पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन कैसे करते हैं? |भूकंपीय तरंगें एवं प्रकार |How to study earth in Hindi
पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन कैसे करते हैं?
पृथ्वी की आंतरिक संरचना परतन और संयोजन
- आइए अब हम पृथ्वी की आंतरिक संरचना और इसके अध्ययन करने के तरीकों पर चर्चा करें। मानव स्वर्ण और अन्य खनिजों के उत्खनन के लिए लगभग 4 कि.मी. की गहराई तक और पेट्रोलियम की खोज में करीब 10 कि. मी. तक पृथ्वी की गहराई में जा चुका है। हालांकि, इन प्रयासों से हमारी पृथ्वी की भूपर्पटी को मुश्किल से खरोंचा ही जा सका है। पृथ्वी की आंतरिक संरचना जानकारी के संबंध में हमारा अधिकांश ज्ञान प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अवलोकनों और अनुमानों पर आधारित है।
पृथ्वी की स्तरीय संरचना
आइए अब हम अपने पैरों के नीचे 6400 कि.मी. तक की जानकारी प्राप्त करें। आप पहले पढ़ चुके हैं कि हमारी पृथ्वी की स्तरीय संरचना है जिसमें निम्न शामिल हैं:
- भूपर्पटी (crust)
- प्रावार (mantle), और
- क्रोड (core)
- आप पृथ्वी की इस स्तरीय संरचना की तुलना उबले हुए अंडे से कर सकते हैं। अंडे के छिल्के की तरह, पृथ्वी की परत पर्पटी और भंगुर होती है जो आसानी से टूट सकती है। प्रावार गर्म और घना होता है क्योंकि पृथ्वी के अंदर तापमान और दबाव गहराई के साथ बढ़ता है। आप उबले अंडे के सफेद तथा पीले भाग को क्रमशः प्रावार तथा क्रोड से तुलना कर सकते हैं।
- पृथ्वी के केंद्र में क्रोड है, जो कि अपनी संरचना के कारण प्रावार से लगभग दो गुना घना है। अंडे की जर्दी के विपरीत, हालांकि, पृथ्वी का क्रोड, वास्तव में तरल बाह्य क्रोड और मोटी ठोस आंतरिक क्रोड से निर्मित है। हमें उम्मीद है कि यह उदाहरण आपके लिए पृथ्वी की संरचना को समझने में सहायक सिद्ध होगी।
पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन कैसे करते हैं? How to study earth in Hindi
- पृथ्वी की त्रिज्या लगभग 6370 कि.मी. है। आप पृथ्वी के केंद्र तक नहीं पहुंच सकते और न ही विश्लेषण कर सकते हैं या नमूने एकत्र कर सकते हैं। ऐसी परिस्थितियों में, आपको अचरज हो रहा होगा कि भूवैज्ञानिक पृथ्वी की आकृति और आंतरिक संरचना के बारे में हमें कैसे बताते हैं। हमारा अधिकांश ज्ञान मुख्यतः प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विश्लेषणों से प्राप्त संदर्भों पर आधारित होता है।
- भूकंपीय आंकड़ों ने तार्किक रूप से साबित किया है कि धरती में कई परतें होती हैं, जो प्याज के छिलके के समान हैं, और एक दूसरे के ऊपर स्थित हैं। पृथ्वी की संरचना के अध्ययन के लिए भूकंपीय तरंगों ( seismic waves) का उपयोग कैसे किया जाता है. इसके बारे में जानने से पहले, हम पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए अपनाए गए कुछ बुनियादी तरीकों के बारे में सीखेंगे:-
1. पृथ्वी का आंतरिक तापमान
- ज्वालामुखी विस्फोट और गर्म झरनों के साक्ष्य से संकेत मिलता है कि पृथ्वी के अंतर में उच्च तापमान होता है। बढ़ती गहराई के साथ तापमान में क्रमिक वृद्धि विश्व के खानों और गहरे कुओं में दर्ज की गई है। भूतापीय ढाल (Geothermal gradient) पृथ्वी की भूपर्पटी में नीचे जाते हुये प्रति कि. मी. 20° से 30°C की दर से बढ़ता है। भूवैज्ञानिकों ने पृथ्वी की आंतरिक संरचना को समझने के लिए ढाल का अध्ययन किया।
2. पृथ्वी का आंतरिक दबाव
- 1 से 6 कि.मी. की गहराई पर प्रति वर्ग फुट लगभग 450 टन का दबाव है। अनुमान लगाया जाता है कि क्रोड में प्रति वर्ग फुट लगभग 20 लाख टन दबाव हो सकता है, लेकिन अंदर गुरुत्वाकर्षण घटते जाने के कारण दबाव कम भी हो सकता है।
