ऊष्मीय प्रसार क्या होता है |रेखीय प्रसरणीयता |जल में ऊष्मीय प्रसार |Thermal expansion

ऊष्मीय प्रसार क्या होता है ,रेखीय प्रसरणीयता,|जल में ऊष्मीय प्रसार 

ऊष्मीय प्रसार क्या होता है |रेखीय प्रसरणीयता |जल में ऊष्मीय प्रसार |Thermal expansion



ऊष्मीय प्रसार क्या होता है ?

 

  • ठोसों, द्रवों व गैसों को गर्म करने पर सामान्यतया उनमें प्रसार और ठंडा करने पर संकुचन होता है। ठोसों को गर्म करने पर वे फैलते हैं। यदि प्रसार के लिए समुचित स्थान न हो तो ठोस में आन्तरिक रूप से अधिक बल उत्पन्न होने लगता है. जिसके परिणामस्वरूप उनमें बंकन (मुड़ाव) अथवा चटख़न आ जाता है।

 

  • रेल पटरियों के बीच फैलाव के लिए कुछ अन्तर रखा जाता है, जिससे फैलने पर वह उठ (टेढ़ी-मेढ़ो) न जाएं। लोहे के लम्बे पुलों में प्रसार हेतु प्रावधान रखा जाता है, इसमें एक सिरे को स्थिर रख कर दूसरे को रॉलरों पर आधारित रखते हैं। टेलीफोन के तारों में खम्बों के बीच ग्रीष्म ऋतु में शीत ऋतु की अपेक्षा अधिक झोल पड़ जाता है।

 

  • ठोसों के ऊष्मीय प्रसार के अनेक उपयोगी अनुप्रयोग हैं। गड़ियों के लकड़ी के पहियों पर लोहे अथवा इस्पात का घेरा (Rim) गर्म करके चढ़ा देते हैं जो ठंडा होने पर सिकुड़ कर पहिए पर कस कर मढ़ जाता है। 


  • धातु की चादरों में रिवेटों को भी ऊष्मीय प्रसार के अनुसार लगाते हैं। रिवेट को पहले गर्म करते हैं और फिर चादरों के छेदों में ठोक देते हैं जिससे रिवेट की टोपी एक चादर पर कस कर चिपक जाए और रिवेट के सिरे को दूसरी चादर की ओर हथौड़ा मार कर चपटा कर देते हैं। ठंडा होने पर रिवेट सिकुड़ती है और चादरों को आपस में मजबूती से खींच लेती है। 


प्रसरणीयता (Expansivity)– 

  • किसी 1मीटर लम्बी लोहे की छड़ को 1°C (अर्थात् IK) गर्म करें तो उसकी लम्बाई में 0.000012 मी० की वृद्धि होगी। अत: हम कह सकते हैं कि लोहे की रेखीय प्रसरणीयता 0.000012/0C है।


कुछ ठोस पदार्थों की रेखीय प्रसरणीयता प्रति अंश सेल्सियस इस प्रकार हैं:

 

  • पदार्थ -प्रसरणीयता
  • पीतल - 0.000019 
  • इनवार -0.000001 
  • कांच (साधारण)- 0.000009
  • कांच (पाइरेक्स)- 0.000003


 

  • कुछ धातुएं कांच की अपेक्षा बहुत अधिक फैलती हैं, इसलिए कांच की बोतलों व जार पर लगे धातुओं के ढक्कन (टोपी) को, बोतल को गर्म पानी में रखकर ढीला किया जा सकता है।

 

  • मोटे कांच के बने गिलास में गर्म पानी भरने से वह चटक भी सकता है क्योंकि कांच ऊष्मा का कुचालक है। गिलास में गर्म पानी भरते ही अन्दर की सतह फैलती हैं, जबकि बाहा सतह ठंडी होने के कारण ऐसे ही रहती है और कांच चटक जाता है। पाइरेक्स कांच का बना गिलास नहीं चटकता क्योंकि उसकी प्रसरणोयता अपेक्षाकृत कम है।

 

द्वि-धातु पट्टी (Bimetal Strip)—

  • एक पीतल की पत्ती एवं एक इन्वार की पत्ती के सिरों को परस्पर रिवेट से जोड़ दिया जाए तो वह द्वि-धातु पत्ती बन जाती है। इस पत्नी का ताप बढ़ने पर पीतल का प्रसार इन्चार से अधिक होने के कारण यह इस प्रकार मुड़ जाती है कि पोतल की पत्ती उत्तल की तरफ हो जाती है। ताप के कम होने पर यह पुनः पूर्वावस्था में आ जाती है और इस प्रकार यह द्वि-धात्विक पत्ती एक स्विच के रूप में कार्य करती है। द्वि-धात्विक पत्ती को थर्मोस्टेट के रूप में विद्युत् कक्ष- हीटर (रूम हीटर), अवन, टोस्टर आदि में प्रयुक्त किया जाता है। रेफ्रीजरेटरों में भी एक विशेष प्रकार का थर्मोस्टेट लगा रहता है।

 

जल का असंगत (Anomalous) प्रसार- 

  • जल में असंगत रूप से प्रसार होता है। यदि हम बर्फ के एक टुकड़े (घनाकार) को -5°C पर लें और उसे धीरे-धीरे गर्म करना प्रारम्भ करें तो यह पिघलने तक प्रसारित होता है। पिघलने की अवस्था में इसका ताप 0°C पर स्थिर बना रहता है किन्तु इसका आयतन कम हो जाता है। इसे और अधिक गर्म करने पर (0°C तक का ताप बढ़ता है किन्तु आयतन 4°C तक कम होता जाता है और इससे ऊपर ताप बढ़ने पर आयतन बढ़ने लगता है। अत: 4°C पर जल का आयतन न्यूनतम व घनत्व अधिकतम होता है। 


  • जल के, इस असंगत प्रसार के कारण ही जल में रहने वाले जीव जन्तु बहुत ठंडे मौसम में जीवित रह पाते हैं। सर्दियों में ताप गिरने पर तालाबों में जल की ऊपरी परत ठंडी होकर सुकड़ कर घनी (घनत्व बढ़ने से) हो जाती है और तली में बैठ जाती है। यह प्रवाह चक्र तब तक होता है, जब तक पूरा जल 4°C पर न पहुंच जाए। ताप के 4°C से भी कम होने पर ऊपरी जल को सतह अब प्रसारित होती है और हल्की होने के कारण ऊपर ही बनी रहती है और यहां तक कि यह बर्फ बनकर जम जाती है। निचली सतह पर (तली में) जल का ताप 4°C ही बना रहता है। 

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