दैनिक जीवन में रसायन विज्ञान| Chemistry in Daily Life in Hindi
दैनिक जीवन में रसायन विज्ञान (Chemistry in Daily Life in Hindi)
दैनिक जीवन में रसायन विज्ञान (Chemistry in Daily Life in Hindi)
- जीवन के हर क्षेत्र में रसायन विज्ञान उपस्थित है। आज हमें रोजमर्रा के जीवन में अनेक चीजों की जरूरत होती है। इनमें से अधिकांश निर्मित हैं जो बाजारों में बिकती हैं। रसोईघर में प्रयुक्त होने वाली वस्तुएं, चाहे वह कोई उपकरण हो या खाद्य पदार्थ, उन पर रसायन की अमिट छाप है।
- स्टेनलेस स्टील के बर्तन हों या काँच के गिलास, सभी रसायन हैं जिनके निर्माण में रसायन विज्ञान का महत्त्वपूर्ण योगदान हैं। केक बनाना हो या पेस्ट्री, डबलरोटी बनानी हो या नानखटाई, सिरका बनाना हो या अचार, फल संरक्षित करना हो या फिर फल का रस, इन सबमें किसी न किसी रसायन की भूमिका है। चाहे हम दियासलाई इस्तेमाल करें या रासायनिक अभिक्रिया से प्रकाश की या खुशबूदार, कपड़े धोने उत्पत्ति के लिए साबुन इस्तेमाल करें या कोई अपमार्जक, सभी में रसायन ही हैं।
- महिलाओं की प्रसाधन सामग्री हो या श्रृंगार की अन्य वस्तुएँ, उनके निर्माण में रसायन विज्ञान ही अपना काम - करता है। अच्छी फसल प्राप्त करना हो, उसे कीड़े मकोड़ों से बचाना हो, हमें रसायनों की मदद लेनी होती है। चाहे वह देसी खाद के रूप में हो, या रासायनिक उर्वरक हों या कीटनाशकों का प्रयोग। आरोग्य के लिए हमें औषधियों की मदद लेनी होती है।
- रोग के निदान के लिए पैथोलाजी लैबों में जाँच में रसायन ही काम आते हैं। सुंदर तथा टिकाऊ कपड़ों के लिए हमें कृत्रिम रेशे के कपड़े नायलॉन, पॉलीस्टर, डेक्रॉन से प्राप्त होते हैं।
- फर्नीचर पर पॉलिश और वार्निश करने के लिए प्रयुक्त सामग्री में हम किसी न किसी रसायन का उपयोग करते हैं। सामान्य कैमरा हो या पोलोरायड, विभिन्न रासायनिक क्रियाओं से ही हम चित्र उतारने में सफल होते है।
- वस्तुतः रसायनों का सम्बन्ध प्रत्येक गैस, द्रव्य या ठोस पदार्थ से है। जिस वातावरण में हम रहते हैं तथा सांस लेते हैं वह विविध रसायनों ही निर्मित है। वायुमंडल में नाइट्रोजन, आक्सीजन, कार्बनडाईआक्साइड, तथा आर्गन गैसें मौजूद है। चूंकि रसायनों का क्षेत्र बहुत व्यापक है इसलिए अध्ययन की सुविधा के लिए हम इसे कई शाखाओं में विभाजित करते हैं।
रसायन विज्ञान मुख्य शाखाएँ इस प्रकार हैं-
1. अकार्बनिक रसायन (Inorganic Chemistry )
2. कार्बनिक रसायन (Organic Chemistry )
3. भौतिक रसायन (Physical Chemistry )
4 जीव रसायन (Bio Chemistry)
5. औद्योगिक रसायन ( Industrial Chemistry )
6 औषधीय रसायन (Medicinal Chemistry )
7. नाभिकीय रसायन (Nuclear Chemistry )
8. कृषि रसायन (Agricultural Chemistry )
- इन 8 शाखाओं में से तीन मूलभूत शाखाएँ हैं अकार्बनिक, कार्बनिक तथा भौतिकीय रसायन । अन्य शाखाएँ देखा जाए तो एक तरह से इन तीनों शाखाओं के विकास एवं विस्तार के फलस्वरूप बनी हैं। चाहे धातुकर्म हो, युद्ध हो, औषधि निर्माण हो, या फिर रासायनिक उद्योग-धन्धे.
