उच्च शिक्षा की वर्तमान व्यवस्था के दोष तथा उनका निस्तारण |Defects of the Higher education and solution

 उच्च शिक्षा की वर्तमान व्यवस्था के दोष तथा उनका निस्तारण

Defects of the Higher education and solution

उच्च शिक्षा की वर्तमान व्यवस्था के दोष तथा उनका निस्तारण |Defects of the Higher education and solution


उच्च शिक्षा की वर्तमान व्यवस्था के दोष तथा उनका निस्तारण

यह सत्य है कि स्वतन्त्रता के पश्चात् उच्च शिक्षा का तीव्र गति से विकास हुआ है।स्वतन्त्रता के समय देश में विश्वविद्यालय की संख्या बहुत कम थी आज इनकी संख्या 1027 है (444 स्टेट विश्वविद्यालयए 126 डीम्ड विश्वविद्यालयए 54 केन्द्रीय विश्वविद्यालयए 403 निजी  विश्वविद्यालय।) उच्च शिक्षा के विस्तार के साथ-साथ इनमें गिरावट भी आई है। गुणात्मक सुधार की ओर ध्यान कम दिया गया है। यही कारण है कि छात्र विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त करने के पश्चात भी रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते हैं। यह शिक्षित बेरोजगारी अन्य समस्याओं के जन्म का कारण बन चुकी है। आज छात्र का ध्यान ज्ञानार्जन की ओर कम तथा येन केन प्रकारेण डिग्री प्राप्त करने की और अधिक है। उनमें उस योग्यता का अभाव है जो इस स्तर पर होनी चाहिए। इस स्तर पर आज अनेक समस्याएँ हैजिनका निदान निकाला जाना अत्यन्त आवश्यक है। इनमें से प्रमुख समस्याएँ इस प्रकार हैः-


1 उद्देश्यविहीन शिक्षा  (Aimless Education)

शिक्षा के कई स्तर होते हैं। प्रत्येक स्तर की शिक्षा के उद्देश्य होते हैं। विश्वविद्यालय शिक्षा या उच्च शिक्षा के भी उद्देश्य हैंलेकिन जब विश्वविद्यालय इन उद्देश्यों की पूर्ति करने में सक्षम नहीं होते हैं तब शिक्षा उद्देश्यविहीन कहलाती है। पंडित जवाहरलाल  नेहरू ने विश्वविद्यालय शिक्षा का उद्देश्य इस प्रकार बतलाया है. विश्वविद्यालय मानवतासहनशीलतातर्कवैचारिक साहस एवं सत्य की खोज के लिए है। यह मानव की प्रगति हेतु है। यदि विश्वविद्यालय अपने कर्तव्य का पालन करे तो राष्ट्र एवं नागरिक दोनों का कल्याण होगा।

डॉ.आर.के. सिंह ने उच्च शिक्षा के महत्त्व पर प्रकाश इस प्रकार डाला है- 

''देश का वैभवविश्वविद्यालय से सम्बद्ध होता है। दुषित विश्वविद्यालय सम्पूर्ण राष्ट्र को दृषित कर देता है।''


परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत का यह दुर्भाग्य रहा कि विश्वविद्यालय इन उद्देश्यों की पूर्ति में असफल रहे हैं। हम शिक्षा का स्वरूप विकसित नहीं कर पाए हैंजो हमारी आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं ।

प्रो. हुमायूँ कबीर ने ठीक ही कहा है बहुत बार यह कहा गया है कि विश्वविद्यालयों में जो शिक्षा दी जाती हैवह व्यक्ति को व्यावहारिक शिक्षा प्रदान नहीं करती है। विशेषतः यह कहा जाता है कि इनसे निकलने वाले छात्रों में शारीरिक गुण व ग्रामीण जीवन के प्रति अरुचि उत्पन्न हो जाती है।

विश्वविद्यालय ऐसे अभिकरण बन गए हैंजो छात्रों को गाँवों से खाँचकर शहर की ओर ले जाते हैं। ऐसा होने से गाँवों को हानि होती हैपर शहरों को लाभ नहीं होता है।

इसके लिए हमें उच्च शिक्षा में परिवर्तन करना होगा शिक्षा को उद्देश्यपूर्ण बनाने हेतु हमे कोठारी आयोग द्वारा सुझाए गये उद्देश्यों का क्रियान्वयन करना होगा। 

