हिन्दी साहित्य प्रश्न उत्तर | Hindi Sahitya Question Answer
हिन्दी साहित्य प्रश्न उत्तर |(Hindi Sahitya Question Answer)
हिन्दी साहित्य प्रश्न उत्तर- भाग 01
प्रश्न
हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल के उद्भव के समय की आर्थिक परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
- हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल के उद्भव के समय इंग्लैण्ड की औद्योगिक विकास का प्रभाव भारत की अर्थ व्यवस्था पर पड़ा। ऐसा होना स्वाभाविक भी था। इंग्लैण्ड के लिए भारत कच्चे माल का सस्ता तैयार स्रोत और तैयार माल की बड़ी मण्डी से ज्यादा महत्त्व नहीं रहता था। भारतीय कुटीर उद्योग इंग्लैण्ड के कारखानों में बने माल का मुकाबला नहीं कर सके। रेल, डाक तार आदि का प्रचलन मूलतः अंग्रेजों के आर्थिक हितों की रक्षा के लिए हुआ था, परन्तु कालान्तर में इनसे राष्ट्रीयता की भावना तीव्र हुई प्रथम महायुद्ध के बाद अंग्रेज़ों का भारतीयों ने विरोध किया। 1905 में बंग-भंग हुआ और इसके विरोध में स्वदेशी आंदोलन की शुरूआत हुई।
प्रश्न
आधुनिक काल के नामकरण पर विचार कीजिए।
उत्तर
- इसे गद्यकाल भी कहा जाता है। संवत् 1900 से जो साहित्य रचा जाने लगा उसमें विद्यात्मक दृष्टि से गद्य का ही विकास अधिक और प्रमुख रूप से हुआ है। यह आज तक की सजन प्रक्रिया के इतिहास से एकदम स्पष्ट है। अतः इसे गद्यकाल कहना भी उचित ही है। प्रवत्तियों और रूचियों की दृष्टि से इस काल में अपने पूर्ववर्ती कालों से स्पष्ट विभिन्नता है। उस विभिन्नता में आधुनिक वैविध्य भी है, अतः आधुनिक काल नाम समीचीन है। इस नामकरण ओर युगीन प्रवतियों में गद्य पद्य की समस्त साहित्यिक विधाओं का स्वतः समावेश हो जाता है।
प्रश्न
- हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल की राजनीतिक परिस्थितियों पर
प्रकाश डालिए ।
उत्तर
- सन् 1857 में भारतीय स्वाधीनता संग्राम का पहला अध्याय लिखा गया। 1657 ई. की क्रांति की ज्वाला ने अपने दमन चक्र से दबा अवश्य दिया परन्तु वे उसे पूर्ण रूप से समाप्त न कर सके। कम्पनी राज्य, विक्टोरिया के शासन में बदला और इतिहास में भयंकर शोषण का युग प्रारम्भ हुआ। कांग्रेस ने भारतीयों के लिए अधिकारों को मांगना आरम्भ कर दिया। तिलक ने कहा, "स्वराजय मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है, उसे मैं लेकर रहूंगा।" सुभाष ने चेतावनी दी कि आजाद हिन्द फौज दिल्ली के लाल किले पर ध्वज फहराएगी, लाला लाजपतराय ने जयघोष किया कि- "हम न खाएगे, न खाने देंगे; न सोएंगे न सोने देंगे" इस प्रकार के वातावरण में राजनीतिक उथल-पुथल मची - हुई थी।
प्रश्न
- हिन्दी साहित्य के इतिहास के आधुनिक काल की आर्थिक
परिस्थितियों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर
- इंग्लैण्ड की ओद्योगिक विकास का प्रभाव भारतकी अर्थव्यवस्था पर पड़ा। इंग्लैण्ड के लिए भारत कच्चे माल का सस्ता स्रोत और तैयार माल की बड़ी मण्डी से ज्यादा महत्त्व नहीं रखता था। इंग्लैण्ड के तैयार माल का भारत के उद्योग मुकाबला न कर सके। परिणामस्वरूप उद्योग और मजदूर सब बेकार हो गए। रेल, डाक तार आदि का प्रचलन मूलतः अंग्रेजों के आर्थिक हितों की रक्षा के लिए हुआ। कारखानों के हड़तालें हुई 1905 में बंग-भंग हुआ और इसके विरोध में स्वदेशी आंदोलन की शुरूआत हुई। गांधी का चर्खा आंदोलन और खादी का प्रचार इसी आर्थिक शोषण के विरोध का एक रूप था।
प्रश्न
हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल की सांस्कृतिक एवं धार्मिक दशा का वर्णन कीजिए?