रसोई के उपयोगी उपकरण- और रसायन विज्ञान
- रसायन वह विज्ञान है जिसकी मदद से हम विभिन्न पदार्थों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है--जैसे पदार्थ या रसायन किस प्रकार तैयार किए जाते हैं या कैसे उन्हें परिवर्तित किया जा सकता है। ज्यादातर रसायनशास्त्री प्रयोगशालाओं में काम करते हैं। हमारे घरों में भी एक बनी बनाई प्रयोगशाला है जहां हम रसायनशास्त्र का अध्ययन कर सकते है, वह है हमारी रसोई। हम सोचते हैं कि रसोईघर के बर्तनों और बोतलों के पदार्थों से कदाचित् रसायन विज्ञान का कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता। रसायन का सम्बन्ध इन सभी चीजों से है। कुछ घरों में स्टेनलेस स्टील, पीतल, काँसा, एल्यूमिनियम, चाँदी और तांबा, आदि के बर्तन होते हैं। ये सब धात्विक या मिश्रधात्विक पदार्थों से निर्मित हैं।
स्टेनलेस स्टील के बर्तन:
- जब लोहे में 14% नाइक्रोम (जो क्रोमियम और निकिल की मिश्र धातु है) का मिश्रण मिला देते हैं तो एक बेहद चमकदार तथा जंगरहित मजबूत मिश्र धातु बन जाती है। इसे स्टेनलेस स्टील कहा जाता है।
- इस्पात में 35 % तक कोमियम मिलाकर भी सीधे स्टेनलेस स्टील बनाया जा सकता है।
पीतल के बर्तन:
- ये तांबा और जस्ता से निर्मित मिश्र धातु से बने होते हैं। यह बहुत टिकाऊ होता है।
- इसलिए पीतल के बरतनों का गांव देहात में अभी भी काफी चलन है।
कांसे के बर्तन :
- कांसा एक कीमती मिश्रधातु है जो 88% तांबा, 10% टिन तथा 2 % जस्ते से बना होता है।
एल्यूमिनियम के बर्तन:
- अल्यूमिनियम का स्रोत होता है अल्यूमिनियम आक्साइड यानी बाक्साइट (AL2O3) कहते हैं। एल्यूमिनियम आक्सीजन को आकर्षित करती है। आक्साइड से 02 निकाल लेने के बाद ही अल्यूमिनियम प्राप्त हो सकता है। इस प्रयोजन से पिघले क्रायोलाइट में शुद्ध बाक्साइट डाला जाता है। बाक्साइट घुल जाता है और अल्यूमिनियम तथा आक्सीजन में विभाजित हो जाता है।
चाँदी के बर्तन :
- चाँदी के भी बर्तन प्रयुक्त होते हैं। चाँदी एक मुलायम धातु होती है। अत: इसमें सख्ती लाने के लिए प्रायः इसमें कुछ तांबा या निकिल मिला दिया जाता है। चाँदी की प्लेट या चम्मच प्रायः काले पड़ जाते हैं। ऐसा वायुमंडलीय आक्सीजन के अभिक्रिया करके आक्साइड बनने के कारण होता है। आजकल उच्च गुणवत्ता के प्लास्टिक भी बाजार में आए है जिनसे बनी चीजें भी रसोईघर में इस्तेमाल में आ रही हैं।
प्लास्टिक की तश्तरियाँ, प्याले आदि :
- प्लास्टिक की तश्तरियाँ, प्याले आदिसामान्यतया ये बैकेलाइट के बने होते हैं जो फिनॉल (C6H6O) और फार्मेलडिहाइड (HCHO) से बनाया जाता है।
रबड़:
- पेट्रोलियम के हाइड्रोकार्बन्स और ब्यूटाडाइन स्टाइरीन के यौगिक को अन्य रासायनिक पदार्थों के साथ मिलाने पर जो एक नया पदार्थ बनता है जो कृत्रिम रबड़ कहलाता है।
