भारत में स्त्री केंद्रीय आंदोलन |Women's Central Movement in India

 भारत में स्त्री केंद्रीय आंदोलन Women's Central Movement in India

भारत में स्त्री केंद्रीय आंदोलन |Women's Central Movement in India


 

भारत में स्त्री केंद्रीय आंदोलन (Women's Central Movement in India)

भारतीय भूखंड में स्त्री केंद्रीय आंदोलन प्रेम जैसे भोलेपन में हो गए- न कोई प्रयोजन बना, न कोई मेनिफेस्टो बना, न कोई प्रकट और सचेतन पूर्वपीठिका बनी जो होना था, बहुत सार्थक, बहुत क्रांतिकारी, दूरगामी प्रभावों की ओर प्राय: अचेत पश्चिम में जैसे महिला मताधिकार पर हुआ वैसा कुछ प्राय: नहीं मिलता । 


राधाकुमार लिखती हैं - 

"The contemporary portions Indian women's movement do not fall under the rubric of one movement and indeed the women who engaged in some of these companies did not regard themselves as part of overreaching women's movement." 


अध्ययन की सुविधा के लिए इन्हें चार चरणों में रखा है - यह मुख्यतः स्वातंत्र्योत्तर भारत का चित्र है -

 

भारत में स्त्री केंद्रीय आंदोलन- प्रथम चरण

  • 1947 ई. में आजादी के कुछ दिन पहले पेशावर में मुसलमान स्त्रियों ने मताधिकार की मांग की। बड़ी संख्या में इकट्ठा हुई संविधान जब बनने लगा तो उन्हें पूरी तरह समान अधिकार दिया गया । अनेक महत्वपूर्ण पदों पर सरोजिनी, अरुणाजी, विजयलक्ष्मी आदि महिलाएँ अवस्थापित की गई.

 

  • 1960 में शारदा आंदोलन चला लोकगीत गानेवाली टोलियां भक्तिगीतों में जागरणगीत गाती रही । भीलों की पीड़ा सुलगती रही बाढ़, सूखा, भूमिहीनों की पीड़ा गूंजने लगी। गांव-गांव में जाकर भूमिपतियों के मनमाने उपज बंटवारे, नृशंस सूदखोरी के खिलाफ आक्रामकता बढ़ी | शराब के अड्डे जलाये ।

 

  • 1972 में गांधीवादी समाजवादी गुजरात में पहले स्त्री ट्रेड आंदोलन का गठन हुआ । टेक्सटाइल लेबर एसोसियेशन (TLA) की महिला शाखायें खोल कर सक्रिय आंदोलन चला ।

 

  • 1973 में नारी नेता मृणाल गोरे और अहल्या रांगणेकर ने मूल्यवृद्धि के खिलाफ महिला मोर्चा गठित किया । घेराव, प्रदर्शन कर फिक्स्ड प्राइस शाप, कंज्यूमर प्रोटेक्सन कानून आदि की मांग की । 


  • 1974 में गुजरात में 'नवनिर्माण' नाम से आंदोलन चला । भ्रष्टाचार, कालाबाजारी के विरुद्ध आवाज उठायी स्वांग - अदालत (मॉककोर्ट) आदि हुए । हैदराबाद में प्रोग्रेसि आर्गनाइजेशन आफ वीमेन ( POW ) बना । पत्नी प्रताड़ना पर आवाज उठायी ।

 

  • 1975 में यूएन ने महिलावर्ष घोषित किया देश भर में स्त्रीवादी संगठन बने । महाराष्ट्र में अधिक । पूना- बंबई में संगोष्ठियाँ आयोजित हुई । आंदोलन तेज हुआ । दलित और महिला आंदोलन एक छतरी के नीचे आ गया । दलितों ने महिला समता सैनिकदल' बनाया । धर्म-जाति लेकर पूर्वग्रहों पर प्रश्न चिन्ह लगाया ।

 

भारत में स्त्री केंद्रीय आंदोलन दूसरा चरण 

  • ट्रेड यूनियन, किसान समीति आदि की अलग स्त्री शाखायें खुली । ये तो - साम्यवादियों से जुड़े थे । परंतु कुछ स्त्री संगठन राजनीति से हट कर बने । इन्होंने शहर, कस्बों में 'महिला दक्षता समिति' बनायी । लंबी बहस चली कि राजनीति से जुड़े या नहीं ?

