प्रसिद्ध अधिवक्ता जिन्होंने पहली बार प्रसिद्ध अलीपुर बम कांड में सफलतापूर्वक अरबिंदो घोष को बचाकर नाम कमाया। इन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए अपना पेशा छोड़ दिया। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1922 के अधिवेशन के अध्यक्ष बने किंतु इन्होंने विधायी परिषदों से अलग रहने की नीति की अर्थहीनता को शीघ्र ही महसूस कर लिया। मोतीलाल नेहरू के साथ इन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधीन स्वराज पार्टी निर्माण किया जिसकी घोषित नीति परिषदों में जाकर उनके कार्यों में बाधा पहुंचाना (इसे' जिम्मेदार सहयोग' भी कहा जाता है) था। इनकी पार्टी को विधायिकाओं में कई सीटें मिलीं तथा ये इसकी नीतियों को कार्यान्वित ही कर रहे थे कि जून 1925 में अचानक उनकी मृत्यु हो गई।
राष्ट्रहित के लिए इनके महान योगदान के कारण इन्हें देशबंधु' कहा गया।
देवभूति ( अथवा देवभूमि )
अंतिम शुंग शासक जिसकी 75 ई० पू० में हत्या पर उसके मंत्री वासुदेव ने कण्व वंश की नींव डाली।
देवनामपिय पियदस्सी
एक उपाधि जिसका अशोक के सभी अभिलेखों में उल्लेख हुआ है। मस्की के अभिलेख में उसका उल्लेख 'अशोक पियदस्सी' के नाम से हुआ है। इस अभिलेख से अशोक की उपाधि तथा नाम की गुत्थी सुलझ गई। इस उपाधि का अर्थ है 'देवताओं का प्रिय जो सबका कल्याण देखता है।'
गंगू ब्राह्मण
ब्राह्मण ज्योतिषविद् (फरिश्ता के अनुसार ) जो हसन का गुरू था तथा इसने बहमनी राज्य के संस्थापक की महानता की भविष्यवाणी की थी।
रासबिहारी घोष
कलकत्ता के प्रमुख अधिवक्ता जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उस सूरत अधिवेशन (1907) के अध्यक्ष चुने गए जिसके अंत में कांग्रेस में विभाजन हो गया। अगले वर्ष (1908) ये उदारवादियों के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन के अध्यक्ष बने।
धोयी
यह बंगाल के लक्ष्मण सेन (अंतिम सेन शासक जिसे बख्तियार खिलजी ने पराजित किया) का दरबारी कवि था। उसने पवनदूतमकी रचना की जिसमें उसके संरक्षक के साहसिक कार्यों का उल्लेख हैं।
सर जॉन चाइल्ड
सूरत के अंग्रेजी कारखाने का अध्यक्ष था। औरंगजेब की आज्ञा की अवहेलना करने पर औरंगजेब ने इसकी फैक्ट्री को जब्त कर लिया। कुछ समय बाद अंग्रेजों को माफ कर दिया गया तथा उन्हें सूरत लौटने की अनुमति मिल गई।
सर जोसिआ चाइल्ड
ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक मंडल के अध्यक्ष जो बलपूर्वक पूर्वी भारत में कुछ क्षेत्रों पर अधिकार करना चाहते थे, जिसके कारण 1688 में अंग्रेजों को बंगाल से अस्थायी तौर पर निष्कासित कर दिया गया।
सर जान क्लेवरिंग
सन् 1773 और 1777 के बीच गवर्नर जनरल की कौंसिल का सदस्य जिन्होंने अपने सहयोगी फिलिप फ्रांसिस के साथ हमेशा वारेन हेस्टिंग्स का विरोध किया।
सर आयर कूट
ब्रिटिश सेनापति जिसने वांडीवाश के युद्ध (1760 ) में फ्रांसीसियों पर निर्णायक जीत दर्ज की। इसने हैदरअली के विरुद्ध पोर्टो नोवो का युद्ध (1781) भी जीता। लेकिन हैदर के विरुद्ध पलिलुर में एक अन्य युद्ध में इसे अपने एक पैर से हाथ धोना पड़ा।
सर आर्थर थामस काटन
प्रसिद्ध अंग्रेज इंजीनियर जिसने कावेरी, कृष्णा एवं गोदावरी नदियों द्वारा सिंचाई संबंधी उपाय किए तथा दक्षिण भारत की सिंचाई प्रणाली में आम सुधार किया.
