प्रकाश क्या है ?| प्रकाश का परावर्तन अपवर्तन |Light Physics in Hindi
प्रकाश क्या है ? प्रकाश का परावर्तन अपवर्तन
प्रकाश क्या है ? (Light Physics in Hindi)
- प्रकाश, ऊर्जा का ही एक रूप है जो हमारी दृष्टि के संवेदन का कारण है। कुछ - वस्तुएं स्वतः दीप्त (self-luminous) होती हैं, जैसे- सूर्य व तारे आदि जो प्रकाश के स्रोत हैं। विद्युत् बल्ब व जलती मोमबत्ती आदि कृत्रिम दीप्त-स्रोत हैं। कुछ जीवित प्राणी भी स्वतः दीप्त हैं जैसे कि जुगनू और हैचेट मीन।
- अधिकतर वस्तुएं दीप्तहीन होती हैं और उन्हें प्रकाश की सहायता से ही देखा जा सकता है। ग्रह व अनेक उपग्रह, जो दीप्तहीन होते हैं, वे सूर्य की किरणों के परावर्तन के कारण प्रकाश मान व दीप्त दिखाई देते हैं। दिन के समय, सूर्य प्रकाश का एक प्राथमिक स्रोत है, जिससे वायुमंडल के कणों के रूप में प्रकाश का द्वितीयक (secondary) स्रोत उत्पन्न होता है। मेज, कलम अथवा पुस्तक का यह पृष्ठ हमें दृष्टिगोचर होता है क्योंकि इन पर पड़ने वाला प्रकाश इनके द्वारा परावर्तित होता है। रात्रि में, कृत्रिम प्रकाश स्रोतों की सहायता से हम वस्तुओं को देख पाते हैं। रात्रि में किसी वाहन के आगे वाली गाड़ी के पिछले परावर्तक से अपनी हैडलाइट के परावर्तन के फलस्वरूप ही 'हाल्ट' चिह्न दिखाई पड़ता है।
विभिन माध्यम मेँ प्रकाश की चाल ( मी./सेकेंड)
- नाइलोन -1.96 x 10 की घात 8
- कांच -2.00 x 10 की घात 8
- तारपीन तेल -2.04 x 10 की घात 8
- पानी- 2.25 x 10 की घात 8
- निर्वात -3.00 x 10 की घात 8
प्रकाश की किरण व किरण पुंज
- प्रकाश द्वारा अपनाए गए सरल पथ को किरण (ray) कहते हैं जो एक तीरनुमा सरल रेखा से व्यक्त की जा सकती है। अनेक किरणों से किरण पुंज (beam) बनता है जो अपसारी (diverging) अभिसारी (converging) अथवा समांतर प्रकार के हो सकते हैं ।
1 ऋजुरेखीय संचरण, छाया एवं ग्रहण
- पैने किनारे की छाया (shadow) का बनना प्रकाश के ऋजुरेखीय या सरल रेखीय संचरण (rectilinear propagation) को दर्शाता है अर्थात् यह इस तथ्य का परिचायक है कि प्रकाश सरल रेखा में गमन करता है।
- प्रकाश के स्रोत व पर्दे के मध्य अपारदर्शी अवरोध को रखने पर पर्दे पर इस अवरोध की छाया पड़ती है। इस छाया का प्रकार प्रकाश स्रोत के आकार पर निर्भर करता है। यदि प्रकाश का स्रोत एक बिन्दु है (सूक्ष्म छिद्र से आता प्रकाश) तो इस से प्राप्त छाया पूर्ण अन्धकार का क्षेत्र होता है जिसे प्रच्छाया (umbra) कहते हैं। प्रकाश के एक बड़े (विस्तारित) स्रोत, जैसे विद्युत् बल्ब से प्राप्त प्रच्छाया; के चारों ओर के क्षेत्र में कम (आंशिक) अन्धकार होता है जिसे उपच्छाया (pen umbra) कहते हैं।
- चन्द्रमा से प्राप्त प्रकाश, वास्तव में उस पर पड़ती सूर्य किरणों का परावर्तित प्रकाश है। चन्द्र ग्रहण में सूर्य व चन्द्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है जो सूर्य के कुछ प्रकाश को चन्द्रमा तक नहीं पहुंचने देती। दूसरे शब्दों में चन्द्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ती है। सूर्य ग्रहण में, सूर्य व पृथ्वी के बीच चन्द्रमा आ जाता है।
