उत्तर आधुनिक और तीसरे दौर का नारीवाद |बहुसांस्कृतिक और उत्तर-औपनिवेशिक नारीवाद |Postmodern and Third Round Feminism
उत्तर आधुनिक और तीसरे दौर का नारीवाद, बहुसांस्कृतिक और उत्तर-औपनिवेशिक नारीवाद
उत्तर आधुनिक और तीसरे दौर का नारीवाद
- नारीवाद की शुरुआती दौर की आलोचना केवल उच्च वर्ग की श्वेत महिलाओं के हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए की जाती रही है। इक्कीसवीं सदी की शुरुआत का यह नारीवाद कुछ मायनों में पहले के नारीवाद से अलग है, फिर भी यह अन्य तरीकों से पहले के नारीवाद से अवगत कराता है।
- उत्तर-आधुनिक नारीवाद ने आत्मज्ञान की मान्यताओं की आलोचना की और दावा किया कि तर्कसंगतता सार्वभौमिक सत्य को प्राप्त कर सकती है। उत्तर-आधुनिक और उत्तर-संरचनावादी नारीवादी मनोविश्लेषकों जैसे जैक्स लैकैन, अस्तित्ववादी जैसे सिमोन दा बोउआर विखंडनवादी जैसे जैक देरीदा, और उत्तर-संरचनावादी जैसे मिशेल फूकॉ से प्रभावित हैं। हेलेन सिक्सस जैक दरीदा से प्रभावित थीं। जूडिथ बटलर अपने विचारों में मिषेल फौकों से प्रभावित थीं।
हेलेन सिक्सस नारीवादी लेखक के विचार
- हेलेन सिक्सस जैसे उत्तर संरचनावादी जैक देरीदा की भिन्नता की अवधारणा से प्रभावित थे (फ्रांसीसी शब्द को अंतर के रूप में लिखा गया था)। सिक्सस के अनुसार, पुल्लिंग शब्द का अर्थ स्त्रीलिंग शब्द के संबंध में और उसके विपरीत लिया जाता है। हेलेन सिक्सस आलोचना करते हैं कि पुरुषों द्वारा लेखन और विचार ध्रुवीय श्रेणियों में विभाजित किया गया है जिसमें पुरुष विचार और लेखन को स्त्री पर विशेषाधिकार प्राप्त है।
- सिक्सस ने नारीवादी लेखकों को ऐसे लेखों को लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जिनमें बहुलताओं और संभावनाओं पर केंद्रित हो जो उन लेखनों से विचलन होगा जो उस तर्क पर केंद्रित थे जिसने दुनिया को विपक्षी श्रेणियों के संदर्भ में देखा जिसमें एक वर्ग (पुरुष) दूसरे वर्ग (महिला) पर हावी होता है। तीसरे दौर के नारीवादियों ने नारीवादी आंदोलन के भीतर ही दूसरी दौर के नारीवाद की व्यापक आलोचना की।
जूडिथ बटलर लैंगिक श्रेणियों पर विचार
- 'जेंडर ट्रबल' में जूडिथ बटलर लिंग और लैंगिक श्रेणियों के एक विखंडनवाद पर विचार प्रस्तुत करती हैं। उन्होंने कहा कि लैंगिक की तरह ही, एक व्यक्ति के लिंग का भी निर्माण किया जा सकता है अतः शरीर में पूर्व निर्धारित लैंगिक नहीं होते। समाज में इतरलैंगिकता का संस्थानीकरण इस बात का संकेत देता है कि लिंग और लैंगिक अपनी प्रकृति में स्थिति के अनुसार प्रदर्शन करते हैं। पुरुषों और महिलाओं को स्वीकारे जाने के लिए पुरुषों और महिलाओं की तरह ही व्यवहार करना होगा ।
- वह सिमोन दा बोउआर से सहमत हैं कि एक स्त्री, स्त्री के रूप में जन्म नहीं लेती लेकिन वह एक स्त्री बन जाती है क्योंकि लिंग समाज द्वारा निर्धारित किया जाता है। व्यक्तियों को कथानक द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो समाज द्वारा लिंग या जेंडर के विषय में बनाया जाता है और व्यक्तियों के पास इसका कोई अन्य विकल्प नहीं है। बटलर के अनुसार लिंग जेंडर से अलग नहीं है अपितु यह सांस्कृतिक रूप से निर्मित है। मानव शरीरों को उनके जेंडर के माध्यम से चिंहित किया जाता है। शरीरों को लैंगिकता के माध्यम से दर्शाया जाता है।
