पर्यावरण अध्ययन का महत्व एवं जन-जागृति | Environment Importance and awareness

 पर्यावरण अध्ययन का महत्व एवं जन-जागृति

 

पर्यावरण अध्ययन का महत्व एवं जन-जागृति | Environment Importance and awareness

 पर्यावरण अध्ययन का महत्व एवं जन-जागृति

  • पृथ्वी पर सभी जीव-जंतु और मानव अपने जीवन और विकास की अनुकूल परिस्थितियों के लिए पर्यावरण पर आश्रित है। पर्यावरण के अभाव में जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। प्राचीन काल से ही जीव-जंतुओं और पर्यावरण का सम्बन्ध रहा है। जीव-जंतुओं ने पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने में योगदान दिया है। लेकिन मानव ने अपने बौद्धिक ज्ञान से पर्यावरण का अत्यधिक दोहन किया है। भौतिकवादी और तीव्र विकास की आकांक्षा ने मानव को पर्यावरण में हास के लिए जिम्मेदार बना दिया है। जैसे-जैसे मानव प्रगति और विकास करता गया वैसे-वैसे पर्यावरण की गुणवत्ता में कमी आती गई और पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन उत्पन्न होता गया। जैव-विविधता संकटग्रस्त हो गई। मानव सभ्यता के लिए स्वच्छ जलस्वच्छ वायु और स्वच्छ वातावरण का अभाव हो गया।

 

भारत में पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रयास

 

  • भारत और विश्व स्तर पर पर्यावरण संरक्षण व पुनर्निर्माण के लिए सर्वप्रथम स्वीडन की राजधानी स्टाकहोम में 1972 में पर्यावरण सम्मेलनजून 1992 में विश्व शिखर सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जैनिरो में हुआ। इस सम्मेलन में सन् 2001 तक विश्व को पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त करने हेतु महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए गए। 


  • पर्यावरण की दिशा में भारतीय संसद ने सन् 1976 में 42वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित कर अनुच्छेद 48 (क) जोड़ा। उसमें एक अनुच्छेद 51 (क) जोड़ा गयाजिसके अनुसार प्रत्येक भारतीय का यह कर्तव्य है कि वह जंगलोंझीलोंनदियों तथा वन्य जीवों की सुरक्षा में अभिवृद्धि करने का प्रयास करें। पर्यावरण संरक्षण हेतु इन संवैधानिक आधारों पर संसद द्वारा विभिन्न कानूनों व नीतियों का निर्माण किया गया है।

 

1. राष्ट्रीय वन नीति, 1952 

2. जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 

3. वायु प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 

4. अधिनियम 1980 

5. पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 

6. संशोधित वन नीति, 1988 

7. प्रदूषण निवारण नीति, 1988 

8. सार्वजनकि दायित्व बीमा अधिनियम, 1991 

9. प्रदूषण निवारण नीति, 1992 

10. राष्ट्रीय पर्यावरण अभिकरण अधिनियम, 1995 

11. राष्ट्रीय पर्यावरण सुनवाई अधिकार अधिनियम, 1997 

12. जल नीति, 2000 


  • पर्यावरण के क्षेत्र में न्यायपालिका की सक्रियता अनुच्छेद 32 व अनुच्छेद 226 के अधीन अधिकारिता के तहत परिलक्षित होती है। न्यायपालिका ने पर्यावरण को मूल अधिकार मानते हुए अनुच्छेद 19 स्वतंत्रता का अधिकार और अनुच्छेद 21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार को विस्तार देकर इसमें स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार को सम्मिलित किया गया है।

 

पर्यावरण हेतु  जन जागरूकता की आवश्यकता

 

  • जन-जागृति से तात्पर्य जनता में पर्यावरण के प्रति सजगता उत्पन्न करने से है। पर्यावरण संरक्षण हेतु सरकारी प्रयासों की सफलता तब तक संदिग्ध बनी रहेगी जब तक कि सरकार द्वारा कार्यक्रमों और योजनाओं के प्रति जनता में जन-जागृति उत्पन्न न हो और जनता इसमें सहभागी न हो। पर्यावरण संरक्षण के प्रति जन-जागृति उत्पन्न करने हेतु व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए और अधिकारिक जनसहयोग प्राप्त करने का प्रयास होना चाहिए।

 

1. पर्यावरण के प्रति जागरूकता प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर उपयोग के प्रति हमारे इरादे को दर्शाता है। संसाधनों के दुरूपयोग के कारण कई पर्यावरणीय समस्याओं का जन्म जैसे प्रदूषणभूमण्डलीय तापीकरण व नाभिकीय आपदाओं का जन्म हुआ है।

 

