रूपिम क्या होते हैं | रूपिम परिभाषा अर्थ भेद | Rupim arth paribhasha evam prakar
रूपिम क्या होते हैं, रूपिम परिभाषा अर्थ भेद
Rupam arth paribhasha evam prakar
रूपिम क्या होते हैं (रूपिम परिभाषा अर्थ भेद)
- रूप’ या ‘पद’ के सम्बंध में आप पढ़ चुके हैं। ये वाक्य-संरचना के घटक हैं जिन्हें सामान्य भाषा में 'शब्द' कहते हैं। 'रूप' और 'शब्द' के अन्तर को भी आप भलीभाँति जान गये हैं। 'रूपिम' को भाषा विज्ञान में 'रूपतत्व', 'पदतत्व', 'पदिम' आदि नामों से जाना जाता है। रूपिम को समझने के लिए एक वाक्य का उदाहरण देखें- 'उसके पैतृक घर में पूजा होगी।' इस वाक्य में पाँच पद या रूप हैं-
- उसके -1
- पैतृक-घर -2
- में - 3
- पूजा- 4
- होगी -5
आप देखेंगें कि इन पाँच रूपों में सभी एक से नहीं हैं। कुछ इतने छोटे रूप हैं जिनके खण्ड नहीं किए जा सकते। जैसे ‘मैं' अन्य रूपों को खण्डों में विभाजित किया जा सकता है। जैसे-
- उस -1
- के -2
- पैतृक -3
- घर -4
- में -5
- पूज - 6
- आ - 7
- हो -8
- ग- 9
- ई- 10
- यदि हम ‘उस' को ‘उ’ और ‘स' में अथवा 'घर' को 'घ' और 'र' में विभाजित करना चाहें तो ये खण्ड तो हो सकते हैं किन्तु ये खण्ड यहाँ निरर्थक हैं। रूपिम के लिए यह भी आवश्यक है कि उसके छोटे-छोटे खण्ड भी वाक्य संरचना में सार्थक हों। इस तरह ऊपर दिए गए वाक्य में दस रूपिम हैं। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि रूपिम भाषा उच्चारण की लघुतम इकाई है।
रूपिम परिभाषाएं इस प्रकार हैं -
- "भाषा या वाक्य की सार्थक इकाई को रूपग्राम या रूपिम कहते हैं।'
पाश्चात्य भाषा-विज्ञान में रूपिम को इस प्रकार परिभाषित किया गया है. -
- 'A morpheme is the smallest meaningfull unit in a grammer of language. 'In linguistics a morpheme is the smallest grammatical unit in a language.'
- 'A morpheme is a meaningfull lingustic unit, consisting of a word or word element that can not be divided into smaller meaningful parts.'
रूपिम' की विशेषताएं
उक्त परिभाषाओं के आधार पर 'रूपिम' की निम्नलिखित विशेषताएं स्पष्ट होती हैं -
- रूपिम का सम्बंध भाषा व्याकरण से है।
- • रूपिम लघुतम सार्थक इकाई है।
- • रूपिम के सार्थक खण्ड किए जा सकते हैं।
- रूपिम शब्द या शब्द के तत्वों के रूप में होते हैं।
रूपिम के भेद
रचना और प्रयोग की दृष्टि से रूपिम के तीन भेद हैं -
(क) मुक्त रूपिम
- ये केवल स्वतंत्र रूप में या अन्य वाक्य संरचना में भी प्रयोग में आ सकते हैं। जैसे ऊपर दिए गये वाक्य में पैतृक, घर स्वतंत्र रूपिम है। इनका अन्यत्र भी स्वतंत्र रूप में प्रयोग हो सकता है। जैसे (घर बन गया) या अन्य रूपिम के साथ भी इनका प्रयोग हो सकता है। (जैसे पैतृक सम्पत्ति)।
(ख) बद्ध रूपिम
- इनका अलग या स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं हो सकता। जैसे 'ता' - (एकता, सुन्दरता) या 'ई' (लड़की, काली, खड़ी, पड़ी) आदि में।
(ग) बद्ध मुक्त
- इस प्रकार के रूपिम कभी तो मुक्त रहते हैं (जैसे मोहन का) कभी बद्ध - (जैसे तुमको, उनको) हिन्दी के परसर्ग (ने, को, में, से) इसी प्रकार के रूपिम हैं। वे संज्ञा के साथ तो मुक्त रूप में आते हैं किन्तु सर्वनाम के साथ बद्ध रहते हैं।
(घ) संयुक्त रूपिम
- जब दो या अधिक रूपिम एक में मिलते हैं और उनका अर्थतत्व - एक होता है तो उन्हें संयुक्त रूपिम कहते हैं। जैसे उसके, घरों आदि ।
डॉ भोलानाथ तिवारी ने अर्थ और कार्य के आधार पर रूपिम के दो भेद किए हैं-
(क) अर्थदर्शी रूपिम
- इनको अर्थतत्व भी कहते हैं। इनका स्पष्ट अर्थ होता है। ये भाषा के मूल आधार हैं। प्राचीन व्याकरण में इन्हें Stem, root या 'धातु' कहा गया है।
- व्याकरण की दृष्टि से ये रूपिम कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे क्रिया (हो, खा, पढ़, चल), संज्ञा (किताब, मोहन, गाय), सर्वनाम ( मैं, तुम, वह), विशेषण (सुन्दर, अच्छु, बड़) आदि।
ख) सम्बंधदर्शी रूपिम
- इनमें अर्थ की प्रधानता नहीं होती। अन्य रूपिमों के साथ सम्बंध दर्शाना इनका प्रमुख कार्य होता है। इसलिए इन्हें सम्बंध तत्व भी कहा जाता है। यद्यपि इन्हें व्याकरणिक तत्व (कहना अधिक ठीक होगा। हिन्दी में परसर्ग, प्रत्यय आदि सम्बंधदर्शी रूपिम है।
- ये रूपिम एक शब्द का सम्बंध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाते हैं। साथ ही ये लिंग, वचन, पुरुष, काल, वृत्ति या भाव की दृष्टि से अर्थदर्शी रूपिम में परिवर्तन भी करते हैं। जैसे - ‘अच्छु’ अर्थदर्शी रूपिम है। इसमें आ, ई, इया, इयों, ए, ओं आदि सम्बंधदर्शी रूपिम या सम्बंध तत्वों को जोड़कर अच्छा, अच्छी, अच्छाइयाँ, अच्छाइयों, अच्छे अच्छों आदि संयुक्त रूपिम बना सकते हैं।
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