भूविज्ञान का महत्व |हमारे जीवन में भूविज्ञान | Importance of Geology
भूविज्ञान का महत्व
हमारे जीवन में भूविज्ञान
आपके मन में ऐसे कई प्रश्न आ रहे होंगे जिनके उत्तर जनने के
लिए आप उत्सुक होंगें। भूवैज्ञानिक के कार्य क्या है? भूविज्ञान हमारे
जीवन को कैसे प्रभावित करता है? हमारे समाज में भूवैज्ञानिक की क्या भूमिका है? भूवैज्ञानिक
भूविज्ञान को कैसे व्यवहार में लाते है?
आइये इन प्रश्नों के उत्तर खोजते ?
- आपने पढ़ा है कि हमारी सभ्यता पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों (जल, मृदा, जीवाश्म ईंधन, धातुओं, खनिज आदि) पर अत्यधिक निर्भर है। यह जानना दिलचस्प है कि सबसे पुरानी सभ्यताओं जैसे मोहन जोदड़ो और हड़प्पा सभ्यताओं ने बसने के लिए नदी घाटियों को जल आपूर्ति की उपलब्धता के कारण ही चयन किया ऐसी अपेक्षा की जाती है कि एक भूवैज्ञानिक पृथ्वी का अध्ययन अल्पकालीन और दीर्घकालीन दोनो ही बातों को ध्यान में रखकर करता है। इस सम्बन्ध में एक ओर जहां पदार्थों का अन्वेषण और दोहन जरूरी है, वहीं दूसरी ओर, वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ भविष्य के लिए संरक्षण की योजना बनाना भी आवश्यक है।
- क्या आप जानते हैं कि भूविज्ञान हमारे दैनिक जीवन में बहुत ही प्रासंगिक एवं महत्वपूर्ण है? आप अनुभव कर रहे होंगे कि भूविज्ञान एक अति उपयोगी विज्ञान है। प्राकृतिक वातावरण को समझने के लिए और मनुष्य के और अधिक आरामदायक रहन सहन के लिए भूविज्ञान का ज्ञान पूर्णतया आवश्यक है। भूविज्ञान के ज्ञान से ही हम ऊर्जा के लिए जीवाश्म या नाभिकीय वस्तुओं का पृथ्वी से दोहन कर सकते हैं और मानवजाति के लिए संसाधनों की आपूर्ति कर सकते हैं।
- सतत् एवं उन्नत कृषि उत्पादन के लिए पृथ्वी और इसके संसाधनों की बुनियादी समझ आवश्यक है। इसकी समझ हमारे तथा अन्य देशों के लोगों की भी भूख मिटाने में सफल हो सकते हैं।
भूविज्ञान का महत्व
1. प्राकृतिक संसाधन
हम चर्चा कर चुके हैं कि हम भूपर्पटी से हमारे लिए उपयोगी
विभिन्न प्रकार के पदार्थ पाते हैं। इनके अन्वेषण और दोहन के लिए भूविज्ञान का
क्रमबद्ध और व्यवस्थित ढंग से अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है। ये पदार्थ निम्नलिखित हैं:
निर्माण सामग्री
- जैसे क्वार्ट्जाइट, बलुआ पत्थर, ग्रेनाइट का उपयोग सड़कों, भवनों आदि के निर्माण के लिए किया जाता है। ज्यादातर आस-पास पाए जाने वाले शैलों को उनकी उपलब्धता के कारण अहमियत दी जाती है क्योंकि इससे ढुलाई भाड़ा में बचत होती है।
धातु
- लौह, एलुमिनियम, मैंगनीज, ताम्र सीसा, जस्ता, क्रोमियम, चांदी, स्वर्ण, टिन जैसे धातु महत्वपूर्ण है और हमारी सभ्यता के लिए हमेशा से अपरिहार्य रहें है। इन खनिजों का निष्कर्षण अयस्कों से होता है जैसे ताम्र का निष्कर्षण चैल्कोपाइराइट से और एलुमिनियम का निष्कर्षण बॉक्साइट अयस्क से होता है।
खनिज
- खनिज जैसे मृत्तिका का उपयोग प्रसाधन सामग्रियों व मृत्तिका कला उद्योगों में अभ्रक विद्युत / उष्मा विसंवाहक के तौर पर गंधक धारी खनिजों का उपयोग पेंट और वर्णक उद्योग में, हीरा अपघर्षी उद्योग में उपयोग में लाये जाते हैं तथा इन सभी खनिजों का निष्कर्षण शैलों से होता है।
उर्वरक
- पौधों के लिए पोषक तत्व जैसे फॉस्फोरस, पोटैशियम नाइट्रोजन और गंधक शैलों से प्राप्त होते हैं।
रत्न
- बहुमूल्य एवं अल्प बहुमूल्य प्रस्तर जैसे हीरा, पन्ना, माणिक्य, मूनस्टोन (चन्द्रकांत मणि) एमेथिस्ट (जमुनिया) जिनका उपयोग हम आभूषण और सजावट के लिए करते हैं।
