UPSC Hindi Question Answer | हिन्दी साहित्य प्रश्न उत्तर
UPSC Hindi Question Answer (हिन्दी साहित्य प्रश्न उत्तर )
UPSC Hindi Question Answer (हिन्दी साहित्य प्रश्न उत्तर)
प्रश्न
समकालीन कविता में पोराणिक संदर्भ किस प्रकार आए हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
- समकालीन कविता में पौराणिक संदर्भों को लेकर लिखने वाले अनेक कवि हैं। अज्ञेय की 'असाध्य वीणा', नरेश मेहता की संशय की एक रात, कुवर नारायण की 'चक्रव्यूह' तथा जगदीश चतुर्वेदी की 'सूर्यपुत्र' जैसी कविताओं को लिया जा सकता है। सन् 1985 में प्रकाशित विश्वनाथ तिवारी की कविता 'टल गया एक महाभारत इस बात का सबूत है कि आज का कवि अपनी रचनात्मक ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए मिथक और यथार्थ के अनेक रूपों को स्वीकार करता है।
प्रश्न
समकालीन कविता में आम आदमी की स्थिति कैसी है। स्पष्ट कीजिए?
उत्तर
समकालीन कविता को आम आदमी की कविता कहा गया है। उसमें सर्वत्र आम आदमी की खोज का प्रयास किया गया है। लीलाधर जगूडी लिखते हैं-
बाहर कहीं से भी दबोचो आदमी की जात
ढीली पड़ गई।
समकालीन कविता की भाषा अत्यन्त सरल एवं दैनिक जीवन की भाषा है। यह आम आदमी की भाषा है।
प्रश्न
राजस्थानी गद्य पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए?
उत्तर
- हिन्दी साहित्य के वीरगाथाकाल में राजस्थान ही संस्कृति और साहित्य केन्द्र रहा। इस समय की भाषा डिंगल थी। चारण भाट कवियों ने धर्म, नीति, इतिहास, छन्दशास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर ग्रन्थ लिखे। इस काल की कुछ पुस्तके हैं— रघुवरजस प्रकास, आनन्द रघुनन्दन पंचाख्यान, भाषा भरथ, बेलिक्रिसन रुकमणी री आदि। बाद में इसमें ब्रजभाषा का प्रयोग बढ़ गया और राजस्थानी गद्य का निर्माण लगभग बंद हो गया।
प्रश्न
ब्रजभाषा गद्य पर संक्षिप्त नोट लिखिए?
उत्तर -
- ब्रजभाषा गद्य का सर्वप्रथम लेखक गोरख पंथी किसी लेखक को माना जाता है। 'गोरखसार गोरख गणेश, गोष्ठी, महादेव गोरख संवाद इनकी गद्य रचनाएं हैं। 16वीं शताब्दी में बल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने भंगार रस मण्डन लिया तथा 17वीं शताब्दी में पुष्टिमार्गी कवि ने चोरासी वैष्णव की वार्ता तथा दो सौ बावन वैष्णों की वार्ता' नामक पुस्तकें लिखीं, जिनका ऐतिहासिक तथा सांसकृतिक मूल्य अब भी है। 1795 ई. में जयपुर नरेश प्रतापसिंह की आज्ञा से हीरालाल ने 'आइने अकवरी' की भाषा वचनिका' नामक बड़ी पुस्तक लिखी।
प्रश्न
खड़ी बोली गद्य पर संक्षिप्त नोट लिखिए?
