कट्टरपंथी नारीवाद | कट्टरपंथी नारीवादियों का महिला उत्पीड़न पर विश्लेषण |Radical feminism in Hindi

 कट्टरपंथी नारीवाद , कट्टरपंथी नारीवादियों का महिला उत्पीड़न पर विश्लेषण

कट्टरपंथी नारीवाद | कट्टरपंथी नारीवादियों का महिला उत्पीड़न पर विश्लेषण |Radical feminism in Hindi


कट्टरपंथी नारीवाद Radical feminism in Hindi

 

  • 1960 के दशक के उत्तरार्ध में महिलाओं की समस्याओं को व्यक्तिगत विफलता के संकेत के रूप में ना देखकरअपितु एक प्रणाली की एक ऐसी शाखा के रूप में देखा गया जिसमें पुरुष वर्ग दमनकारी वर्ग था और महिला वर्ग पीड़ित वर्ग उदारवादी नारीवादियों के विपरीत1960 और 1970 के दशक के कुछ नारीवादि व्यवस्था में सुधार नहीं करना चाहते थेबल्कि वे इसे एक क्रांतिकारी रूप देना चाहते थे और व्यवस्था में महिलाओं की स्थिति को खोजना चाहते थे। इन नारीवादियों ने रेड स्टॉकिंग्सदा फेमिनिस्ट और न्यू यॉर्क रेडिकल फेमिनिस्ट जैसे समूहों का गठन किया । 


  • ये क्रांतिकारी नारीवादी जागरूकता में वृद्धि लाने में विश्वास करते थे। कट्टरपंथी नारीवादियों का मानना है कि महिलाओं के उत्पीड़न का मूल कारण शारीरिक प्रक्रिया विज्ञान और इतरलिंगी आकर्षण है और यह एक पति और पत्नी से निर्मित एक परिवार के मूल में निहित है। वे इतरलैंगिक कृत्य को वर्चस्व और पितृसत्ता के कृत्य के रूप में वर्णित करते हैं जो की एक बहुत ही व्यक्तिगत मामला रहा हैजैसा कि उनके नारे से स्पष्ट है व्यक्तिगत राजनीतिक है। कट्टरपंथी नारीवादियों ने घोषित किया कि सभी महिलाएं बहनें हैं (टोंग 2009: 49) क्योंकि इतरलैंगिकता मानव उत्पीड़न का प्रमुख रूप है।

 

  • कट्टरपंथी नारीवाद के अनुसार लैंगिक निर्माण पुरुष वर्चस्व की एक विस्तृत प्रणाली को दर्शाता है और इसे समाप्त होना चाहिए (जेग्गार 1983:85 )

 

  • जोरीन फ्रीमैन उभयलिंगी महिलाओं को बढ़ावा देने वाले प्रथम व्यक्तियों में से एक थी। इन कट्टरपंथी नारीवादियों का मानना था कि एक महिला जैविक विज्ञान के अनुसार एक स्त्री के रूप में पैदा होती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसे केवल स्त्रियोचित गुणों को ही प्रदर्शित करना है। वह पुरुषत्व और स्त्रीत्व दोनों गुणों को धारण कर सकती है। अन्य कट्टरपंथी नारीवादियों ने इस दृष्टिकोण का विरोध किया और कहा कि महिलाओं को कठोरता से स्त्रियोचित व्यवहार का पालन करना चाहिए और स्त्रीत्व गुणों से युक्त एक स्त्री होने की श्रेष्ठता का प्रदर्शन करना चाहिए।

 

  • मैरी डेली जैसे कट्टरपंथी नारीवादियों ने उभयलिंगी समाज की धारणा की आलोचना की। वह मानती हैं कि पुरुषत्व और स्त्रीत्व दोनों में उनकी अपनी खूबियां और खामियां होती हैं। पुरुषों और महिलाओं को अपने व्यक्तित्व के किसी एक पक्ष को विकसित करने के लिए  प्रोत्साहित करना समाज में लैंगिक रूढ़ियों के अस्तित्व को बनाए रखना है। कट्टरपंथी नारीवादियों को लिंगवाद की प्रकृति एवम कार्य और इसे दो समूहों में समाप्त करने के तरीके पर विभाजित किया गया है। कट्टरपंथी नारीवाद की भी विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैंभले ही सभी कट्टरपंथी नारीवादी लिंगलैंगिक और प्रजनन पर मुख्य रूप से केंद्रित रहते हैं।

 

कट्टरपंथी नारीवादियों का महिला उत्पीड़न पर विश्लेषण

 

1 गेल रुबिन का महिला उत्पीड़न पर विश्लेषण

 

  • कट्टरपंथी नारीवादी गेल रुबिन के अनुसारपितृसत्तात्मक समाज में लिंग / लैंगिक प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है जिसमें समाज व्यक्तियों की जैविकता के तथ्यों का उपयोग उनकी लैंगिक पहचान और पुरुषों और महिलाओं के कुछ विशेष गुणों को निर्दिश्ट करने के लिए करता है। सामाजिक रूप से निर्धारित लैंगिक पहचान को प्राकृतिक और सामान्य माना जाता है (टोंग 2009:51 )