औषधीय
- बहुत से धातुओं और खनिजों का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में भस्म आदि तैयार करने के लिए किया जाता है।
2 जल संसाधन
- जल अभाव की समस्या से अप अच्छी तरह परिचित होंगे। विश्व आज भीषण जल संकट का सामना कर रहा है। आप जानते हैं कि विश्व का तीन चौथाई भाग पानी है। और जल एक नवीकरणीय (renewable) संसाधन है, तब ये समस्या कैसे उत्पन्न हुई? जल सभी जीवों के लिए मूल आवश्यकता है। यह मानव के स्वयं के उपयोग, कृषि आदि के लिए सबसे महत्वपूर्ण तथा बुनियादी आवश्यकता है। जल हमें बरसात, भौम जल, खनिज झरनें के रूप में और इन सबके अलावा नदी तथा हिमनदों के पिघलने से प्राप्त होती हैं। जल का अन्वेषण, संरक्षण और उपयोगिता तथा उचित योजना के लिए भूविज्ञान का ज्ञान एवं अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है।
3 उर्जा संसाधन
- आपने अवश्य यह महसूस किया होगा कि हमारे दैनिक जीवन में सम्पूर्ण विकास के लिए विद्युत उत्पादन बहुत महत्वपूर्ण है। विद्युत और ऊर्जा की आपूर्ति जैविक, तापीय अथवा नाभिकीय स्रोतों (प्राकृतिक संसाधनों से होती है जो पृथ्वी से प्राप्त होते है। जिसके बारे में आगे बताया गया है। प्राकृतिक संसाधनों से विद्युत और ऊर्जा प्राप्त होती है। भूवैज्ञानिक इनको खोजने और दोहन का कार्य करते हैं।
कोयला
- घरेलू और औद्योगिक जरूरतों के लिए कोयला की आवश्यकता पड़ती है। विद्युत उत्पादन के लिए ताप विद्युत संयंत्रों में भी इसका उपयोग किया जाता है। देश में बहुत से संयंत्रों में विद्युत उत्पादन के लिए कोयले का ही उपयोग होता हैं।
पेट्रोलियम
- पेट्रोलियम के अन्तर्गत तेल और प्राकृतिक गैस के
अतिरिक्त बहुत से दूसरे उत्पाद भी आते है। उम्मीद है कि आप पेट्रोलियम उत्पाद के
उपयोग से परिचित होंगे। जरा सोचिये क्या आप बिना पेट्रोल या डीजल के आपने जीवन की
कल्पना कर सकते हैं?
परमाणु खनिज
- जैसे यूरेनियम, थोरियम आदि नाभिकीय विद्युत उत्पादन और देश के विकास के लिए महत्वपूर्ण ईंधन है।
भूतापीय ऊर्जा
- पृथ्वी के भीतरी भाग में ऊष्ण ऊर्जा का विशाल भण्डार है जो सतह पर ज्वालामुखी, वाष्मुख, उष्णोत्स, भाप से भरी हुई भूमि (steaming ground) और गर्म झरने के रूप में प्रकट होता है। वर्तमान में विद्युत उत्पादन के लिए भूतापीय ऊर्जा का वाणिज्यिक उपयोग हो रहा है।
4 अभियांत्रिकी परियोजनाएँ
- किसी क्षेत्र के भूविज्ञान का ज्ञान भी अभियांत्रिकी परियोजना के लिए उनके शुरू होने से व में अति उपय पहले, दौरान और बाद मे रख रखाव सहित स्थल चुनाव में अति उपयोगी और आवश्यक है। प्रमुख अभियांत्रिकी परियोजनाएं निम्न है :
बाँध
- बाँधों का निर्माण और उनका स्थल चुनाव उचित भूवैज्ञानिक अन्वेषण पर निर्भर करता है।
जलाशय
- जलाशय का निर्माण भविष्य के उपयोग के लिए जल संग्रहण के लिए किया जाता है। जलाशय के स्थान का चयन उसके आधार शैत, आस-पास के क्षेत्र निर्माण के पूर्व भूवैज्ञानिक तौर पर अन्वेषित होना चाहिए।
सुरंग
- सड़क, रेलवे पटरी, भूमिगत नहर, विद्युत गृह के लिए सुरंग का निर्माण किया जाता है और इसके स्थायित्व के लिए भूवैज्ञानिक जाँच आवश्यक है।
रेलवे पटरी
- रेल पथ के निर्माण के लिए विशेष रूप से पहाड़ी भूभाग में विशिष्ट भूवैज्ञानिक दशाओं का ज्ञान होना आवश्यक है।
सड़क
- सड़कों और राजमार्गों के निर्माण के लिए निश्चित भूवैज्ञानिक अन्वेषण आवश्यक है क्योंकि इनको भारी यातायात का सामना करना पड़ता है। पहाड़ी भूभाग में यह अति महत्वपूर्ण हो जाता है।