कोठारी आयोग ने शिक्षा के पाँच उद्देश्य बतलाए है।

1.     शिक्षा और उत्पादन,

2.     शिक्षा और सामाजिक राष्ट्रीय एकता,

3.     शिक्षा प्रजातन्त्र,

4.     शिक्षा और आधुनिकीकरण

5.     शिक्षा और सामाजिक एवं आध्यात्मिक मूल्य।

 

2 दोषपूर्ण पाठ्यक्रम (Faulty Syllabus)

वर्तमान उच्च शिक्षा का पाठ्यक्रम दोषपूर्ण है। उच्च शिक्षा का पाठ्यक्रम सैद्धान्तिक अधिक व्यावहारिक कम है। ब्रिटिश काल के पाठ्यक्रम तथा वर्तमान पाठ्यक्रम में बहुत अधिक अन्तर नहीं है। छात्र अपनी रूचि के विषयों का चयन नहीं कर पाते हैं। आज सन्तुलित पाठ्यक्रम की आवश्यकता है। विश्वविद्यालयों के द्वारा सभी क्षेत्रों में नेतृत्व की शिक्षा दी जानी चाहिए। उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में व्यावसायिक विषयों को कोई

स्थान नहीं मिल सका है। आज का पाठ्यक्रम पूर्णरूप से भारत के लिए निरर्थक है। आज आवश्यकता है कि राष्ट्रीय लक्ष्यों को सामने रखकर पाठ्यक्रम का पुनर्गठन किया जाए। पाठ्यक्रम में कार्य अनुभव को उचित स्थान मिलना चाहिए।

 

3. शिक्षा का माध्यम (Medium of Education)

भारतवर्ष में अनेक भाषाएं बोली जाती है। भारतीय संविधान में हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया गया है। इसके अतिरिक्त 21 अन्य भारतीय भाषाओं को भी मान्यता दी गयी है। इस स्थिति में यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि शिक्षा का माध्यम कौन.सी भाषा हो। इस समस्या को सुलझाने के लिए शिक्षा आयोगों ने अपने-अपने सुझाव प्रस्तुत किये है। सन् 1956 में इसके समाधान हेतु भाषा आयोग गठित किया गया। सभी आयोगों तथा समितियों का इस सम्बन्ध में यही निर्णय है कि शिक्षा के सभी स्तरों पर शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषाएँ ही होनी चाहिए। अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम नहीं बनाया जा सकता है। अंग्रेजी भाषा पर आधिपत्य स्थापित करना असम्भव है। महात्मा गाँधी ने कहा था कि अंग्रेजी ने बालकों के मस्तिष्क को थका दिया है। राधाकृष्णन आयोग ने भी यही सुझाव दिया था। कोठारी आयोग ने क्षेत्रीय भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने के लिए 10 वर्ष का समय दिया था। सन् 1986 की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में आधुनिक भारतीय भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने का सुझाव दिया गया।

 

4. शिक्षा में विशिष्टीकरण (Specification in Education)

माध्यमिक स्तर के पश्चात उच्च माध्यमिक स्तर तथा उच्च शिक्षा स्तर से विशिष्टीकरण शुरू हो जाता है।  विशिष्टीकरण से छात्र अपनी रूचि के विषयों का चयन कर सकते हैं तथा उनमें विशिष्ट योग्यता प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा करने से उनमें संकीर्णता उत्पन्न हो जाती है। विज्ञान पढ़ने वाला छात्र साहित्य से अनभिज्ञ रह जाता है तथा साहित्य पढ़ने वाला छात्र विज्ञान के ज्ञान से वंचित हो जाता है। के जी सैयदेन ने इस समस्या के सम्बन्ध में अपने विचार निम्न प्रकार व्यक्त किए-

''विशिष्टीकरण में एक तरह की संकीर्णता एवं अकाल्पनिकता होती हैजिसका परिणाम यह होता है कि विज्ञान वर्ग के विद्यार्थियों को कलाकविता तथा सामाजिक एवं राजनीतिक समस्याओं का कोई ज्ञान नहीं होता।'' इस समस्या का समाधान ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में समन्वय है। ज्ञान को भिन्न भागों में नहीं बांटा जा सकता है। इसको करके पढ़ाना प्रथक-प्रथक करके पढाना सम्भव नहीं है। सामान्य एवं विशिष्ट शिक्षा का समन्वय किया जाना चाहिए। राधाकृष्णन आयोग के सुझाव पर देश के 15 विश्वविद्यालयों में समन्वित शिक्षा का ज्ञान देना प्रारम्भ कर दिया है।

