1857 का विद्रोह में महिलाओं की भूमिका|Role of women in the Revolt of 1857
1857 का विद्रोह में महिलाओं की भूमिका
(Role of women in the Revolt of 1857)
1857 का विद्रोह में महिलाओं की भूमिका
- 1857 के महान् विद्रोह, जिसे भारत का प्रथम स्वतंत्राता संग्राम माना जाता है, ने भारत में अंग्रेजी राज की जड़ों को हिला दिया था। भारतीय स्वतंत्रता के इस महान् संग्राम में दो वीरांगनाओं का नाम प्रमुखता से लिया जाता है- एक तो लखनऊ की बेगम हजरत महल और दूसरे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई। इनके पूर्व 1824 में कित्तूर (कर्नाटक) की रानी चेनम्मा ने अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध 'फिरंगियों भारत छोड़ो' का बिगुल बजाया था।
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई
- जब 1855 में झाँसी के राजा गंगाधर राव की मौत के बाद अंग्रेजों ने लक्ष्मीबाई और उनके दत्तक पुत्र को शासक मानने से इनकार कर दिया, तो रानी ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। रानी लक्ष्मीबाई का स्पष्ट नारा था कि "मैं अपनी झाँसी नहीं दूंगी" और अंततः इसी प्रयास में रानी 8 जून, 1858 को अंग्रेजी सेना से लड़ते हुए मारी गई। जनरल ह्यूरोज के अनुसार रानी 'विद्रोहियों में एकमात्र मर्द थी।'
वीरांगना झलकारीबाई
- रानी लक्ष्मीबाई ने झलकारीबाई के नेतृत्व में महिलाओं की एक अलग टुकड़ी दुर्गा दल का गठन किया था। झलकारी का उल्लेख मराठा पुरोहित विष्णुराव गोडसे की कृति माझा प्रवास में मिलता है। झलकारीबाई के दुर्गा दल में मोतीबाई, काशीबाई, जूही और दुर्गाबाई जैसी अनेक महिला सैनिकें थी, जो अंग्रेजों से जूझते हुए वीरगति को प्राप्त हुई थी।
बेगम हजरत महल
- लखनऊ में 1857 की क्रांति का नेतृत्व बेगम हजरत महल ने किया। बेगम हजरत महल ने अपने नाबालिग पुत्र बिरजिस कादिर को गद्दी पर बिठाकर अंग्रेजी सेना का स्वयं मुकाबला किया।
वीरांगना रहीमी, ऊदादेवी और आशादेवी
- बेगम हजरत महल के सैनिक दल में तमाम महिलाएं शामिल थी, जिसका नेतृत्व रहीमी करती थी। लखनऊ में सिकंदरबाग किले पर हमले में वीरांगना ऊदादेवी ने अकेले ही अंग्रेजों से मुकाबला करते हुए लगभग 32 अंग्रेज सैनिकों को मार गिराया था। अंत में वीरांगना ऊदादेवी कैप्टन वेल्स की गोली का शिकार हो गई। वीरांगना ऊदादेवी का जिक्र अमृतलाल नागर ने अपनी कृति 'गदर के फूल में किया है। इसी प्रकार एक वीरांगना आशादेवी 8 मई, 1857 को अंग्रेजी सेना का मुकाबला करते हुए शहीद हुई थी। आशादेवी का साथ देनेवाली वीरांगनाओं में रनवीरी वाल्मीकि, शोभादेवी, महावीरीदेवी, सहेजा वाल्मीकि, नामकौर, राजकौर, हबीबा गुर्जरीदेवी, भगवानीदेवी, भगवतीदेवी, इंदर कौर, कुशलदेवी आदि थी। इन वीरांगनाओं ने मरते दम तक अंग्रेजी सेना का मुकाबला किया। लखनऊ की एक नर्तकी हैदरीबाई भी रहीमी के सैनिक दल में शामिल हुई थी।