 

  • आंध्र में करीमनगर के महिला संगठन प्रभावी थे गांव-गांव में महिला संघम् पत्नी प्रताड़ना और भूपति -बलात्कारों के विरुद्ध खड़े हुए। दिल्ली में 'स्त्री विमर्श', 'महिला रक्षा समिति' आदि बहुत मुखर हो कार्य रत थी । पारिवारिक मामले सुलझाये । नुक्कड़ नाटकों से सचेतनता पैदा की । दहेज का विरोध चला ।

 

  • 1983 में क्रिमिलन लॉ ( सेकेंड अमेंडमेंट) एक्ट पास हुआ। एविडेंस एक्ट का सेक्शन II3ए संशोधन किया । 74 में संशोधन कर विवाह के सात वर्ष में मरने वाली स्त्रियों की शव परीक्षा अनिवार्य हुआ। 
  • दहेज अब भी पीड़क तत्व था । संपत्ति में हिस्सा बड़ी समस्या था । इन सब पर चर्चा हुई। कानून बने ।

 

  • बलात्कार तेजी से बढ़ा । गांव-शहर, नौकरी स्थान, घर, सड़क सब जगह यह भयावह बात होने लगी । पुलिस बलात्कार के विरुद्ध हैद्राबाद में आंदोलन हुआ । 1978 में । जमींदार और नौकरीदाता भी कम दुष्ट नहीं थे । इन के खिलाफ आंदोलन चला । 1980 ई. में हरयाणा में मायात्यागी को पकड़ा पुलिस द्वारा बलात्कार, नंगी कर फिराना आदि ने उत्तेजना फैला दी । बागपत जाकर जैलसिंह को जांच करनी पड़ी । )

 

भारत में स्त्री केंद्रीय आंदोलन तीसरा चरण

  • 1980 के बाद कानूनी सलाह, स्वास्थ्य संबंधी सलाह रोजगार पर नये ढंग से दी जाने लगी । नारी संगठन सक्रिय हुए 'सहेली', 'सखी' केंद्र बनाये । 1985 में लोकगीत, लोकमंच, लोकचित्र, आदि पर कार्यशालायें हुई ।

 

  • वन संरक्षण के नामपर गढ़वाल की स्त्रियों ने गांधीवादी आंदोलन छेड़ा- पेड़ से चिपक जाती । प्रकृति के संरक्षण कार्य में खूब जुटी ।

 

  • 8वें दशक में नारी संगठन बहु आयामी बना । सेंटर फार वेमन डेवलमेंट (CWD) खुले । उधर महाराष्ट्र आदि में गर्भ निरोध पर हिंदु महिलाओं मुलिम महिलाओं में भेद पैदा किया कि सिर्फ हिन्दू महिला गर्भ निरोध रखती हैं। उसी तरह सती प्रथा पर दिल्ली, राजस्थान, बंगाल में जागरण हुआ। कोई 'हक' के समर्थन में, कोई विरोध में चला । रूपकुंवर सती ने देश को हिला दिया ।

 

भारत में स्त्री केंद्रीय आंदोलन का चौथा चरण - 

चौथा चरण शाहबानो सारी दुनिया में फैला । बेसहारा स्त्री के हित संरक्षण की आवाज चारों ओर उठी । कानूनी लड़ाई में शाहबानो को कुछ न मिला । पर देश सचेत हुआ । कहा गया कि सभी पर्सल लॉ स्त्री विरोधी हैं।  

"Religion should only govern the relationship between a human being and God and should not govern the relationship between men and man or man and woman."


  • इधर पिछले दिनों रेप और फिर हत्या की घटनाओं ने जघन्य भाव से बढ़ कर स्थिति बदल दी । कानून बने पर खास सुधार नहीं आया । सुरक्षा असुरक्षा की बहस जारी है। कहा जा रहा है नारी स्वयं सशक्त हो । - हिम्मतवान हो तभी इस हिंसा का सामना कर सकती हैं ।

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