 

5. अपव्यय एवं अवरोधन की समस्या (Problem of Prodigality and Hindrance)

कामत एवं देशमुख ने उच्च शिक्षा में अपव्यय का अर्थ इस प्रकार बतलाया हैः 


"अपव्यय की परिभाषा में उन विद्यार्थियों को शामिल किया जाता हैजिन्होंने कॉलेज के प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया और किसी कारण से कलाविज्ञान तथा व्यावसायिक पाठ्यक्रम की डिग्री प्राप्त करने से पहले हो छोड़ दिया।"


सन् 1961 में कामत एवं देशमुख ने एक कॉलेज का सर्वेक्षण कर अपव्यय का पता लगाने का प्रयास किया। अपने अध्ययन उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि कला संकाय में पुरुषों में 51 प्रतिशत और महिलाओं में 42 प्रतिशत तथा विज्ञान संकाय में पुरुषों में 43 प्रतिशत तथा महिलाओं में 31 प्रतिशत अपव्यय हुआ।

डॉ. एस एन मुखर्जी ने बताया कि डिग्री के प्रथम वर्ष में प्रवेश लेने वाले छात्रों में से 50 प्रतिशत से अधिक छात्र इस कक्षा में अनुतीर्ण हो जाते हैं। स्नातकोत्तर स्तर पर 20 से 30 प्रतिशत छात्र परीक्षाओं में अनुतीर्ण हो जाते हैं। इसके अनेक कारण जैसे -आर्थिक कठिनाईयोग्य शिक्षकों का अभावशिक्षण का निम्न स्तरदूषित परीक्षा प्रणालीअयोग्य छात्रों का प्रवेश आदि हो सकते हैं।

इस समस्या के समाधान हेतु निम्न प्रयास किये जाने चाहिएः

1.     पाठ्यक्रम और परीक्षा प्रणाली में सुधार किया जाए

2.     आन्तरिक परीक्षाओं पर विशेष ध्यान दिया जाए।

3.     योग्य छात्र की ही प्रवेश दिया जाए।

 

6 छात्र-अनुशासनहीनता (Student Indiscipline)

उच्च शिक्षा की समस्याओं में से एक समस्या छात्र अनुशासनहीनता है। इसका मुख्य कारण उच्च शिक्षा का उद्देश्यहीन होना है। इस स्तर पर अनुशासनहीनता के अनेक रूप देखने को मिलते हैंयथा-

1.     परीक्षा में अध्यापकों के साथ दुर्व्यवहार,

2.     धन सम्बन्धी अनियमितता,

3.     अधिकारों का दुरुपयोग,

4.     अकारण हड़ताल

5.     कक्षाओं का बहिर्गमन

6.     परीक्षा में अनुचित साधनों का प्रयोग

7.     यौन-सम्बन्धी दुर्व्यवहार

 इस समस्या से निपटने हेतु आयोगी ने अपने सुझाव इस प्रकार प्रस्तुत किए हैः

कोठारी आयोग का सुझाव

  • छात्र संघ एवं  समितियों में शिक्षक का होना आवश्यक हो।
  • निर्देशन एवं परामर्श की व्यवस्था हो।
  • स्वानुशासन स्थापित करने का दायित्व किसी एक व्यक्ति का नहीं अपितु सभी का है।

राधाकृष्णन आयोग का सुझाव 

छात्रों को श्रेष्ठ साहित्य का अध्ययन कराया जाए। श्रेष्ठ साहित्य ही श्रेष्ठ भावना को विकसित करता है। अतः पाठ्यक्रम में श्रेष्ठ पुस्तकों को सम्मिलित किया जाना चाहिए।

 

7. निर्देशन एवं परामर्श का अभाव (Lack of Direction and Suggestion)