पुल
- पुल के निर्माण के लिए उचित भूवैज्ञानिक अध्ययन जैसे जलग्रहण क्षेत्र का अध्ययन, पुल के नीचे बहने वाली जल की अधिकतम मात्रा, नींव की शैलों का ज्ञान आवश्यक है।
- अब आप कल्पना कर सकते हैं कि अभियांत्रिकी परियोजना के निर्माण के लिए भूवैज्ञानिक अध्ययन क्यों महत्वपूर्ण है। उचित भूवैज्ञानिक अन्वेषण के बिना परियोजना को पूर्ण करना संभव नहीं है और यदि पूर्ण हो भी गया तो हो सकता है कि यह स्थिर न रहे।
5. पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति और क्रमिक विकास
- जीवन की उत्पत्ति और क्रमिक विकास के बारे में जानने के लिए भूपर्पटी के शैलों में संरक्षित जीवाश्मों का विवरण ही एकमात्र आधार है। जीवाश्मों और दूसरे प्रमाणों की सहायता से हम पृथ्वी पर जीवों की उत्पत्ति और क्रमिक विकास को समझ सकते हैं। पूर्व समय के जन्तुओं और पेधों के क्रमिक विकास और प्रवसन प्राचीन भूगोल और किसी क्षेत्र की जलवायु के अध्ययन में जीवाश्म की भूमिका उपयोगी हैं।
6 प्राकृतिक आपदा प्रबंधन
- भूविज्ञान का अध्ययन मानव जाति को प्राकृतिक आपदा से बचा सकता है। क्षेत्र के भूविज्ञान की जानकारी से प्राकृतिक आपदा को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है और होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। उदाहरण :
भूकंप
- हम उस क्षेत्र की पहचान कर सकते है जहां भूकंप सम्भावित है। इसलिए भूकंप प्रवृत क्षेत्र में बड़ी इमारती ढांचों के निर्माण से बचना चाहिए। भूकंपरोधी भवनों के निर्माण से भूकंप के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
बाढ़
- क्रमबद्ध भूवैज्ञानिक अन्वेषण और प्रभावी कदम उठाने से बाढ़ प्रवृत क्षेत्र में आपदा को कम किया जा सकता है।
हिमघाव (Avalanche)
- गुरुत्व क्रिया के कारण पहाड़ी से नीचे आने वाले शैलों/ बर्फ के पिण्डों को हिमधाव कहते हैं। हिमधाव प्रवृत क्षेत्र में किसी निर्माण को आपदा से बचाने के लिए सावधानी आवश्यक है।
निमज्जन (Sinking)
- खदान, आधार का हटना, भौमजल, क्षेत्र पर अधिक भार सतह के धंसने के लिए प्रेरित करता है। ऐसे क्षेत्र को चिन्हित किया जा सकता है और बचाव के उपाय किए जा सकते हैं।
भूस्खलन
- जब मनुष्य द्वारा निर्माण कार्य से, वन आवरण को हटाने से खनन से, नदी के द्वारा निकटवर्ती शैल के आधार को काटने से ढाल अस्थिर हो जाता है तब भूस्खलन होता है उचित भूवैज्ञानिक योजना के द्वारा सम्भावित आपदा को टाला जा सकता है।
7 सतत् कृषि में भूवैज्ञानिक की भूमिका
- भूवैज्ञानिक कृषकों को जमीन, अधोशायी शैल तथा मृदा की संरचना एवं संयोजन के संबंध में जानकारी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। भूवैज्ञानिक कृषकों को जल प्रबंधन, सतह एवं भौम जल संसाधन और वर्षा जल संरक्षण के अवधारणाओं की जानकारी दे सकते हैं। कृषि भूविज्ञान इन पहलूओं से संबंधित है।
- हमनें इस अनुभाग में अपने जीवन में भूविज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका पर विचार विमर्श किया जैसे जल, भोजन, खनिज, धातु और निर्माण सामग्री के रूप में, साथ ही अभियांत्रिकी परियोजना और आपदा प्रबंधन की चर्चा की।
- इरिक क्लेआस Perkins (2011) में लिखते है कि भूविज्ञान विषय में ना सिर्फ उनके लिए स्थान है जिन्हें क्षेत्रकार्य में रूचि है परन्तु उनके लिए भी जिन्हें क्षेत्रकार्य में रूचि नहीं है। आपने देखा कि भूविज्ञान हर एक के लिए हैं क्योंकि इसका संबंध मानव जीवन के प्रत्येक पहलु से है।