सर हेनरी काटन
एक अंग्रेज आई०सी०एस० अधिकारी थे। 1920 में सेवानिवृत्त होने से पूर्व उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण पदों पर काम किया। ये भारतीय राष्ट्रवाद के पक्षधर थे तथा 1904 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बंबई अधिवेशन के अध्यक्ष थे।
सर एलेक्जेंडर कनिंघम
पेशे से अभियंता कनिघम ने 1861 तक इंजीनियरिंग विभाग में कई महत्त्वपूर्ण पदों पर काम किया जिसके बाद ये भारत सरकार के विभाग के प्रथम सर्वेक्षक तथा बाद में इस विभाग के निदेशक (1870 85) वने। भारतीय पुरातत्त्व संबंधी इनके योगदानों से हमें प्राचीन भारतीय इतिहास के बारे में काफी महत्त्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती हैं। उनके कार्य (द एंशिएंट जियोग्राफी ऑफ इंडिया, कापंस इंस्क्रिप्शनम इंडिकेनम, द स्तूप ऑफ भरहुतइत्यादि) आज भी काफी महत्त्व रखते हैं।
दादू दयाल
ये मध्यकालीन भारत के एक प्रमुख निर्गुण संत थे। ये ये अहमदाबाद के एक सूत निर्माता के पुत्र थे किंतु शाहजहां के शासनकाल में अधिकतर राजस्थान में रहे। इन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता पर कई कविताओं की रचना की। इनके अनुयायी दादूपंथी कहे गए।
दाहिर
चच का पुत्र । वह सिंध पर अरबों द्वारा अधिकार किए जाने के समय वहां का राजा था। हालांकि उसने शुरू के दो अरब आक्रमणों को विफल कर दिया, किंतु मुहम्मद बिन कासिम के अधीन अरबों के आक्रमण (712 ई०) में राओर के युद्ध में वह पराजित हुआ तथा उसकी हत्या कर दी गई। शीघ्र ही संपूर्ण सिंध, राजधानी अलोर के साथ, अरब शासन के अधीन चला गया।
दाराशिकोह
शाहजहां एवं मुमताज का सबसे बड़ा एवं सबसे प्रिय पुत्र । यह सूफी धर्म में रुचि रखता था तथा सभी धार्मिक मतों के प्रति सहिष्णु था। जब उसका पिता 1756 में बीमार पड़ा तब यह उसके साथ था, किंतु गद्दी पर उसके दावे को उसके तीन छोटे भाइयों (शुजा, औरंगजेब तथा मुराद) ने चुनौती दी जिसके कारण सभी भाइयों में उत्तराधिकार का युद्ध (1656-58) छिड़ गया। हालांकि उसे अपने पिता का समर्थन प्राप्त था किंतु औरंगजेब ने धरम, सामृगढ़ तथा देवराई के तीन लगातार युद्धों में इसे पराजित किया। उसके बाद यह भगोड़ा बन गया तथा दादर (सिंध) के अफगान प्रमुख जीवनखान के पास शरण प्राप्त की, हालांकि जीवन खान ने बाद में दाराशिकोह के साथ धोखेबाजी की और उसे मुगल सेना को सौंप दिया। बाद में धर्म के विरुद्ध आचरण का मुकदमा उसके ऊपर चला तथा अगस्त 1659 में औरंगजेब ने इसे मृत्युदंड दे दिया।
दौलत खान लोदी
पंजाब का लोदी गवर्नर जो सुल्तान इब्राहीम लोदी द्वारा अपने पुत्र ( दिलावर खान) के प्रति दुर्व्यवहार के कारण सुल्तान के विरुद्ध हो गया तथा आलम खान (इब्राहीम का चाचा) एवं मेवाड़ के राणा संग्रामसिंह के साथ भारत पर आक्रमण करने के लिए बाबर को आमंत्रित किया।
दारा बख्श
शहजादा खुसरो (जहांगीर का सबसे बड़ा बेटा जिसकी मृत्यु 1622 में हो गई थी) का पुत्र, जिसे आसफखान ने शाहजहां के दक्कन से आकर बादशाह बनने तक की अवधि के बीच 1627 में गद्दी पर बिठाया।
दिग्नाग
प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु एवं शिक्षक था । यह सभवतः चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के काल में था।
जॉन डिग्बी
रंगपुर का कलक्टर जिसके अधीन राममोहन राय ने 1809 और 1814 के बीच शरीस्तादार (किरानी) के रूप में काम किया तथा अंग्रेजी सीखी।
दिलरस बानोबेगम
औरंगजेब की सबसे बड़ी एवं सबसे प्रिय पत्नी जिसकी मृत्यु के बाद औरंगजेब ने औरंगाबाद में एक मकबरे का निर्माण करवाया जो ताजमहल की तर्ज पर बना हुआ है।
अलेक्जेंडर डफ
स्कॉटिश प्रेसबिटेरियन धर्मप्रचारक, जिसने 1830 और 1863 के बीच बंगाल में समाज सुधार तथा पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया। राममोहन राय की सहायता से इसने कलकत्ता में एक इंग्लिश स्कूल (1830) शुरू किया जो बाद में डफ कॉलेज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसने भारत में विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए सरकार को प्रेरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हेनरी डुंडास
