पृथ्वी की उत्पत्ति |पृथ्वी की उत्पत्ति के सिद्धांत एवं परिकल्पना | Theories of the origin of the earth in Hindi
पृथ्वी की उत्पत्ति के सिद्धांत एवं परिकल्पना
पृथ्वी की उत्पत्ति Origin of Earth in Hindi
- आपके मन में पृथ्वी के संबंध में कई तरह के सवाल होंगे। जैसे पृथ्वी की आयु क्या है? पृथ्वी कैसे बनी ? मनुष्य हमेशा इन सवालों के जवाब खोजने में दिलचस्पी लेता रहा है। पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास के संबंध में वर्तमान जानकारी किसी एक खोज से नहीं हुई है, परन्तु विभिन्न शोधकर्ताओं द्वारा लंबी अवधि में निरंतर अनुसंधान द्वारा में आया है यह समय के साथ परिपक्व हो गयी है। इसलिए अब हम इस अनुभाग में पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे जिसे कई अनुसंधानकर्ताओं ने विभिन्न सिद्धांतों एवं परिकल्पनाओं के माध्यम से वर्णित किया है।
- वैज्ञानिकों का बहुमत से मानना है कि पृथ्वी और सौरमंडल ग्रहाणु अभिवृद्धि (Planetesimal accretion) एवं एक विशाल निहारिका के गुरुत्वीय संकुचन (gravitational contraction) से गठित हुआ है। मौलिक (Primitive) ठंडी पृथ्वी क्रमशः गर्म होने लगी, जिसका मुख्य कारण संग्रहित पदार्थों के संकुचन से बढ़ता हुआ वजन एवं प्राकृतिक रेडियोधर्मी सामग्री का क्षय है। जब गर्मी शीघ्र उत्पन्न हुई तो बाहर चली गई जिससे कुछ घटक पिघल गये। भारी पदार्थ गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी के केन्द्र में चले गये हैं जिससे क्रोड का निर्माण हुआ जो कम घनत्व वाले प्रावार एवं बाहरी पर्पटी से घिरा हुआ था।
Theories of the origin of the earth in Hindi
पृथ्वी की उत्पत्ति के सिद्धांत एवं परिकल्पना
पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में कई सिद्धांत एवं परिकल्पना प्रस्तावित हुए हैं जिन्हें मोटे तौर पर निम्नलिखित दो समूहों में बाँटा जा सकता है।-
A) एकपैतृक या अद्वैतिक परिकल्पनाऐं Uni parental or monastic hypotheses
- इस समूह की परिकल्पनाएँ इस धारणा पर आधारित हैं कि पृथ्वी की उत्पत्ति एक ही वृहत् पिंड से व्यवस्थित विकासवादी प्रक्रिया से हुई है। इस परिकल्पना के पक्ष में काण्ट, लाप्लास, कार्ल विजेकर, हेराल्ड यूरी और कुईपर ने अपने विचार रखे।
B) द्विजनकीय या द्वैतवादी परिकल्पनाएँ Bi-parental or Dualistic hypotheses
- इस समूह की परिकल्पनाएँ इस धारणा पर आधारित हैं कि पृथ्वी के निर्माण में दो पिंडो का योगदान था। इसके अनुसार पृथ्वी एवं दूसरे ग्रहों की रचना किसी विस्फोटक गतिविधि का परिणाम था। यह परिकल्पना बफन, चैंबरलिन और मुल्टन, जेम्स जींस, जेफरी, रसेल, लिटलटॉन और बनर्जी के द्वारा दी गई है।
पृथ्वी की उत्पत्ति की परिकल्पनाओं का वर्णन
1. काण्ट की निहारिका परिकल्पना
- 1755 में जर्मन दार्शनिक इमैनुअल काण्ट ने सुझाव दिया कि सौरमंडल की रचना का पता घूमते हुए गैसों के बादल एवं महीन धूल कण, जिसे निहारिका कहते है, से लगाया जा सकता है और इस विचार को निहारिका परिकल्पना कहा जाता है।
- इस परिकल्पना के अनुसार, सौरमंडल एक बृहत्, चपटे, घूमते हुए निहारिका से निर्मित हुई है जिसका फैलाव सबसे दूर स्थित ग्रह से परे था घूर्णन निहारिका (Rotating nebula), सार्वभौमिक गुरुत्व के सिद्धांत के अनुसार, घूर्णन की गति में वृद्धि के कारण और अधिक संकुचित एवं ठोस हो गया। जैसे ही यह निहारिका संकुचित हुआ वैसे ही सारा द्रव्यमान केन्द्र की ओर एकत्रित हो गया। इससे घूर्णन की गति के दर में वृद्धि हुई और अपकेन्द्री बल (centrifugal force) मे वृद्धि हुई। इससे पदार्थ के कण आपसी गुरुत्वाकर्षण के तहत एक दूसरे से टकराने लगे। इससे गर्मी उत्पन्न हुई और पैतृक पिंड में घूर्णन प्रारम्भ हुआ। इस प्रकार से वह बादल गैसों का एक घूमता हुआ पिंड बन गया जिसे निहारिका कहते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि पृथ्वी सहित आठ ग्रहों का निर्माण इस उभरते हुए पिंड के भूमध्य रेखीय तल पर उभार से हुआ।
