Hindi Sahitya Prashn Uttar |हिंदी साहित्य के प्रश्न उत्तर
Hindi Sahitya Prashn Uttar (हिंदी साहित्य के प्रश्न उत्तर)
Hindi Sahitya Prashn Uttar (हिंदी साहित्य के प्रश्न उत्तर)
प्रश्न
यशपाल की कहानियों का परिचय दीजिए।
उत्तर
- यशपाल हिन्दी कहानी साहित्य के श्रेष्ठ कथाकारों में से एक है। यह मार्क्सवादी दर्शन से प्रभावित हैं। इनकी कहानियों में यथार्थवादी दृष्टिकोण हैं और इनमें समाज की कुरीतियों की कटु आलोचना है। ये कला और जीवन में स्वाभाविकता के पक्षपाती हैं। इन्होंने सामजिक ऐतिहासिक और पौराणिक कहानिया लिखी है जो अत्यन्त संयत और स्वाभाविक हैं। उपेन्द्रनाथ अश्क का कहानी संबंधी दष्टिकोण यशपाल जैसा ही है। चन्द्रगुप्त विद्यालकार, रामप्रसाद पहाड़ी चंद्रकिरण सॉनरेक्सा आदि भी इसी पथ के राही कहानीकार हैं।
प्रश्न
आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी के निबंधों का परिचय दीजिए।
उत्तर-
- आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी ने आलोचनात्मक निबंध ही अधिक लिखे हैं जिनमें गंभीर और व्यापक अध्ययन, मौलिक चिंतन और सिद्धांत प्रतिपादन की प्रकृति ही अधिक दिखाई पड़ती है। इनमें निबंध के उल्लासमयी ललित आत्मा के प्रायः दर्शन नहीं होते। इनके निबंधों में उनके अपने व्यक्तित्व की छाप नहीं दिखाई देती।
प्रश्न
रामधारी सिंह दिनकर के निबंधों का परिचय दीजिए?
उत्तर
- रामधारी सिंह दिनकर के निबंध संख्या और गुण के आधार पर बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। यद्यपि वे कवि के रूप में प्रसिद्ध हुए और गद्यकार रूप बहुत स्पष्ट सामने नहीं आ पाया पर वास्तव में वे गद्य और पद्य दोनों विधाओं को लिखने में निपुण थे। उनके प्रसिद्ध निबंध संग्रह है-मिट्टी की ओर, अर्द्धनारीश्वर गुप्त, प्रसाद और पंत, साहित्यमुखी, शुद्ध कविता की खोज, रीति के फूल आदि। इनके निबंधों में सर्वत्र मानवतावादी दृष्टिकोण दिखाई देता है। इनके निबंध अति स्पष्टता से पाठकों तक भाव प्रकट करते हैं।
प्रश्न
प्रेमचन्दोत्तर मनोविश्लेषणवादी हिन्दी उपन्यास साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर
- आधुनिक मनोविज्ञान और मनोविश्लेषण शास्त्र के प्रकाश में मान मन की कुंठाओं, ग्रंथियों और दमित वासनाओं की व्यवस्था करने वाले उपन्यास मनोविश्लेषणवादी कहलाते हैं। इस कोटि के अन्तर्गत आने वाले उपन्यासकारों पर फ्रायड, एडलर और युग की विचारधारा का पर्याप्त प्रभाव पड़ा है। उस दृष्टि से जनेन्द्र कत परख, सुनीता, त्यागपत्र और कल्याणी इलाचंद्र जोशी कत सन्यासी पर्दे की रानी, प्रेत और छाया तथा जहाज का पंछी और अज्ञेय कत शेखर एक जीवनी, नदी के द्वीप तथा अपने अपने अजनबी विशेष उल्लेखनीय है। प्रेमचंदोत्तर युग के व्यक्तिवादी उपन्यास साहित्य पर टिप्पणी लिखिए।
प्रश्न
प्रेमचन्दोत्तर युग के व्यक्तिवादी उपन्यास साहित्य पर टिप्पणी लिखिए ?