नियंत्रक मंडल (1784 के पिट इंडिया एक्ट द्वारा स्थापित) के प्रथम अध्यक्ष थे। इन्होंने भारत के मामले में नियंत्रक मंडल को अत्यंत शक्तिशाली बनाया।
सरहेनरी मोरटाइमरडूरंड
विशिष्ट आई०सी० एस० अधिकारी जो 1884 और 1894 के बीच भारत सरकार के विदेश सचिव थे तथा भारत और अफगानिस्तान की प्रसिद्ध सीमा रेखा 'डूरंड करने वाले आयोग के अध्यक्ष थे।
दुर्लभराय
सिराजुद्दौला के सेनापतियों में से एक, जिसने मीरजाफर तथा प्लासी के युद्ध में अपने मालिक को धोखा अन्य षड्यंत्रकारियों के साथ मिलकर देकर अंग्रेजों का साथ दिया।
दुर्लभवर्धन
कश्मीर के कार्कोट वंश (सातवीं से नवीं शताब्दी ) का संस्थापक था उस वंश का प्रमुख राजा ललितादित्य तथा जयापीड़ विनयादित्य हुए। इस वंश को नवीं शताब्दी में तुपाल वंश ने विस्थापित किया।
रोमेश चंद्र दत्त
आई०सी०एस० में चुने जाने वाले प्रारंभिक भारतीयों में से एक, जिन्होंने सिविल सेवा के भारतीयकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा भारतीय राष्ट्रवाद तथा समाज सुधार में उल्लेखनीय योगदान किया। सेवानिवृत्त होने के बाद इन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया तथा 1899 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन का सभापतित्व किया। इनकी पुस्तक इकॉनॉमिक हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया (1757-1900) ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के शोषण का विद्वत्तापूर्ण अध्ययन है।
जनरल डायर
सैनिक जनरल जो 13 अप्रैल 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड (379 मृत तथा 1208 घायल) के लिए जिम्मेदार था। उसने मार्शल लॉ लागू कर पंजाबियों को बेइजत किया। बाद में लॉर्ड हंटर को अध्यक्षता के अधीन गठित एक समिति की सिफारिश पर सरकार द्वारा उस पर अभियोग चलाया गया तथा उसे सेवा से हटा दिया गया।
फैजी
शेख मुबारक का पुत्र तथा अबुल फजल का बड़ा भाई जो अकबर के दरबार का प्रमुख कवि था.
फखरुद्दीन
दिल्ली का कोतवाल तथा बल्वन का करीबी मित्र जो इसने उन 2000 शम्सो घुड़सवारों की भूमि जब्ती के आदेश को सुल्तान से वापस करवाया जो बूढ़े हो गए थे तथा सैनिक कार्य के लिए अक्षम थे।
मुहम्मद कासिम फरिश्ता
बीजापुर का प्रमुख इतिहासकार (सोलहवीं शताब्दी के अंत तथा सत्रहवीं शताब्दी के प्रारंभ में) जो इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय के दरबार में था तथा भारत में मुस्लिम शासन का विवरण देने वाली पुस्तक फरिश्ता का लेखक था।
कर्नल फोर्ड
प्रतिभाशाली अंग्रेज सैन्य अधिकारी। इसने चंदुर्थी के युद्ध (1759) में फ्रांसीसियों को पराजित किया तथा मसूलीपटनम पर अधिकार किया जिससे उत्तरी सरकारों पर फ्रांसीसी नियंत्रण समाप्त हो गया। उसी वर्ष बाद में इसने वेदेश के युद्ध में डचों को पराजित किया जिससे बंगाल में डचों की चुनौती समाप्त हो गई।
सरफिलिप फ्रांसिस
रेगुलेटिंग एक्ट के द्वारा गवर्नर जनरल की कौंसिल के चार सदस्यों में से एक सदस्य जिसने माानसन तथा क्लेवरिंग के साथ वारेन हेस्टिंग्स की सभी नोतियों तथा उसकी शासन प्रणाली का विरोध किया। अंतत: हेस्टिंग्स के साथ आग्नेयास्त्र युद्ध (1780) में यह विकलांग हो गया जिसके बाद इंग्लैंड जाकर हेस्टिंग्स पर महाभियोग चलाने तथा संचालन में सक्रिय भूमिका निभाई।
गुलाम हुसैन खान
मुगल काल के दौरान बंगाल का प्रमुख इतिहासकार जो सियार-उल-मुख्त रैन ग्रंथ का लेखक था जो कि मुगल साम्राज्य के पतन का आधिकारिक तथा विश्वसनीय विवरण प्रस्तुत करता है (इसमें बंगाल में 1780 तक अंग्रेजों की प्रगति का विवरण भी हैं)।
गुलबदन बेगम
बाबर की पुत्री जो यह प्रतिभासंपन्न महिला थी तथा इसने अपने भाई, हुमायूं के शासनकाल का आधिकारिक विवरण हुमायूंनामा में लिखा है।
सर मॉरिस लिनफोर्ड ग्वायर
ये भारत के संघीय न्यायालय के 1937 से 1943 तक प्रथम मुख्य न्यायाधीश थे तथा सेवानिवृत्ति के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति बने। इन्होंने भारत के संविधान के प्रारूपण में भी उल्लेखनीय योगदान किया।
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