- अलग अलग रबड़ की गुणवत्ता भी भिन्न भिन्न होती है। भारी वाहनों के टायर बनाने में क्लोरोप्रीन रबड़ का प्रयोग होता है।
- वायुयानों के टायर सुचालक बहुलक (कंडक्टिंग पॉलीमर) के बने होते हैं जिससे कि लैंडिंग के समय जहाज की सतह पर मौजूद स्थैतिक आवेश टायरों के जरिए जमीन में विस्थापित हो जाएं।
आहार तथा रसोई में रसायन विज्ञान
- हमारे आहार के छह मुख्य रासायनिक घटक हैं। ये हैं; कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, लिपिड, विटामिन्स, खनिज लवण एवं जल । कार्बोहाइड्रेट्स, कार्बन, आक्सीजन और हाइड्रोजन से तरह तरह के मसाले जो स्वाद तथा जायके वाले रसायनों के भंडार हैं। बने हुए यौगिक होते हैं। चावल, आलू, चीनी, रोटी, चुकन्दर आदि कार्बोहाइड्रेट्स बहुल स्रोत हैं।
- दूसरा खाद्य समूह है प्रोटीन का। ये हमारे शरीर के अंगों, उपांगों तथा ऊतकों का निर्माण करते हैं। प्रोटीन हमें दूध, पनीर, अंडा, मांस, मछली, दालों, तथा कुछ मात्रा में गेहूँ, सेब आदि से प्राप्त होता है।
- प्रोटीन, कार्बन, हाइड्रोजन और नाइट्रोजन से बने जटिल यौगिक होते हैं। कुछ प्रोटीनों में सल्फर और फास्फोरस भी होता है।
- प्रोटीन, कोशिकाओं में एन्जाइम तथा हार्मोन्स का कार्य करते हैं। लिपिड एक बृहत घटक है जिसमें तमाम तरह की वसा भी शामिल हैं। ये हमें ऊर्जा प्रदान करते हैं। शरीर की पेशियों के निर्माण में वसा की अहम भूमिका होती है।
- मक्खन, घी, तेल, मछली और मांस, वसा के प्रमुख स्रोत हैं। शरीर वसा यानी चर्बी को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करता है। चर्बी भी शरीर के लिए आवश्यक रासायनिक पदार्थों को शरीर के विभिन्न अंशों तक ले जाती है।
- विटामिन्स, कार्बन के एमीन होते हैं जो जैविक गतिविधियों के नितांत जरूरी होते हैं। ये हमें वानस्पतिक स्रोतों से प्राप्त होते हैं।
- खनिज लवण हमें फलों तथा तरकारियों से मिलते हैं तथा जैविक प्रक्रियाओं के लिए ये बहुत जरूरी हैं। ये सोडियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम, वगैरह के लवण होते हैं।
- पानी एक अहम घटक है। हमारे शरीर का 65% जल होता है। जीवन की सभी क्रियाएं जल में ही संपादित होती है। इसीलिए कहा जाता है कि जीवन, कार्बन कुछ निश्चित यौगिकों का जलीय रसायन होता है।
हमारे घरों में तमाम रसायन प्रयोग में लाए जाते हैं जैसे -
- पेट की शिकायत में सिरका का सेवन गुणकारी माना जाता है। सिरका वास्तव में एसीटिक एसिड (CH.COOH) होता है।
- खाने का सोडा यानी सोडियम बाइकार्बोनेट (NaHCO),
- धावन सोड़ा (Na2CO),
- खाने का नमक (NaCl),
- सेंधा नमक (Kcl),
- फिटकरी (K_SO, AI SO, 24H0),
- बैटरियों में गंधक का अम्ल (H.SO.),
- बुझा चूना यानी Ca(OH)2.
