महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोष) अधिनियम, 2013 |Sexual harassment act 2013 in Hindi
महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोष) अधिनियम, 2013
महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोष) अधिनियम, 2013 Sexual harassment act 2013 in Hindi
- कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न उनकी गरिमा तथा जीविका कमाने के अधिकार और उनके मौलिक तथा मूलभूत मनवाधिकार का उल्लंघन है। सन 1979 में बीजिंग में हुये “International Convention on the elimination of all forms of discrimination against women (CEDAW)", जिसे भारत सरकार ने भी हस्ताक्षर कर अपनाया में कार्यस्थल पर महिलाओं के समान अधिकारों को जगह दी गई तथा घोषणा की कि महिलाएं यौन उत्पीड़न का शिकार नहीं होनी चाहिए।
- कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से निवारण के लिए भारत की संसद ने 2013 में एक कानून पास किया जिसका नाम महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोष) अधिनियम 2013 है।
- इस अधिनियम के अनुसार "यह कानून कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से संरक्षण देने, रोकथाम व शिकायत निवारण के लिए बना है। यौन उत्पीड़न के कारण महिला के संविधान में निहित समानता के अधिकार (धारा 14, 15) व जीवन की रक्षा व सम्मान से जीने के अधिकार (धारा 21) व व्यवसाय करने की आज़ादी के लिए तथा कार्यस्थल पर सुरक्षित वातावरण के न होने से उसके कार्य करने में बाधा को रोकने के लिए यह कानून है।”
इस अधिनियम के अनुसार यौनिक प्रताड़ना के तहत निम्न में से कोई एक या अनेक स्वीकार्य कार्य या व्यवहार शामिल हैं चाहे वो प्रत्यक्ष रूप से हो या निहित हो-
- शारीरिक संपर्क या उसका प्रयास करना
- यौनिक रिश्ते बनाने का प्रयास या उसकी माँग
- यौनिक शब्दों वाली बातें या टिप्पणी करना
- अन्य कोई भी ऐसा शारीरिक, मौखिक, इशारे आदि से ऐसा व्यवहार व आचरण जो यौनिक प्रकृति का हो और अस्वीकार्य हो
इस अधिनियम के अनुसार:
1. किसी भी महिला का किसी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न नहीं होगा।
2. अन्य परिस्थितियों के साथ-साथ यदि निम्न परिस्थितियां जो यौनिक उत्पीड़न के साथ-साथ यदि विद्यमान है तो वह यौनिक उत्पीड़न कहलाएगा:
- नौकरी में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष, निहित या स्पष्ट वादा करके पक्षपातपूर्ण व्यवहार करना।
- नौकरी में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष निहित या स्पष्ट रूप से नुकसान पहुँचाने की धमकी देना।
- वर्तमान व भविष्य की नौकरी के संबंध में नुकसान पहुंचाने की धमकी देना।
- उसके कार्य में हस्तक्षेप करना या ऐसा वातावरण बनाना कि उसका कार्य करना मुश्किल हो जाए।
- ऐसा उपहासपूर्ण या अपमानजनक व्यवहार जो उसके स्वास्थ्य व सुरक्षा को प्रभावित करे।
आंतरिक शिकायत समिति के गठन
यह अधिनियम कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए एक आंतरिक शिकायत समिति के गठन को प्रस्तावित करता है। इसके अनुसार कार्यस्थल का प्रत्येक नियोक्ता लिखित में आदेश निकालकर एक आंतरिक शिकायत समिति का गठन करेगा।
इस समिति के अंतर्गत-
1) एक वरिष्ठ महिला पीठासीन अधिकारी होगी
2) कर्मचारियों में से 2 से कम सदस्यों का चयन नहीं होगा। इसमें सामाजिक व कानूनी 12) मुद्दों से जुड़े व अनुभव रखने वाले ऐसे लोगों को लिया जायेगा जो महिला मुद्दों की समझ रखते हों।
3) एक सदस्य गैर सरकारी संगठन से होगा जो महिला मुद्दों से परिचित तथा प्रतिबद्ध हो। यह आवश्यक है कि नामजद किये गए कुल सदस्यों में से कम से कम आधी महिलाएं हों। इस समिति के सदस्यों तथा पीठासीन अधिकारी का कार्यकाल 3 वर्ष तक का होगा।
- आंतरिक शिकायत समिति के अतिरिक्त इस अधिनियम में एक स्थानीय शिकायत समिति के गठन का भी प्रावधान है. इसके तहत "हर जिला स्तर का अधिकारी जिले के लिए एक समिति का गठन करेगा, जिसमें उन शिकायतों को लिया जायेगा जहाँ आंतरिक शिकायत समिति का गठन 10 से कम कर्मचारी होने के कारण नहीं हुआ है या शिकायत नियोक्ता के खिलाफ है।"
- इसके अंतर्गत जिलाधिकारी एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति करेगा. यह ब्लॉक, तालुका, तहसील और नगरपालिका स्तर पर होगा। नोडल अधिकारी शिकायत प्राप्त कर स्थानीय शिकायत समिति को भेजेगा।
- स्थानीय शिकायत समिति के अध्यक्ष के रूप में सामाजिक क्षेत्र में महिला मुद्दों पर कार्य करने वाली कोई प्रतिष्ठित महिला होगी। जिले में ब्लॉक, तालुका, तहसील, वार्ड या नगरपालिका स्तर पर कार्यरत महिलाओं में से कोई एक इसकी सदस्य होगी। दो सदस्य उन गैर सरकारी संगठनों से चुने जाएँगे जो महिला मुद्दों के प्रति संवेदनशील हो तथा यौनिक प्रताड़ना के मुद्दों की समझ रखते हों। इन नामजद सदस्यों में से एक महिला अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग या अल्पसंख्यक समुदाय से सम्बंधित हो.
