स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की सहभागिता-भूमिका| Women in the Freedom Movement
स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की सहभागिता, महिलाओं के संगठन और मुद्दे
स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की सहभागिता ( Women in the Freedom Movement)
- स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, महिला अधिकार और समानता के लिए संघर्ष के एक अभिन्न अंग के रूप में देखा गया। बहुत सी महिलाएँ जिन्होनें देश की स्वतंत्रता के लिए कार्य किया वे महिला अधिकारों के मुद्दे के प्रति भी सक्रिय थी। 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की गई। इसके 1889 के बम्बई अधिवेशन में दस महिलाओं ने भाग लिया।
- उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में मध्यम वर्ग में महिला शिक्षा के प्रसार के साथ बहुत सी महिलाएँ भारत के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सक्रिय हो गयी थी। गाँधी जी का महिलाओं से आहवान और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की बड़ी संख्या में सहभागिता ने राष्ट्रवादी नेताओं के विचारों में परिवर्तन ला दिया था।
महात्मा गाँधी के आंदोलन में महिलाओं की भूमिका
- महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं के बड़ी संख्या में सम्मिलित होने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इसीलिए महिला आंदोलन पर गाँधीवादी विचारधारा के प्रभाव को समझना महत्वपूर्ण है। उन्होने घोषणा की महिला पुरुष की सद्धचरी है, उसे भी समान मानसिक योग्यताएँ प्राप्त है। उन्हें पुरुषों के छोटे से छोटे क्रियाकलापों में भाग लेने का अधिकार है और उन्हें भी पुरुषों के समान स्वतंत्रता का अधिकार है। ......... मात्र दोषपूर्ण रीति-रिवाजों के बल पर अत्यधिक अज्ञानी, निकम्में पुरुष भी महिलाओं के ऊपर श्रेष्ठता का सुख उपभोग कर रहे है, जिसके वे योग्य नहीं थे और न ही होंगे।" उन्होंने कहा " मैं महिला अधिकारों के मामले में समझौता नहीं करता। फिर भी उन्होने महिला कष्टों की प्रतीक सीता, दमयन्ती जैसे पौराणिक चरित्रों को आदर्श रूप में देखा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओ का भाग लेना उनके "धर्म" ( कर्त्तव्य) का एक अभिन्न अंग था।
- उन्होंने अनुभव किया कि सत्याग्रह आंदोलन के लिए महिलाएँ सबसे अधिक उपयुक्त है जैसा कि उनमें अहिंसात्मक संघर्ष और कांग्रेस के रचनात्मक सामाजिक उत्थान कार्यक्रमों के लिए उपयुक्त गुण थे। उन्होंने कहा कि महिलाओं में स्व-बलिदान और सहिष्णुता का बहुत बड़ा गुण है और उनमे दुखों को झेलने कि वह योग्यता है जिसकी अहिंसात्मक संघर्ष के लिए आवश्यकता थी। उन्होंने महिलाओं की भूमिका को पुरुषों की भूमिका के पूरक के रूप में देखा।
जवाहरलाल नेहरू और महिलाओं की भूमिका
- जवाहरलाल नेहरू पश्चिमी महिला मताधिकार से प्रेरित थे और वह पश्चिम में महिलाओं के सवाल पर उदार विचारों के संपर्क में थे। उनका मानना था "आर्थिक स्वतंत्रता के बिना महिला समानता के अन्य पहलूओं को पूर्णरूप से नहीं समझा जा सकेगा।" वह इस दृष्टिकोण से असहमत थे कि केवल महिला शिक्षा के सहारे वांछित परिवर्तन लाए जा सकते है और उनकी इच्छा थी कि महिलायें सभी क्रिया कलापों में प्रशिक्षित हो उन्होंने कहा कि महिलाएँ प्रशिक्षित होनी चाहिए। महिलाओं का संघर्ष सामान्य राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संघर्ष से अलग रह गया तो उनके आंदोलन को अधिक सुदृढ़ता नहीं मिलेगी और यह केवल उच्च वर्ग की महिलाओं तक ही सीमित रह जाएँगे।"
- इसमे कोई संदेह नहीं है कि एक अकेला कारक जिसने भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका और प्ररिस्थति को परिवर्तित करने में सहयोग दिया वह महिलाओं का व्यापक स्तर पर राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना था। 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मौलिक अधिकार प्रस्ताव में पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता को एक उद्देश्य के रूप में माना गया।
महिलाओं के संगठन और मुद्दे
- महिलाओं की संस्थाओं के अर्विभाव का समाज सुधार आंदोलन और राष्ट्रीय आंदोलन दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध था। बीसवीं सदी के प्रारम्भ में अनेक महिला संस्थाओं की स्थापना की गई।
- 1917 में मारग्रेट कजन्स (cousins). एक आयरिश और भारतीय राष्ट्रवादी ने विमेन्स इण्डिया एसोसियेशन (Women's India Association) बनाई।
- इसके बाद 1926 में नेशनल काउन्सिल ऑफ इण्डिन विमेन (National Council of Indian Women) और 1927 में अखिल भारतीय महिला परिषद (All India Women's Conference) बनाई गयी। गुजरात में ज्योति संघ (1934) ने महिलाओं की शक्ति को काम में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। राष्ट्रवादी आंदोलन में सक्रिय बहुत सी महिलाएँ महिला संस्थाओं की संस्थापक बन गई।
