मराठा और जंजीरा के सिद्दी|मराठा, अंग्रेज और पुर्तगाली| Maratha Siddiki Angrej Aur Purtgaali
मराठा और जंजीरा के सिद्दी|मराठा, अंग्रेज और पुर्तगाली
मराठा और जंजीरा के सिद्दी
- कल्याण और भिवण्डी पर कब्जा (1658 ई.) करने के तुरंत बाद शिवाजी ने वहां नौ सैनिक अड्डा बनाया। दक्षिण कोंकण तट पर कब्जा करने के पश्चात् (1661 ई.) शिवाजी की नौ सैनिक शक्ति और भी मजबूत हो गयी। इस विस्तार से मराठों की सीधी मुठभेड़ जंजीरा (बंबई से 45 मील दक्षिण में स्थित पहाड़ी द्वीप) के सिद्दियों की नौ सैनिक शक्ति से हुई।
सिद्दी कौन थे ?
- सिद्दी अबीसीनिया के निवासी थे जो 15वीं शताब्दी में जंजीरा में आकर बस गये थे। उन्हें अहमदनगर के शासकों से दांडा-राजपुरी का क्षेत्र प्राप्त हुआ था। लेकिन निजाम शाही राज्य के समाप्त हो जाने पर उन्हें स्वतंत्र रूप से कार्य करने का मौका मिला था।
- 1636 ई. की संधि के बाद जब पश्चिमी तट पर बीजापुर का अधिकार हो गया, तब सिद्दियों और बीजापुर शासकों के मध्य लंबे संघर्ष का प्रारंभ हुआ और अन्त में उन्होंने आत्मसमर्पण कर बीजापुर की अधीनता स्वीकार कर ली। तत्पश्चात् वे नगोधना से लेकर बानकोट तक के क्षेत्र में बीजापुर के वज़ीर के रूप में कार्य करने लगे। उन्होंने बीजापुर के शासकों से समुद्र के रास्ते होकर मक्का जाने वाले तीर्थयात्रियों की रक्षा का वादा किया। सिद्दियों के पास मजबूत नौ सैनिक बेड़ा था।
- सर्वप्रथम मराठों की मुठभेड़ सिद्दियों से अफजल खां का पीछा करते समय, कोंकण अभियान के दौरान हुई (1659 ई.)। बीजापुर के प्रतिनिधि के रूप में सिद्दियों ने अफजल खां का समर्थन किया था। रघुनाथ बल्लाल के नेतृत्व में शिवाजी ने सिद्दियों को दबाने के लिए एक मजबूत सेना भेजी। मराठों ने सिद्दियों से ताल, घोनसाल और दांडा तक का बृहद् समुद्रतट छीन लिया। परन्तु सिद्दियों ने अपना संघर्ष जारी रखा।
- पुरन्दर की संधि (1665 ई.) के तहत मुगल जंजीरा को मराठों को सौंपने के लिए तैयार हो गये थे अगर वे जंजीरा पर कब्जा करने में सफल हो सकें तो। मराठों ने फिर से 1669-70 ई. में आक्रमण शुरू किया परंतु बीजापुर-मुगल संयुक्त सेना के आक्रमण के कारण वे इसमें सफल नहीं हो पाये। इसके बाद (1671 ई.) सिद्दियों की पूरी नौ सेना मुगलों को हस्तांतरित कर दी गयी और सिद्दी नौ सैनिक अधिकारियों (सिद्दी कासिम और सिद्दी खैरियत) को मुगल मनसबदार बना दिया गया और बीजापुर की शर्तों के अनुरूप मुगलों ने सिद्दी जहाजी बेड़े पर अधिकार कर लिया।
- मुगलों ने सिद्दी सेनानायकों को याकूत खां की उपाधि प्रदान की। जल्द ही सिद्दियों ने मराठों से दांडा वापस ले लिया (1671 ई.)। शिवाजी ने अंग्रेजों की सहायता लेनी चाही परन्तु इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद दोनों के बीच समय-समय पर लम्बा संघर्ष चला (1672-80 ई.)। शम्भाजी के बाद यह दुश्मनी ज्यादा तीक्ष्ण हो गयी। प्रारंभ से ही (1681 ई.) सिद्दियों ने मराठा राज्य क्षेत्र में रायगढ़ तक आक्रमण किये। 1682 ई. में रघुनाथ प्रभु उनके आक्रमण को रोकने में सफल रहा।
मराठा, अंग्रेज और पुर्तगाली