- अल्कोहलिक पेयपदार्थों में इथेनॉल (CH OH), रसायनों के उदाहरण हैं।
एन्टासिड दवाइयां
- फल तथा तरकारियां, रसायनों के एसिडिटी होने पर हम जो एन्टासिड दवाइयां लेते हैं अद्भुत उदाहरण उनमें मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड यानी Mg (OH)2 होता है। यह आमाशय में मौजूद हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से अभिक्रिया करके मैग्नीशियम क्लोराइड (लवण) तथा पानी बनाता है। इस तरह पेट में अम्लता कम हो जाती है और हमें जलन तथा खट्टी डकार से राहत मिलती है।
टूथपेस्ट का मुख्य घटक
- संगमरमर तथा खड़िया मिट्टी में कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3) यौगिक मिलता है। टूथपेस्ट का मुख्य घटक एल्यूमिनियम आक्साइड (Al2O 3 ) होता है जिसे एल्युमिना के नाम से भी जानते हैं। माउथवाश में प्राय: आयोडीन के यौगिक होते हैं जो कीटाणुनाशक गुण रखते हैं।
रंग रोगन तथा वार्निश में रसायन विज्ञान
- दीवाल या लकड़ी पर लगाने से यह सूख जाता हैं क्योंकि पेंट में जो तेल मिला होता है उसका आक्सीजनीकरण हो जाता है और एक मजबूत परत बन जाती हैं। तेल में टाइटेनियम आक्साइड (TiO2) मिली होती है फलस्वरूप सतह पारदर्शक नहीं हो पाती।
- रंगीन पेंट में रंगीन रासायनिक यौगिक मिला दिए जाते हैं। मकानों में इस्तेमाल किये जाने वाले पेंट का आधार एक्रीलिक लैटेक्स होता है। यह गाढ़ा होता है इसलिए टपकता नहीं। यह टिकाऊ होता है और शीघ्र सूख जाता है। वार्निश के लिए पालीयूरीथेन का प्रयोग किया जाता है।
वर्णक तथा रंजक में रसायन विज्ञान
- वर्णक वनस्पतियों एवं प्राणियों में मौजूद होते हैं। क्लोरोफिल, ज़ैथोफिल तथा एंथोसाइनिन पादपों में पाए जाते हैं।
- हीमोग्लोबिन नामक वर्णक रुधिर में लाल रंग के लिए उत्तरदायी होता है।
- मानव त्वचा का रंग भी मैलानिन वर्णक से तय होता है। जिनमें ये वर्णक कम होते हैं वे गौरांग तथा जिनमें ज्यादा होते वे आनुपातिक रूप से गेहुंआ या श्यामवर्ण के होते हैं।
- रंजक किसी पदार्थ को स्थायी रंग प्रदान करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
- सभ्यता के उषाकाल से ही रंजक मानव के साथ जुड़े रहे हैं। आदिमानव हमारे आवास, वस्त्र, चेहरे तथा मुखोटे को रंजकों की मदद से सजाता था।
- आजकल रंजक कृत्रिम रूप से तारकोल या पेट्रोलियम से बनाये जाते हैं। कपड़े रंगने में, पुस्तक मुद्रण में, लकड़ी रंगने में, गैसोलीन को रंगीन करने में, खिलौनों को रंगीन करने में, पाउडर, क्रीम आदि प्रसाधन सामग्री में किया जाता है। कुछ रंग सफ़ेद होते हैं, उनका इस्तेमाल चीजों को अधिक चमकदार बनाने में किया जाता हैं।
काँच निर्माण में रसायन विज्ञान
काँच के गिलास, प्लेट आदि
- कांच दुनिया का पहला संश्लिष्ट थर्मोप्लास्टिक है। इसे किसी भी रूप में ढाला जा सकता है।
- रसोई में काँच के उपयोग से तो मानो उसकी शान ही बढ़ जाती है। रेत (SiO), चूने का पत्थर (CaO), सोडियम आक्साइड (Na.O) और अन्य खनिज तथा धातुओं को परस्पर पिघलाकर कांच बनाया जाता है।
- पिघले हुए काँच से गिलास, कटोरी, तश्तरियाँ आदि ढाली जाती हैं।
- कांच एक तरह का द्रव होता है जो सामान्य ताप एवं दाब पर प्रवाहित नहीं होता। यह पारदर्शी होता है जब तक कि उसमें वायु के बुलबुले या अघुलनशील सुंदरता में कांच लाजवाब अशुद्धियां न मिली हों।
