इतिहास की प्रमुख महिलाएं | Major Women in History in Hindi

 इतिहास की प्रमुख महिलाएं  (Major Women in History in Hindi)

इतिहास की प्रमुख महिलाएं | Major Women in History in Hindi

 


इतिहास की प्रमुख महिलाएं (Major Women in History in Hindi)

इतिहास की प्रमुख महिलाएं- भाग 02 


रजिया सुल्तान 

  • 1205 ईस्वी में जन्मी तुर्की मूल की रजिया सुल्तान का वास्तविक नाम जलाल-उद-दीन रजिया है। यह इल्तुतमिश की पुत्री थीं। यह तुर्की तथा मुसलमान इतिहास की पहली शासिका हैं। इन्होंने 1236 से लेकर 1240 तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद उनकी बेवा शाह तुर्रान का शासन पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया। सल्तनत संभालने के बाद वह पर्दा त्यागकर पुरूषों के समान चोगा तथा कुलाह (टोपी) पहनती थी। युद्ध में भी वह बेनकाब ही सम्मिलित हुईं। वह एक कुशल शासिका थीं परंतु उनके भाई ने याकूत-उद-दीन नामक गुलाम के साथ प्रेम प्रसंग का आरोप लगाकर विद्रोह कर उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया गया।

 

मीरा बाई: 

  • पंद्रहवीं शताब्दी की यह महान संत कवियित्री मध्ययुगीन भारत के स्त्री प्रतिरोध की प्रतीक भी मानी जाती हैं। इनकी जन्म तिथि को लेकर मतैक्य नहीं है परंतु 15वीं शताब्दी पर सहमति अवश्य है। यह शास्त्र से लेकर भास्त्र तक सभी विद्याओं निपुण थीं। विवाहोपरांत कृष्ण प्रेम में पति गृह त्याग दिया। मुगलकालीन भारत की रूढ़ परम्पराओं के कारण उन पर कई अत्याचार किए गए। हत्या की चेष्टा की गई। परंतु वह अपने पथ से विचलित नहीं हुई। आगे चलकर उन्होंने संत रैदास को अपना गुरू बनाया। उनके जीवन की अनेक घटनाएं तात्कालीन सामाजिक व्यवस्था की दृष्टि से क्रांतिकारी मानी जाती हैं। इनकी रचनाओं में स्त्री जीवन की पीड़ा तथा विद्रोह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं। 

 

जहां आरा बेगमः 

  • यह शाहजहां और नूरजहां की बड़ी पुत्री थीं। इनका जन्म 1614 में हुआ था। यह चौदह वर्ष की आयु से राज-काज में पिता का हाथ बटाने लगीं। वह फारसी में गद्य और पद्य की ज्ञाता थीं। इन्होंने भाइयों के मध्य उत्तराधिकार की लड़ाई को टालने की चेष्टा की परंतु असफल रहीं। इनकी सहानुभूति दारा शिकोह के पक्ष में थीं।

 


रौशन आरा बेगमः 

  • यह शाहजहां और नूरजहां की छोटी पुत्री थीं। इनका जन्म 1617 में हुआ था। शाहजहां के पुत्रों में जिस वक्त उत्तराधिकार के लिए युद्ध चल रहा था, रौशन आरा औरंगजेब के पक्ष में खड़ी थीं। उसके सत्ता पर काबिज होते ही रौश्न आरा बेगम ताकतवर होती चली गईं। इन्होंने इस्लाम धर्म के प्रचार प्रसार के लिए बैतुल इस्लाम नामक शिक्षा केन्द्र की स्थापना की। मुगल इतिहास में रौशन आरा वह कड़ी हैं जिन्होंने सत्ता संघर्ष की बाजी पलटकर रख दी।

 

जैबुन्निसा बेगमः 

  • यह बादशाह औरगंजेब की पुत्री थीं। कृष्ण भक्त जेबुन्निसा अत्यंत विदुशी स्त्री थीं। उन्होंने दिल्ली में अनेक पुस्तकालयों की स्थापना करवाई।

 


रानी दुर्गावती: (1524-1564)

  • यह कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एक मात्र संतान थीं। वह संग्राम भााह के पुत्र दलपत शाह की पत्नी थीं। विवाह के सिफ चार वर्ष बाद दलपत शाह की मृत्यु हो गई। इसके बाद उनके पुत्र वीर नारायण सिंह को सिंहासन पर बैठाकर वह संरक्षक के रूप में शासन करने लगीं। उन्होंने अपने शासन काल में अनेक मंदिर, पाठशाला, धर्मशाला आदि का निर्माण करवाया। उनके राज्य पर मुसलमान शासक बाज बहादुर ने कई बार हमला किया तथा हर बार वह पराजित हुआ। 1564 में इलाहाबाद के मुगल शासक आसफ खान के साथ युद्ध के दौरान वह चारों तरफ से दुश्मनों से घिर गईं। उन्होंने अपने वजीर आधार सिंह से कहा कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन उड़ा दे। परंतु आधारसिंह ने ऐसा करने से मना कर दिया। इसके बाद उन्होंने अपने सीने में स्वयं कटार भोंक ली। जीते जी दुश्मन उनकी परछाई तक भी नहीं पहुंच सका।

 

महारानी अहिल्या बाई होलकर (1725-1795) 

  • यह प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव की पत्नी थीं। इनका कार्यक्षेत्र सीमित था। इन्हें अपने जीवन में सामान्य स्त्री की भांति उन सभी दुखों का सामना करना पड़ा जो तात्कालीन समाज में आम बात समझी जाती थी अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर, घाट, कुआं, बावड़ी आदि का निर्माण करवाया। अनेक मार्गों पर सुधार कार्य के साथ-साथ नए मार्ग बनवाए गए। गरीबों के लिए अन्नक्षेत्र तथा प्याऊ खोले गए। वह जीवनपर्यंत जनता के अत्यंत लोकप्रिय एवं स्नेह की पात्र बनीं रहीं 


