वाक्य की अवधारणा के विविध आयाम|Vakya Avdharna Ke Rup Me Ayam
वाक्य की अवधारणा के विविध आयाम
वाक्य की अवधारणा के विविध आयाम
आधुनिक भाषाविद वाक्य की अवधारणा पर विविध आयामों से विचार करते रहे हैं। जैसे वाक्य को अर्थ की एक इकाई माना जाय या संरचना की। इसी प्रकार मनोवैज्ञानिक और संदर्भपरक इकाई के रूप में भी वाक्य की अवधारणा पर आधुनिक वाक्य विज्ञान में विचार किया गया है। यहाँ हम वाक्य की उक्त अवधारणा को उदाहरण सहित समझने का प्रयास करेगें।
(1) अर्थ की एक इकाई के रूप में वाक्य -
- प्राचीन काल के भाषाविदों ने वाक्य को अर्थ की एक पूर्ण इकाई मानते हुए उसे पूर्ण और स्वतंत्र माना है। कामताप्रसाद गुरू ने भी वाक्य को एक पूर्ण विचार व्यक्त करने वाला समूह माना है। नीचे दिए गये दो वाक्य के उदाहरणों को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि इनमें पहले वाक्य के शब्द-समूह संगठित रूप में एक पूर्ण अर्थ व्यक्त करते हैं जबकि दूसरे वाक्य के शब्द-समूह में परस्पर अर्थ संगति न होने के कारण पूर्ण अर्थ व्यक्त नहीं होता। स्पष्ट है कि पहला वाक्य अर्थ की एक पूर्ण इकाई होने के कारण 'वाक्य' कहा जायेगा जबकि दूसरा वाक्य अर्थ की पूर्ण इकाई न होने के कारण 'वाक्य' की श्रेणी में नहीं आयेगा।
1. मेरे माता-पिता कल मुझसे मिलने आ रहे हैं।
2. मेरे माता-पिता, घर में, आकाश पर जायेगे ।
- इससे यह भी स्पष्ट होता है कि वाक्य केवल शब्दों का समूह मात्र नहीं है बल्कि वह सार्थक और सुसम्बद्ध शब्दों का वह समूह है जिससे एक पूर्ण अर्थ की अभिव्यक्ति होती है।
(2) संरचनापरक इकाई के रूप में वाक्य -
- अनेक भाषा वैज्ञानिकों ने संरचनापरक इकाई के रूप में वाक्य में अर्थ या विचार की पूर्णता को सापेक्षिक माना है। एक विचार को एक या एक से अधिक वाक्य में भी व्यक्त किया जा सकता है। संरचनावादी भाषाविद् वाक्य को के मेल से बनी रचना मानते हैं। ब्लूम फील्ड इसी मत के समर्थक हैं। उनकी मान्यता है कि वाक्य एक ऐसी रचना है जो किसी उक्ति विशेष में अपने से बड़ी किसी रचना का अंग नहीं बन सकती। कुछ घटकों वाक्य की इसी विशेषता के कारण वाक्य को भाषा की पूर्ण और स्वतंत्र इकाई कहा गया है। इसी सन्दर्भ में नीचे दिए गए उदाहरणों को ध्यान से देखें -
ध्वनियाँ - ब + ए + ट+ आ
शब्द - मेरा/बड़ा/बेटा/कल
पदबन्ध -मेरा बड़ा बेटा/कल/आ रहा है
उपवाक्य-
- इस उदाहरण से स्पष्ट है कि ध्वनियाँ, शब्द, पदबन्ध, उपवाक्य, वाक्य के विभिन्न घटक हैं। इसमें ध्वनि से बड़ा शब्द, शब्द से बड़ा पदबन्ध, पदबन्ध से बड़ा उपवाक्य और उपवाक्य से बड़ा वाक्य एक पूर्ण इकाई है। इस तरह वाक्य विभिन्न घटकों में अन्तिम सबसे बड़ी इकाई है।
(3) मनोवैज्ञानिक इकाई के रूप में वाक्य
- संरचनावादी भाषा वैज्ञानिकों ने वाक्य को एक सूत्र तथा विश्लेषणयुक्त रचना के रूप में स्थापित किया किन्तु चामस्की जैसे भाषा वैज्ञानिक ने मनोवैज्ञानिक इकाई के रूप में वाक्य की विवेचना की।
