वाक्य परिवर्तन क्यों होता है | वाक्य में परिवर्तन के कारण| Vaykya Parivartan Ke Karan

वाक्य परिवर्तन क्यों होता है, वाक्य में परिवर्तन के कारण

वाक्य परिवर्तन क्यों होता है | वाक्य में परिवर्तन के कारण| Vaykya Parivartan Ke Karan

वाक्य परिवर्तन 

  • भाषा के विकास में ध्वनि और रूप में परिवर्तन होता रहता है। वाक्य रचना भी परिवर्तन के नियम से अछूती नहीं है। भाषा में वाक्य गठन भी समय-समय पर अनेक कारणों से प्रभावित होकर परिवर्तित होता रहता है। यद्यपि ध्वनिरूप की अपेक्षा वाक्य रचना में परिवर्तन की गति धीमी होती है ता भी परिवर्तन तो होता ही रहता है। 


संस्कृत और हिन्दी भाषा के सन्दर्भ में वाक्य  परिवर्तन को हम निम्नलिखित रूपों में देख सकते हैं -

 

अयोगात्मकता - 

  • भाषा की यह सामान्य प्रवृत्ति है कि वे प्रायः योगात्मकता से अयोगात्मकता की ओर विकसित होती हैं। उदाहरण के लिए संस्कृत में विभक्तियों के संयोग से संज्ञासर्वनाम और विशेषण के रूप बनते थे। प्राकृतों तक आते-आते विभक्तियाँ लुप्त हो गयीं और परसर्गों का प्रयोग होने लगा।


  • वर्तमान में हिन्दी में कर्ता और कर्म भी प्रायः अयोगात्मक हो गये हैं। कर्ता का नेपरसर्ग केवल भूतकाल में लगता है। जैसे - लता ने गाना गाया। इसी प्रकार 'कोपरसर्ग भी में केवल प्राणी संज्ञाओं तक सीमित है। जैसे भूखे को अन्न दो, ‘पक्षी को दाना खिलाना चाहिए'। वस्तु संज्ञा 'कोके बिना ही प्रयुक्त होती है। जैसे- 'वह पुस्तक पढ़ता है'। पदक्रम में परिवर्तन वाक्य गठन में पदक्रम का विशेष महत्व रहा है।


  • लेखन शैली की मौलिकता और रोचकता लाने के लिए तथा कुछ विदेशी भाषाओं से अनुवाद के प्रभाव मे वाक्य के पदक्रम को भी काफी प्रभावित किया है। जैसे हिन्दी में विशेषण प्रायः संज्ञा के पूर्ण और क्रिया विशेषणक्रिया के पूर्व लगाने का सामान्य नियम है। किन्तु अब वाक्य रचना में इस पदक्रम का में ध्यान नहीं रखा जाता है। 'गरीब की व्यथाकी जगह 'व्यथा गरीब की', 'वह धीरे-धीरे जाता हैकी जगह जाता है वह धीरे-धीरेजैसी वाक्य रचना देखने में आती है।

 

अन्वय में परिवर्तन

  •  आप जानते हैं कि संस्कृत में क्रियाकर्ता के अनुरूप वचन तथा पुरुष की दृष्टि से होती थी किन्तु हिन्दी में कुछ अपवादों को छोड़कर लिंग के आधार पर भी होती है। जैसे संस्कृत में कर्ता पुल्लिंग हो या स्त्रीलिंगक्रिया नहीं बदलती। किन्तु हिन्दी में क्रिया में परिवर्तन होता है। जैसे- 'सोहन जाता है', 'माला जाती है। इसी प्रकार हिन्दी में विशेषण भी संज्ञा के लिंग और वचन के अनुसार बदल जाता है। जैसे- अच्छी कविताअच्छा उपन्यासअच्छे दोहे।

 

पद या प्रत्यय आदि का लोप - 

  • कभी-कभी वाक्य में किसी पद या प्रत्यय का लोन होना भी वाक्य-परिवर्तन का एक रूप है। ऐसा प्रायः इसके पीछे प्रत्यय लाघव की प्रवृत्ति ही प्रेरक होती है। 

जैसे कुछ वाक्यों को देखें - 


कानों से सुनी बात। - कानों सुनी बात।

वह पढ़ेगा-लिखेगा नहीं। -वह पढ़े लिखेगा नहीं।

मैं वहाँ नहीं जाता हूँ।-मैं वहाँ नहीं जाता।

 

