प्रदूषण की रोकथाम में मानव की भूमिका |Pollution control and human
प्रदूषण की रोकथाम में मानव की भूमिका
प्रदूषण की रोकथाम में मानव की भूमिका
- मानव जीवन में पर्यावरण का विशेष महत्व है। उसका प्रभाव होता है। मानव संस्कृति और मानव जीवन के विकास, उन्नयन में सबसे महत्वपूर्ण योगदान पर्यावरण का ही रहता है। पर्यावरण की महत्ता, संवदेनशीलता और उपयोगिता को समझने के लिए कहा जाता है कि जैसे जलचर बिना जल के जीवित नहीं रह सकते। उसी प्रकार उपयुक्त पर्यावरण के बिना प्रत्येक जीव, प्राणी, वनस्पति नहीं रह सकते हैं। भिन्न स्थानों और प्रदेशों में पर्यावरण भिन्न स्वरूपकों में दिखता और मिलता है। हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में पर्वत, चट्टानें, वनस्पति, जंगल और अनेक प्रकार के जीव-जंतु हैं तथा सर्दी, बर्फ व पानी की बहुतायत है, तो रेत, ताप, ऊष्मा, मरुस्थल का आधिक्य राजस्थानी क्षेत्रों में है। पर्यावरण का निर्माण सम्मिलित रूप से स्थान विशेष में प्राप्त होने वाली सभी तत्व तथा वहां की जलवायु मिलकर ही करते हैं। ऋषि-मुनि वैदिक युग में पर्यावरण के महत्व को अच्छी तरह से जानते और पहचानते थे, यही कारण है कि यदि ग्रंथों में प्रकृति और उसके घटक तत्वों के प्रति विशेष सम्मान और पूजा का भाव परिलक्षित होता है और ऐसी ही प्रेरणा संप्रेषित होती है। नीति-नियम भी उन दिनों तद्नुरूप ही बनाए जाते थे। पर्यावरण की तरफ पश्चिमी जगत का ध्यान आकर्षण पिछले कुछ दशकों में ही हुआ है। प्रारंभ में पारिस्थितिकी यानि भौगोलिक पर्यावरण तक ही सीमित रहा था। उस समय मृदा, जल, और वायु को ही मुख्यतः पर्यावरण के अंतर्गत माना जाता था। बाद में पर्यावरण के अर्थ को विस्तृत करते हुए नई परिभाषा दी गई। मानव पारिस्थितिकी या हायूमन इकोलॉजी का निर्माण मानव के चारों ओर के भौतिक एवं सांस्कृतिक घेरे से संपन्न होने वाली क्रियाओं परिवर्तनों, अंतः क्रियाओं और तद्जनित प्रभावों से ही होता है।" इस परिभाषा के तहत मानव समुदाय के रहन-सहन, खान-पान के साथ विचारों को भी माना जाने लगा।
प्रदूषण की रोकथाम में सामान्य व्यक्ति की भूमिका निम्न प्रकार से हो सकती है-
1. अपने को प्रकृति का अभिन्न अंग समझकर जीवन के आधारभूत तत्वो जैसे भूमि, जल तथा वायु की पवित्रता बनाए रखकर।
2. प्रत्यके व्यक्ति अपने परिवार को सीमित एवं नियोजित करे।
3. पृथ्वी पर गहराते जल संकट को देखते हुए जल के दुरूपयोग व अपव्यय को रोकना और अधिका- अधिक जल संचय द्वारा।
4. परम्परागत ऊर्जा के स्थान पर वैकल्पित ऊर्जा स्त्रोत का उपयोग करके।
5. वाहनो की नियमित जांच व उचित रख-रखाव कर वायु प्रदूषण नियन्त्रण करके।
6. कृषि में जैविक खाद व जैव कीटनाशकों का प्रयोग कर।
7. वनों की रक्षा व वनीकरण करके।
8. ध्वनि विस्तारक यन्त्रों का प्रयोग सीमित मात्रा में आवश्यकतानुसार करके।
9. घरेलू कूड़ा-करकट का उचित निस्तारण द्वारा।
10. सी. ए. सी उत्सर्जन करने वाले उपकरणों की संख्या सीमित करके।
11. दैनिक जीवन में पॉलिथनी थैलियों के स्थान पर कागज व कपड़े की थैलियों का उपयोग कर।
12. पर्यावरण संरक्षण तथा प्रदूषण नियन्त्रण कार्यक्रमों में सहयोग करके आदि
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