2 प्रकाश का परावर्तन
- जब किसी सतह पर प्रकाश पड़ता है तो उसका कुछ भाग सतह द्वारा परावर्तित कर दिया जाता है, किन्तु कुछ सतह, जैसे दर्पण, धातु की पॉलिश की सतह, आदि आपतित प्रकाश को लगभग पूर्णतः परावर्तित कर देती हैं।
- चित्र में प्रस्तुत परावर्तन के नियमों के अनुसार-आपतन कोण (कोण i) व परावर्तन कोण (कोण r) बराबर होते हैं। यह नियम वक्र सतह पर भी लागू हों, इसके लिए ये कोण अभिलम्ब के साथ मापे जाते हैं, जो परावर्तक सतह के अभिलम्ब एक रेखा है। दूसरा नियम यह है कि आपतित किरण, आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब तथा परावर्तित किरण, सभी एक ही समतल में होते हैं।
प्रतिबिम्ब का बनना-
- कल्पना कीजिए कि समतल दर्पण के सामने प्रकाश का एक बिन्दु स्रोत रखा हुआ है। इस बिन्दु द्वारा प्रसारित किरणें दर्पण से टकरा कर परावर्तित होती हैं। ऐसी दो किरणें, जैसा चित्र-16 में दर्शित है, दर्पण से परावर्तन के पश्चात् आंख पर आएं तो हमें ऐसा लगता है कि ये दर्पण के पीछे अवस्थित विन्दु से आ रही हों। आंखें इस बिंदु पर स्रोत का प्रतिबिंब देखती हैं। प्रकाश किरणें वास्तव में इस बिंदु से नहीं आती इसलिए यह आभासी प्रतिबिम्ब (virtual image) होता है।
- आभासी प्रतिबिम्ब को पर्दे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता। वास्तविक प्रतिबिम्ब किरणों के परस्पर (वास्तविक रूप से) मिलन से प्राप्त होता है तथा इसे पर्दे पर प्राप्त किया जा सकता है।
समतल दर्पण से प्राप्त प्रतिबिम्ब की विशेषताएं इस प्रकार हैं:
(i) प्रतिबिम्ब का आकार वस्तु (स्रोत) के बराबर ही होता है।
(ii) प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर बनता है, जितनी दूर वस्तु उसके सामने है।
(iii) प्रतिबिम्ब आभासी होता है।
(iv) यह पार्श्व रूप से उल्टा प्रतिबिंब है अर्थात् सामने खड़ा व्यक्ति अपने बाएं हाथ पर घड़ी बांधे हुये हो तो प्रतिबिम्ब में यह दाएं हाथ पर बंधी प्रतीत होती है।
- यदि हम समतल दर्पण के सामने खड़े हों तो हमारे सभी अंगों से प्रकाश (यह प्रकाश वह है जो अन्य प्रकाश स्रोत से शरीर पर पड़ने वाले प्रकाश का परावर्तित भाग हैं) दर्पण से टकरा कर परावर्तित होकर हमारी आंख पर पहुंचता है और आंख को अपना आभासी प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे उतनी ही दूर, जितनी दूर दर्पण से शरीर हैं, दिखाई पड़ता है। यह पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है।