उत्तर-
- कुछ उपन्यासकारों ने समाज सत्ता की अपेक्षा व्यक्ति सत्ता को महता प्रदान की है। उन्होंने व्यक्तिवादी जीवन दष्टि से मानवीय मूल्यों और धारणाओं को व्याख्यायित किया है। इस वर्ग के अन्तर्गत भगवती प्रसाद वाजपेयी, उषा देवी मिश्रा तथा उदयशंकर भट्ट आदि आते हैं। वर्मा जी के चित्रलेखा, टेढ़े-मेढे रास्ते, वाजपेयी के दो बहनें, चलते-चलते, मित्रा के पिया वचन का मोल और मटट के नये मोड़ तथा एक नीड़ दो पछी आदि उपन्यासों में व्यक्ति की सत्ता और महत्ता का अत्यन्त सफलतापूर्वक चित्रण हुआ है।
प्रश्न
स्वातन्त्रोत्तर हिन्दी उपन्यास साहित्य पर संक्षेप में लेख लिखिए।
उत्तर
- स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् हिन्दी उपन्यासकारों की एक पूरी पीढ़ी उभर कर सामने आई है। इनके उपन्यासों में सामाजिक यथार्थ को व्यापक स्वीकति व्यक्ति स्वतंत्रण को प्रवति तथा आधुनिक बोध की अनुभूति दर्शनीय है। इस दष्टि से मोहन रोकेश (अंधेरेबंद कमरे), राजेन्द्र यादव (उखड़े हुए लोग), कमलेश्वर (काली आंधी), धर्मवीर भारती (गुनाहों का देवता), उषा प्रियंवदा (रूकोगी नहीं राधिका), श्री लाल शुक्ल (राजदरबारी), मन्नु भण्डारी (आपका बंटी) आदि का योगदान अविस्मरणीय है।
प्रश्न
हिन्दी निबंध के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
- "गद्य क वीनां निष्कर्ष वदन्ति" के आधार पर हिन्दी में आचार्य शुक्ल का कथन है कि -"यदि गद्य कवियों की कसौटी है, तो निबंध गद्य की कसौटी है। अतः जब तक किसी भाषा के गद्य का स्वरूप व्यवस्थित नहीं हो जता, तब तक उच्चकोटि के निबंधों का सजन असंभव है। आधुनिक युग से पूर्ण हिन्दी में निबंध के अभाव का सबसे बड़ा कारण यह है कि उस समय व्यवस्थित और परिष्कृत गद्य अनुपलब्ध था आधुनिक काल में मुद्रण यंत्र तथा पत्र-पत्रिकाओं के प्रचलन और पाश्चात्य साहित्य के संपर्क के कारण ही हिन्दी निबंध का जन्म और विकास संभव हो सका है।
प्रश्न
प्रेमचन्द पूर्ण हिन्दी कहानी साहित्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर -
- 'सरस्वती' और 'इन्दु' नामक पत्रिकाओं के प्रकाशन के साथ ही हिन्दी कहानी का जन्म हुआ हिन्दी की प्रथम कहानी के रूप में चर्चित रानी केतकी ही कहानी (इशा अल्ला खां) राजाभोज का सपना (शिव प्रसाद सितारे हिन्द), अद्भूत अपूर्व स्वप्न (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ) ग्यारह वर्ष का समय (रामचंद्र शुक्ल) और इन्दुमति (किशोरीलाल गोस्वामी) इनके पश्चात वंग महिला की ढुलाई वाली तथा सन् 1909 में वदावन लाला वर्मा की राखी बंद भाई का प्रकाशन हुआ इसी समय इन्दु के माध्यम से प्रसाद का पर्दापण हुआ।
प्रश्न
प्रयोगशील परम्परा के हिन्दी उपन्यासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
- कहानी और कविता की भांति उपन्यास क्षेत्र में भी आजकल कुछ नवीन प्रयोग दिये गये हैं। धर्मवीर भारती का 'सूरज का सातवा घोड़ा' में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की अलग-अलग कहानियों को एक सूत्रात्मकता केन्द्र देने का प्रयास किया गया है। रूद्र जी ने बहती गंगा में सत्रह कहानियों के द्वारा काशी नगरी के पिछले दो सौ वर्षों की ऐतिहासिक झांकी प्रस्तुत की है। गिरधर गोपाल ने चांदनी के खंडहर में केवल चौबीस घण्टों की कथा को अपने उपन्यास का विषय बनाया है। 'ग्यारह सपनों का देश अनेक लेखकों द्वारा लिखा गया है।
प्रश्न
आधुनिक बोध से प्रभावित हिन्दी उपन्यासों का वर्णन कीजिए?