- दाभोल बंदरगाह पर कब्जा करने (जनवरी, 1660 ई.) के बाद मराठा अंग्रेजों के सम्पर्क में आये। आरंभ से ही दोनों के संबंध तनावपूर्ण रहे। फरवरी, 1660 ई. में मराठों ने अफजल खां के युद्ध पोतों की मांग की।
- मार्च, 1661 ई. में मराठों ने राजापुर के अंग्रेज कारखाने (factory) पर हमला बोल दिया क्योंकि यहीं से बीजापुर के शासक को ग्रेनेडों की आपूर्ति हो रही थी और वह इसका उपयोग मराठों के पनहाला किले पर आक्रमण के लिए कर रहा था। मराठों को अस्त्र न देने के कारण शिवाजी ने फिर से अंग्रेजों को परेशान किया।
- मई, 1672 ई. में अंग्रेजों ने समझौता करना चाहा परंतु वे सफल नहीं हुए क्योंकि वे एक लाख रुपये का हरजाना नहीं दे सके। 1673 ई. में अंग्रेजों ने थामस निकोलस के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल भेजा परन्तु इसका भी कोई नतीजा नहीं निकला। लेकिन 1674 ई. में हेनरी ऑक्सिनडेन के नेतृत्व में आये प्रतिनिधिमंडल का शिवाजी ने स्वागत किया और 50 तोपखाने और बंदूकें खरीदने की इच्छा प्रकट की। इसके बाद (1675 ई.) राजापुर में अंग्रेजों का कारखाना फिर से खुल गया 1675 ई. में अंग्रेजों ने मराठों से खानदेश में धरनगांव स्थित कारखाने के नुकसान पहुंचाये जाने की एवज में हरजाना मांगा लंबे वाद-विवाद के बाद भी शिवाजी इसके लिए राजी नहीं हुए। अंततः दिसम्बर, 1682 ई. में शम्भाजी ने राजापुर के कारखाने को बंद करवा दिया।
- मराठों और पुर्तगालियों का संबंध भी आरंभ से ही सौहार्दपूर्ण नहीं रहा। पुर्तगालियों ने शिवाजी के विरुद्ध जंजीरा के सिद्धियों का समर्थन किया। उन्होंने शिवाजी द्वारा निष्कासित दक्षिण रत्नागिरि के देसाइयों को गोवा में शरण दे रखी थी। शिवाजी ने दमन क्षेत्र से चौथ की भी मांग की।
- पश्चिमी तट पर शिवाजी की सेना की उपस्थिति से भी पुर्तगालियों के व्यापार में बाधा उत्पन्न होती थी। इन मतभेदों के बावजूद पुर्तगालियों ने मराठों के साथ कभी भी संघर्ष का रास्ता नहीं अपनाया बल्कि उनसे दोस्ताना व्यवहार बनाये रखा। पुर्तगाली गवर्नर ने भी कभी खुलकर शिवाजी के विरोधियों का समर्थन नहीं किया। जून, 1659 ई. में जब शिवाजी ने पुर्तगालियों को अबीसीनियों दांडा के सिद्दियों की सहायता न करने को कहा तब उसने अपने अधिकारियों को इसका कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया।
- दिसंबर, 1667 ई. में दोनों के बीच संधि हुई और शिवाजी ने पुर्तगाली व्यापार में व्यवधान न डालने का आश्वासन दिया। पुर्तगालियों ने दक्षिण रत्नागिरि के देसाइयों को भी निकाल बाहर किया। यह संधि पुनः 10 फरवरी, 1670 ई० को नवीकृत की गयी। उस समय शिवाजी ने पुर्तगाली सीमा से लगे अपने इलाकों में किला न बनाने का भी आश्वासन दिया। परंतु शिवाजी के शासन काल के अंतिम समय (1676-77 ई०) में चौथ के भुगतान को लेकर दोनों के संबंध तनावपूर्ण हो गये। परंतु शिवाजी की असमय मृत्यु से सीधी टक्कर टल गयी। 1683 ई० में शिवाजी के पुत्र शम्भाजी ने खुद चौल और गोवा पर आक्रमण किया परंतु मुगल दबाव के कारण उसे पीछे हटना पड़ा।
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