 

2 केट मिलेट का महिला उत्पीड़न पर विश्लेषण

 

  • लैंगिक राजनीति (1970) में मिलेट का मानना कि यदि महिलाओं को मुक्त कराना है तो पुरुष नियंत्रण को समाप्त करना होगा क्योंकि पुरुष नियंत्रण पितृसत्ता को बनाए रखता है। केट मिलेट ने कहा कि लिंग / जेंडर प्रणाली महिलाओं के उत्पीड़न का मूल स्रोत है और पितृसत्ता पुरुषों और महिलाओं के लिए कुछ भिन्न-भिन्न भूमिकाओं का प्रचार करती है ताकि पुरुषों को सक्रिय और प्रभावषाली रूप में देखा जाए और महिलाओं को निश्क्रिय और अधीनस्थ के रूप में देखा जाएजैसा कि लिंग आधारित कार्यों के उद्घप्त है। यह पितृसत्तात्मक विचारधारा चर्चपरिवार और राज्य के माध्यम से फैलती है जो पुरुषों के द्वारा महिलाओं की अधीनता का समर्थन करती है। उन्होंने एक उभयलिंगी भविश्य के लिए कार्य किया जिसमें वांछित पुरुष और महिला लक्षण सह-अस्तित्व में थे (टोंग 2009: 54)।

 

3 शुलमिथ फायरस्टोन का महिला उत्पीड़न पर विश्लेषण

 

  • कट्टरपंथी नारीवादियों का एक स्थायी प्रभाव कार्यों के माध्यम से भी है जैसे शुलमिथ फायरस्टोन द्वारा 'द डायलेक्टिक ऑफ सेक्स । उनकी पुस्तक के शुरुआती शब्द हैं, 'लिंग वर्ग इतना गहरा है कि अदृष्य समान हो जाता है (जेग्गार 1983: 85 )। लिंग के आधार पर लैंगिक विभेद हमारे जीवन के सभी पहलुओं में व्याप्त हैं लेकिन हम उन्हें पहचान नहीं पाते हैं। उन्होंने दर्शाया कि कैसे मातृत्व की पितृसत्तात्मक संस्था भविष्य की माताओं और पिताओं को जन्म देती है। शुलमिथ फायरस्टोन ने लड़कियों में नारीत्व और लड़कों में पुरुषत्व के उद्भव के फ्रायडियन विचारों को संबोधित किया जैसा कि जीव विज्ञान में निहित है। वह मानती हैं कि लड़कियों में स्त्रीत्व और लड़कों में पुरुषत्व को पुरुष प्रधान समाज में माताओं की तुलना में पिता की सत्ता को अधिक बड़ा स्वीकारे जाने के कारण समझाया जा सकता है। फ्रायड के ओडिपल कॉम्प्लेक्स के सिद्धांत की आलोचना करते हुए

 

  • उनका तर्क है कि लड़के और लड़कियां दोनों ही अपनी माताओं के प्रति आकर्षित होते हैं जो उनकी प्रारंभिक देखभाल करती हैं। जीवन में बाल्यावस्था गुज़र जाने के बाद लड़के और लड़कियां अपने पिता के प्रति आकर्षित होते हैं जिन्हें सार्वजनिक संसार में बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए देखा जाता है। लड़के पिता के अनुकरण के द्वारा उनके करीब रहने का प्रयास करते हैं और लड़कियां अपने स्त्रियोचित व्यवहार के द्वारा उन्हें प्रसन्न करती हैं और उनके करीब रहने का प्रयास करती हैं (जेग्गार 1983 258)।

 

4 एड्रिएन रिच का महिला उत्पीड़न पर विश्लेषण

 

  • "ऑफ़ वूमेन बोर्न" मेंएड्रिएन रिच ने कहा है कि पुरुष इस बात से अवगत है कि पितृसत्ता का अस्तित्व तब तक नहीं रह सकता जब तक कि पुरुष संसार में जीवन लाने या न लाने की महिलाओं की शक्ति को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं होते (टोंग: 200: 79 ) । 
  • रिच ने कहा कि पुरुष चिकित्सकों ने महिला दाइयों का स्थान लेकर जन्म दिलाने की प्रक्रिया पर नियंत्रण कर लिया। पुरुषों ने आहारविश्राम और गर्भावस्था के दौरान शिशुओं के बारे में नियमों पर तानाशाही की हैं और इसने महिलाओं को भ्रमित किया क्योंकि यह उनके स्वयं के अंतर्ज्ञान के साथ मतभेद था। उन्होंने कहा कि महिलाओं को प्रसव प्रक्रिया को निर्देषित करने में सक्षम होना चाहिए और पुरुष चिकित्सकों द्वारा निर्देशित होने की बजाय सुख और पीड़ा का अनुभव करना चाहिए। पितृसत्ता ने महिलाओं के लिए मातृत्व के अनुभव के हस्तांतरण को अग्रसर किया है। रिच फायरस्टोन से सहमत थे कि महिलाओं को मुक्त किया जाना चाहिए और पितृसत्ता के तहत जैविक मातृत्व को संस्थागत रूप देना बंद कर देना चाहिए।

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