- एक बच्चे के जन्म के समय यह कहना कि एक लड़की ने जन्म लिया है एक बच्चे को लड़की के अस्तित्व में लाता है, जैसा कि बटलर कहती हैं यह प्रक्रिया एक लड़की को लड़की बनाने को अंजाम देती है" (जैक्सन और स्कॉट 2002: 19) । अतः प्रदर्शनकरिता दृश्टान्त है क्योंकि यह पारंपरिक प्रथाओं, मानदंडों और परम्पराओं पर आधारित है। वे कहती है कि यह मुष्किल है कि हम अपने जीवनकाल में खुद के बारे में लिंग, जेंडर और लैंगिकता से परे सोचें, जिसके द्वारा समाज हमें परिभाषित करता है।
- इसलिए, तीसरे दौर के नारीवादी विविधता और परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करते हैं। तीसरे चरण के नारीवादीयों के लिए चीजें किस तरह से हैं यह भिन्नता ही है (टोंग । वे संघर्ष विरोधाभास और अंतर्विरोध के लिए तैयार हैं। तीसरे चरण के नारीवाद ने नारीवादी विचारों की आलोचना की जिसने महिलाओं के बीच भेदों को कम आँका ।
बहुसांस्कृतिक और उत्तर-औपनिवेशिक नारीवाद
- बहुसांस्कृतिक नारीवादी महिलाओं के बीच भिन्नताओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। उत्तर औपनिवेशिक या वैश्विक नारीवादी इस बात पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि दक्षिणी विकासशील देशों में महिलाओं का जीवन उत्तरी विकसित दुनिया की महिलाओं के जीवन से किस प्रकार भिन्न है। ऐसा इसलिए है क्योंकि महिलाएं एकसमान नहीं हैं और उनके अलग-अलग दृष्टिकोण हैं।
- उदाहरण के तौर पर भारतीय नारीवाद को पश्चिमी नारीवाद से अपने संबंधों में स्वयं को निरंतर परिभाषित और विभेदित करना पड़ता है। भारतीय महिलाएं खुद को नारीवादी भले ही ना कहें, लेकिन महिलाओं के लिए नीतियों को लाने में शामिल हो सकती हैं। भारत में नारीवाद पर किसी भी प्रकार की चर्चा को पश्चिमी नारीवाद का सामना करना पड़ता है क्योंकि उपनिवेषवाद के युग के दौरान समाज सुधारकों, राष्ट्रवादियों को समाजवादीयों द्वारा अवगत कराया जाता था, उदारवादी और नारीवादी विचारों को पश्चिम द्वारा व्याख्यायित किया जाता था।
- हालाँकि भारत में अपनी स्वदेशी जड़ों की खोज के साथ साथ नारीवाद पर ऐतिहासिक लेखन के स्व चेतन की आवश्यकता है । यह प्रयास भारतीय राष्ट्रवाद द्वारा परिभाषित नहीं किए जाने वाले नारीवादी आंदोलनों के अतीत में झांकना है और भारतीय महिलाओं को भारतीय राष्ट्र के साथ मिलाना नहीं चाहिए।
- पश्चिमी नारीवादीयों ने माना कि पितृसत्ता की संरचनाएं महिलाओं पर अत्याचार करती हैं और यह लिंग जेंडर प्रणाली के माध्यम से समझाया जा सकता है। भारत में जाति, वर्ग, जनजाति और समुदाय के रूप में वर्चस्व की विभिन्न अन्य संरचनाओं के साथ पितृसत्ता आज भी काम कर रही है। साथ ही पितृसत्ता की अवधारणा का भारतीय संदर्भ में अपना ही रास्ता है।
Post a Comment