रूपिम के प्रकार्य |रूपिम निर्धारण पद्धति| Rup Ke Prakarya evam rup nirdharn padhati

रूपिम के प्रकार्य

रूपिम के प्रकार्य |रूपिम निर्धारण पद्धति| Rup Ke Prakarya evam rup nirdharn padhati


 

रूपिम के प्रकार्य

  • आप यह अच्छी तरह समझ गये हैं कि रूपिम एक महत्वपूर्ण व्याकरणिक संरचना है। वह भाषा की सार्थक इकाई होने के साथ ही वाक्य संरचना का आधार भी है। व्याकरणिक संरचना होने के कारण रूपिम के प्रकार्य को व्याकरणिक कोटियों के परिप्रेक्ष्य में ही देखना होगा। 
  • सम्बंधतत्व और अर्थतत्व के अन्तर्गत आप पढ़ चुके हैं कि सम्बंधतत्व द्वारा अर्थतत्व के काललिंगवचनपुरुष तथा कारक आदि का अभिव्यक्ति होती है। इन्हें ही व्याकरणिक कोटियाँ कहते हैं। सभी भाषाओं में इनकी कोटियाँ समान नहीं होती। जैसे संस्कृत में तीन लिंग और तीन वचन थे। हिन्दी में दो लिंग और दो वचन रह गए।

 

  • किसी प्रतिपादिक (मूल शब्द) में जिस व्याकरणिक कोटि (लिंगवचनकाल आदि) के संयोजन में अलग से स्वनिम जोड़ना पड़े उसे विभक्तिपरक या रूपायित कोटि कहते हैं। इसके विपरीत जहाँ प्रतिपादिक अपने अपरिवर्तित रूप में व्याकरणिक कोटि के सहित होते हैंउसे में चयनात्मक कोटि कहते हैं। इन्हीं दो कोटियों के साथ हिन्दी के रूपिम के प्रकार्यों का विवेचन इस प्रकार प्रस्तुत है। 


  • काल काल के तीन भेद हैं - वर्तमानभूत और भविष्य क्रिया में विभिन्न - प्रकार के सम्बंधतत्व जोड़कर एक ही काल को प्रकट किया जाता है। सम्बंधतत्व अनेक रूपों में कार्य करते हैं। कहीं तो स्वतंत्र शब्द जोड़कर तो कहीं क्रिया में जोड़कर भाव व्यक्त होता है। कहीं सम्बंधतत्व में इतना परिवर्तन हो जाता है कि अर्थतत्व और सम्बंधतत्व का पता ही नहीं चलता। जैसे - मैं जा रहा हूँ’ वाक्य में 'रहा हूँस्वतंत्र शब्द है। 'मैं जाता हूँया 'मैं जाऊँगावाक्य में जा’ मूल क्रिया में ताऔर 'ऊँगाजुड़कर काल को प्रदर्शित करते हैं। इसी प्रकार तीसरी स्थिति में 'मैं गयावाक्य में 'जाक्रिया 'गयामें पूरी तरह परिवर्तित हो गयी है। इस प्रकार सम्बंधतत्व की क्रिया के साथ संवृत होने से वाक्य को विभिन्न कालों का अर्थ प्रदान करती है। यह संवृतता की कालपरक रूपिम है।

 

लिंग - 

  • संज्ञा रूपों में लिंग रूपिम सक्रिय होते हैं। आप जानते हैं कि हिन्दी में दो तरह के लिंग हैं- पुल्लिंग और स्त्रीलिंग हिन्दी में संस्कृत के नपुसंकलिंग का प्रयोग नहीं होता। संज्ञा में लिंग का बोध करने के लिए दो उपाए अपनाए जाते हैं - प्रत्यय जोड़कर और स्वतंत्र शब्द में रखकर। जैसे ’ (लड़कालड़की), 'इया' (बूढ़ाबुढ़िया), 'इन' (बाघबाघिन) प्रत्यय पुल्लिंग से स्त्रीलिंग का बोध कराते हैं। इसी प्रकार स्वतंत्र रूप से शब्द साथ में रखकर भी लिंग बोध कराया जाता है जैसे माता-पिताराजा-रानीभाई-बहननर मछलीमादा मक्खी आदि। ये स्वतंत्र रूपिम हैं। लिंग के अनुसार संज्ञा विशेषण (सभी सर्वनामविशेषण नहीं) और क्रिया के रूप बदलते हैं। सभी सर्वनाम में लिंग के अनुसार परिवर्तन नहीं होता।

