समुद्री प्रदूषण (सागरीय जल प्रदूषण) दुष्प्रभाव |सागरीय जल प्रदूषण नियंत्रण के उपाय | Sea Pollution in Hindi

समुद्री प्रदूषण (सागरीय जल प्रदूषण) दुष्प्रभाव एवं नियंत्रण के उपाय 

समुद्री प्रदूषण (सागरीय जल प्रदूषण) दुष्प्रभाव |सागरीय जल प्रदूषण नियंत्रण के उपाय | Sea Pollution in Hindi

समुद्री प्रदूषण (सागरीय जल प्रदूषण)

 

  • जीवन को संयत रखने का श्रेय प्राप्त करने वाले महासागर पृथ्वी के धरातल के 71 प्रतिशत क्षेत्रफल को आवृत किए हुए हैं। ये महासागर विश्व की ऑक्सीजन आपूर्त का 70 प्रतिशत सृजित करते हैं। लेकिन वृहद् औद्योगिकरण की प्रवृत्ति से प्रोत्साहित विकसित देशों के औद्योगिक कचरे एवं अपशिष्ट पदार्थों के निक्षेप एवं विशाल तेल टैंकरों से निरुसृत तेल का समुद्र में सामुद्रिक पारिस्थितिक तंत्र को भयावह स्थिति में झोंक रहा है। औद्योगिक कचरामलमूत्र कीटनाशक दवाओं एवं उर्वरकों का कृषि क्षेत्रों में विक्षेपण जीवाश्म ईंधन का कचरा एवं अपशिष्ट पदार्थ तथा अन्य भू-धरातलीय अपशिष्ट प्रदूषित मलवा एवं पवन प्रवाह जैसे माध्यमों के द्वारा सागर में मिलाए जाने से सामुद्रिक की विशुद्धता में हास हो रहा है।

 

  • भू-धरातलीय अशुद्धियोतटीय एवं गहरे समुद्र तल से निःसृत ज्वालामुखी पदार्थों की अशुद्धियोंसामुद्रिक मृत जीवोंप्लास्टिक जालों तथा सिंथेटक पदार्थों के निक्षेपण से समुद्र प्रदूषित हो रहे हैं। 
  • आणविक एवं रासायनिक परीक्षणतेल टैंकरों से तले रिसाव पोताश्रियों पर माल उतारते वक्त जल में गिरने से भी समुद्र प्रदूषित होता है। इसके परिणामस्वरूप अटलांटिक महासागर से चीन सागर तक सभी जगह समुद्र में भारी धातुओं एवं डी०डी०टी० जैसे रसायनों के विषैले भंवर बन गए हैं। 
  • इसी प्रकार हिंद महासागर के तटीय क्षेत्रों में बसे 95 करोड़ लोगों की बस्तियों में मल-जल के निकास की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण सारा गंदा जल समुद्र में छोड़ दिया जाता है। 
  • भूमध्य सागर के तट पर बसे 10 करोड़ लोग और प्रतिवर्ष यहां आने वाले 10 करोड़ से अधिक पर्यटकों के कारण भूमध्य सागर सर्वाधिक प्रदूषित सागर बन गया है। वस्तुतः विश्व के सभी समुद्र कमोबेश प्रदूषण की चपेट में आ गए हैं।

 

समुद्री प्रदूषण (सागरीय जल प्रदूषण) के दुष्प्रभावः

 

जल में प्रदूषक पदार्थों की उपस्थिति से जलीय पादप एवं जंतु तो प्रभावित होते ही हैं मनुष्य भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। वास्तव में संपूर्ण जैव समुदाय को असाध्य क्षति का सामाना करना पड़ता है। सागरीय जल प्रदूषण के दुष्प्रभाव इस प्रकार हैं।

 


  • विषाक्त रसायनों से प्रदूषित जल के कारण जलीय पौधें एवं जीव-जंतुओं की मृत्यु हो जाती है। नदियोंझीलोंतालाबों व अन्य जलाशयों के प्रदूषित जल द्वारा सिंचाई करने से फसलें नष्ट हो जाती हैं। 
  • अत्यधिक प्रदूषित जल के कारण मृदा का भी प्रदूषण हो जाता हैउसकी उर्वरता नष्ट हो जाती है तथा उपयोगी मृदावासी सूक्ष्म जीव मारे जाते हैं।
  • वाहित प्रदूषित जल में कवकबैक्टीरिया शैवाल तीव्रता से वृद्धि करते हैं तथा बड़े-बड़े समूहों के रूप में एकत्रित होकर पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। 
  • प्रदूषित जल में काई अधिक हो जाने से सूर्य का प्रकाश गहराई तक नहीं पहुँच पाता हैजिससे अनेक जलीय पौधों की प्रकाश संश्लेषण की क्रिया तथा वृद्धि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 
  • तापीय जल प्रदूषण के कारण जल के सामान्य तापक्रम में वृद्धि होने से पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ जाता है। प्लवक तथा शैवालों की तीव्र वृद्धि होने से जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और जीव-जंतु मरने लगते हैं।
  • समुद्रों के तैलीय प्रदूषण से जलीय जंतु विशेष कर मछलियों एवं जलपक्षी मुख्य रूप से प्रभावित होते हैं। वे समुद्र तल पर बिछी तैलीय परत का भेद नहीं कर सकते और उसी से चिपककर मर जाते हैं। 
  • उद्योगों से निःसृत औद्योगिक कचरे एवं विषैले रसायनों से हुए प्रदूषित जल को पीकर अनेक पालतू जानवर जैसे गायबैल तथा भैंस आदि मर जाती हैं।
  • प्रदूषित जल का सेवन करने से संक्रामक रोगों तथा कई प्रकार के खतरनाक रोगों जैसे- हैजापीलिया,  टाइफाइडअतिसारपेचिसफेफड़ों का कैंसर तथा पेट का रोग होने लगता है। 
  • भारत में 30 से 40 प्रतिशत लोगों की मृत्यु प्रदूषित जल के कारण होती है। 
  • अनेक विषैले रासायनिक पदार्थों के अतिरिक्त कुछ रेडियोधर्मी पदार्थ भी जल में उपस्थित रहते हैंजो जीवों के शरीर में अत्यंत धीमी गति से एकत्रित होते रहते हैं। ये पदार्थ यकृतगुर्दे तथा मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।

 

उपरोक्त दुष्प्रभाव के कारण सागरीय जल प्रदूषण को नियंत्रित करनी की अति आवश्यकता है।

 

सागरीय जल प्रदूषण नियंत्रण के उपायः

 

1. औद्योगिक इकाइयों को इस बात के लिए मजबूर किया जाना चाहिए कि वे कारखानों से निकलने वाले अपशिष्टों एवं मल-जल को बिना शोधित कर नदियोंझीलों या तालाबों में विसर्जित न करें। 

2. देश में इस प्रकार की तकनीक का विकास किया जाना चाहिए ताकि उत्पादकता को प्रभावित किए बिना जल के उपयोग को कम किया जा सके। इससे गंदे जल के बहाव की समस्या अवश्य ही कम होगी और प्रदूषित जल का प्रयोग कम मात्रा में संभव हो सकेगा। 

3. नगरोंकस्बों तथा गांवों में शौचालयों की स्थापना भी कराई जानी चाहिए। 

4. सरकार को मृतक पशुओं के जलाशयों में विसर्जन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना चाहिए तथा सीवर संशोधन संयंत्रों की व्यवस्था करनी चाहिए।

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