समाचारों का संकलन करने या उन्हें लिखने का उद्देश्य तभी पूरा होता है, जब वे पाठकों, दर्शकों या श्रोताओं तक सम्प्रेषित हों। इसके लिए समाचार पत्र तो प्रमुख माध्यम हैं ही, न्यूज मैगजीन समाचार पत्रिका भी उतना ही बड़ा माध्यम हैं। कह सकते हैं, न्यूज मैगजीन अन्य पत्रिकाओं की तरह साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक आदि रूप में प्रकाशित होती है और उसमें समाचारों का नियमित कालक्रमानुसार विवरण, उनकी पृष्ठभूमि आदि प्रधानतः प्रकाशित होते हैं। दैनिक समाचारपत्रों से न्यूज मैगजीन इस रूप में भिन्न होती हैं, कि दैनिक समाचारपत्र मुश्किल से चौबीस घण्टों की खबर दे पाते हैं, और समाचारपत्रिकाएँ समाचारों की श्रृंखलाओं को एक दूसरे से जोड़ते हुए विभिन्न दृष्टिकोणों से समाचारों का विश्लेषण, दैनिक समाचारों का तिथिक्रम से विवरणादि प्रस्तुत करती हैं। इस तरह पाठक को एक स्थान पर राजनीतिक, संसदीय, सार्वजनिक, शैक्षणिक समाचार मिल जाते हैं।
1 इलेक्ट्रानिक माध्यम
समाचार पत्र-पत्रिकाएँ समाचारों के सम्प्रेषण के मुद्रित माध्यम हैं तो रेडियो, टेलीविजन, इन्टरनेट आदि इलेक्ट्रानिक माध्यम । सिद्धान्ततः इन सभी संसाधनों में समाचार संकलन का काम करीब-करीब समान है, भेद है कार्यप्रणाली और प्रक्रिया का । रेडियो प्रसारण सुनने और टीवी तथा इन्टरनेट (उपग्रह प्रणाली विशेषतः) सुनने और देखने का विषय है।
समाचार पत्र का एक संस्करण सामान्यतः चौबीस घण्टे में एक बार निकलता है, रेडियो, टीवी आदि में लगभग प्रति मिनट समाचार विवरण प्रसारण की व्यवस्था है। रेडियो समाचारवाचन में उच्चारण को बहुत महत्व दिया जाता है, समाचारपत्रों में लिखित शब्दों को । समाचार पत्र में अगर उपलब्ध स्थान का महत्व है तो रेडियो में उपलब्ध समय का। अनेक शोधों से यह निष्कर्ष निकले हैं कि रेडियो में प्रसारित 10 मिनट के बुलेटिन में अधिक से अधिक 11 समाचार ही श्रोताओं के ध्यान को केन्द्रित रख सकते हैं। दूरदर्शन समाचारों में समाचार सुनने साथ-साथ समाचार वाचक को देखा भी जा सकता है।
चित्रात्मकता या दृश्यात्मकता दूरदर्शन समाचारों का प्राण है। शब्दों की अपेक्षा चित्रों, दृश्यों को वहाँ अधिक महत्व दिया जाता है, यानी समाचार प्रस्तुतीकरण वहाँ एक कला है। उपग्रह प्रणाली से समाचार जगत में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। इसके सहारे एक स्थान में आधी रात को तैयार समाचारपत्र हजारों मील दूर स्थान में उसी समय प्रकाशित हो जाता है, अज्ञात स्थानों की भी जानकारी उपग्रह द्वारा मिल जाती है। फोटो ट्रांसमीटर द्वारा एक देश की गतिविधियाँ दूसरे देश में तुरन्त प्रकाशित हो जाती हैं।
2 रेडियो के लिए समाचार लेखन
रेडियो अपनी प्रकृति में मुद्रण और दृश्य-श्रव्य माध्यमों से भिन्न है अतः उसके लिए ऐसी भाषा का प्रयोग आवश्यक होता है, जो श्रोताओं के मन में समाचार, संवाद या वार्ता सुनने के साथ साथ बिम्ब भी निर्मित करती चले। आपको यहाँ यह जानना चाहिए कि रेडियो की शब्दावली तीन प्रकार की सामग्री से निर्मित होती है वाक् »speech/½ संगीत सहित ध्वनि प्रभाव sound effect including music/½ और मौन »silence/½2)। मुद्रित वाक्य दुबारा-तिबारा पढ़कर समझे जा सकते हैं पर रेडियो के श्रोता को यह सुविधा नहीं होती अतः रेडियो की भाषा स्पष्ट, सरल और सहज होनी चाहिए। वक्ता के उच्चारण स्वर और ताल की विविधता के द्वारा रेडियो की भाषा अपना प्रभाव जनमन पर छोडती है। ध्वनि बिम्ब निर्मित करने में सहायक होती है और मौन शब्दों के प्रभाव को बढ़ाने में सहायक होता है।
इस दृष्टि से रेडियो लेखन के लिए इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
सामान्यतः साधारण बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए।
वाक्य बहुत लम्बे या मिश्रित नहीं होने चाहिए।
विषयानुरूप भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए।
समय सीमा का ध्यान रखना रेडियो लेखन के लिए अत्यावश्यक है। समाचार, वार्ता, नाटक या किसी भी विषय के लिए निर्धारित समय सीमा में ही अपने लेखन को समेटना चाहिए।
3 दूरदर्शन के लिए समाचार लेखन
रेडियो की ही तरह दूरदर्शन के लिए भी लेखन एक कला है। क्योंकि दूरदर्शन के लिए लिखते समय लेखक को प्रत्येक क्षण दृश्य और बिम्बों का ध्यान रखना होता है और साथ ही निर्माता, निर्देशक, कलाकार आदि दूरदर्शन की पूरी टीम का भी ध्यान रखना होता है अतः टीवी लेखक को बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। रेडियो की तरह वाणी, ध्वनि और मौन का प्रयोग टीवी में भी होता है लेकिन इससे अधिक वहाँ दृश्यबन्ध का ध्यान रखना पहली जरूरत है।
दूरदर्शन के लिए समाचार संयोजन, सृजन और सम्पादन के लिए भाषा का ज्ञान समाचार वाचक का उच्चारण, वाचक की भाषा में प्रवाह, सहजता और सरलता होनी चाहिए।संक्षिप्तता, स्पष्टता, चित्रात्मकता और तारतम्यता दूरदर्शन समाचारलेखन की विशेषताएँ हैं। इस तरह दूरदर्शन के लेखक में एक ओर पूरी टीवी टीम की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर लेखन करना चाहिए और दूसरी ओर अपने दर्शकों की रुचि और आवश्यकता का भी ध्यान रखना चाहिए। सहज, प्रवाहयुक्त रोचक, तारतम्यता से सम्पन्न, चित्रात्मक भाषा का प्रयोग करते हुए उसे टीवी के लिए लेखन करना चाहिए।
Post a Comment