समाजवादी नारीवाद| महिलाओं उत्पीड़न पर समाजवादी नारीवाद | Socialist feminism in Hindi
समाजवादी नारीवाद, महिलाओं उत्पीड़न पर समाजवादी नारीवादSocialist feminism in Hindi
समाजवादी नारीवाद Socialist feminism in Hindi
- एक और सैद्धांतिक परिप्रेक्ष्य जिसने लिंग जेंडर के भेद को चुनौती दी वह समाजवादी नारीवाद था जिसने पुरुषों और महिलाओं के बीच भेद के जैविक आधार पर सवाल उठाया। मार्क्सवादी नारीवादीयों के विपरीत समाजवादी नारीवादीयों का मानना है कि वर्ग-विरोध अपने आप में महिलाओं के उत्पीड़न का कारण नहीं है, अपितु वर्ग-विरोध को एक संघ से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए, जिसमें प्रत्येक का मुफ्त विकास सभी के मुक्त विकास की शर्त है'। उनका मानना है कि महिलाओं के उत्पीड़न को समझने के लिए न केवल वर्ग अपितु लिंग, नस्ल और जातीयता महत्वपूर्ण श्रेणियां हैं। उनके लिए महिलाओं का लिंग वर्ग और आर्थिक वर्ग ही महिलाओं के उत्पीड़न का आधार है।
- समाजवादी नारीवादी कट्टरपंथी नारीवादियों से इस बात से सहमत कि पितृसत्ता महिलाओं उत्पीड़न का स्रोत है और मार्क्सवादी नारीवादीयों के साथ भी सहमत हैं कि पूंजीवाद महिलाओं के उत्पीड़न का स्रोत है। महिलाओं के उत्पीड़न को समाप्त करने के लिए समाजवादी नारीवादीयों का मानना है कि पूँजीवादी पितृसत्ता या पितृसत्तात्मक पूँजीवाद के दोमुंही जानवर को मारा जाना चाहिए। इसलिए समाजवादी नारीवादीयों ने सिद्धांतो को विकसित किया जो पितृसत्ता और पूंजीवाद के बीच संबंधों को स्पष्ट करना चाहते हैं.
महिलाओं उत्पीड़न पर समाजवादी नारीवाद
महिलाओं के उत्पीड़न को लाने में पितृसत्ता और पूंजीवाद ने कैसे एक साथ काम किया यह देखने के लिए, इस सिद्धांतों के दो सेट हैं (1) महिलाओं के उत्पीड़न की द्वि-प्रणाली स्पष्टीकरण और (2) महिलाओं के उत्पीड़न की परस्पर संवादात्मक प्रणाली स्पष्टीकरण
1 द्वि-प्रणालीय महिला उत्पीड़न की व्याख्या
अ- जूलियट मिशेल
- एक मार्क्सवादी एकल-करणीय स्पष्टीकरण के बजाय जो समाज में महिलाओं की स्थिति को पूंजीवादी समाज में उत्पादन में उनकी भूमिका के अनुसार निर्धारित करती है, जूलियट मिषेल ने अपनी किताब 'द वूमेंस एस्टेट' में इस बात को कहा कि समाज में महिलाओं की स्थिति उत्पादन, बच्चों के प्रजनन, लैंगिकता और बच्चों के समाजीकरण में उनकी भूमिका से निर्धारित होती है। हालांकि मार्क्सवादी उत्पादन में महिलाओं के प्रवेश का और परिवार के अंत का प्रचार करते हैं, लेकिन प्रजनन, बच्चों के सामाजीकरण और लैंगिकता के क्षेत्र में नीतियों की भी आवश्यकता है जो कि उतनी ही प्राथमिक हैं जितनी की आर्थिक मांगों। महिलाओं की स्वतंत्रता केवल तभी प्राप्त की जा सकती है जब उन व्यक्तियों के मानस और मानसिकता में बदलाव आयें जो महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम मूल्यवान मानते हैं।