- पिघले हुए काँच से रेशे तैयार तथा मोहक है। किये जाते हैं। इन रेशों से कपड़ा बुना जाता हैं। इससे खिड़कियों और दरवाजों के परदे, मेज़पोश आदि बनाये जाते हैं।
- काँच की खासियत है कि इस पर हवा, पानी या अन्य रसायनों का कोई असर नहीं होता और न ही इन पर आग का कोई असर होता है। ये सिकुड़ते नहीं और सूत की अपेक्षा इनका वजन कम होता है।
- कुछ किस्म के रेशों को पालिस्टर रेशे से रासायनिक क्रिया द्वारा मिलाया जाता है।
- काँच के रेशे से पाइप और प्लास्टिक के टब आदि बनाये जाते हैं जो बहुत मज़बूत और टिकाऊ होते हैं।
साबुन तथा अपमार्जक में रसायन विज्ञान
- साफ सफाई के लिए साबुन के इस्तेमाल का दर्ज इतिहास तकरीबन 2800 ई.पू. का है। बेबीलोन में हुई खुदाई में साबुन सदृश पदार्था पाए गए हैं।
- दूसरी सदी ई. में यूनानी चिकित्सक गालेन ने क्षारीय घोल से साबुन निर्माण का उल्लेख किया है। आज हर घर में साबुन का इस्तेमाल होता है चाहे वह शहर हो या फिर गांव देहात।
- साबुन, स्टीएरिक एसिड, पामिटिक एसिड, ओलिक एसिड साबुन, सदियों से साफ सफाई के काम तथा लिनोलेइक एसिड जैसे वसीय अम्लों के सोडियम या आ रहे हैं। पोटैशियम लवण होते हैं। साबुन निर्माण की प्रक्रिया को साबुनीकरण कहा जाता है।
- सोडियम वाले साबुन ठोस तथा कठोर होते हैं जब कि पोटैशियम वाले साबुन मृदु तथा द्रव होते है।
- साबुन का प्रयोग करने से पानी का पृष्ठ तनाव कम हो जाता है जिससे वह कपड़े के रेशों की तह में जाकर गंदगी दूर करने में कामयाब हो जाता है। लेकिन अगर पानी की प्रकृति मृदु न होकर कठोर है तो साबुन झाग नहीं दे पाता क्योंकि पानी में उपस्थित कैल्शियम तथा मैग्नीशियम रूपी अशुद्धयां साबुन से अभिक्रिया करके लवण बना लेती हैं तथा साबुन व्यर्थ जाता है।
- इस खामी से बचने के लिए अपमार्जक (डिटर्जेंट) विकसित किए गए। इन पर पानी की प्रकृति का प्रभाव नहीं पड़ता। इनमें जल- मृदुकारी (water softener), पृष्ठ सक्रियक ( surfactant), विरंजक एंजाइम (bleaching enzyme), चमक लाने वाले पदार्थ (optical brighteners ) तथा खुशबूदार पदार्थ सहित दूसरे कई अभिकर्मक मिलाए गए होते हैं।
- साबुन तथा अपमार्जकों का अपना एक पूरा का पूरा विज्ञान है तथा पूरी दुनिया में इन्हें कारगर, बेहतर तथा सुरक्षित बनाने के लिए शोध होता रहता है। आज हमारे देश में साबुन तथा अपमार्जक का कुल कारोबार हजारों करोड़ का है जिनमें देशी तथा विदेशी कंपनियां लगी हुई हैं।
स्टेशनरी की वस्तुएँ में रसायन विज्ञान
- रासायनिक प्रक्रिया द्वारा लकड़ी से कागज़ बनाया जाता है। विशेष प्रकार की लकड़ी से लुगदी यानी पल्प तैयार किया जाता है। फिर उसमें कई रसायन डाले जाते हैं। इनके प्रयोग से लुगदी से अवांछनीय पदार्थ निकल जाते हैं और शुद्ध सेलुलोज बच जाता है। इसे ब्लीचिंग पाउडर से विरंजित किया जाता है। और तत्पश्चात् इसमें चिकनी खड़िया मिट्टी या माँड़ डाला जाता है और रेशों से कागज बनाया जाता है।
- जिन पेपर्स का आप उपयोग करते हैं वे सैकड़ों लीटर पानी के साथ रासायनिक उपचारोपरान्त आप किताबें, जो हमें जीवन की राह दिखाती हैं। तक पहुंचे हैं। किसी पुस्तक या पत्रिका के छपकर पाठक के हाथों पहुंचने तक हर चरण में उसे रासायनिक प्रक्रिया से गुजरना होता है।
