रूप स्वनिम विज्ञान|ध्वनिग्रामीय परिवर्तन | Rup Dhwanim Vigyan Parivartan
रूप स्वनिम विज्ञान (Morphophnemics)
रूप स्वनिम विज्ञान
- रूप स्वनिम विज्ञान अथवा रूप ध्वनिग्राम विज्ञान रूप विज्ञान की ही एक विशेष शाखा है जिसमें उस ध्वन्यात्मक परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है जो दो या दो से अधिक रूपों या रूपग्रामों के मिलने पर दिखाई पड़ते हैं।
- रूपग्राम के परिवर्तन वाक्य, रूप या शब्द के स्तर पर दो या दो से अधिक रूपग्रामों के एक साथ आने पर सम्भव होते हैं। उदाहरण के लिए जगत + जननी में त का ज होने से जगज्जननी जाता है। यहाँ परवर्ती घोष ध्वनि के कारण यह परिवर्तन हुआ है। इस प्रकार के परिवर्तन का अध्ययन रूव स्वनिम विज्ञान या रूप ध्वनिग्राम में होता है।
- कुछ विद्वानों ने रूप स्वनिम विज्ञान को ‘संधि' के निकट माना हैं किन्तु प्रसिद्ध भाषाविद् भोलानाथ तिवारी इससे सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार, 'वस्तुतः संधि में प्रायः केवल उन परिवर्तनों को लिया जाता है जो दो मिलने वाले शब्दों या रूपों में एक के अन्त्य या दूसरे के आरम्भ या दोनों में घटित होते हैं।
जैसे -
राम + अवतार = रामावतार
ध्वनि + अंग = ध्वन्यंग
उत् + गम उद्गम
तेज + राशि = तेजोराशि
लेकिन रूप ध्वनिग्राम विज्ञान में इसके साथ-साथ अन्य स्थानों पर आने वाले परिवर्तन भी लिये जाते हैं।
जैसे -
घोड़ा + दौड़ = घुड़दौड़
ठाकुर + आई = ठकुराई
बूढ़ा + औती = बूढ़ौती
इन उदाहरणों में हम देखते हैं कि हर दो शब्द के बीच में तो परिवर्तन हुए ही हैं, साथ ही अन्य स्थानों में भी (घो झ घु, ठा झ ठ, बूझ बु) परिवर्तन हो गए हैं। इन सारे परिवर्तनों का अध्ययन रूप ध्वनिग्राम विज्ञान में होता है। इस प्रकार यह संधि से अधिक व्यापक है। रूप ध्वनिग्रामीय परिवर्तन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं -
(क) स्थान की दृष्टि से
(ख) रूप की दृष्टि से
स्थान की दृष्टि से रूप ध्वनिग्रामीय परिवर्तन के भी दो भेद हैं - बाह्य और अभ्यंतर ।
- बाह्य परिवर्तन में शब्द के आदि या अंत में अर्थात उनके बाहरी अंग में परिवर्तन होता है। जैसे राम + अवतार = रामावतार । यहाँ 'राम' के 'म' में परिवर्तन है। इसी प्रकार ध्वनि + अंग = ध्वन्यंग में ‘नि’ और ‘अ’ में परिवर्तन है।
- अभ्यंतर परिवर्तन में संधि-स्थल से अलग शब्द के भीतर परिवर्तन होता है, जैसे घुड़दौड़, बुढ़ौती, ठकुराई आदि शब्दों में आप देख चुके हैं। रूप की दृष्टि से समीकरण प्रमुख रूप ध्वनिग्रामीय परिवर्तन हैं। जैसे डाक + घर = डाग्घर में ‘ग’ के घोषत्व के कारण ‘क’ भी घोष अर्थात 'ग' हो गया है। इसी प्रकार नाग + पुर = नाक्पुर में ‘प' के अघोषत्व के कारण ‘ग’ भी अघोष अर्थात 'क' हो गया है।
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