- आज के उपन्यास को भी आधुनिक औद्योगिकरण, बौद्धिकता, यन्त्रीकरण तथा पश्चिमी विचारधारा ने प्रभावित किया है। मोहन राकेश के अंधेरे बंध कमरे और आने वाला कल आधुनिकता से प्रभावित उपन्यास है। राजकमल चौधरी का मछली मरी हुई समलैंगिक मौन सुख से लिप्त स्त्रियों की कहानी है। श्रीकांत वर्मा, कमलेश्वर, नरेश मेहता, कृष्णा सोवती आदि ने आधुनिक जीवन की संवेदनाएं प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
प्रश्न
प्रेमचन्द और प्रसाद युग के कहानी साहित्य पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
- प्रेमचन्द और प्रसाद ने हिन्दी कहानी साहित्य को एक नया मोड़ दिया, उन्होंने कहानी को जन-जीवन से जोड़ा। आधुनिक कहानी का सूत्रपात इन्हीं से होता है। 1911 में प्रसाद की प्रथम कहानी ग्राम तथा प्रेमचन्द सन् 1916 में पंचपरमेश्वर की कहानी छपी प्रेमचन्द ने लगभग 300 कहानियां लिखीं। पूस की रात'. 'नमक का दरोगा कफन, ईदगाह आदि। प्रसाद ने प्रतिध्वनि, आकाशदीप आंधी, इन्द्रजाल आदि प्रसिद्ध कहानियां है। पाण्डेय बेचन शर्मा, चतुरसेन शास्त्री चन्दावन लाला वार्म आदि इस युग के उल्लेखनीय कहानीकार है।
प्रश्न
प्रेमचदोत्तर काल कहानी साहित्य स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर
- प्रेमचंदोत्तर काल में सर्वप्रथम आते हैं मनोवैज्ञानिक कहानीकार इनमें जैनेन्द्र, अज्ञेय इलाचन्द्र जोशी तथा भगवती प्रसाद वाजपेयी आदि प्रमुख हैं। इन कहानी कारों ने घटना प्रधान कहानियों की जगह सूक्ष्म, मनोविज्ञान तथा चरित्र प्रधान कहानियां लिखीं। जैनेन्द्र की पाजेब कहानी जगत प्रसिद्ध है। खेल, फांसी एक गौ, एक रात आदि उनकी उल्लेखनीय कहानियां है। विपथगा, परम्परा कोठरी की बात आदि अज्ञेय जी के प्रसिद्ध कहानियां हैं। यशपाल, अमतराय नागर, उपेन्द्रनाथ अश्क रांगेय राघव तथा विष्णुप्रभाकर आदि इस युग के मुख्य कहानीकार हैं।
प्रश्न
आधुनिक युग के कहानी साहित्य पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
- आधुनिक युग के कहानीकारों में फणीश्वरनाथ रेणु (आंचलिक कहानीकार), राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर, मोहन राकेश, अमरकान्त, धर्मवीर भारती, उषा प्रियवदा आदि हैं। इनमें राजेन्द्रयादव का जहां लक्ष्मी कैद है', धर्मवीर भारती का 'चांद और टूटे हुए लोग', शैलेश-मटियानी का मेरी तैंतीस कहानिया आदि प्रसिद्ध कहानी-संग्रह हैं। हरिशंकर परसाई जे. पी. श्रीवास्तव के. पी. सक्सेना, बेदब बनारसी आदि हास्य व्यंग्य के कहानीकार है।
प्रश्न
साठोत्तरी कहानी साहित्य का निरूपण कीजिए।
उत्तर -
- सन् 1960 के बाद भारतीय जीवन में मोहभंग की स्थिति आती है। ऐसे समय में लगा कि जिंदगी का सारा अंदरूनी ढांचा भुरभुरा मिट्टी की तरह ढहते जा रहा है। कुछ लेखकों के एक वर्ग ने यह घोषणा की कि वह समकालीन जीवन के आंदोलन के स्तर पर एक पहचान लेकर आया है। इस प्रकार यह समय एक नया तेवर लेकर आगे आया है। ज्ञानरंजन, दूधनाथ सिंह कमलानाथ ममता कालिमा, सुधा अरोड़ा आदि इस युग के कहानीकार है।
प्रश्न
हिन्दी अकहानी पर संक्षेप में प्रकाश डालिए?
उत्तर -
- अकहानी के जन्मदाता वो कहानीकार हैं जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद होश संभाला। यद्यपि अकहानी भी कहानी है पर वह अपने से पिछली कहानियों की विशेषताओं मुक्त कहानी में जो अनुभूति की प्रमाणिकता और भोगे हुए यथार्थ का स्वर था वह अब असत्य और कल्पित माना जाने लगा। दूधनाथ सिंह, ज्ञानरंजन, गंगाप्रसाद वियन, शानी परेश आदि अकहानी के प्रमुख कहानीकार हैं। इन कहानियों का विषय लोकतंत्र की विद्रुपता, युवावर्ग की बौखलाहट आदि हैं।
प्रश्न
हिन्दी की सचेतन कहानी साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए?