उत्तर -
- खड़ी बोली दिल्ली के आसपास बोली जाने वाली जनसाधारण की भाषा है। धीरे-धीरे खड़ी बोली विकसित होकर गद्य लेखन की मुख्य भाषा बन गई। गद्य क्षेत्र खड़ी बोली की प्रतिष्ठापना का एक अन्य कारण यह भी है कि अंग्रेजों ने अपना काम सुचारू रूप से चलाने के लिए जिस भारतीय भाषा को सीखा वह यही थी क्योंकि इसका प्रचलन समाज में सबसे अधिक था। खड़ी बोली गद्य की सर्वप्रथम रचना अकबर के दरबारी कवि गंग की चंद छन्द- बरनन की महिमा ( 1570 ई.) इसके पश्चात रामप्रसाद निरंजनी की भाषा यागवरिष्ठ रचना है।
प्रश्न
लेखक चतुष्टय से अभिप्राय है।
उत्तर -
- खड़ी बोली गद्य के विकास की परम्परा में मुंशी सदासुखलाल नियाज, इंशा अल्ला खां, लल्लू जी लाल और सदल मिश्र के नाम उल्लेखनीय हैं। सन् 1800 में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना हुई और इस में जान गिल क्राइस्ट ने हिन्दी उर्दू में गद्य की पुस्तकें तैयार करने की व्यवस्था की लल्लू जी लाल और सदल मिश्र दोनों इस कॉलेज में काम करते थे। पर सदासुखलाल और इंशाअल्ला खां ने स्वतन्त्र रूप से खड़ी बोली गद्य में लिखा।
प्रश्न
सदासुख लाल का परिचय दीजिए।
उत्तर
- सदासुख दिल्ली के निवासी थे और एक कम्पनी में नौकरी करते थे ये उर्दू-फारसी में शायरी करते थे और इन्होंने इन भाषाओं में अनेक पुस्तकें लिखीं। नौकरी से रिटायर होने के पश्चात् इन्होंने विष्णु पुरान से उपदेशात्मक प्रसंग लेकर एक पुस्तक लिखी और हिन्दी में श्रीमद् भागवत का सुख सागर के नाम से स्वतंत्र अनुवाद किया । इन्होंने हिन्दुओं की बोलचाल की शिष्ट भाषा का प्रयोग किया यह इनके गद्य में जगह जगह पंडिताऊपन है। स्थान-स्थान पर तत्सम शब्दावली के प्रयोग के द्वारा इन्होंने भावी साहित्यिक रूप की स्थापना का आभास दे दिया था।
प्रश्न
हिन्दी गद्य के विकास में इंशा अल्ला खां का योगदान स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर
- इंशा अल्ला खां उर्दू के प्रसिद्ध सायर थे। अनेक नबावों की सेवा में रहकर इन्होंने काफी प्रतिष्ठा प्राप्त की थी इनके द्वारा लिखित 'रानी केतकी की कहानी हिन्दी गद्य की पहली मौलिक रचना है। इन्होंने फड़कती हुई मुहावरे दार और विनोदपूर्ण शैली में लिखा। इन्होंने अरबी, फारसी, अवधी, ब्रज और संस्कृत के शब्दों से बचकर खड़ी बोली में लिखने का प्रयास किया पर फिर भी फारसी ढंग के वाक्य-विन्यास का प्रभाव इन पर स्पष्ट है। डॉ. शिवदान सिंह चौहान के शब्दों में, "गद्य में मुहावरों का ऐसा प्रयोग उनके पूर्ववर्ती किसी लेखक ने नहीं किया था और न ही किसी ने हिन्दी गद्य में इस कोटि की मौलिक रचना की थी।
प्रश्न
हिन्दी गद्य साहित्य में लल्लूलाल जी का योगदान स्पष्ट कीजिए?
- उत्तर लल्लूलाल जी आगरा में रहने वाले गुजराती ब्रह्माण थे। हिन्दी, उर्दू और संस्कृत भाषा के अच्छे जानकार थे। इन्होंने भागवत के दशमस्कन्ध की कथा को लेकर 'प्रेमसागर' नामक पुस्तक की रचना की। इसकी भाषा पर ब्रज और उर्दू का बहुत अधिक प्रभाव है। एक अंग्रेज ने इनकी पुस्तक के विषय में लिखा है कि (Sucha language did not exist in India before. When, therefore, Lalluji Lal wrote his Prem Sagar in Hindi, he was inventing an altogether new language.) इसके अतिरिक्त इन्होंने बैताल पचीसी, सिंहासन बतीसी, शकुन्तला नाटक, माधव विलास हितोपदेश आदि का हिन्दी में अनुवाद किया। बिहारी सतसई पर इन्होंने टीका भी लिखी।
प्रश्न
भारतेन्दु युगीन हिन्दी निबंध पर एक नोट लिखिए?