2. लाप्लास की निहारिका परिकल्पना
- 1796 में लाप्लास ने सुझाव दिया कि गैसीय निहारिका में सिकुड़न एवं संघनन के कारण गर्म गैसीय घुमती हुई निहारिका की गति में अत्यधिक वृद्धि हुई। जिससे अपकेन्द्रीय बल आसंजन बल (force of adhesion) से अधिक हो गया। जिससे गैसीय पिंड का एक छल्ला (ring) बाहर निकल गया। यह छल्ला पृथक होकर एक ग्रह बन गया। इस घटना की पुनरावृत्ति ने अन्य ग्रहों को जन्म दिया और मध्य भाग सूर्य के रूप में बना रहा।
3. चैंबरलिन एवं मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना
- इस परिकल्पना के अनुसार, जब एक दूसरा तारा सूर्य की तरफ अग्रसर हुआ तो गर्म गैसों का विशाल ज्वार या तंतु सूर्य से बाहर निकल आये उस तारे के गुजरने के बाद, गैसों के निकले हुए भाग में घूर्णी गति (rotational motion) उत्पन्न हो गई तारे के जाने के बाद, गैसों के निकले हुए भाग संघनित होकर ठोस पिंड में परिवर्तित हो गए और क्रमशः परस्पर आकर्षित होकर ग्रहों का निर्माण किया।
4. जीन्स की ज्वारीय सिद्धांत
- यह सिद्धांत जीन्स के द्वारा 1919 में दिया गया। इसके अनुसार एक गुजरते हुए तारे के कारण सूर्य पर ज्वारीय प्रभाव हुआ। गुजरते हुए तारे के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण सिगार के आकार की एक प्रक्षेपण (projection) सूर्य से बाहर निकला और जिससे पैतृक (parental) पिंड का निर्माण हुआ। इस सिगार आकार के तंतु के ठंडा होने एवं संघनन से ग्रहों की रचना हुई।
5. जेफरी का टकराव परिकल्पना
- यह परिकल्पना जेफरी द्वारा 1929 में प्रस्तावित की गयी। उनके अनुसार सूर्य एवं गुजरते हुए तारे में टकराव हुआ था जिससे कुछ सौर पदार्थ (solar matter) बाहर निकल आया। उन्होंने सुझाव दिया कि ग्रहों की रचना इसी पिंड के संघनन से हुआ है।
6. एच एन रसेल का युग्म तारा परिकल्पना
- युग्म तारों को जुड़वा तारा भी कहा जाता है (चित्र 2.2)। उन्होंने दो पिंडों की कल्पना की जिसमें एक सूर्य एवं उसका सहचर (companion) था। इनमें से एक दूसरे के चारों ओर घूमता था। उनके अनुसार घुसपैठीया तारा (intruding star) सहचर के समीप आया जिससे एक तंतु ग्रहों की रचना हुई (filament) बाहर निकला जिससे संघनित होकर ग्रहों की रचना हुई।
7 .पृथ्वी उत्पत्ति कीआधुनिक विचारधारा
- एक पैतृक परिकल्पना के अंतर्गत गणितज्ञ, खगोलविद भौतिकविद, रासायनश्शास्त्री एवं भूवैज्ञानिक विकासवादी प्रक्रिया के पक्ष में हैं। कार्ल विज़ेकर का विचार 1943 में आया जिसमें संशोधन हेराल्ड यूरी ने 1952 में किया जो बाद में कुइपर द्वारा 1957 में पुनःसंशोधित किया गया।
(a) युरी कुइपर की परिकल्पना:
- इस परिकल्पना के अनुसार, अंतरिक्ष में धूल और गैसों का एक बड़ा बादल था। जिसमें संघनित पानी का वाष्प, अमोनियम, मीथेन जैसा हाइड्रोकार्बन गैस एवं आयरन ऑक्साइड के धूल कण का मिश्रण था सितारों के रोशनी के प्रभाव से उस बड़े बादल के घटकों में संपीडन प्रारंभ हो गया। जिससे बड़े बादल के मध्य में संघनन की प्रक्रिया द्वारा पैतृक सूर्य (ancestral sun) का विकास शुरू हो गया। कुछ समय पश्चात् पैतृक सूर्य के चारों तरफ घूमता हुआ धूल कणों और गैसों का बृहत बादल असमान आकार के प्रक्षुब्ध भवरों (eddies) में बंट गया।
