हॉर्मोन और अंतस्रावी ग्रंथियाँ | हार्मोन और ग्रंथियां | Harmone and Glands in Hindi
हॉर्मोन और अंतस्रावी ग्रंथियाँ , हार्मोन और ग्रंथियां, Harmone and Glands in Hindi
हॉर्मोन और अंतस्रावी ग्रंथियाँ
- हार्मोनों का स्राव शरीर में स्थित विशिष्ट कोशिकाओं अथवा ग्रंथियों द्वारा होता है उन्हें अंतस्रावी ग्रंथियाँ कहा जाता है। हार्मोन और उन्हें रुधिर द्वारा उनके लक्ष्य स्थलों तक पहुँचाया जाता है। उनका प्रभाव केवल एक या अधिक भागों में होता है।
- अधिकांश हॉर्मोनों का स्राव विशिष्ट ग्रंथियों द्वारा होता है। जिन्हें अंत: स्रावी ग्रंथियाँ (Endocrine glands ग्रीक endo (endon = within भीतर अंदर + crime (Krinein = seperate, अलगण स्रवण) कहते हैं, जिसका अर्थ होता है 'आंतरिक रूप में स्रवण'। इन्हें वाहिकाहीन ग्रंथियाँ भी कहते हैं क्योंकि इनके स्राव सीधे ही रुधिर में छोड़ दिए जाते हैं और उनका परिवहन नालिकाओं द्वारा नहीं होता। कुछेक हॉर्मोन अन्य ग्रंथियों अथवा शरीर के अन्य भागों द्वारा उत्पन्न होते हैं, उदाहरण के लिए आमाशय और ग्रहणी ।
1 हॉर्मोनों की प्रकृति और प्रकार्य
- हॉर्मोनों को उनके स्रोत भागों से सीधे ही रुधिर में छोड़ दिया जाता है।
- रुधिर इन हॉर्मोनों को उन लक्ष्य अंगों तक पहुँचा देता है जो उनके प्रति अनुक्रिया करते हैं।
- हॉर्मोन शरीर क्रियात्मक प्रक्रियाओं का नियमन करते हैं।
- ये बहुत कम मात्रा में उत्पन्न होते हैं और जीव वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत सक्रिय होते हैं। उदाहरण के लिए, ऐड्रीनलिन 3000 लाख भागों में 1 की सांद्रता पर वह सक्रिय बना रहता है।
- हॉर्मोनों की अधिकता और कमी, दोनों ही से गंभीर विकार उत्पन्न हो सकते हैं।
- रासायनिक दृष्टि से, हॉर्मोन जल में घुलनशील प्रोटीनें (पेप्टाइड) ग्लाइको प्रोटीनें और ऐमीन हो सकते हैं, अथवा लिपिड में घुलनशील स्टीरॉयड हो सकते हैं।
- हॉर्मोनों की अतिरिक्त मात्रा शरीर में संचित नहीं रहती और उत्सर्जित कर दी जाती है।
2 हॉर्मोन स्रावणकर्ता- अंतःस्रावी ग्रंथियाँ
मानवों के एक दर्जन से भी अधिक ऊतक एवं अंग हैं जो हॉर्मोन उत्पन्न करते हैं। इनमें से अधिकांश को चित्र में दिखाया गया है। इनको दो श्रेणियों बाँटा गया है-
(क) सिर्फ (मात्र) अंत: स्त्रावी :
- पीयूष, अवटु (थायरॉयड), परावटु (पैराथायरॉयड), थायमस और अधिवृक्क (ऐड्रीनल) ।
(ख) अंशत: अंतः स्त्रावी
- अग्न्याशय, जठर और ग्रहणी, उपकला (एपिथीलियम), जनद (गोनड) (पुरुषों में वृषण और स्त्रियों में अंडाशय) और स्त्रियों में अपरा (पलैसेंटी) ।
1. पीयूष एक मास्टर
ग्रंथि (Pituitary gland)
- पीयूष ग्रंथि जिसे पीयूषिका (हाइपोफिसिस) भी कहते हैं एक छोटे-से बर्हिवेशन (लगभग मटर के दाने के बराबर) होता है जो मध्य मस्तिष्क के आधार पर से लटका हुआ होता है।
- यह पीयूष वृंत के जरिए मस्तिष्क के अधश्चेतक (अध: + चेतक) (हाइपोथैलैमस) से जुड़ा हुआ होता है। हाइपोथैलैमस, हालांकि मस्तिष्क का ही एक भाग होता है, कुछ अन्य हॉर्मोनों का भी स्राव करता है।
पीयूष ग्रंथि अन्य अधिकतर अंतःस्रावी ग्रंथियों का नियंत्रण करती है। इसमें दो स्पष्ट भाग होते हैं: अग्र पीयूष और पश्च पीयूष इन दोनों भागों से उत्पन्न होने वाले विभिन्न हार्मोनों और उनकी क्रियाएँ इस प्रकार हैं।