- कागज ही नहीं, पेंसिल, कटर, शार्पनर, इरेज़र, ह्वाइटेनर, स्याही सब रसायन हैं। पेंसिल में मौजूद ग्रेफाइट, कार्बन तत्व का अपररूप है। यह मुलायम तथा विद्युत सुचालक होता है। मुलायम होने के नाते हम इससे कागज पर लिख पाते हैं। लिखने के दौरान कागज पर घर्षण के कारण कार्बन की परत उतरती चली जाती है जिससे लिखना संभव हो पाता है।
फोटोग्राफ़ी में रसायन विज्ञान
- यह रसायन विज्ञान पर आधारित प्रक्रिया है। जब किसी वस्तु का चित्र खींचा जाता है तो वस्तु से प्रकाश कैमरे के लैंस से होता हुआ फ़ोटो फिल्म पर पड़ता है। इससे फ़िल्म पर लेपित सिल्वर के यौगिक में रासायनिक परिवर्तन हो जाता है। फलत: वस्तु का निगेटिव तैयार हो जाता है। फिर निगेटिव से पाज़िटिव चित्र सोडियम थायोसल्फेट से लेपित कागज़ पर उतारा जाता है जिसे बाद में डेवेलप कर लिया जाता है।
- आज के समय में पोलेरायड कैमरे में डेवेलपिंग और प्रिंटिंग कैमरे के अंदर ही होती है और महज कुछ सेकेंड में फोटोग्राफ तैयार हो जाता हैं। इसमें रासायनिक परिवर्तन अपेक्षा कृत अधिक जटिल होते है।
कीटाणुनाशक दवाई में रसायन विज्ञान
- डेटॉल बहुत ही प्रचलित कीटाणुनाशक है जिसका आमतौर पर घरों में प्रयोग होता है। इसे क्लोरोजाइलीनॉल या 4 क्लोरो, 3, 5 डाईमिथाइल फीनॉल कहते है। इसके अलावा फिनाइल नामक रसायन का भी बहुतायत से प्रयोग होता है।
- घाव तथा शल्यक्रिया में जीवाणुनाशक रसायनों का प्रयोग होता है। अल्कोहल ( 60-90% ) तथा बोरिक एसिड सबसे सुलभ जीवाणुरोधी हैं। चोट की मरहमपट्टी करने के पहले डाक्टर घाव को 6% हाइड्रोजन परॉक्साइड (H2O2) के घोल से साफ करते हैं।
- आयोडीन के टिंक्चर में भी जीवाणुनाशक तथा सूक्ष्मजीवरोधी गुण होते हैं इसलिए ड्रेसिंग में आजकल इनका प्रयोग होता है। फीनाल जिसे कारबोलिक अम्ल भी कहते हैं, एक उत्तम जीवाणुनाशक रसायन है। जिसका प्रयोग शल्यक्रिया के पहले हाथों को साफ करने के किए घरेलू कीटाणुनाशक प्राय: सर्जन करते हैं।
- माउथवाश बनाने तथा दंतशल्यक्रिया में भी फीनाल का प्रयोग होता है।
- कैल्शियम हाइपोक्लोराइट, Ca(OCI )2 जिसे हमे आम तौर पर ब्लीचिंग पाउडर कहते हैं, का इस्तेमाल जल स्रोतों की सफाई, नालियों, परनालों वगैरह को साफ करने के लिए करते हैं। इससे तमाम जीवाणु, कीटाणु तथा मच्छर आदि पनपने नहीं पाते तथा संक्रामक बीमारियों की रोकथाम में मदद मिलती है।
सौंदर्य प्रसाधन में रसायन विज्ञान
- सौन्दर्य प्रसाधन में रसायनों का अद्भुत संगम है। ये प्राय: सभी घरों में इस्तेमाल किए जाते हैं। कुछ खास का जिक्र यहां किया जा रहा है।
- क्रीम या कोल्ड क्रीम जैतून या कोई खनिज तेल, मोम, पानी और बोरेक्स के मिश्रण से चेहरे के लिए क्रीम बनती है जिसमें कोई सुगन्ध, इत्र आदि डाल दिया जाता है।
- पुष्पों की सुगन्ध लाने के लिए अल्कोहल, एल्डिहाइड, कीटोन, फिनाल इस्तेमाल किया जाता है।
पाउडर :
- इसमें खड़िया, टैलकम, जिंक आक्साइड, चिकनी मिट्टी का चूर्ण, माँड़ (स्टार्च), रगेन का पदार्थ, सुगन्ध आदि होते है। लिपिस्टिक: अधिकतर यह किसी मोम से बनाई जाती है जिसमें तारकोल से निर्मित रंग सामग्री पड़ी होती है। मिश्रण में चिकनाई लाने के लिए कोई तेल मिला दिया जाता है।
नेलपॉलिश :
- यह जल्द सुखने वाला एक प्रकार का रोगन होता है जिसमें रंग लाने के लिए टाइटैनियम आक्साइड (TiO2 ) मिला दिया जाता है।
हमारे दैनिक जीवन के हर क्षेत्र में
रसायनों की बहुत बड़ी तथा व्यापक भूमिका है तथा आने वाले दिनों में यह भूमिका बढ़ती
ही जाने वाली है।
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