- कुइपर के अनुसार, भँवर का आकार सूर्य से बढ़ती हुई दूरी के साथ-साथ बढ़ता गया। वे एक दूसरे से टकराने से छोटे ग्रहों (planetesimal या protoplanets) का गठन एवं एक दूसरे से जुटने एवं संघनन के कारण बड़े ग्रहों का निर्माण हुआ। जिनमें से एक हमारी पृथ्वी है। पिघलने के पश्चात् पृथ्वी के अवयवों में विभेदन (diffrerntiation) प्रारंभ हो गया। पृथ्वी की रचना के बाद कई तरह के गैसों का पृथ्वी के अंदर से निकलना प्रारंभ हो गया और इन गैसों से वायुमंडल का निर्माण हुआ।
(b) फ्रेड हॉयल का चुंबकीय सिद्धांत
- 1958 में फ्रेड हॉयल ने अपनी परिकल्पना प्रतिपादित की, उनके अनुसार संकुचित हो रहे मूल निहारिका पिंड से सूर्य के विभेदन की प्रक्रिया में आद्यग्रहीय बादल का निर्माण हुआ यह विभेदन निहारिका के द्रव्यमान के तीव्र घूर्णन के कारण था विभेदन की यह प्रक्रिया सूर्य और गैसीय बादलों के बीच चुंबकीय युग्मन (coupling) के कारण समाप्त हो गई जिससे ग्रहों का निर्माण हुआ।
- भारतीय भौतिक वैज्ञानिक जयंत नार्लीकर ने फ्रेड हॉयल के साथ एक सिद्धांत का प्रस्ताव दिया जिसे हॉयल नार्लीकर सिद्धांत कहा जाता है। जो कि ब्रह्मांड की स्थायी अवस्था मॉडल में उनके विश्वास से प्रेरित था।
(c) बिग बैंग सिद्धांत
- वर्तमान में बिग बैंग सिद्धांत पृथ्वी की उत्पत्ति बताने के लिए सबसे अच्छा मॉडल है। यह बताता है कि ब्रह्मांड अरबों वर्ष पहले गर्म एवं घने अवस्था में बना हैं। प्राथमिक कणों (इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन) आदि के इस सूप से आधुनिक आवर्त सारिणी के सभी ज्ञात तत्वों की रचना हुई बिग बैंग न्यूक्लियो संश्लेषण ( Big Bang Nucleosynthesis ) सिद्धांत इससे संबंधित प्रक्रिया की व्याख्या करने का प्रयास करता है बिग बैंग न्यूक्लियो संश्लेषण पहले तीन मिनट में ही हुआ बिग बैंग के बाद से ब्रह्मांड का लगातार विस्तार हो रहा है।
- इस सिद्धांत को सबसे पहले जार्ज गैमोव ने 1940 में प्रतिपादित किया और बाद में विस्तृत रूप में फ्रेड हॉयल और विलियम फॉलर ने बताया "बिग बैंग" शब्द का उपयोग सबसे पहले एक प्रसिद्ध अंग्रेज खगोलशास्त्री फ्रेड हॉयल ने किया था। बेशक ब्रह्मांड की शुरूआत को इंगित करने वाला कोई विस्फोट या बैंग नहीं हुआ लेकिन यह निश्चित रूप से एक प्रचंड घटना थी। चूंकि आज के ब्रह्मांड में उपस्थित सारे पदार्थ एवं ऊर्जा का निर्माण उसी क्षण हुआ था। खगोलविदों का मानना था कि यह घटना लगभग 14 अरब वर्ष पूर्व हुई थी। बिग बैंग सिद्धांत उल्लेखनीय रूप से ब्रह्मांड के बारे में कई प्रेक्षणों को समझाने में सफल रहा हैं।
- हमारे सौरमंडल में उपस्थित कई ग्रहाणुओं ने परस्पर एकत्र होकर पर्याप्त पदार्थ बना लिए जिससे लगभग 4.6 अरब वर्ष पहले पृथ्वी सहित अन्य ग्रह बन गये। उसके बाद से पृथ्वी में लगातार विकास एवं परिवर्तन हो रहा है। यह माना जाता है कि प्रारंभिक अवस्था में पृथ्वी ठंडी थी जो ज्यादातर सिलिकेट एवं सिलिकेट तथा ऑक्सीजन के यौगिक, लौह एवं मैग्नेशियम के ऑक्साइड तथा कम मात्रा में दूसरे अन्य तत्वों से बनी थी। सामान्यतः इसका संघटन एवं घनत्व एक समान था।
शुरूआती दस लाख वर्षों में पृथ्वी के विकास में कई घटनाओं का समन्वय था
जैसे:
(i) उल्कापिंड की तरह छोटे निकायों का प्रभाव;
(ii) गुरुत्वाकर्षण संपीडन;
(iii) पदार्थों के निष्पीड़न और
(iv) रेडियोधर्मी क्षय के कारण, पृथ्वी के तापमान में वृद्धि तापमान इतना बढ़ गया कि इसके कुछ घटक पिघल गए जिससे समांग संघटन (homogeneous composition) समाप्त हो गए और वे विभिन्न संघटन व घनत्वों वाले संकेन्द्रीय परतों में प्रतिस्थापित हो गए। इससे पृथ्वी अकेन्द्रीय परतों (पर्पटी प्रावार और क्रोड) वाले ऐसे ग्रह में विभेदित हो गई।
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