भूविज्ञान में रोजगार की संभावनाएं
- हाल के वर्षों में भूविज्ञान में अच्छे रोजगार विकसित होने के कारण नौजवानों के बीच इस विषय को स्नातक एवं परास्नातक स्तर पर पढ़ने की रूचि बढ़ी है।
- भूवैज्ञानिकों का पेशा उनको नए भूभाग का छानबीन करने के अवसर प्रदान करता है तथा संतोषजनक एवं साहसिक अनुभव देता है। भूविज्ञान सुनकर लोगों को अक्सर दूर दराज के क्षेत्रों में शैलों के अध्ययन की याद दिलाता है। पिछले अनुभाग को पढ़ने के बाद आप भूवैज्ञानिकों के चुनौतीपूर्ण कार्यों से परिचित हो गए होंगे।
- भूविज्ञान विषय में व्यापक अवसरों की संभावना है। खनिज सम्पदा और प्राकृतिक संसाधनों के अन्वेषण और दोहन में भूवैज्ञानिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। भूवैज्ञानिक के मुख्य कार्य प्राकृतिक आपदा एवं उसका वातावरण पर पड़ने वाले प्रभाव की पहचान करना तथा आर्थिक महत्व के खनिजों भौमजल, कोयला एवं पेट्रोलियम संसाधनों की खोज करना है। भूवैज्ञानिक पुल, सड़क, भवन और रेल पथ के निर्माण के लिए उचित स्थल की पहचान करते है। वे समुद्र में प्राकृतिक संसाधनों की खोज के लिए भी जिम्मेदार है। वे मृदा की गुणवत्ता को भूरासायनिक एवं भूभौतिकी परीक्षण के द्वारा निर्धारित करते हैं।
- इस प्रकार भूविज्ञान रोजगार के लिए एक रोमांचक और दिलचस्प विकल्प हैं तथा इसमें रोजगार की अपार संभावनाएं है। भूवैज्ञानिक जलभूवैज्ञानिक, शैल वैज्ञानिक, जीवाश्म वैज्ञानिक, भूभौतिक वैज्ञानिक, खनन भूवैज्ञानिक और पर्यावरण भूवैज्ञानिक के तौर पर केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, अर्धसरकारी, गैरसरकारी और बहुराष्ट्रीय संगठनों में कार्य कर सकते हैं। संघ लोक सेवा आयोग, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जी.एस.आई.) और केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड (सी.जी.डब्ल्यू.बी.) में भूवैज्ञानिक के रूप में नौकरी के लिए प्रतियोगात्मक परीक्षा आयोजित करता है। आप प्रतियोगात्मक परीक्षा के द्वारा कोल इंडिया लिमिटेड, (सी.आई.एल.), ऑयल एण्ड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओ.एन.जी.सी.) ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओ. आई. एल.) भारतीय खान ब्यूरो (आई.बी.एम), स्टील ऑथोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (एस.ए.आई.एल.). राष्ट्रीय जल विद्युत निग्म (एन.एच.पी.सी.), परमाणु खनिज विभाग (ए.एम.डी.). मिनरल एक्सप्लोरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (एम.ई.सी.एल.). भारत सरकार के संस्थान केन्द्रीय और राज्य भौमजल बोर्ड / राज्य खनन विभाग, अवसंरचना निर्माण कम्पनी आदि और बहुत से संगठनों में रोजगार पा सकते हैं।
- रक्षा एवं अर्धसैनिक बल भी भूवैज्ञानिकों की सेवाओं का उपयोग करते हैं क्योंकि वे रक्षा स्थलों भूभाग आकलन और जहाजी विद्या के स्थानों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि निकट भविष्य में हमारे देश में और विश्व के दूसरे विकासशील देशों में त्वरित आर्थिक विस्तार से विश्व स्तर पर भूविज्ञान स्नातकों / परास्नातकों की मांग बढ़ेगी। खासतौर पर प्रशिक्षित भूवैज्ञानिकों की तेल, गैस और खनिज संसाधनों तथा प्राकृतिक और मानव निर्मित पर्यावरणीय आपदाओं की पहचान एवं प्रबंधन करने के लिए आवश्यकता होगी
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