पीयूष ग्रंथि के हॉर्मोन और उनकी क्रिया; इन हॉर्मोनों के अतिस्रवण और अल्पस्रवण से होने वाली अपसामान्यताएँ-
पीयूष की अग्र पालि से निकलने वाले हार्मोन
- वृद्धि-हॉमोन (GH), जिसे सोमैटोट्रॉफिक हार्मोन (STH) भी कहते हैं।
- ट्रॉफिक हॉर्मोन (जो अन्य अंतःस्रावी ग्रंथियों को उद्दीपित करते हैं)
- जनदप्रभावी (गोनेडोट्रॉफिक) हॉर्मोन
कार्य
- संपूर्ण शरीर की विशेष रूप से कंकाल की वृद्धि को बढ़ावा देता है। बचपन में इसके कम मात्रा में स्रवण से बच्चा बौना (dwarfism बौनापन, वामनता) रह सकता है;
- इसके अधिक मात्रा में स्रवण में वयस्क में भीमकायताए अतिकायता (acromegaly) उत्पन्न कर सकता है।
1. थायरॉयड उद्दीपक हॉर्मोन (TSH) जो थायरॉयड ग्रंथि को उद्दीपित करता है।
2. ऐड्रीनोकॉट्रिकोट्रॉफिक हॉर्मोन (ACTH) जो अधिवृक्क (ऐड्रीनल) वल्कुट को उद्दीपित करता है।
3. पुटक (फॉलिकिल) उद्दीपक हॉर्मोन (FSH) जो स्त्रियों में अंड-निर्माण और पुरुषों में शुक्राणु निर्माण का उद्दीपन करता है।
4. पीतपिंडीकर (ल्यूटिनकारी) हॉमॉन (LH) जो अंडोत्सर्ग को और कॉर्पस ल्युटियम के निर्माण को उद्दीपित करता है और यह हॉर्मोन मादा हार्मोन प्रोजेस्टेरॉन उत्पन्न करता है; LH वृषण को उद्दीपित करता है जो नर हार्मोन टेस्टेरॉन उत्पन्न करता है।
5. प्रोलैक्टिन
हॉर्मोन दुग्ध उत्पादन को उद्दीपित करता है।
पीयूष की पश्चपालि के हार्मोन
- ऐंटीडायूरेटिक हॉर्मोन (ADH) अथवा वेसोप्रेसिन
- ऑक्सीटोसिन
कार्य
- वृक्क की नलिकाओं द्वारा पानी के अवशोषण को बढ़ा देता है (परासरण (नियमन)। इस हॉर्मोन की कमी के कारण उदकमेह (उदक = पानी+मेह = मूत्र) (डायबिटीज इनसिपीडिस) नामक रोग हो सकता है।
- बच्चे के जन्म के समय गर्भाशय के संकुचनों का उद्दीपन करता है।
थायरॉयड (Thyroid) और हार्मोन
थायरॉयड द्विपालिक (दो पालिन्युक्त) संरचना है जो गर्दन के
सामने वाले क्षेत्र में स्थित होती है । इसमें दो हॉर्मोनों का स्राव होता है
थायरॉक्सिन और कैल्सिटोनिन ।
थायरॉक्सिन (Thyroxine)
- आधारी उपापचय अर्थात् कोशिकीय ऑक्सीजनन का नियमन करता है जिसके कारण ऊष्मा उत्पन्न होती हैं। यह वृद्धि और परिवर्धन, अस्थियों के अस्थीभवन, शरीर के तापक्रम, मानसिक विकास आदि का नियंत्रण करता है।
थायरॉक्सिन के अल्प स्रवण (हाइपोथायरॉयडिज्म) से तीन विकार उत्पन्न हो जाते हैं-
- सरल गलगंड-थायरॉयड का विवर्धन जो गर्दन में एक सूजन के रूप में दिखाई देता है। यह विकार भोजन में आयोडीन की कमी के कारण उत्पन्न होता है, क्योंकि थॉयरॉयड के हॉर्मोनों के उत्पादन के लिए आयोडीन की आवश्यकता होती है।
- अवटुवामनता (cretinism = क्रेटीनता) शरीर की वृद्धि बहुत कम (वामनता) और मंद बुद्धि (मानसिक मंदता ) ।
- मिक्सीडेमा (Myxoedema) चेहरे और हाथों पर सूजन आ जाना। ऐसा व्यक्ति सामान्य रूप से आलसी हो जाता है।
थायरॉक्सिन का अतिस्रवण (हाइपरथॉयरॉयडिज्म)
- थायरॉक्सिन का अतिस्रवण (हाइपरथॉयरॉयडिज्म) के कारण एक्सोफ्थैल्मिक (बाहर की तरफ निकले हुए नेत्र) गलगंड हो जाता है। इस विकार के कारण उपापचयी दर बढ़ जाती है। हृदय - स्पंद तीव्र हो जाता है, दम फूलने लगता है, साँस हल्की पड़ जाती है, आँखें बाहर की तरफ निकल आती है और गर्दन में गलगंड बन जाता है।