3. घनत्व का वितरण :
- सामान्यतः पृथ्वी की भूपर्पटी की चट्टानों में घनत्व केवल 2-6 से 3.0g/cm है। पृथ्वी का औसत घनत्व 5-52g/cm है। इसलिए क्रोड निश्चित रूप से कोई भारी पदार्थ से निर्मित होना चाहिए जैसे लोहा और निकल
4. गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय सर्वेक्षण
- पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के भीतर द्रव्यमान सामग्री के असमान वितरण से प्रभावित हैं। ये गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय सर्वेक्षण भी भूपर्पटी में चुंबकीय सामग्री को द्रव्यमान (mass magnetic materials) के वितरण के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
5. उल्कापिंडों से प्रमाण
- उल्कापिंड अन्य सितारों से पृथ्वी की सतह पर गिरने वाले टुकड़े हैं। ऐसे हजारों टन भ्रमण करती सामग्रियों को धरती पर प्रति वर्ष प्राप्त किया जाता है। इनमें मौलिक सौर पदार्थ शामिल होते हैं। बाह्य अंतरिक्ष ग्रहों से विघटित सामग्री को उल्कापिंड (meteorites) कहा जाता है। वे या तो चट्टानी (stony) हो सकते हैं जिन्हें एरोलाईट (aerolites) अथवा मुख्यतः धात्विक (metallic) होते हैं जिन्हें सिडेराइट कहते हैं, या फिर चट्टान और धातु का मिश्रण होते हैं जिसे सिडेरोलॉइट (siderolites) कहा जाता है। उल्का पिंड पृथ्वी के संघटन को दर्शाती है। उल्कापिंडों का निर्माण पृथ्वी के निर्माण के समय ही (लगभग 4.6 अरब वर्ष पूर्व) हुआ था। उल्का पिंड का अध्ययन हमें पृथ्वी की संरचना तथा संयोजन को समझने में मदद करता है।
6. ज्वालामुखीय गतिविधियों से प्रमाण
- ज्वालामुखी वो झरोखे हैं जिनके माध्यम से आप पृथ्वी के अंदर देख सकते हैं। और जब पिघला हुआ पदार्थ पृथ्वी की सतह पर उत्सर्जित होता है, जैसे ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान, तब यह पृथ्वी की संरचना के विश्लेषण के लिए उपलब्ध होता है।
7. भूकंपीय तरंगें
पृथ्वी की आंतरिक संरचना और संयोजन के बारे में ज्यादातर जानकारी भूकंप विज्ञान (seismology) से प्राप्त होती है। भूकंपीय तरंगो का अध्ययन पृथ्वी की पूर्ण आंतरिक तस्वीर प्रदान करता है। बड़े भूकंपों से उत्पन्न भूकंपीय तरंगें या कंपन पृथ्वी से होकर गुजरती हैं। ये भूकंपीय तरंगें एक दूसरे से प्रसार वेग, तरंगदैर्ध्य पथ की दिशा और कंपन की प्रकृति के आधार पर भिन्न होते हैं। आइए हम भूकंपीय तरंगों के प्रकारों के बारे में विस्तार से जानें :
भूकंपीय तरंगें मूलतः दो प्रकार की होती हैं:
1. काय तरंगें (Body waves)
2. पृष्ठीय तरंगे (Surface waves)
1. काय तरंगें
भूकंप के केंद्र (focus) पर ऊर्जा मुक्त होने के कारण काय तरंगें उत्पन्न होती हैं। ये लहरें पृथ्वी में विभिन्न दिशाओं में भ्रमण करती हैं। जितना पदार्थ घना होता है उतनी ही ज्यादा वेग से ये तरंगें संचालित होती है। इन तरंगों की विभिन्न घनत्व वाले पदार्थों से गुजरने के दौरान उनकी दिशा भी परावर्तन या अपवर्तन के कारण बदल जाती है जिसे क्रमशः भूकंपीय परावर्तन (seismic reflection) और भूकंपी अपवर्तन (seismic refraction) कहते हैं। काय तरंगें दो प्रकार की होती हैं:
प्राथमिक तरंगें (Primary waves) या P तरंगे (P waves)-