- बेगम हजरत महल के बाद अवध के मुक्ति-संग्राम में तुलसीपुर के राजा दृगनाथ सिंह की रानी ईश्वरकुमारी ने होपग्राण्ट के सैनिक दस्तों से जमकर लोहा लिया। यही नहीं, अवध की बेगम आलिया ने भी अपने अद्भुत कारनामों से अंग्रेजी हुकूमत को कड़ी चुनौती दी थी। कानपुर की नर्तकी अजीजन बेगम के हृदय में भी देशभक्ति की भावनाएं हिलोरें मार रही थी। • अजीजन जानती थी कि शक्तिशाली अंग्रेजों को पराजित करना आसान नहीं है, फिर भी उसने देश की आजादी के लिए नर्तकी के जीवन का परित्याग कर क्रांतिकारियों की सहायता की। नर्तकी अजीजन बेगम ने मस्तानी टोली के नाम से 400 महिलाओं की एक टोली बनाई, जो मर्दाना भेष में घायल सिपाहियों की मरहम पट्टी करती और उनकी सेवा-सुश्रुशा करती थी। अंग्रेजों ने जब कानपुर पर अधिकार कर लिया, तो अजीजन बेगम भी पकड़ी गई और गोली मारकर उसकी हत्या कर दी गई।
- पेशवा बाजीराव की फौज के साथ बिठूर आनेवाली मस्तानीबाई ने भी कानपुर के स्वाधीनता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मुजफ्फरनगर के मुंडभर की महावीरी देवी ने 1857 के संग्राम में 22 महिलाओं के साथ मिलकर अंग्रेजों पर हमला किया था। अनूप शहर की चौहान रानी ने भी अंग्रेजी सत्ता को सशस्त्र चुनौती दी थी और अनूप शहर के थाने पर लगे यूनियन जैक को उतारकर हरा राष्ट्रीय झंडा फहराया था। वस्तुतः इतिहास के पन्नों में ऐसी अनगिनत कहानियां दर्ज हैं, जहाँ वीरांगनाओं ने अपने साहस और वीरता के बल पर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये। मध्य प्रदेश में रामगढ़ रियासत (मंडला जिले में) की रानी अवंतीबाई लोधी ने 1857 के संग्राम के दौरान पूरी शक्ति के साथ अंग्रेजों का विरोध किया। रानी ने सैनिकों और सरदारों का उत्साह बढ़ाते हुए कहा था, 'भाइयों! जब भारत माँ गुलामी की जजीरों से बँधी हो, तब हमें सुख से जीने का कोई हक नहीं, माँ को मुक्त करवाने के लिए ऐशो-आराम को तिलांजलि देनी होगी, खून देकर ही आप अपने देश को आजाद करा सकते हैं। रानी अवंतीबाई लोधी ने अपने सैनिकों के साथ अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया और अंततः आत्म-समर्पण करने की बजाय स्वयं को खत्म कर लिया। 1857 की क्रांति में अंग्रेजों का प्रबल प्रतिरोध करने के लिए धार क्षेत्र में रानी द्रौपदी बाई ने अपनी सेना में अरब, अफगान आदि सभी वर्ग के लोगों को नियुक्त किया।
- रानी द्रौपदी बाई ने गुलखान, बादशाह खान, सआदत खान जैसे क्रांतिकारी नेताओं से समझौता किया। जब 22 अक्टूबर, 1857 को ब्रिटिश सैनिकों ने धार के किले को घेर लिया, तो क्रांतिकारियों और ब्रिटिश सैनिकों के बीच 24 से 30 अक्टूबर तक कड़ा संघर्ष चला। यद्यपि अंग्रेज किले को ध्वस्त करने में सफल हो गये, किंतु रानी द्रौपदीबाई अपने त्याग और बलिदान के कारण क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणाप्रद बन गई। इसी तरह जैतपुर, तेजपुर और हिंडोरिया की रानियों ने भी अंग्रेजी सेना से मोर्चा लिया। इस प्रकार 1857 में भारतीय महिलाओं ने अपने त्याग, वीरता और बलिदान के द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि महिलाएं किसी भी रूप में पुरुषों से कमतर या कमजोर नहीं हैं। किंतु 1857 के विप्लव में भाग लेनेवाली अधिकांश महिलाएं प्रायः राजपरिवार या अभिजन वर्ग से संबंधित थी। यद्यपि इनमें से अधिकांश ने अपने व्यक्तिगत हितों पर आँच आने पर ही अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध संघर्ष किया था, फिर भी इससे महिलाओं के वीरत्व पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए।
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