इस स्तर पर निर्देशन एवं परामर्श का अभाव है। अतः छात्र अपने माता-पिता के दबाव मेंअनुशासनहीन व्यक्तियों  से परामर्श लेकर या अपनी इच्छा से विषयों का चयन करते हैं। यह चयन छात्रों के सम्मुख संकट पैदा कर देता है। छात्र परीक्षाओं में असफल हो जाते हैं या बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं। किसी कारण से वह अपनी पढ़ाई पूरी कर भी होते हैं तो उन्हें नौकरी प्राप्त नहीं हो पाती है। अतः उनका जीवन निराशा से भर जाता है। इसलिए आयोग का विचार है कि निर्देशन एवं परामर्श को आवश्यक अंग बनाया जाए। 1000 छात्र संख्या वाली शिक्षा संस्था में कम.से.कम एक परामर्शदाता नियुक्त किया जाएजिससे कि छात्रों को  विषयों के चयन सम्बन्धि आवश्यक मार्गदर्शन प्राप्त हो सके। कई विश्वविद्यालयों ने इस दिशा में कार्य करना प्रारम्भ कर दिया है।

 

8. दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली (Faulty Examination System)

वर्तमान समय में विश्वविद्यालय शिक्षा का सबसे बड़ा दोष यह है कि शिक्षण परीक्षा के अधीन है. न कि परीक्षा शिक्षण के अधीन। भारतवर्ष में इस स्तर पर निबन्धात्मक परीक्षा प्रणाली का प्रचलन है। छात्र 3 घण्टे में पांच प्रश्नों के उत्तर देता है। ये पाँच प्रश्न सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का प्रतिनिश्चित नहीं करते हैं। इनका मूल्यांकन भी आत्मनिष्ठ होता है। अतः इस दोष से उच्च शिक्षा को मुक्त किया जाए।

  • कोठारी आयोग ने इस सम्बन्ध में निम्न सुझाव दिए।
  • बाह्य परीक्षाओं के स्थान पर आन्तरिक परीक्षाओं पर ध्यान दिया जाए।
  • मूल्यांकन की नयी तकनीक एवं विधियों को अपनाया जाए।
  • मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है। अतः वर्ष भर छात्रों का मूल्यांकन किया जाए और इसके आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुंच जाए

9. शिक्षा का गिरता हुआ स्तर (Declining Level of Education)

आज सभी का यह विचार है कि शिक्षा का स्तर पहले की तुलना में गिर चुका है। पहले का हाईस्कूल कक्षा उत्तीर्ण किया हुआ आज के बी.ए और एम.ए किए हुए छात्र से अधिक योग्य था। डॉ. एन. के. मुकर्जी का विचार है कि शिक्षा का स्तर एक बार गिर जाने पर उसे उठाया नहीं जा सकता है क्योंकि उस पर ग्रेशम का नियम लागू होता है। आज शिक्षा के स्तर में गिरावट होने के मुख्य कारण निम्म हैं -

  •  प्रवेश नीति में असमानता,
  • योग्य एवं अनुभवी शिक्षकों का अभाव
  • छात्र संख्या में तेजी से वृ़िद्ध
  • दोषपूर्ण शिक्षण विधियाँ

इसके लिए अध्यापकों के वेतन में वृद्धि करकेअतिरिक्त कक्षाओं को व्यवस्था करकेपाठ्यक्रम को व्यावहारिक बनाकरछात्र संख्या को अध्यापकों की संख्या के अनुसार करके समस्या का समाधान खोजा जा सकता है।


10. छात्र संघ (Student Union)

शिक्षा में छात्र संघ अभिशाप सिद्ध हो रहा है। छात्र संघ के पदाधिकारी अनावश्यक रूप से प्रचार्यों एवं प्रबन्धकों के कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं। छात्र शक्ति का प्रदर्शन कर अनुचित कार्य करने के लिए अध्यापकों को बाध्य करते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए निम्न कार्य किए जाएँ

  • छात्र संघों का रजिस्ट्रेशन आवश्यक किया जाए।
  • छात्र संघ के माध्यम से नेतृत्व का विकास किया जाए।
  • छात्र संघों के उद्देश्य सुनिश्चित किए जाए
  • छात्र संघ महाविद्यालय के शैक्षिक वातावरण को उन्नत एवं सुधारने में सक्रिय सहयोग प्रदान करें. 

 विषय सूची ... 








No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.