उत्तर
- सन् 1964 के आस-पास कहानी के क्षेत्र में एक नया आंदोलन प्रारम्भ हुआ। इसे सचेतन कहानी नाम दिया गया। इसके प्रवर्तक महीप सिंह हैं। उनके संपादन में एक सचेतन पत्रिका निकली और इस तरह के अन्य कहानीकार इन आंदोलन में शामिल होते गए सचेतन कहानी में यथार्थ के प्रति परिवेश के प्रति, जीवन मूल्यों के प्रति एक नई दष्टि का बोध होता है। महीप सिंह ने कहा है-"जीवन को उसकी सारी विसंगतियों में जी कर झेलने की दृष्टि ही सचेतन दृष्टि है।" महीपसिंह, श्याम परमार, मनहर चौहान, मधुकर सिंह इस कहानी आंदोलन के मुख्य कहानीकार है।
प्रश्न
अचेतन कहानी आंदोलन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर -
- सातवें दशक से पूर्व कुछ लोग सचेतन कहानी की प्रतिक्रिया में अचेतन कहानी के नाम का नारा बुलन्द करने वाले भी देखे गए हैं। इन कहानियों का विषय समाज के अलगाव और बिखराव का चित्रण है। संत्रास, मय, कुंठा, हताशा आदि का चित्रण ऐसी कहानियां करती है। अचेतन कहानी के प्रवर्तक गिरिराज किशोर तथा काशीनाथ सिंह आदि माने गए हैं।
प्रश्न
सक्रिय कहानी आंदोलन का विवेचन कीजिए।
उत्तर
- सन् 1980 के आस-पास हिन्दी कहानियों के नाम के साथ एक और आदोलन जुड़ता हुआ दिखाई देता है। कुछ कहानीकारों ने पश्चिम की एक्टिव स्टोरी की तरह हिन्दी में भी कहानी लिखना आरम्भ किया, इसका आरम्भ 'मंच' पत्रिका के प्रकाशन के साथ हुआ। इसके संपादक राकेशवत्स हैं। इस कहानी के लेखकों ने सक्रिय कहानी को समझाते हुए उसका स्वरूप इस प्रकार व्यक्त किया है- "सक्रिय कहानी का सीधा और स्पष्ट मतलब है आदमी की चेतना, दर्जा और जीवंतता की कहानी"
प्रश्न
हिन्दी नाटक के स्वरूप का विवेचन कीजिए?
उत्तर
- हिन्दी नाटक के विकास के विषय में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है। विद्वानों का मत है कि हिन्दी नाटक का उद्भव काल 13वीं शताब्दी और उससे भी पहले विद्यापति से माना जाता है। वैसे नाटक का सम्यक् विकास आधुनिक काल में भारतेन्दु काल से ही माना गया है। डॉ. दशरथ ओझा ने गय-सुकुमार' (सन् 1232) नामक नाटक को हिन्दी काप्रथम नाटक माना है। दूसरे विद्वान गोपालचन्द्र के नहुष को प्रथम मानते हैं परन्तु नाटक कौन सा प्रथम है यह विवाहित है। संक्षेप में यूं कह सकते है-हिन्दी नाटक का उद्भव भी हिन्दी उपन्यास कार एवं कहानी की भांति 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ही हुआ है।
प्रश्न
नई कहानी की शिल्पगत विशेषताओं का परिचय दीजिए।
उत्तर -
- शिल्प की दृष्टि से नई कहानी बहुत आगे बढ़ गई है। उसमें सांकेतिकता, प्रतीकात्मकता, बिम्ब विधायकता, भाषा ही सजनशीलता, शैली की नित्य नूतनता दर्शनीय है। नई कहानी की सांकेतिकता कुण्ठा, ग्रस्त, स्त्री-पुरुषों की मनो-ग्रंथियों को खोलकर रख देने में सक्षम है। जीवनकी जटिलताओं को व्यक्त करने के लिए नए कथाकारों ने कई तरह के दिम्ब–विधान किए हैं। निर्मल वर्मा, कमलेश्वर और अज्ञेय की कहानियों में अर्थपूर्ण बिम्ब-विधान के उदाहरण मिलते हैं।
प्रश्न
नई कहानी के वैयक्तिकता संबंधी पहलुओं का उद्घाटन कीजिए।
उत्तर
- नई कहानी के वैयक्तिक संदर्भ जीवन के गहन-गंभीर पत्रों को ही व्यक्त करते हैं। इस क्रम की सारी कहानियां सम्बंधों के बनने और सम्बन्धों के टूटने की है व संबंधों से टूटे व्यक्ति के एकांकीपन की पीड़ा इन कहानियों में व्यक्त है। नई कहानियों में स्त्री पुरुष के बदले हुए संबंधों का चित्रण हुआ है। यह स्वतन्त्रता और बाद में तेजी से बढ़ते हुए औद्योगिकरण शहरीकरण की परिस्थितियों को नई कहानी में सशक्त अभिव्यक्ति मिली है।
प्रश्न
प्रेमचदोत्तर हिन्दी उपन्यास की प्रमुख प्रवतियां क्या थी ?