- चामस्की के अनुसार वाक्य मानव मस्तिष्क में अवस्थित एक अमूर्त संकल्पना है जिसका व्यक्त या व्यावहारिक रूप उक्ति है। अपने अव्यक्त मानसिक रूप में वाक्य एक आदर्श वाक्य होता है जिसे हर दृष्टि से पूर्ण और सही माना से जाता है। बाह्य रचना के माध्यम से व्यक्त होने वाला उसका रूप मानसिक रूप से भिन्न भी हो सकता है। अतः वाक्य की दो प्रकार की संरचनाओं की कल्पना की गयी हैं बाह्य रचना और - आन्तिरिक रचना।
- आधुनिक भाषा विज्ञान में आन्तरिक या गहन रचना को अंतर्निहित स्वरुप कहते हैं क्योंकि यह उस अर्थ में संरचना नहीं है जिस अर्थ में बाह्य संरचना होती है। अतः बाह्य संरचना और आन्तरिक संरचना में सूक्ष्म अन्तर है। आन्तरिक या गहन संरचना वक्ता के अन्तर्मन में निहित रहती है जबकि बाह्य संरचना ध्वनियों या लिपि के माध्यम से स्पष्ट व्यक्त होती है। जैसे बोलते या लिखते समय हमारे मन में भी एक संरचना बनती रहती है। आंतरिक संरचना की सत्ता केवल मानसिक है जबकि वाह्य संरचना भौतिक रूप (लिखित रूप या मौखिक रूप) में है।
- आन्तरिक संरचना में शब्द और व्याकरण के घटक अपने अमूर्त रूप में होते हैं जबकि बाह्य संरचना में वे मूर्त रूप में एक रचना के रूप में सामने आते हैं। इस प्रकार बाह्य रूप से एक दिखाई देने वाने वाक्य में एक या एक से अधिक आन्तरिक वाक्य निहित हो सकते हैं। इन आन्तरिक वाक्यों को आधायित वाक्य कहा गया है। जिस वाक्य में आधायित वाक्य छिपा होता है उसे आधात्री वाक्य कहा जाता है। जैसे -
बाह्य संरचना -
- अध्यापक ने छात्रों को कक्षा में शोर मचाते हुए देखा।
आन्तरिक संरचना-
(1) अध्यापक ने छात्रों को देखा। (आधात्री वाक्य)
- संरचनावादी भाषा वैज्ञानिकों का मानना था कि अर्थ का विश्लेषण नहीं किया जा सकता क्योंकि अर्थ वाक्य की पूर्ण इकाई है। चामस्की ने अपने वाक्य विश्लेषण में अर्थ बोध को एक घटक के रूप में स्वीकार किया। इसी घटक के कारण बाह्य स्तर पर समान दिखाई पड़ने वाले किन्तु आन्तरिक स्तर पर भिन्न वाक्यों में अन्तर स्थापित करना सम्भव हो सका।
(4) सन्दर्भपरक इकाई के रूप में वाक्य
- सामाजिक भाषा विज्ञान और सांकेतिक प्रयोग विज्ञान ने भाषा विज्ञान के विकास में अध्ययन का एक नया आयाम जोड़ा। इससे वाक्य की संकल्पना में बड़ा बदलाव आया। अब केवल भाषिक संरचना के रूप में ही नहीं बल्कि सामाजिक सन्दर्भपरक इकाई के रूप में वाक्य एक सामाजिक घटना या कार्यवृत के घटक के रूप में अध्ययन का विषय बना। वाक्य का सम्बन्ध पूरे सामाजिक परिवेश से जोड़ते हुए इसे मूल में भाषिक इकाई नहीं अपितु सन्देश सम्प्रेषण की एक इकाई माना गया ।
- सन्देश सम्प्रेषण की दृष्टि से भाषा की मूल इकाई वाक्य को न मान कर प्रोक्ति को माना गया। प्रोक्ति वह वाक्य या वाक्य समूह है जो वक्ता के पूरे मन्तव्य या विचार बिन्दु को अभिव्यक्त करे। प्रसंग के अनुसार प्रोक्ति एक शब्द से लेकर एक या एक से अधिक वाक्य या एक अनुच्छेद से लेकर एक पूरे अध्याय की हो सकती है। वाक्य की परिभाषा उसके स्वरूप और तद्सम्बन्धित अवधारणाओं में निरन्तर विकास होता रहा है। फलतः वाक्य की अवधारणाओं में भी समय-समय पर परिवर्तन होता रहा है।
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