- तरंगें जो भूकंप के केंद्र से पृथ्वी के माध्यम से यात्रा करती हैं और सतह पर सबसे पहले पहुँचती हैं, वो P लहर कहलाती हैं। वे वायु में ध्वनि की लहर के समान हैं, अंतर सिर्फ यह है कि ये लहरें लगभग 6 कि.मी. प्रति सेकेंड की गति से पृथ्वी की घनी चट्टानों के माध्यम से यात्रा करती हैं, जो कि वायु के माध्यम से ध्वनि तरंगों की यात्रा से 20 गुना तेज होती है। P लहरें संपीड़न तरंग हैं क्योंकि वे ठोस, तरल या गैसीय सामग्री के माध्यम से क्रमिक संपीड़न और विस्तार के माध्यम से यात्रा करते हैं (चित्र 3.3) और इसलिए इन्हें अनुदैर्ध्य (longitudinal) या संपीडन तरंगों (compressional waves) रूप में भी जाना जाता है P तरंगों को कर्षापकर्ष तरंगों push & pull waves) के रूप में माना जा सकता है P तरंगें यात्रा के मार्ग की दिशा में पदार्थ के कणों को धकेलती अथवा खींचती हैं। प्राथमिक तरंगों की तरंगदैर्ध्य कम और आवृत्ति उच्च होती है।
द्वितीयक तरंगें या S तरंगें या अपरूपण तरंगें (Shear waves)
- S तरंग P तरंगों के आधे से अधिक गति से ठोस चट्टानों के माध्यम से यात्रा करती है। वे अपरूपण तरंगें हैं जो यात्रा के अपने पथ पर स्थित पदार्थों को समकोण पर विस्थापित करती हैं। अपरूपण तरंगें तरल पदार्थों और गैसों के माध्यम से यात्रा नहीं करती हैं। वे अनुप्रस्थ या संक्रमणकालीन (transitional) तरंगें (चित्र 3.3b) हैं ये ठोस भागों के माध्यम से विभिन्न वेगों से यात्रा करते हैं, जो पदार्थों के घनत्व आनुपातिक होते हैं और लघु तरंगदैर्ध्य और उच्च आवृत्ति वाली होती हैं।
2. पृष्ठीय तरंगें
- काय तरंगें सतह की चट्टानों से सहभागिता करती हैं और तरंगों के नए रागुच्चय निर्मित करती हैं जिन्हें पृष्ठीय तरंगें कहते हैं। S तरंगों के कंपन की दिशा पृथ्वी की सतह तक सीमित और ऊर्ध्वाधर तल में तरंग की दिशा के लंबवत् होती है, जैसे समुद्र पर लहरें इनका वेग S तरंगों की तुलना में थोड़ा कम होता है। आगतौर पर अवसादी द्रोणियों ( sedimentary basin) में पृष्ठीय तरंगें सबसे अधिक विनाशकारी तरंगें हैं जो कि बड़े उथले फोकस वाले भूकंपों में होती हैं। यह कम वेग, कम आवृत्ति वाली और लंबी तरंगदैर्ध्य है।
पृष्ठीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं :
लव तरंग (Love wave)
- वे पृष्ठीय तरंगें हैं, जहां भूमि बिना किसी ऊर्ध्वाधर गति के साथ प्रसार की दिशा में क्षैतिज रूप से संचालित होती है।
रैले तरंग (Rayleigh wave) :
- ये जटिल पृष्ठीय तरंगें हैं, जिनमें जमीन एक रोलिंग, अण्डाकार गति में कंपन करती है, जिसका संचालन आंशिक रूप से गहराई की दिशा के साथ बढ़ जाता है और आंशिक रूप से समकोण में कम हो जाता है ।
पृथ्वी के भीतर संचालित पृष्ठीय तरंगों को दर्शाता आरेख उपरी पैनल लव तरंग तथा निचले पैनल में रेलै तरंग तरगों की दिशा दाईं ओर है।
P तरंग और S तरंग छाया क्षेत्र
- यह देखा गया कि भूकंप के अभिकेन्द्र के 105° के भीतर किसी भी दूरी पर स्थित सिस्मोग्राफ (भूकंपलेखी) ने P और S दोनों तरंगों के आने का रिकॉर्ड दर्ज किया था । हालांकि, भूकंपलेखी (seismograph), जो कि अभिकेन्द्र से 105° 142° के बीच स्थित है, केवल P तरंगों को रिकॉर्ड करता है, लेकिन S तरंगों को रिकॉर्ड नहीं करता है इस क्षेत्र को छाया क्षेत्र (shadow zone) के रूप में पहचाना जाता है । छाया क्षेत्र पृथ्वी के विपरीत दिशा में विशिष्ट क्षेत्र है जहां भूकंपीय तरंगें प्राप्त नहीं होती हैं। S-तरंग का छाया क्षेत्र P-तरंग की तुलना में काफी बड़ा है। यदि आप एक ऐसी स्थिति की कल्पना करते हैं जिसमें विश्व एकरूप था, तो भूकंपीय तरंगों में नियत (constant) वेग होता। वास्तविकता में, पृथ्वी स्तरित है और तरंगें अपने वेग को बदलती हैं। पृथ्वी की पदार्थों की विविधता के कारण, तरंगें विभिन्न माध्यमों द्वारा परावर्तित और / या अपवर्तित और / या अवशोषित होती हैं।
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