प्रकाश की किरणें जिस प्रकार दर्पण से परावर्तित होती हैं, उसी प्रकाr किसी दीवार से भी होती हैं किन्तु दीवार में हमें अपना प्रतिबिम्ब नहीं दिखाई पड़ता। इसका कारण दीवार की सतह का खुरदरापन है। जब प्रकाश किसी खुरदरी सतह (अनियमित) पर आपतित होता है तो उससे परावर्तित किरणें नियमानुसार परावर्तित न होकर अनियमित रूप से सभी दिशाओं में प्रकीर्ण (scat tered) होती हैं, जैसे-अनेक सतह से परावर्तन हो रहा हो। इसे 'विसरित परावर्तन' कहते हैं।
आनत दर्पण-
ऐसे दो दर्पण जो एक कोण पर रखे हों, उनके बीच रखी वस्तु के अनेक प्रतिविम्ब दोनों दर्पणों में बनते हैं। प्रतिबिम्बों की संख्या दर्पणों के मध्य के कोण पर निर्भर करती है तथा इसका सूत्र इस प्रकार है-
प्रतिबिम्बों की संख्या = 360- 1 / दर्पणों के मध्य कोण
- उदाहरणार्थ, 90° पर झुके दो दर्पणों के मध्य रखी वस्तु के तीन प्रतिबिम्ब दिखाई देंगे। दो समांतर रखे समतल दर्पणों के मध्य रखी वस्तु के अनगिनत प्रतिबिम्ब बनेंगे।
बहुमूर्तिदर्शी (Kaleidoscope)
- यह एक प्रकार का खिलौना है, जिसमें समतल दर्पणों की दो पट्टियां (strips) 600 के कोण पर एक नलिका के भीतर लगी होती हैं। इन दर्पणों के बीच रखे कुछ रंगीन चमकदार कांच के टुकड़ों के अनेक प्रतिबिम्ब बनते हैं जिनके संयुक्त प्रभाव से एक सुन्दर डिजाइन बनाता है। दर्पण लगी इस नलिका के एक सिरे पर अन्दर की ओर एक पारदर्शी कांच की प्लेट, उस पर ये रंग-बिरंगे कांच के टुकड़े तथा ठीक सिरे पर घिसे कांच की प्लेट लगा दी जाती है। इसी सिरे से अन्दर देखने पर यह फूलनुमा डिजाइन दृष्टिगत होता है। इसमें प्रत्येक रंगीन टुकड़े दी दर्पणों के बीच पांच-पांच बिम्ब बनाते हैं। इन अनेक बिम्बों के मिलने से ही ज्यामितीय डिजाइन का निर्माण होता है।
वक्र दर्पण-
- वक्र दर्पण दो प्रकार के होते हैं-उत्तल (convex) व अवतल (concave)। इसके लिए कांच की गोलीय सतह पर, जो एक खोखले गोल का भाग होता है, वाष्पीकृत एल्युमिनियम निक्षेपित (deposit) करते हैं।
- उभरी ओर पालिश से अवतल (अथवा अभिसारी) दर्पण तथा अन्दर की ओर क पालिश से उत्तल (अथवा अपसारी) दर्पण बनता है।
- अवतल दर्पण पर पड़ती सूर्य की किरणें परावर्तन के पश्चात् एक बिन्दु पर अभिसरित होती हैं, जिसे दर्पण का फोकस कहते हैं। अवतल दर्पण पर पड़ने वाली सूर्य किरणें अभिसरित होकर एक बिंदु पर केन्द्रित हो जाती हैं इसलिए अवतल दर्पण को दाहक शीशे के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। अवतल दर्पण के इस गुण के कारण इसे सौर कुकर में भी प्रयुक्त किया जाता है। बहुत बड़े अवतल दर्पणों का उपयोग परावर्तक दूरदर्शी में सुदूर खगोलीय पिंडों के फोटो लेने व उनके प्रेक्षणों के लिए भी किया जाता है।
- अवतल दर्पण के सामने रखी वस्तु का दर्पण से स्थिति के अनुसार, वास्तविक अथवा आभासी प्रतिबिम्ब बनता है। दर्पण के सामने फोकस दूरी से कम दूरी पर अवस्थित वस्तु का प्रतिबिम्ब आभासी, सीधा व वस्तु से बड़ा बनता से है। अत: अवतल दर्पण को दाढ़ी बनाने अथवा सौन्दर्य रूप सज्जा हेतु प्रयुक्त किया जाता है। दंत चिकित्सक भी दांतों की जांच करने के लिए अवतल दर्पण प्रयुक्त करते हैं।
परवलयिक दर्पण