 

पुरुष - 

  • पुरुष रूपिम सर्वनाम के रूप परिवर्तन के कारक हैं। जिसका अनुसरण क्रिया करती है अर्थात पुरुष के कारण सर्वनाम के साथ ही क्रिया में भी परिवर्तन होता है। हिन्दी में पुरुष के तीन भेद हैं - उत्तम पुरुष (मैंहम)मध्यम पुरुष ( तूतुम)अन्य पुरुष (वहवेआप)। उत्तम पुरुष में 'मैंएक वचन में और 'हमबहुवचन में रूपिम होगा।

 

वचन - 

  • हिन्दी में दो वचन हैं- एक वचन और बहुवचन । लिंग की तरह एकवचन से बहुवचन बनाने के लिए प्रत्यय का और कभी-कभी समूहवाची स्वतंत्र शब्दों का प्रयोग किया जाता है

  • जैसे- लड़की + इयाँ - लड़कियाँविधायक + गण - विधायकगण । कारक कारक रूपिम का सम्बंध संज्ञा और सर्वनाम से होता है। वाक्य संरचना में कारक रूपिम कर्ताक्रियाकर्म को परस्पर सम्बद्ध करता है।

 

रूपिम निर्धारण पद्धति

 

  • आप ये जान चुके हैं कि रूपिम भाषा या वाक्य की लघुतम उच्चारित इकाई है। जब एक ही अर्थ में कई रूपिम प्रयुक्त होते हैं जिनका वितरण और प्रयोग की दृष्टि से अलग-अलग स्थान निधारित होता है। ऐसी स्थिति में वे सभी एक ही रूपिम के संरूप होते हैं। रूपिम और संरूप के निर्धारण का सम्बंध उच्चारित भाषा से है। 
  • प्रायः भाषा का उच्चारण करते समय भाषा वैज्ञानिक उसकी भाषिक अभिव्यक्ति को स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाते जिससे उस भाषा के रूपिम का तुरंत निर्धारण नहीं हो पाता। धाराप्रवाह भाषिक अभिव्यक्ति में यह स्थिति और कठिन हो जाती है। ऐसी स्थिति में भाषा वैज्ञानिक को वक्ता से अपने कथन को धीरे-धीरे उच्चारित करने के लिए कहना चाहिए।
  • धीरे-धीरे कथन के उच्चारण में वक्ता वाक्य में आवश्यकतानुसार में स्वाभाविक रूप से विराम देगा। दो विरामों के मध्य के अंश रूपिम होंगे। वे संयुक्त भी हो सकते हैं और अकेले भी। 
  • वाक्य के इन स्वाभाविक टुकड़ों का दो आधारों पर परीक्षण किया जाता है.

 

1. क्या वह अंश अन्य उच्चारणों में लगभग उसी अर्थ में प्रयुक्त होता है। यदि इसका उत्तर नहींहैतो निश्चित रूप से चुना हुआ अंश हमारे काम का नहीं है। अब हम दूसरे अंश के साथ यही परीक्षण करेगें। यदि उत्तर 'हाँमें मिलता है तो यह लगभग एक व्याकरणिक रूप है किन्तु अनिवार्यतः रूपिम नहीं है।

 

  • 2. क्या वह 'रूपअन्य छोटे रूपों में विभक्त हो सकता हैऔर क्या छोटे रूप लगभग उसी अर्थ में अन्य उच्चारण में व्यवहृत होते हैंक्या छोटे रूपों का अर्थ समग्र रूप में उस बड़े रूप के अर्थ को अभिव्यक्त करता है यदि उत्तर 'हाँमें है तो यह रूप एक रूपिम से बड़ा है। अर्थात संयुक्त रूप है और फिर हम हर टुकड़ों का उपर्युक्त दो आधारों पर परीक्षण करेगें। यदि उत्तर 'नहींमें मिलता है तो वह रूप एवं रूपिम है। तात्पर्य ये है कि प्रत्येक चुना हुआ प्रथम परीक्षण के आधार पर या तो अनावश्यक अंश हो सकता है या व्याकरणात्मक रूप हो सकता है या एक रूपिम । इस प्रक्रिया द्वारा हम उच्चारणों के सभी रूपिमों की खोज कर सकते हैं। 