उत्तर -
- यह युग पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति के प्रसार युग है। छापाखाना अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था। ईसाई मिशनरियों का प्रचार जोरों पर था। ब्रह्म समाज प्रायः समाज तथा आर्य समाज जैसे सुधार आंदोलन भारतीयों द्वारा भी चलाए जा रहे थे। अंग्रेजों के प्रचार प्रसार से जहां पाश्चात्य जगत की ओर झोंकने के लिए खिड़की खुली वहीं पर संस्कत आदि भारतीय भाषाओं की उपेक्षा से हम अपनी विरासत से करने भी लगे।
- बंगाल में एशियाटिक सोसाइटी और पुरातत्व विभाग की स्थापना की गई। राजगह तक्षशिला, बनारस, पहाड़पुर तथा हड़प्पा और मोहन जोदड़ो आदि स्थानों की खुदाई में भारत के प्राचीन गौरव से संबंधित स्थानों पर खुदाई हुई। प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों का अनुवाद अंग्रेजी में होने लगा। पश्चिम का भौतिकवाद और मार्क्सवाद की अवधारणाएं एवं रूस की क्रांति भी भारतीय जन मानस को आंदोलित कर रही थी। विवेकानन्द, टैगोर तथा श्री अरविंद का प्रभाव भी पढ़े-लिखे वर्ग पर पड़ रहा था।
प्रश्न
आधुनिक काल की साहित्यिक परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए?
उत्तर
- आधुनिक काल का साहित्य आम आदमी का साहित्य है। इस युग के साहित्यकार का सरोकार आम आदमी की आशाओं आकांक्षाओं से था। रीतिकालीन दरबारी संस्कृति क्रमशः नष्ट हो रही थी और साहित्य समाज का दर्पण और दीपक एक साथ बन रहा था। भारतेन्दु युग बना तो द्विवेदी युग समाज-सुधार की तीव्र धारा को लेकर आया। छायावादी युग में शिल्पगत प्रयोगों का प्रारम्भ हुआ तो प्रगतिवाद प्रयोगवाद में क्रमशः लघु मानव की प्रतिष्ठा एवं काव्य विषयों का विशदीकरण हुआ। आधुनिक युग साहित्य की दृष्टि से विविधता, बिखराव एवं विशिष्ट काव्य प्रवत्तियों का युग है।
प्रश्न
भारतेन्दु युगीन काव्य में देश भक्ति की भावना मुखरित हुई है। विवेचना कीजिए?
उत्तर
- भारतेन्दु आधुनिक युग के प्रथम राष्ट्रीय कवि कहे जा सकते हैं। उनके काव्य में देश भक्ति की सशक्त भावना अभिव्यक्ति हुई है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है- "भारतेन्दु की वाणी का सबसे ऊचां स्वर देश-भक्ति का था।" उनकी कविताओं में देश की दुर्दशा का मार्मिक वर्णन किया गया है। इस युग में विदेशी वस्तुओं का परित्याग और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का प्रचार किया गया है।
प्रश्न
भारतेन्दु युगीन कविता का परिचय दीजिए ?
उत्तर
- भारतेन्दु युगीन कविता यथार्थ के काफी निकट है। यह उस युग की चेतना की प्रतिध्वनि ही नहीं, बल्कि उसका प्रतिनिधित्व भी करती है। इसमें जहां भारत की दयनीय स्थिति का चित्रण किया गया वहीं प्राचीन भारत के गौरव और संस्कृति का भी वर्णन है। इस कविता में कहीं देश के अतीत की गौरव गाया है तो कहीं अधोगति और कहीं भविष्य की भावना से जगी हुई चिंता है। उन्होंने हिन्दी कविता को नवीन विषयों की ओर अग्रसर किया। हास्य व्यंग्य और विनोद की इस कविता में मिलता है। भारतेन्दु प्रताप नारायण मिश्र, अम्बिकादत्त व्यास, राधाकृष्ण दास आदि इस युग के मुख्य कवि हैं।
प्रश्न
प्राचीनता एवं नवीनता का समन्वय भारतेन्दु युगीन काव्य में दिखाई पड़ता है। स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर -
- भाव, भाषा, शैली और उद्देश्य सभी दष्टियों से इस युग के साहित्य में प्राचीनता और नवीनता के एक साथ दर्शन होते हैं। इस युग के साथ समाज, राजनीति, धर्म और संस्कृति का एक नया जमाना शुरू होता है। व्यापक जन चेतना का नई शिक्षा-दीक्षा व राजनीति के कारण भारत के अतीत की ओर ध्यान जाता है, अतः भारतीय अतीत का गौरव आदर्श साहित्य का विषय बनता है। इस काल के साहित्य में नए-पुराने दोनों प्रकार के विचार, आदर्श और उद्देश्य दिखाई पड़ते हैं।
प्रश्न
भारतेन्दु स्वयं एक महान् कृष्ण भक्त कवि थे।' इस कथन की समीक्षा दीजिए।
उत्तर
- भारतेन्दु युग में भक्तिकालीन भक्ति भावना के आदर्श भी दिखाई पड़ते हैं। इस युग के गेय पदों में राधा और श्री कृष्ण की लीलाओं का सुंदर चित्रण किया गया है। भारतेन्दु स्वयं एक महान् कृष्णभक्त कवि थे। भारतेन्दु ने माधुर्य भाव की भक्ति को ग्रहण किया था। वे कर्मकाण्ड में विश्वास नहीं करते थे।
भारतेन्दु युग का काव्य जन-जीवन से सीधा जुड़ा हुआ है। स्पष्ट कीजिए?