अधिक / अनावश्यक पदों का प्रयोग - 

  • वाक्य में अधिक या अनावश्यक पदों के प्रयोग से भी वाक्य में परिवर्तन आ जाता है। ऐसे वाक्य उदाहरण की दृष्टि से प्रायः अशुद्ध होते हैं।

कुछ उदाहरण देखें-

  • आपका भवदीय 
  • दरअसल में 
  • मुझको मेरे को 
  • कृपया करके

 

वाक्य में परिवर्तन के कारण 

वाक्य में परिवर्तन के निम्नलिखित कारण हैं - 


1. अज्ञान - 

  • भाषिक परिवर्तन में चाहे वह ध्वनिशब्दवाक्य किसी भी रूप में होसबसे मुख्य कारण अज्ञान है। व्याकरण या भाषा के पूर्ण न होने पर प्रायः व्यक्ति आधे-अधूरे ज्ञान या गलत अनुकरण के कारण अशुद्ध वाक्य रचना का प्रयोग करते हैं जिससे वाक्य परिवर्तन होता है। 


जैसे- 

  • मुझे केवल पाँच रु. मात्र चाहिए। 
  • कृपया करके मुझे जाने दें।

 

  • इन वाक्यों में 'केवलके साथ 'मात्रऔर 'कृपयाके साथ 'करकेका प्रयोग अज्ञान का ही परिणाम है।

 


2. अन्य भाषा का प्रभाव - 

  • दूसरी भाषा का प्रभाव भाषा विशेष के वाक्य गठन को भी प्रभावित करता है। हिन्दी पर फारसी और उसके बाद अंग्रेजी का प्रभाव काफी समय से हो रहा है। अतः इन भाषाओं के प्रभाव से हिन्दी की वाक्य संरचना भी प्रभावित हुई है। 'किलगाकर वाक्य बनाने की परम्परा को फारयी की देन माना गया है। इससे पहले हिन्दी में 'किका प्रयोग नहीं होता था। इसी प्रकार हिन्दी में परोक्ष कथन की प्रवृत्ति भी अंग्रेजी के प्रभाव से आयी है। 


जैसे - हिन्दी में प्रचलित वाक्य 
'उसने कहा कि मैं आज आऊँगाअंग्रेजी के प्रभाव से उसने कहा था कि वह आज आयेगारूप में प्रयुक्त होने लगा है। 

अन्य वाक्य भी हैं - 

  • हमें हमारे देश पर गर्व है। 
  • ये मेरे अपने पिताजी हैं। 
  • अब सहा नहीं जाता मुझसे
  • आखिर आओगे कब तुम।

 

3. प्रयत्न लाघव की प्रवृत्ति 

  • सरलता के प्रति आग्रह भी वाक्य-रचना को प्रभावित - करता है। हिन्दी वाक्यों में मेरे को (मुझे)मेरे से (मुझसे)तेरे से ( तुझे)तेरे को (तुझको) जैसे सर्वनाम प्रयत्न लाघव और सरलता की प्रवृत्ति के चले आये हैं। इनके प्रभाव साम्य से मुझमुझेतुझतुझे जैसे प्रयोग कम होते जा रहे हैं।

 

4. स्पष्टता या बल के लिए सहायक शब्दों को प्रयोग - 

  • बात को स्पष्ट रूप से कहने या विशेष बल देने के लिए प्रायः विभक्तियों का लोप होने लगा और उनका स्थान परसर्गों ने ले लिया। इसके कारण भाषा की वाक्य संरचना संयोगात्मकता से वियोगात्मक की ओर बढ़ने लगी। इसका सबसे अधिक प्रभाव पदक्रम पर पढ़ा।

 

5. वक्ता की मानसिक स्थिति में परिवर्तन- 

  • इसके परिवर्तन से वाक्य की अभिव्यंजना शैली प्रभावित होती हैं। अतः वाक्य की गठन भी प्रभावित होता है। दुःखीभयभीत या हर्षातिरेक वाले व्यक्ति की अभिव्यंजना शैली एक सी नहीं होती। इसमें कहीं वाक्य सीधे तो कहीं वाक्यों की पुतरावृत्ति दिखाई पड़ती है। इसके अतिरिक्त नवीनता या मौलिकता के लोभ में भी साहित्यकारलेखक वाक्य संरचना में नये-नये प्रयोग करते रहे हैं जो वाक्य परिवर्तन का कारण बनता है।

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