निम्नलिखित उच्चारित कथन की उपर्युक्त दोनों आधारों पर परीक्षा से बात स्पष्ट हो जायेगी-

 

  • 'वह अपने बड़े भाई के साथ अच्छा व्यवहार करता है।धीरे-धीरे उच्चारित किये जाने पर इसके स्वाभाविक टुकड़े होगें /वह / / अपने / /बड़े / / भाई / /के/, / साथ/, / अच्छा/, / व्यवहार/, /करता/है। 


प्रस्तुत वाक्य में सहायक रूपिमों की खोज के लिए हम किसी अंश को लेकर उपर्युक्त प्रश्नों के आधार पर उस अंश की परीक्षा करेगें-

 

/वह /

 

(1) वह जाता है/ 

वह पढ़ती है। / 

वह खेलता है /

 

स्पष्ट है कि /वह/ अन्य उच्चारणों में भी उसी रूप में और अर्थ में प्रयुक्त होता है। चुने उच्चारणों के / वह / एवं इन उच्चारणों के /वह/ अर्थ में समानता है। यह हिन्दी का सर्वनाम रूप है जो अन्य पुरुष में स्त्रीलिंग तथा पुल्लिंग दोनों में प्रयुक्त होता है। यही इसका अर्थ है। 

वह / के सम्भावित टुकड़े हो सकते हैं - 

व/, /ह/ 

  • वहाँ/, /वह /, /रह/, /वापस/ में टुकड़े व्यवहृत तो होते हैं परन्तु उसी अर्थ में नहीं यहाँ वह के /व्/या / ह / टुकड़ों में उपयुक्त अर्थ द्योतित नहीं है। अपितु ये दूसरे अर्थ के जनक हैं। अस्तु ये निरर्थक हैं। निष्कर्षतः / वह/ के और सार्थक टुकड़े नहीं किये जा सकतेइसलिए वह / एक रूपिम है।

 

(2) / अपने /

 

/मैं अपने घर जा रहा हूँ/ 

वह अपने गुरुजनों का सम्मान करता है / 

वह अपने पिता के साथ भोजन कर रहा है /

 

इन उच्चारणों में /अपने/ लगभग उसी अर्थ में प्रयुक्त है। अतः यह एक रूपिम है। /अपने/ के निम्नलिखित टुकड़े किये जा सकते हैं-

 

(क) /आ/ /ने/ 

(ख) /अ/ /पन / 

(ग) / अपन/, /ए/

 

  • प्रथम दोनों टुकड़े यद्यपि हिन्दी में अन्य उच्चारणों में प्रयक्त होते हैं किन्तु उपर्युक्त अर्थ में नहीं। अतः ये दानों टुकड़े हमारे काम के नहीं। (ग) टुकड़ा समान अर्थों में हिन्दी भाषा के अन्य उच्चारणों में भी प्रयुक्त होता है। /ए/ पुल्लिंग बहुवचन बोधक प्रत्यय के रूप में /अपने/और/बड़े/ में प्रयुक्त हैं/ अतः अपने संयुक्त रूपिम है / अपन/+/-ए/ एवं संरूप . 


सर्वथा भिन्न अर्थवाची समध्वन्यात्मक रूप दो भिन्न 'रूपिम माने जाते हैं। यथा हिन्दी का कनक / दो रूपिम है। एक का अर्थ 'स्वर्णहैदूसरे का धतूरा ।

 

  • ऐसे समन्वयात्मक रूप जो अनेकार्थी हैं तथा उनके अर्थ संदर्भों से स्पष्ट हो जाएँ तो वे एक ही रूपिम के संरूप होंगे। यथा 'मुझे मार', तथा 'मुझे मार पड़ीमें 'मारशब्द क्रमशः क्रिया और संज्ञा हैं तथा संदर्भगत स्पष्टता है। किन्तु उसके विपरीत वे रूप जो अनेकार्थी है पर संदर्भरहित है अलग रूपिम होगें। यथा ऊपर का उदाहरण 'कनक / कनक अच्छा नहीं होता।इस कथन में संदर्भगत स्पष्टता नहीं है अतः अलग रूपिम होगा।

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