उत्तर
- रीतिकालीन साहित्य के विपरीत भारतेन्दु युग का काव्य सीधा जन-जीवन से अधिक जुड़ा हुआ है। इसमें समाज-सुधार की प्रवति पर बल दिया गया है। इस काल के कवि न केवल राजनीतिक स्वाधीनता को ही प्रमुखता नहीं दी बल्कि मनुष्य की एकता समानता और भाई-चारे को भी महत्त्व दिया। इसमें सामाजिक बुराइयों छल-कपट, स्वार्थ परता, पश्चिमी रंग में रंगे शिक्षितों पर व्यंग्य, पुलिस और सरकारी कर्मचारियों की लूट-खसोट, देश की सामान्य दुर्दशा, अकाल आदि का चित्रण करके समाज को जागत किया है।
प्रश्न
इतिवत्तात्मकता भारतेन्दु युग के कवियों में दिखाई पड़ती है, क्या यह सही है ? विवेचन कीजिए।
उत्तर -
- भारतेन्दु युगीन कविता में विचारों और अनुभूतियों की गहनता नहीं है। केवल तुक बंदियों के द्वारा ही कवियों ने विभिन्न सामाजिक पक्षों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है। प्रतापनारायण मिश्र के पद्यात्मक निबन्ध तथा दूसरे कवियों की उपदेशात्मक और सुधारात्मक कविताएं केवल इतिवतात्मकता से परिपूर्ण हैं। इस काल की कविता को किसी उच्चकोटि में नहीं रखा जा सकता।
प्रश्न
भारतेन्दु काल में समाज सुधार भावना व्यंजित हुई है। विवेचन कीजिए?
उत्तर -
- भारतेन्दु कालीन काव्य में देश-प्रेम की भावना के साथ-साथ सामाजिक जागरण एवं समाज सुधार की प्रवति भी देखी जा सकती है। नारी शिक्षा का समर्थन, वर्णगत भेद-भाव का विरोध, बाल विवाह का विरोध तथा अनमेल विवाह का निषेध जैसे गंभीर विषयों का वर्णन इस युग के काव्य में हुआ है। पश्चिमी सभ्यता के सम्पर्क में नया ज्ञान, आदर्श और नए संदेश हमारे देश में आने लगे। जिससे कुछ सुधार संभव हो पाए।
प्रश्न
"भारतेन्दु युग के कवियों ने प्रकति चित्रण में परम्परा का निर्वाह भर किया है।" यह कथन क्या सही है ? समीक्षा दीजिए?
उत्तर -
- प्राकृतिक सौन्दर्य का स्वच्छ चित्रण भारतेन्दु युग की अंगभूत विशेषता है, किन्तु अधिकांश कवियों ने केवल परम्परा का ही निर्वाह किया है। ऋतु विशेष में नायक-नायिका की मनोदशाओं के वर्णन में अधिक रूचि ली है। भारतेन्दु ने 'सत्य हरिशचन्द्र' नाटक में गंगा-वर्णन और चंद्रावती नाटिका में यमुना वर्णन किया है। इस काल के काव्य में संवेदनशीलता की कमी है और नागरिकता की अधिकता है।
प्रश्न
भारतेन्दु हरिशचन्द्र पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए?
