दुनिया भर में मशहूर हो जाएंगी। आज पिथोड चित्रकला के लिए दुनिया भर में इनके नाम की धूम है। झाबुआ जिले के गांव पिटोल मोरी बावड़ी में जन्मी भूरी बाई ने अपनी कला के जरिए विशिष्ट पहचान बनाते हुए यह साबित कर दिखाया है कि कुछ कर दिखाने की तमन्ना हो, तो असंभव कुछ भी नहीं।
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