- एक अन्य प्रकार का अवतल दर्पण, परवलयिक दर्पण होता है। परवलयिक दर्पण के फोकस पर यदि एक बल्ब जलाया जाय तो परावर्तित किरण-पुंज समांतर किरण- पुंज होती है जो काफी दूरी तक एक समान तीव्रता दे पाती है, परवलयिक दर्पण के इस गुण के कारण इसे सर्चलाइट व ऑटो वाहनों के हैड लैम्प के परावर्तक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
उत्तल दर्पण मेँ प्रतिबिम्ब
- उत्तल दर्पण से सदैव आभासी प्रतिबिम्ब प्राप्त होता है, जो सीधा व वस्तु की अपेक्षा छोटा होता है। इसी गुण के कारण उत्तल दर्पण को वाहनों में पिछला दृश्य (रिअर-व्यु) दर्पण के रूप में उपयोग करते हैं क्योंकि इस स्थिति में दृष्टिगत क्षेत्र बहुत विस्तरित हो जाता है और चालक अपने पीछे के ट्रैफिक के बहुत बड़े क्षेत्र को देखने में सफल होता है। यदि इस कार्य के लिए समतल दर्पण का प्रयोग किया जाय तो वह सीमित (कम) क्षेत्र का दृश्य ही प्रस्तुत कर पायेगा।
प्रकाश का अपवर्तन (Refraction )
- जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में तिरछे होकर गमन करता तो वह अपने पथ से मुड़ जाता है। इसे प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं। प्रकाश क एक किरण, एक से दूसरे (सघन) माध्यम, जैसे वायु से जल अथवा कांच में प्रवे करने पर अपने मार्ग से अभिलम्ब की ओर मुड़ जाती है, जैसा से स्पष्ट है। इसके विपरीत जल अथवा कांच (संघन) से वायु (विरल) में प्रवेश करने पर अभिलम्ब से दूर मुड़ जाती है। यदि किरण सीधे ही अभिलम्ब को दिशा में प्रवेश करे तो बिना मुड़े दूसरे माध्यम में सीधी ही गमन करेगी।
- प्रकाश किरण का इस प्रकार अपने मार्ग से मुड़ना भिन्न घनत्व के माध्यमों में प्रकाश की चाल की भिन्नता के कारण होता है। शून्य (निर्वात) में प्रकाश का वेग, जो अंग्रेजी के 'c अक्षर से व्यक्त किया जाता है, लगभग 3 x 10 m/s तथा वायु में वेग c से कुछ कम (0.03%) होता है। जल में प्रकाश का वेग लगभग c 0.75c तथा कांच में लगभग 0.66c होता है।
किसी माध्यम के अपवर्तनांक (refractive index) का सूत्र इस प्रकार है-
अपवर्तनांक
= निर्वात में प्रकाश का वेग / माध्यम में प्रकाश का वेग
- हम अपने दैनिक जीवन में अपवर्तनांक के अनेक प्रभाव देखते हैं। तालाब में पड़े पत्थर को तिरछे देखने पर वह थोड़ा ऊपर उठा हुआ प्रतीत (आभासित) होता है। में दर्शाया गया है कि किस प्रकार किरणें पानी की सतह पर मुड़ जाने के बाद आंखों को ऐसा आभास देती हैं मानो दूसरे बिंदु से आ रही हों। चित्र से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि अपवर्तन के कारण तालाब जितना गहरा है वास्तव में उतना न लगकर उथला नजर आता है।
- पानी में डूबी छड़ भी अपवर्तन के कारण ही ऊपर की ओर मुड़ी होने का आभास देती है। अपवर्तन के एक अन्य प्रभाव के कारण जल के अन्दर खड़े व्यक्ति को बगल से देखने पर उसकी ऊंचाई कुछ कम लगती है।
वायुमंडलीय अपवर्तन-