उत्तर -
- भारतेन्दु हरिशचन्द्र बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे। उनके साहित्यिक व्यक्तित्व के चार रूप हैं--कवि, नाटककार, निबंधकार तथा पत्रकार उनके द्वारा रचित कतियों की संख्या लगभग सत्तर है। उनमें प्रेम मालिका, प्रेम-सरोवर, वर्षा - विनोद, विनय-पचासा, वेण-गीत प्रेम दुलावारी आदि प्रसिद्ध हैं। इनका प्रकाशन भारतेन्दु ग्रन्थावली के नाम से हो चुका है। भारतेन्दु की कावय भाषा ब्रज भाषा है। उनकी व्यंग्यपूर्ण पहेलियां और मुकरियाँ प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न
बद्री नारायण चौधरी प्रेमधन का परिचय दीजिए।
उत्तर
- 'प्रेमधन' भारतेन्दु कालीन काव्य धारा के प्रसिद्ध कवि और लेखक थे। उन्होंने पद्य और गद्य दोनों विधाओं में रचनाएं की। पत्रकार के रूप में इन्होंने नागरी नीरद और आनन्द कादम्बिनी आदि पत्रिकाओं का सफल सम्पादन किया।
- 'अलौकिक लीला', 'वर्षा' बिन्दु, मयंक महिमा हार्दिक हर्षदर्श जीर्ण जनपद आदि इनकी प्रसिद्ध काव्य कतियां हैं। इनकी कविता का प्रमुख स्वर स्वदेश प्रेम और समाज सुधार का है।
प्रश्न
पंडित प्रताप नारायण मिश्र का परिचय दीजिए?
उत्तर
- मिश्र जी भारतेन्दु युग के प्रसिद्ध कवि निबन्धकार और नाटककार थे। उन्होंने देश भक्ति, राम-भक्ति, गौ रक्षा, बुढ़ापा आदि विषयों पर काव्य रचना की 'मन की लहर प्रेम-पुष्पावली श्रंगार विलास' आदि उनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएं हैं। उनकी कविताओं में इतिवतात्मकता की अधिकता है।
इनकी कविता में राजनीतिक व्यंग्य का उदाहरण-
पढि कमाल किन्हों कहा, हरे न देश कलेश
जैसे कन्ता घर रहे, वैसे रहे विदेश।"
प्रश्न
अम्बिकादत्त व्यास का परिचय दीजिए?
उत्तर
- अम्बिकादत्त व्यास जी कवि, नाटककार और पत्रकार थे। काशी के अच्छे कवियों में उनकी गणना होती थी। 'पावस-पचासा' 'हो हो होरी' 'सुकवि सतसई' आदि उनकी प्रसिद्ध काव्य कतियां हैं। उन्होंने समस्या पूर्ति संबंधी अनेक कविताएं लिखी हैं। इनकी काव्य भाषा ब्रज भाषा है।
कविता का उदाहरण देखिए-
सुमिरत छवि नन्द चन्द की विसरत सब दुःख द्वन्द्व ।
होत अमन्द अनन्द हिय, मिलत मनहु सुख कंद
प्रश्न
द्विवेदी युगीन काव्य में इतिवतात्मकता की भावना प्रधान थी। विवेचन कीजिए ?
उत्तर -
- द्विवेदी युगीन कविता में प्रायः भंगार युक्त काव्य लिखा गया। इनके काव्य में आदर्शवादिता, सात्विकता और संयम के तत्त्व अधिक हैं। आर्य समाज तथा अन्य संस्थाओं के प्रभाव से साहित्य से अश्लीलता और उच्छंखलता का बहिष्कार कर दिया गया, जिससे कविता में इतिवतात्मकता की भावना बढ़ी। इस कविता पर मराठी की इतिवत्तात्मकता का प्रभाव है, जिससे कविता में शुष्कता और नीरसता बढ़ी और अनुभूति में अधिक गहराई नहीं रही।
प्रश्न
द्विवेदी युग के साहित्य का क्या महत्त्व है ?
उत्तर
- हिन्दी साहित्य के इतिहास में संवत् 1950 से 1970 तक का समय द्विवेदी युग के नाम से अभिहित किया जाता है, जिसमें साहित्य चेतना के सूत्रधार महावीर प्रसाद द्विवेदी थे। वे सरस्वती पत्रिका के सम्पादक थे। खड़ी बोली के व्याकरण कीरचना, परिष्कार और संस्कार का सार का श्रेय द्विवेदी जी और उनके समकालीन कवियों को जाता है। द्विवेदी युग की कविता में राष्ट्रीयता का स्वर उभरा और इसके साथ ही आलेचना और कथा साहित्य के क्षेत्र में भी पर्याप्त प्रौढ़ता आई इस युग के आलोचकों में मिश्रबन्धु पं. पदम सिंह शर्मा, कृष्ण बिहारी मिश्र आदि का नाम उल्लेखनीय है। इनका युग वास्तव में ही गद्य का युग था। हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल के आरम्भ में जिन शैलियों को जन्म मिला द्विवेदी युग में उन्हें विकास का पूर्ण अवसर मिला श्रीधर पाठक, अयोध्या सिंह उपाध्याय, मैथिलीशरण गुप्त, रामचरित उपाध्याय आदि इस युग के प्रसिद्ध कवि हैं।
प्रश्न
द्विवेदी युग का काव्य बौद्धिकता से प्रभावित है। युक्ति यक्त उत्तर दीजिए?