उत्तर-
- भारतेन्दु हिन्दी के प्रथम प्रतिभा सम्पन्न निबंधकार हैं। उन्होंने समाजसुधार, इतिहास, धर्म, पुरातत्व, यात्रा कला, भाषा, इतिहास आदि विभिन्न विषयों पर निबंध लिखे हैं। अंग्रेजी सरकार पर व्यंग्य किया है। रामायण का समय, काशी, कश्मीर कुसुम, संगीत सार, हिन्दी भाषा आदि उनके प्रसिद्ध निबंध हैं। इस युग के बालकृष्ण भट्ट प्रतापनारायण मिश्रा, श्री निवासदास, राधाचरण गोस्वामी आदि प्रमुख निबंधकार है। इस युग के निबंध आंख, भौं, नाक, कान आदि से लेकर सामाजिक साहित्यिक आदि सभी विषयों पर लिखे गए हैं।
प्रश्न
हिन्दी गद्य के विकास में ईसाइयों का योगदान क्या है। स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर
- हिन्दी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार के लिए ईसाई मिशनरियों ने अनेक स्कूल खोले। ईसाई लोग मुफ्त में ही अपने द्वारा छापे गए ग्रन्थों को लोगों का देने लगे। इनका गद्य उच्च कोटि का नहीं था। इसमें कन्त्रिमता शिथिलता, व्यर्थ शब्दों और मुहावरों का गलत प्रयोग था इनका गद्य सरल और सीधा था। चलती भाषा में भावों को अभिव्यक्त किया गया था। शिक्षा संबंधी पुस्तक और नागरी लिपि में सुन्दर टाइप के लिए हमें ईसाई धर्म के प्रचारकों का आभार स्वीकार करना चाहिए। उनका गद्य के विकास में प्रत्यक्ष नहीं तो अप्रत्यक्ष सहयोग अवश्य रहा है।
प्रश्न
राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द ने हिन्दी के विकास में क्या योगदान दिया था ?
- शिव प्रसाद हिन्दी के पक्षपाती एवं संरक्षक अनेक विघ्न बाधाओं के आने पर भी इन्होंने हिन्दी के उद्धार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। ये शिक्षा विभाग में इन्सपेक्टर थे और अंग्रेजों के कपा भाजन थे। इन्होंने हिन्दी में पुस्तकं लिखीं और सहयोगियों से लिखवाई। इन्होंने इतिहास, अर्थशास्त्र न्यायशास्त्र आदि से संबंधित पुस्तकें छपवाई और हिन्दी की रक्षा की।
प्रश्न
राजा लक्ष्मण सिंह की हिन्दी सेवाओं का वर्णन करो।
उत्तर-
- ये शिव प्रसाद की समझौतावादी नीति के कट्टर विरोधी थे। इनकी धारणा थी कि बिना उर्दू के शब्दों के प्रयोग से हिन्दी का सुन्दर गद्य लिखा जा सकता है। ये तत्सम शब्दों के पक्षपाती थे। जिसके कारण इनकी भाषा में कत्रिमता आ गई है। इन्होंने प्रजा हितैषी नामक हिन्दी में एक पत्र निकाला तथा कुछ पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद किया। इन दोनों के सहयोग से हिन्दी का प्रचार कार्य जोर पकड़ गया था।
प्रश्न
विभिन्न धर्म प्रचारकों ने हिन्दी के विकास में क्या योगदान दिया ?
उत्तर-
- ईसाई धर्म की प्रतिक्रिया में राजा राममोहनराय ने बंगाल में वेदांत और उपनिषदों का ज्ञान साथ ले ब्रह्म समाज की स्थापना की। उन्होंने वेदात सूत्रों का हिन्दी में अनुवाद प्रकाशित कराया। उत्तरी भारत में स्वामी दयानन्द ने बौदिक धर्म प्रचार के लिए आर्य समाज की स्थापना की। उन्होंने हिन्दुस्तान को आर्यावर्त और हिन्दी को आर्य भाषा का नाम दिया सत्यार्थ प्रकाश में इन्होंने मुसलमानों और ईसाइयों की भर्त्सना की तथा अनेक पुस्तक लिखी।
- पंजाब में हिन्दी प्रचार का प्रायः समूचा श्रेय आर्य समाज को ही है।
प्रश्न
द्विवेदी युगीन निबंध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए?
उत्तर -
- आचार्य महावरी प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती के सम्पादक पद से भाषा में सुधार, सत्-साहित्य के प्रसार, लेखन निर्माण और पाठकों की ज्ञान वृद्धि का महान कार्य किया। उन्होंने लेखकों का सुसंस्कृत ढंग से बात करना सिखाया। अंग्रेजी के आदर्श निबंधकार बैंकन के निबन्धों का अनुवाद किया। इस युग के निबंधों के विषय गम्भीर हैं और वे शिष्ट और पढ़े-लिखे लोगों के ही अधिक निकट है। डॉ. श्यामसुन्दरदास अध्यापक पूर्णसिंह, बनारसीदास चतुर्वेदी आदि इस युग के मुख्य निबंधकार है।
प्रश्न
"शुक्ल युग' के निबन्धों पर नोट लिखिए?