- पृथ्वी के चारों ओर वायुमंडल में ऊंचाई के साथ साथ वायु का घनत्व कम होता जाता है। अतः अगर प्रकाश बाहर से वायुमंडल में प्रवेश करता है तो इसे बढ़ते हुए घनत्व वाली वायु की परतों से गुजरना पड़ता है और यह भी क्रमशः मुड़ता हुआ वक्र पथ अपना लेता है।
- पृथ्वी के वायुमंडल में प्रकाश के इसी अपवर्तन प्रभाव के कारण ही वास्तविक सूर्यास्त के पश्चात् भी सूर्य क्षितिज के ऊपर कुछ क्षणों तक दृष्टिगोचर होता है। इस प्रकार, वायुमंडली अपवर्तन के फलस्वरूप दिन की अवधि कुछ बढ़ जाती है।
- सूर्य (अथवा चन्द्रमा) जब क्षितिज के निकट होते हैं तो वे दीर्घवृत्तीय (elliptical) आकार के प्रतीत होते हैं अर्थात् उनका ऊर्ध्व व्यास, क्षैतिजीय व्यास की अपेक्षा छोटा प्रतीत होता, इसका कारण है इनके निचले किनारे से आने वाली किरणें ऊपरी किनारे से आने वाली किरणों की अपेक्षा अपने मार्ग से अधिक मुड़ती हैं।
- तारों का टिमटिमाना भी कुछ (आंशिक रूप से) इसी प्रकार वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण होता है। सुदूर स्थित तारे से आने वाला प्रकाश वायु के विभिन्न स्तरों से अपवर्तित होता हुआ हमारे पास पहुंचता है। वायु में संवहन धाराएं होने के कारण ये स्तर स्थिर नहीं हैं इसीलिए प्रकाश के दीप्तकंपन के कारण वह टिमटिमाता दिखाई देता है। ग्रहों के हमारे अधिक निकट होने के कारण, उनसे मिलने वाला प्रकाश कहीं ज्यादा होता है। इसलिए ऊपर बताए गए प्रभाव के कारण तीव्रता में छोटी विभिन्नताएं दिखाई नहीं पड़ती। इस प्रकार ग्रह टिमटिमाते हुए नजर नहीं आते।
मरीचिका (Mirage) किसे कहते हैं
- वायुमंडलीय अपवर्तन का एक अनोखा व आश्चर्यजनक प्रभाव मरीचिका है जो आमतौर पर गर्म रेगिस्तान में दिखाई पड़ती है। रेगिस्तान में दिन के समय भूमि के निकट की वायु की परतें गर्म तथा ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ तेजी से ठंडी हो जाती हैं। गर्म परत का प्रकाशीय घनत्व कम होता है।
- एक ऊंचे पेड़ के ऊपरी भाग (अथवा आकाश) से आने वाला प्रकाश जैसे-जैसे नीचे गमन करता है वह घटते घनत्व वाली तप्त परतों (अर्थात् विरल माध्यम) में प्रवेश करते समय उत्तरोत्तर मुड़ता जाता है। इसके फलस्वरूप अपवर्तन के कारण किरण अभिलम्ब से दूर हटती जाती है और आपतन कोण धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। इस प्रकार अततः एक ऐसी स्थिति आती है जब आपतन कोण, क्रांतिक कोण से अधिक हो जाता है, परिणामतः प्रकाश की किरणों का पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता हैं। इसके उपरान्त किरणें ऊपर की ओर मुड़ना प्रारम्भ करती हैं और प्रेक्षक की आंख पर पहुंच कर पेड़ का उल्टा प्रतिबिम्ब पेड़ के ठीक नीचे बनाती हैं जैसे कि वह जल की सतह पर खड़े पेड़ का उल्टा प्रतिविम्ब देख रहा हो। गर्म दिनों में मोटर चालक इसी प्रकार की मरीचिका कभी कभी सड़कों पर देखते हैं।
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