रानी चेनम्माः (1778-1829) 

  • यह कर्नाटक में स्थित कित्तूर की रानी थीं। अपनी साहस और वीरता के कारण यह प्रसिद्ध हुईं। इन्होंने 1824 में अंग्रेजों की हड़प नीति ड्राक्ट्रिन आफ लैप्स के विरूद्ध सशस्त्र संघर्ष किया तथा वीरगति को प्राप्त हुईं।

 

बेगम हजरत महल: (1820-1879)

  • यह वाजिद अली शाह की बेगम थीं, जिनकी मृत्यु के बाद इन्होंने अपने अपने नाबालिग पुत्र बिरजिस कादर को गद्दी पर बिठाकर स्वयं अंगेजों से लोहा लिया। यह सैन्य नेतृत्व संगठन क्षमता तथा बहादुरी के लिए प्रसिद्ध हैं। इनकी सेना में अनेक बहादुर स्त्रियां थीं। 


उदा देवी पासी: 

  • इनके जन्म तिथि का विवरण उपलब्ध नहीं है। यह दलित पासी समुदाय से सम्बंधित महिला नवाब वाजिद अली शाह के महिला दस्ते की सदस्या थीं। 1867 के विद्रोह के समय 200 सैनिकों के साथ अंग्रेजों द्वारा सिकंदर बाग में घेरकर के उनका संहार कर दिया गया। इस लड़ाई में उदा देवी पेड़ पर चढ़ कर दुश्मन के हमले का जवाब देने लगी तथा तब तक अंग्रेजों को सिकंदर बाग में प्रवेश नहीं करने दिया जब तक उनका गोला बारूद समाप्त नहीं हो गया।

 

 

लक्ष्मीबाई : (1835-1858)

  • मराठा शासित झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई ने मात्र 23 वर्ष की आयु में अंग्रेजों की सेना से युद्ध किया तथा रणक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हुईं तथा अपने जीते-जी झांसी पर अंग्रेजों का कब्जा नहीं होने दिया। इनके दल में अनेक प्रक्षिक्षित स्त्री योद्धा थीं जिन्होंने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये। 


झलकारी बाई (1830–1857) 

  • यह लक्ष्मी बाई की नियमित सेना महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं। वह लक्ष्मीबाई की हमशक्ल मानी जाती थीं। इसलिए शत्रुओं को धोखा देने के लिए लक्ष्मीबाई के वेश में युद्ध करती थीं अंतिम समय में अंग्रेजों ने उन्हें रानी समझकर पकड़ लिया जबकि महारानी लक्ष्मी बाई को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया।

 

अवंतीबाई : (1831-1858)

  • अवन्तिबाई का विवाह रामगढ़ रियासत के राजकुमार विक्रम जीत सिंह के साथ हुआ। सन् 1850 में राजकुमार विक्रमजीत सिंह गद्दी पर बैठे। परंतु कुछ समय बाद ही वे अर्धविक्षिप्त हो गए, उनके दोनों पुत्र अमान सिंह और शेर सिंह अभी छोटे थे, अतः राज्य का सारा भार रानी अवन्तिबाई के कन्धों पर आ गया। परंतु अंग्रेजों ने 13 सितम्बर 1851 ई० में कोर्ट ऑफ वार्डस' के तहत उनकी रियासत पर कब्जा कर लिया। सन 1857 के विद्रोह में अवन्ती बाई ने ना केवल  क्रांतिकारियों का साथ दिया बल्कि अपने क्षेत्र में विद्रोह का नेतृत्व भी किया। अपनी रियासत रामगढ़ को अंग्रेजों से मुक्त करने के पश्चात उन्होंने मंडला पर भी विजय हासिल की। रानी अवन्तिबाई ने दिसम्बर 1857 से फरवरी 1858 तक गढ़ मण्डला पर शासन किया। बौखलाए अंग्रेजों ने मौका पाते ही 1858 के अन्त में रामगढ़ पर दुबारा हमला कर दिया। रानी किला छोड़ देवगढ़ के जंगल में जा छुपी और अपने साथियों के सहयोग से छापामार युद्ध का संचालन करने लगी। अंग्रेजों को इस बात की भनक लग गई। उन्होंने भारी संख्या में जंगल को घेर लिया। शत्रुओं से घिर जाने के बाद उन्होंने अपनी पूर्वज रानी दुर्गावती का अनुसरण करते हुए, शत्रुओं द्वारा पकड़े जाने से श्रेयष्कर अपना आत्म बलिदान समझा और स्वयं अपनी तलवार अपने पेट में घोप कर शहीद हो गई।

 

अजीजन बाई: 

  • यह एक तवायफ थीं जो 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ गुप्तचरी का काम करती थीं। उन्होंने 400 महिलाओं की एक टोली बनायी जो मर्दाना वेश में रहती थीं तथा अंग्रेजो विरुद्ध कार्य करतीं थीं। ऐतिहासिक विवरणों से ज्ञात होता है कि कानपुर में नाना साहब अजुमुल्ला खां बाला साहब सूबेदार टीका सिंह आदि के साथ अजीजन बाई भी बैठक में शामिल थीं बिटूर पराजय के बाद नाना साहब तथा तात्या टोपे पलायन कर गए परंतु अजीजन पकड़ी गईं और उन्हें गोली से उड़ा दिया गया।

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