यौनिक प्रताड़ना की शिकायत:
- कोई भी पीड़ित महिला कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत लिखित में आंतरिक शिकायत समिति को देगी। यदि आंतरिक शिकायत समिति का गठन नहीं हुआ है तो स्थानीय शिकायत समिति को दी जाएगी।
- पीड़िता को शिकायत घटना घटने के 3 महीने के अन्दर करनी होगी। अगर पीड़िता शिकायत को लिखित में देने में असमर्थ है तो समिति के सदस्य या पीठासीन अधिकारी अथवा अध्यक्ष उसे शिकायत लिखने में आवश्यक मदद प्रदान करेंगे।
- यदि पीड़िता 3 महीने में शिकायत नहीं कर पाती हैं और समिति को लगता है कि देरी का कारण उचित और तर्कसंगत है तो समिति उसे 3 महीने का अतिरिक्त समय दे सकती है। यदि पीड़ित महिला शारीरिक, मानसिक या किसी अन्य कारण से शिकायत नहीं लिखवा पा रही है तो उसका वैधानिक उत्तराधिकारी उसकी शिकायत दर्ज करवा सकता है।
मुआवजे के निर्धारण
पीड़ित महिला को मुआवजे के निर्धारण के सम्बन्ध में निम्न बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए:
- मानसिक तनाव, दर्द, परेशानी, भावनात्मक तनाव महिला को पहुंचा हो।
- यौन प्रताड़ना के कारण व्यवसाय के अवसरों का नुकसान।
- दूसरे पक्ष की आय व वित्तीय स्थिति ।
नियोक्ता के दायित्व :
अधिनियम के अनुसार नियोक्ता के निम्नलिखित दायित्व हैं:
- स्वच्छ कार्य वातावरण प्रदान करना चाहिए तथा सुरक्षा की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए।
- कार्यालय के सार्वजनिक स्थान पर इस कानून के दंडात्मक प्रावधान व आंतरिक समिति का के आदेश नोटिस बोर्ड पर होना चाहिए।
- अपने कर्मचारियों में जागरूकता के लिए सेमिनार, गोष्ठियों की व्यवस करते रहना चाहिए ताकि उन्हें यौन उत्पीड़न व इससे जुड़े मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके।
- आंतरिक व स्थानीय शिकायत समिति को विशेष सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिए।
- जिस कानून या धारा के तहत मामला जहाँ दर्ज हो सकता है उसे वहां करवाया जाना चाहिए. अगर पीड़ित करने वाला कर्मचारी नहीं है तो जिस जगह घटना हुई है उस जगह केस दर्ज करवाने में मदद करनी चाहिए।
यौन उत्पीड़न के प्रभाव Effects of sexual harassment
यौन उत्पीड़न से पीड़ित स्त्री को निम्नलिखित परेशानियों का सामना करना पड़ता है:
- भारत जैसे पितृसत्तात्मक समाज में करियर में जहाँ यौन पीड़िता को एक 'मुजरिम' के तौर पर देखा जाता है वहां उसे आगे बढ़ने के और नौकरी के अवसर का कम मिलते हैं।
- यौन उत्पीड़न के परिणामस्वरूप पीड़िता को कई प्रकार की शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक परेशानी उठानी पड़ती है।
- पीड़िता बहुत बार आत्महत्या करने या कोई ऐसा कदम उठाने की सोचती है जिसके भयंकर परिणाम होते हैं। यौन उत्पीड़न के कारण उसके पारिवारिक जीवन को नुकसान को नुकसान पहुँचता है।
- बहुत बार यौन उत्पीड़न से पीड़ित स्त्री को या तो स्वयं अपनी नौकरी छोड़नी पड़ती है अथवा उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है।
- पीड़िता को सामाजिक दबाव के कारण अपने कार्यस्थल पर जाने और बाहर निकलने में कठिनाई का अनुभव होता है और वह अपने कार्यालय से अनुपस्थित रहने लगती है जिसके कारण उत्पादकता में कमी आती है।
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