उत्तर
- प्रेमचन्द के बाद वाले उपन्यासों में विद्रोह का स्वर उभरा है। आर्थिक शिथिलता व शोषण के विरुद्ध विद्रोह इन उपन्यासों में देखा जा सकता हूँ। इसी के साथ पूर्व स्थापित सामाजिक मान्यताओं के विरुद्ध विद्रोही प्रवति भी मिलती है। प्रेमचंदोत्तर हिन्दी उपन्यासों में स्त्री पुरुषों के यौन संबंधों को लेकर कई प्रश्न उठाए गए है व कई सम असम स्थितियों का यथार्थ व मनोवैज्ञानिक चित्रण किया गया है। जैनेन्द्र, अज्ञेय, इलाचन्द्र जोशी आदि के उपन्यासों में काम कुण्ठाओं ओर यौन विकतिया चित्रण व स्त्री-पुरुष के अवैध संबंधों की समस्याओं का चित्रण बहुतायत मिलता है।
प्रश्न
प्रेमचन्द युग की कहानियों की मुख्य प्रवतियां क्या थी।
उत्तर
- प्रथम बार कहानियों का विषय उच्चवर्ग के स्थान पर मध्यम और निम्न वर्ग को बनाया गया है। सामाजिक और कौटुम्बिक समस्याओं, विसंगातियों तथा विदुपताओं का उद्घाटन हुआ है। साम्यवाद के प्रभाव से शोषक-शोषित मनोवति का चित्रण करने की प्रवति भी दिखाई पड़ती है। इस युग की कहानियों में संगठित कथानक, अनुभव की प्रौढ़ता मनोवैज्ञानिक चरित्र चित्रण संवेदनशीलता का समन्वय है। इस युग की कहानियों में स्वाधीनता संग्राम, गांधी जी के असहयोग आंदोलन अहिंसक क्रांति, समाजसुधार यथार्थ जीवन की विभीषका, आर्थिक विपन्नता का प्रभाव दिखाई पडा है।
प्रश्न
स्वातन्त्र्योतर हिन्दी उपन्यास के नायक का स्वरूप कैसा ?
उत्तर -
- स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी उपन्यासों में अवतरित हुआ नायक प्रेमचन्द्र यशपाल जनेन्द्र, अज्ञेय की परम्परा से सर्वथा भिन्न है। नया नामक व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों ही स्तरों पर विक्षुब्ध हो गया और मूल्य हीनता के कारण दिशा हारा की भांति भटकने को विवश हो गया। इन उपन्यासों कानायक उस पूरी भीड़ का ही एक चेहरा जो रोजगार के लिए दफ्तरों, झूठे इष्टरव्यू और काम की लालसाओं में भटक रहा है। वह नायक पराजित और क्रुद्ध होकर अपने दायरे में छटपटाता और स्वयं को विस्थापित अनुभव करता है तथा कुण्ठाग्रस्त होकर आत्महत्या को अपनी अंतिम परिगति के रूप में चुनता है।
प्रश्न
उपन्यास में यथार्थवाद की अवधारणा है टिप्पणी लिखिए?
उत्तर -
- कलाकार जीवन को दो प्रकार से चित्रित करता है— एक में वह अपने आदर्शों, कल्पना व धारणाओं का प्रयोग करता है, दूसरे में वह संसार को जैसा देखता है वैसा ही चित्रित करता है। प्रथम स्थिति आदर्शवाद और द्वितीय यथार्थवाद है। यथार्थवाद समाज की प्रमुख ज्वलन्त समस्याओं का चित्रण करता है। यथार्थवाद यह कहकर सामाजिक व्यवस्थाओं, रूढ़ियों एवं अंधविश्वासों के प्रति अनास्था का भाव प्रकट करता है। इसमें उच्चवर्गीय, मध्यवर्गीय व निम्नवर्गीय व्यक्तियों का समान रूप से चित्रण करता है। यथार्थवाद ने कला का संबंध विज्ञान से किया और उसे विश्लेषण शक्ति से विभूषित किया है।
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