2. पारिस्थितिकी केन्द्रित परिक्षेत्र को अपनाने से ही कुछ सहायता मिल सकती है। हमारी गतिविधियाँ इस तरह से समर्पित हों जिससे पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव हो । व्यक्ति विशेष में इस तरह की जागरूकता पैदा करने से ही हम एक बेहतर ग्रह में रह सकेंगे।

 

3. पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं के सफलतापूर्वक समाधान के लिए पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करना एक अति महत्वपूर्ण कार्य है। यह पर्यावरण शिक्षा से सम्बन्धित है। पर्यावरण शिक्षा का प्रावधान जहाँ एक तरफ व्यक्ति विशेष में इसके प्रति रूचि पैदा करना हैवहीं दूसरी तरफपर्यावरण के प्रति अधिक जागरूकता पर्यावरण शिक्षा के महत्व को एक नया आयाम देती है।

 

4. जनमानस में पर्यावरण जागरूकता पैदा करने के लिऐ जनसंचार तथा कई अन्य विधाओं का उपयोग किया जा सकता है।

 

5. बढ़ती आबादीशहरीकरण तथा गरीबी ने प्राकृतिक संसाधनों पर गहरा दबाव बनाया जिससे पर्यावरण को काफी क्षति पहुँची। पर्यावरण के इस हरण को बचाने के लिए सरकार तथा विभिन्न संघठनों द्वारा अनेकों अभियान व कार्यक्रम चलाये हैं। केवल कानून बना देने से पर्यावरण की रक्षा नहीं हो सकती। जनता का जन आन्दोलन पर्यावरण संरक्षण के लिए अति महत्वपूर्ण है। पर्यावरण शिक्षा सीखने की वह विधि है जिसमें जनमानस को पूर्ण ज्ञान के साथ जागरूकता भी सिखायी जाती है।

 

  • मौसम में बदलावजैव विविधता की क्षतिमछली पालन में कमीओजोन परत का ह्रासलुप्तप्राय प्राणियों का अवैध व्यापारठौर-ठिकानों की तबाहीभूमि की उर्वता में गिरावटभूमिगत जल में गिरावटविदेशी प्रजातियों का पौधारोपणपर्यावरण प्रदूषणठोस अपशिष्ट का निस्तारण चक्रवात तथा मल का निस्तारण परिस्थिति को गंभीर क्षति पहुँचा रहा है।

 

  • पर्यावरण संरक्षण का क्षेत्र वर्तमान में मात्र सरकारी प्रयासों तक ही सीमित न होकर गैर-सरकारी संगठनों और सामुदायिक संगठनों का विषय बन गया है। इन संगठनों ने जनता में स्वावलम्बन की भावना उत्पन्न करने के साथ ही पर्यावरण प्रदूषण की जानकारी देने और उनके संरक्षण हेतु आगे आने के लिए प्रेरणा भी दी है। स्वैच्छिक संगठनों ने सरकार और विदेशी ऐजेंसियों द्वारा विकास के नाम पर पर्यावरण विनाश के क्षेत्र में किए गए औद्योगिक और गैर-औद्योगिक कार्यों का संगठित होकर विरोध किया है। ऐसे बहुत से काम जो सरकार नहीं कर पर रही हैवह काम स्वयंसेवी संगठन कर रहे हैं। वे लोगों को समझा रहे हैं कि पर्यावरण कैसे बिगड़ता हैउसे कौन बिगाड़ रहा हैऔर उसे बचाने के लिए क्या-क्या किया जाना चाहिएकेरल साहित्य परिषद् ने इस क्षेत्र में केरल में बहुत ने काम किया है। इस संस्था की राज्य भर में 250 इकाईयाँ हैं और कुल 4,000 से अधिक सदस्य नुक्कड़ नाटकलेखोंवार्ताओंगांव की बैठकोंसंगीत व नृत्यों तथा आंदोलनों द्वारा पर्यावरण के संदेश को घर-घर पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।

 

अनुभवी लोगों का यह मानना है कि लोग पर्यावरण के प्रति जितने अधिक जागरूक होंगेसरकार (केंद्र एवं राज्य दोनों ही) उसी अनुपात में पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होगी। अतः लोगों की जागरूकता ही देश के पर्यावरण को बचा सकती है। स्वयंसेवी संस्थाऐं सरकार के साथ हाथ से हाथ मिलाकर इस महत्वपूर्ण कार्य को कर सकती हैइसमें कोई संदेह नहीं है राज्य सरकारों ने इस ओर ध्यान दिया है तथा वित्तीय सहायता तथा स्वयंसेवी संगठनों के तकनीकी ज्ञान एवं मानव संसाधनों से राज्य स्तर पर प्रत्येक जिले में पारिस्थितिक विकास शिविरों का आयोजन हुआ है। इन शिविरों का प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थीग्रामीण एवं आदिवासी युवकों में पर्यावरण के प्रति चेतना जगाना तथा उन्हें वास्तविक पर्यावरण विकास कार्यों में शामिल करना है।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.