उत्तर
- द्विवेदी युगीन कवि को पाश्चात्य संस्कृति के बौद्धिकवाद ने प्रभावित किया। इसी के प्रभाव से इन्होंने भारतवासियों के मन से हीन भावनाओं को दूर करने के लिए प्राचीन भारतीय संस्कृति की बौद्धिक व्याख्या प्रस्तुत की। हिन्दू जागरण के लिए यह अति आवश्यक था। गुप्त के लिए राम अवतारी न होकर आदर्श मानव है। आर्य समाज का प्रभुत्व इस युग में छाया रहा। व्यक्तियों और आलोचकों ने प्राचीनता की बुद्धि सम्मत व्याख्या करके आधुनिकता को आदर्श बनाकर सफलता प्राप्त की।
प्रश्न
‘‘द्विवेदी युग में उपदेशात्मक प्रवति को छोड़कर कवियों ने मानवतावाद को ग्रहण किया है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर -
- भगवान के गुणगान और सैद्धान्तिक व्याख्या के साथ-साथ मानवता के आदर्शों की भी प्रतिष्ठा की है। इनमें पीड़ितों, शोषितों, दुर्बलों, दलितों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की गई है। कवि का मानना है कि मानव प्रेम से ही ईश्वर प्राप्ति संभव है। दीन-दुखियों के आसूं भक्त को भगवान के और निकट करते हैं और इसी के लिए इन्होंने दुखियों के प्रति अन्याय और अवहेलना करने वाली सामन्तीय सभ्यता की निंदा की है। राम और कृष्ण को आदर्श के रूप में स्थापित किया है।
प्रश्न
द्विवेदी युग में देश भक्ति से परिपूर्ण काव्य रचना हुई। सिद्ध कीजिए ?
उत्तर -
- द्विवेदी युगीन कविता की राष्ट्रीय भावना जातीयता पर आधारित थी जिसका मुख्य आधार देश के उज्ज्वल अतीत का गौरव था। केसरी नारायण शुक्ल के अनुसार- "जनता को अपना अतीत इतना प्रिय लगा कि इसके समक्ष उसे पाश्चात्य संस्कृति बिल्कुल हेय प्रतीत होने लगी।" देश भक्ति भावना मुक्तक और प्रबन्ध काव्यों में प्रकट हुई। गुप्त का साकेत, उपध्याय का प्रिय प्रवास आदि जहां हिन्दी के गौरव ग्रन्थ हैं वहां देशभक्ति और भारत की महान् विभूतियों का भव्य दर्शन भी उनमें है।
प्रश्न
प्रकति चित्रण की दृष्टि से द्विवेदी युग की समीक्षा कीजिए?
उत्तर -
- इस युग के कवियों का ध्यान प्रकृति के यथा तथ्य वर्णन की ओर गया। श्रीधर पाठक, अयोध्या सिंह उपाध्याय, रामनरेश त्रिपाठी आदि ने कहीं-कहीं अद्भुत प्रकति चित्रण किया है। इनके प्रकति चित्रण में संवेदनात्मकता एवं चित्रात्मकता का सम्मिश्रण है। नदी, पर्वत, समुन्द्र आदि का चित्रण करते हुए यदि इन्होंने परम्पराओं का पालन किया है तो उसमें रहस्यात्मकता को भी समावेशित किया है। परिगणन शैली का प्रयोग भी कहीं कहीं दिखाई देता है पर उस से सजीव चित्र उपस्थित नहीं हो पाता।
प्रश्न
द्विवेदी युग के कवियों पर गांधीवादी विचारधारा का प्रभाव है। स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर -
- इस काल के कवि स्वयं को गांधीवाद से अछूते न रह सके। रामनरेश त्रिपाठी तथा मैथिलीशरण गुप्त गांधीवादी विचारधारा से बहुत प्रभावित थे। गांधी जी के प्रति गुप्त जी की गहरी आस्था थी। उन्होंने गांधी जी के अनेक सिद्धान्तों को अपने काव्य में पिरोया है। मानवीय संवेदना अछूतोद्वार भावना, सत्याग्रह, अहिंसा आदि अनेक सिद्धान्तों का निरूपण उनके काव्य में हुआ है।
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