ब- एलिसन जेग्गार
- एलिसन जेग्गार ने माना कि पूंजीवाद को उखाड़ फेंकने से महिलाओं को स्वतंत्रता नहीं मिलेगी, अपितु केवल पितृसत्ता की समाप्ति से मिलेगी। महिलाएं अपने शरीर से ही विसंबंधित होती है क्योंकि वे शारीरिक रूप से खुद को समाज को खुश करने के लिए परिभाषित करती हैं और यहां तक कि उनके शरीर को पुरुष के ताकने और यौन उत्पीड़न जैसे कृत्यों के कारण यथोचित मान लिया जाता है। महिलाओं को उनके स्वयं से विसंबंधित कर दिया जाता है। महिलाओं को उनके बच्चों से भी अलग कर दिया जाता है। बच्चे अक्सर उनके जीवन में घटित अनुचित बातों के लिए माताओं को दोषी मानते हैं। तो जिस तरह श्रमिकों को उनके श्रम के उत्पादों से अलग कर दिया जाता है और केवल मशीन के एक उपांग के रूप में देखा जाता है उसी तरह महिलाओं को पितृसत्तात्मक व्यवस्था के भीतर 'महिलाओं के रूप में अलग-थलग कर दिया जाता है क्योंकि इसे बच्चों के लालन पालन प्रथाओं और महिलाओं के प्रजनन विकल्पों के नियमों के संबंध में एक ऐसे अध्यादेश के रूप में जारी किया जाता है जिसे उन पुरुषों द्वारा तय किया जाता है जो इन मामलों का संचालन करते हैं।
2 महिला उत्पीड़न की परस्पर संवादात्मक प्रणाली का स्पष्टीकरण
- महिलाओं के उत्पीड़न की द्वि-प्रणाली की व्याख्या के विपरीत, महिलाओं के उत्पीड़न की संवादात्मक प्रणाली का स्पष्टीकरण यह बताता है कि किस प्रकार पितृसत्ता और पूंजीवाद महिलाओं पर अत्याचार करने के लिए एक-दूसरे के साथ सहसंबंध में कार्य करते हैं। आईरिश मैरियन यंग ने तर्क दिया कि वर्ग विश्लेषण स्वयं (जैसा कि षास्त्रीय मार्क्सवादियों में ऐसा होगा ) महिलाओं की अधीनता की व्याख्या नहीं कर सकता क्योंकि यह 'लैंगिक अंधेपन का करण है और केवल श्रम का लिंग विभाजन महिलाओं की अधीनता को समझाने के लिए वर्ग विश्लेषण की जगह ले सकता है। इसी तरह सिल्विया वाल्बी का भी मानना है कि पितृसत्ता और पूंजीवाद एक दूसरे के साथ महिलाओं पर अत्याचार करने के लिए सहसंबंध में कार्य करते हैं ।
अ- हेदी हार्टमैन
- हेदी हार्टमैन का मानना है कि पितृसत्ता और पूंजीवाद, पूंजीवादी पितृसत्ता नामक एक ही जानवर के दो शीष हैं। उन्नीसवीं शताब्दी में पूंजीवाद के सर्वहारा वर्ग की उन महिलाओं को जो गृहणियां उत्पादक श्रम शक्ति का उत्पादन करने के लिए कार्य करतीं थीं को घर में ही रहने के लिए प्रेरित किया जाता था या बाद में कार्यबल में उनका शोषण किया जाता था क्योंकि वे कम वेतन प्राप्त करती थीं। श्रम के वर्ग और लिंग विभाजन के कारण महिलाओं की जीवन यापन के साधनों तक सीधी पहुँच नहीं थीं। महिलाएं मजदूरी पाने वालों विशेषकर वयस्क पुरुषों पर निर्भर थीं। कामकाजी महिलाओं को घरेलू काम में भी उनके पतियों की मदद नहीं मिलती थी। इस प्रकार श्रम का लिंग विभाजन महिलाओं को वंचित करता है।
Post a Comment