उत्तर.
- इस युग के सर्वश्रेष्ठ हिन्दी निबंधकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल है। चिंतामणि में संगहित निबंधों के माध्यम से शुक्ल जी ने नए विचार नई अनुभूति और नई निबंध शैली प्रस्तुत की चिंतामणि (भाग-दो) में उच्च कोटि के साहित्यिक, आलोचनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक निबंध है। इनमें शुक्ल जी के शास्त्रीय विषयों पर मौलिक, गंभीर एवं प्रौद्ध विचार प्रकट हुए हैं। उनका विषय प्रतिपाद रूखा न होकर रसात्मक है। शुक्ल युग के अन्य निबंधकार में डॉ. गुलाबराय, जयशंकर प्रसाद, वियोगी हरि, माखनलाल चतुर्वेदी निराला, महादेवी वर्मा आदि प्रमुख हैं।
प्रश्न
शुक्लोत्तर युगीन हिन्दी निबंध साहित्य पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
- शुक्लोत्तर युग में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, नंददुलारे वाजपेयी, वासुदेवशरण अग्रवाल, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. रामविलास शर्मा, डॉ. हरिश्चन्द्र वर्मा आदि प्रमुख हैं। आज के निबंध साहित्य में वर्णनात्मक एवं विचारात्मक निबंधों का अभाव है। निबंधों में विवेचनात्मक भावात्मक एवं वैयक्तिकता की प्रधानता है।
प्रश्न
प्रेमचन्द पूर्व युग के हिन्दी उपन्यास साहित्य पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
- मुंशी प्रेमचन्द से पूर्व का युग उपन्यास का आरम्भिक युग माना जाता है। हिन्दी का पहला उपन्यास लाला श्री निवासदास द्वारा लिखा गया परीक्षा गुरु' माना जाता है। भारतेन्दु युग में सामाजिक, ऐतिहासिक, तिलस्मी और जासूसी उपन्यासों की रचना भी की गई थी। श्रद्धाराम फिल्लोरी, बालकृष्ण भट्ट, राधाकृष्णदास, किशोरीलाल गोस्वामी, देवकी नंदन खत्री इस युग के प्रसिद्ध उपन्यासकार है। देवकीनंदन खत्री के 'चंद्रकान्ता संतति' ने हिन्दी उपन्यास-क्षेत्र में खूब धूम मचाई। नारी जागरण, समाज-सुधार, रोमांच, इतिहास, मनोरंजन आदि विशेषताएं इस युग के उपन्यासों में मिलती हैं।
प्रश्न
प्रेमचन्द युगीन हिन्दी उपन्यास पर एक नोट लिखिए।
उत्तर-
- हिन्दी उपन्यास में प्रेमचन्द का आगमन एक बहुत बड़ी घटना है। उन्होंने उपन्यास को सामान्य जन-जीवन से जोड़ दिया। उन्होंने सेवासदन, वरदान, प्रेमाश्रम, रंगभूमि तथा गोदान जैसे अनेक उपन्यासों की रचना की। इस युग के उपन्यासकारों में जयशंकर प्रसाद 'कंकाल', 'तितली', 'इरावती (अपूर्ण) आदि बेचन शर्मा, चतुरसेनशास्त्री, वदावन लाल वर्मा, इलाचंद जोशी आदि प्रमुख हैं।
प्रश्न
प्रेमचन्दोत्तर युगीन सामाजिक उपन्यासों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए?