i) महिला मताधिकार
- 1917 में पहली बार महिलाओं के वोट डालने के अधिकार की माँग उठाई गई। महिला मताधिकार के लिए माँग पेश करने हेतु महिलाओं का एक शिष्ट मण्डल वायसराय से मिला इसमें सरोजनी नायडू और मारग्रेट कजन्स भी शामिल थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस विचार का समर्थन किया और 1919 में संवैधानिक सुधारों ने इस मुद्दे पर निर्णय करने के लिए प्रान्तीय विधानमण्डलों को अनुमति प्रदान की। मद्रास पहला प्रांत या जिसमें महिलाओं को वोट डालने का अधिकार दिया गया। महिलाएँ भी विधानमण्डल सभासद बन गई। 1927 में मद्रास में डा. मुथुलक्ष्मी रेड्डी पहली महिला थी जो कि विधानमण्डल की सभासद बनी। महिलाओं के मताधिकार के लिए मांग बाद में राष्ट्रीय आंदोलन के अन्तर्गत वयस्क मताधिकार में बदल गई।
ii) स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने का प्रश्न
- स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं के सक्रिय भाग लेने और मताधिकार के लिए माँग के बावजूद 1930 में जब सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) प्रारम्भ हुआ तो कुछ महिला नेताओं ने सोचा कि महिला संस्थाओं को दलीय राजनीति से दूर रहना चाहिए क्योंकि उनके विचार में महिलाओं का संबंध सामाजिक समस्याओं से ही है और इन समस्याओं को हल करने के लिए शिक्षा और कानून के माध्यम से सरकार की सहायता की आवश्यकता थी। अन्य महिला नेताओं का विश्वास था कि उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन में साथ देना चाहिए। उनका मानना था कि किनारे पर बैठने से किसी भी समस्या का हल नहीं निकलता और उनकी उन्नति केवल राजनीतिक उद्वार के साथ ही होगी।
- कांग्रेस और महिला समूहों के बीच विकसित संबंधो तथा स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की बड़ी भागीदारी के कारण सामाजिक व शिक्षा से राजनीतिक परिप्रेक्ष्य तक सभी महिला संबंधी मुद्दों में धीरे-धीरे परिवर्तन आया महिला अधिकारों के अनेक समर्थकों के अनुसार देश की स्वतंत्रता पर ही महिलाओं की स्वतंत्रता भी निर्भर थी। 1920 और 1930 में महिलाओं ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया। महिलाएँ स्वदेशी आंदोलन ( देश में बनी खादी के वस्त्र पहनने का अभियान ) और विदेशी वस्तुओं और शराब बेचने वाली दुकानों पर धरना देने में अधिक सक्रिय थी ।
- स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की सहभागिता के समर्थकों ने जोर दिया कि यद्यपि भारतीय संस्कृति महिलाओं की समानता को स्वीकार करती है, परन्तु भारतीय संस्कृति में महिलाओं के लक्ष्य पुरुषों के लक्ष्यों से भिन्न माने गए हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की सहभागिता के रूप
- स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं ने विभिन्न कार्यों में भाग लिया। इन्होंने राजनीतिक विरोधों, विदेशी वस्तुओं को बेचने वाली दुकानों का घेराब करने और प्रभात फेरी (देश भक्ति के गीत गाना) को आयोजित करने में भाग लिया। पूरे देश में महिलाओं ने छुपे हुए राजनीतिक कार्यकत्ताओं के लिए भोजन और आश्रय प्रदान किए राजनैतिक कैदियों के लिए समाचार लाने । ले जाने का काम किया।
- 1930 में, महिलाओं ने बहुत बड़ी संख्या में नमक आंदोलन में भाग लिया (इसमे गाँधी ने लोगों से प्रार्थना की कि स्वयं नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ो)। इसके कारण हजारों महिलाएँ जेल भी गई।
- भारतीय राष्ट्रवादी समूहों के अंदर हॉलाकि, कुछ अधिक उग्र स्वभाव के समूह भी थे, जो बंगाल, पंजाब और महाराष्ट्र के साथ-साथ विदेशों में भी सक्रिय थे। विदेशों में कुछ विदेशी महिलाओं ने भी भारतीय क्रान्तिकारियों के साथ काम किया। भीकाजी कामा, पेरीन डी एस कैप्टन, सरला देवी चौधरानी (बंगाल), सुशीला देवी और दुर्गा देवी (पंजाब), रूपवती जैन (दिल्ली), कल्पना दत्त और कमला दास गुप्ता (कलकत्ता), लक्ष्मी सहगल (जो सुभाष चन्द्र बोस द्वारा बनाई गई इण्डियन महिला रेजीमेंट की प्रभारी थी); इन सभी महिलाओं ने क्रान्तिकारी क्रियाकलापों में भाग लिया।
- राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं के भाग लेने से अनेकों पुरानी पंरपराओं और रीति रिवाजों को तोड़ने में सहायता प्राप्त हुई। इसके साथ-साथ महिला संस्थाओं ने सामाजिक और वैधानिक असमर्थताओं को हटाने के लिए आवाज उठाई, फिर भी इन संस्थाओं पर शहरी मध्यम और उच्च वर्गों का प्रभुत्व बना हुआ था। निर्धन असहाय कामकाजी परिवार की महिलाएँ और उनकी समस्याएँ बहुत कम सामने आई।
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