कैल्सिटोनिन हार्मोन :
- यह रुधिर के कैल्सियम और फॉस्फेट के स्तरों का नियमन करता है। यदि रुधिर में कैल्शियम का स्तर अधिक है तो अधिक मात्रा में कैल्सिटोनिन का स्राव किया जाता है और तब कैल्शियम रुधिर में से निकलकर अस्थियों में चला जाता है और उन्हें अपेक्षाकृत कठोर बना देता है। रुधिर में विपरीत दशा में अर्थात् कैल्शियम स्तर के निम्न होने पर अस्थियाँ मुलायम पड़ जाती हैं।
3. परावटु
(पैराथॉयरॉयड) (Parathyroid)
- ये दो जोड़ी छोटी-छोटी ग्रंथियाँ होती हैं जो थॉयरॉयड ग्रंथि में पूर्णतः अथवा अंशत: अंत: स्थापित होती हैं। इनका हॉर्मोन यानि पैराथोर्मोन अस्थियों में से कैल्शियम के मोचन को उद्दीपित करके रुधिर में कैल्शियम के स्तर को बढ़ा देता है।
4. थाइमस (Thymus )
- यह ग्रंथि गर्दन के आधार पर स्थित होती है। यह कुछ हॉर्मोनों को उत्पन्न करती है जो T- लसीकाणुओं के परिपक्वन से संबंधित होते हैं। यौवना रंभ के बाद यह अपुष्टि (एंट्राफी) यानी शोष होने लगता है।
5. अधिवृक्क
(ऐड्रीनल) ग्रंथियाँ (Adrenal
glands)
ऐड्रीनल एक जोड़ी ग्रंथियाँ होती हैं जो प्रत्येक वृक्क के
ऊपर टोपियों के रूप में स्थित होती हैं। प्रत्येक ऐड्रीनल ग्रंथि दो भागों से बनी
होती है : एक केन्द्रीय मध्यांश भाग और दूसरा परिधीय वल्कुट भाग।
ऐड्रीनल मध्यांश ऐड्रीनेलिन उत्पन्न करता है जो :
- हृदय-स्पंद को बढ़ा देता है जिसके साथ ही साथ रुधिरदाब में बढ़ जाती है।
- पेशियों के रुधिर-संभरण को तो बढ़ा देता है, जबकि अंतरांगों के रुधिर-संभरण को कम कर देता है।
- यकृत से अधिक शर्करा का निर्मुक्त करके रुधिर में पहुँचा देता है।
ऐड्रीनेल वल्कुट द्वारा स्रावित हॉर्मोन दो श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं : ग्लूकोकोर्टिकॉयड और मिनेरलोकॉर्टिकॉयड।
(क) ग्लूकोकॉर्टिकॉयड, उदाहरण के लिए कोर्टिसोन
- तनाव की स्थिति में यह हॉर्मोन ऐमीनो अम्लों के डिऐमीनन (विऐमीनीकरण) के साथ-साथ यकृत की क्रिया के जरिए रुधिर में ग्लूकोज के स्तर को बढ़ा देता है। भुखमरी और लंबी अवधि तक चले उपवास के दौरान आवश्यक ग्लूकोस अंशत: इसी हॉर्मोन द्वारा उपलब्ध होता है।
- अत्यधिक गर्मी या सर्दी में, जलने पर, या संक्रमण होने पर तनाव की परिस्थितियों में यह हॉर्मोन शरीर को अनुकूलित बनाता है।
कुछेक वल्कुटी हॉर्मोन सेक्स हॉर्मोनों की भांति कार्य करते हैं :-
- अल्पवयस्क बच्चे में ऐड्रीनल-वल्कुट की अतिवृद्धि के कारण कालपूर्व लैंगिक परिपक्वता आ जाती है।
- वयस्थ (परिपक्व ) (जवान) स्त्रियों में अधिवृक्क (ऐड्रीनल) वल्कुट की अतिवृद्धि के कारण नर लक्षण विकसित हो जाते हैं जैसे कि दाढ़ी आ जाना और भारी आवाज।
- वयस्कों (परिपक्व पुरुषों) में ऐड्रीनल वल्कुट भी अतिवृद्धि के कारण कुछेक मादा - लक्षण विकसित हो जाते हैं, जैसे- स्तनों का बढ़ जाना।
(ख) मिनेरलोकॉर्टिकॉयड उदाहरण के लिए ऐल्डोस्टेरॉन :
- इस हॉर्मोन का संबंध शरीर में जल को बनाए रखने से है। यह हार्मोन वृक्कों में सोडियम और क्लोराइड आयनों के पुनः अवशोषण का बढ़ा देता है। रुधिर आयतन और रूधिर दाब बढ़ाने में ऐल्डोस्टोरॉन की भूमिका होती है ।