उत्तर
- इस युग में पर्याप्त मात्रा में सामाजिक उपन्यास लिखे गए प्रसार कौशिक, चतुरसेन शास्त्री, उपेन्द्रनाथ अश्क आदि समाजसुधार के नाम यथार्थवाद आड़ में वर्जित विषयों पर लिखकर अश्लीलता का चित्रण किया। भगवती प्रसाद वाजपेयी, भगवती चरण वर्मा, अमतलाल नागर, गोबिन्ददास, उदयशंकर भट्ट आदि ने अपने उपन्यासों में व्यक्ति और स्वतंत्रता के लिए समाज की रूढ़ परम्पराओं और पुराने मूल्यों के प्रति संघर्ष चित्रित किया है। नागर का बूथ और समुद्र व्यष्टि और समष्टि का प्रतीक है।
प्रश्न
प्रेमचन्दोत्तर साम्यवादी हिन्दी उपन्यास साहित्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
- राहुल सांकत्यायन के लिए सेबयति, वो नगर से गाव तक तथा यशपाल के 'दादा कामरेड पार्टी कामरेड आदि उपन्यास साम्यवादी विचारधारा के पोषक हैं, जिनमें युग जीवन के संघर्ष का चित्रण किया गया है। इन्होंने समाज के खोखलेपन को यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत किया है। नागार्जुन रांगेय राघव, गौरव प्रसाद गुप्त, अमतराय आदि ने भी मार्क्स के सिद्धान्तों की पुष्टि करते हुए अपने उपन्यास लिखे। राजेन्द्र यादव का प्रेत बोलते हैं की साम्यवादी विचारधारा का उपन्यास है, जिस पर सारा आकाश' नाम से फिल्म बन चुकी है।
प्रश्न
प्रेमचंद्रोत्तर हिन्दी के ऐतिहासिक उपन्यासों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
हिन्दी में ऐतिहासिक उपन्यासों की यह धारा बहुत क्षीण है। पूर्व प्रेमचन्द युग में जो ऐतिहासिक उपन्यास मिलते हैं, वे केवल इतिहास नामधारी है। वंदावन लाल वर्मा, निराला सांकत्यायन, हजारीप्रसाद द्विवेदी आदि का नाम इस क्षेत्र में उल्लेखनीय हैं। चतुरसेन शास्त्री का नगर वधू एक सुगठित ऐतिहासिक रचना है। अमतलाला नागर के शतरंज के मोहरे और सुहाग के नूपुर प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यास हैं।
प्रश्न
प्रेमचन्द के बाद के हिन्दी आंचलिक उपन्यास साहित्य पर विवेचन कीजिए।
उत्तर
- अंचल का अर्थ है- जनपद या क्षेत्र विशेष जिन उपन्यासों में किसी क्षेत्र विशेष या जनपद के जन-जीवन का समग्र चित्रण हो उन्हें आंचलिक उपन्यास कहते हैं। फणीश्वर नाथ रेणु का मैला आचल उदयशंकर भट्ट का 'लोक-परलोक' तथा 'सागर और लहरें, रांगेय राघव का काको' और 'कब तक पुकारूँ' आदि महत्त्वपूर्ण आंचलिक उपन्यास हैं। इन उपन्यासों की कमजोरी उनकी स्थानीय बोली है। लेखक को अपनी जाति, धर्म, संस्कृति और वर्ग से अत्यधिक प्रेम होता है। इन उपन्यासों में यह प्रेम भी व्यक्त हुआ है। इन उपन्यासों की सफलता इनका यथार्थवाद है।
प्रश्न
जैनेन्द्र की कहानियों का वर्णन कीजिए?
उत्तर
- जैनेन्द्र ने अधिकांश कहानियाँ मनोवैज्ञानिक आधार पर लिखी, जिसमें हिन्दी कहानी क्षेत्र में एक नवीन युग का आरम्भ हुआ। उन्होंने बाह्य समस्याओं के स्थान पर आतंरिक समस्याओं को सहानुभूति ढंग से वर्णित किया है जिसमें इनमें बौद्धिक रोचकता बनी रहती है। इनमें पाठक को थका देने की प्रवति अधिक है। ज्वालादत्त शर्मा, जनार्दन प्रसाद तथा सिधराव शरण गुप्त आदि ने इसी आधार पर अपनी कहानियां लिखी। इनमें यथार्थ और कोमल कल्पना का मिरण है
प्रश्न
अज्ञेय और उनके सहयोगी कहानीकारों का परिचय दीजिए?
उत्तर-
- अज्ञेय और इलाचंद्र जोशी की कहानियों में मनोवैज्ञानिकता का समावेश तो अवश्य है, लेकिन जैनन्द्र जैसा नहीं। इस पर फ्रायड़ के यौनवाद का सीधा प्रभाव है। इन्होंने दमित वासनाओं और कुण्ठाओं का उन्मुक्त चित्रण किया है। इनके उपन्यासों में जीवन सत्यों का अभाव है। अज्ञेय के कहानी संग्रह - विपथगा, कोठरी की बात, जयदोल आदि अत्यन्त प्रसिद्ध हुए हैं। भगवती प्रसाद बाजपेयी, पहाड़ी तथा नरोत्तम दास आदि अज्ञेय के सहयोगी कहानीकार थे।
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