6. अग्न्याशय ( Pancreas) और इससे निकलने वाले हार्मोन्स
- अग्न्याशय अंत: स्रावी ग्रंथि के साथ-ही-साथ बहिःस्रावी ग्रंथि भी हैं। इसमें कोशिकाओं के विशिष्ट समूह होते हैं जिन्हें लैंगरहेन्स के द्वीप कहते हैं, जिसमें तीन प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं–ऐल्फा कोशिकाएँ (a-cells) जो ग्लूकैगॉन उत्पन्न करती हैं, बीटा कोशिकाएँ (B-cells) जो इंसुलिन उत्पन्न करती हैं और गामा कोशिकाएँ (y-cells) जो सोमैटोस्टेटिन उत्पन्न करती हैं।
(i) ग्लूकैगॉन
- यह यकृत में ग्लाइकोजन के ग्लूकोस में विघटन को उद्दीपित करता है जिससे रुधिर में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है।
(ii) इन्सुलिन :
यह दो प्रमुख कार्य करता है :-
- यह शरीर की कोशिकाओं द्वारा ग्लूकोस के उपयोग को बढ़ावा देता है।
- यह रुधिर में अतिरिक्त ग्लूकोज को यकृत के भीतर ग्लाइकोजन के रूप में निक्षेपण को उद्दीपित करता है।
ग्लूकैगॉन और इन्सुलिन का प्रकार्य एक दूसरे के
विपरीत होते हैं।
- इन्सुलिन के स्रावित न होने पर अथवा अल्प मात्रा में स्रावित होने पर डायबीटीज मेलिटस (मधुमेह) नामक रोग हो जाता है (अतिग्लूकोसरक्तता - hyperglycemia, जिसका अर्थ है रुधिर में सामान्य से अधिक शर्करा का होना )
डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति :
- रुधिर में ग्लूकोस सामान्य मात्रा से अधिक होती है।
- अधिक मात्रा में शर्करा युक्त मूत्र त्यागता है।
- अधिक मूत्र त्यागने के साथ-साथ अधिक मात्रा में जल के बाहर निकल जाने से उसे ज्यादा प्यास लगती है
- वजन कम हो जाता है और वह कमजोर हो जाता हैं कुछ मामलों में वह अंधा भी हो सकता है।
- इंसुलिन के अतिस्रवण के कारण अल्पग्लूकोसरक्तता- hypoglycemia अथवा रुधिर में शर्करा की कमी हो जाती हैं यदि रुधिर में शर्करा का स्तर बहुत कम हो जाता है तो व्यक्ति बेहोशी की अवस्था में भी आ सकता है।
(iii) सोमैटोस्टेटिन को वृद्धि हॉर्मोन
- सोमैटोस्टेटिन को वृद्धि हॉर्मोन संदमक हॉर्मोन (GHIH Growth Hormone Inhibiting Hormone) भी कहते हैं क्योंकि इससे इसुलिन और ग्लूकैगॉन के स्रवण का भी संदमन हो जाता है।
7. जनद (गोनड- Gonad) (जनन ग्रंथियाँ: वृषण और अंडाशय)
- वृषणों (Testes) जो पुरुषों में पाये जाते हैं, में दो प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं : शुक्राणु उत्पन्न करने वाली जनन-कोशिकाएँ और हॉर्मोन उत्पन्न करने वाली अंतराली (interstitial) कोशिकाएँ।
- अंतराली कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न हॉर्मोनों को पुंजन (ऐंड्रोजन) कहते हैं और इनमें से सबसे सामान्य हॉर्मोन है टेस्टोस्टेरॉन का स्राव यौवनारंभ के समय होता है और तब वह नर लक्षणों के विकास को उद्दीपित करता है। इस दौरान शरीर में दो परिवर्तन आते हैं एक तो चेहरे पर बाल आना और दूसरा आवाज का फट जाना व भारी होना।
अंडाशय (Ovary) और हार्मोन
- अंडाशय (Ovary) जो स्त्रियों में पाए जाते हैं में दो प्रकार के हॉर्मोन उत्पन्न होते हैं- आईस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरॉन। ऐस्ट्रोजन का स्राव अंडाशय के पुटकों से होता है और वह वयस्क स्त्री में स्तनों के विकास एवं नितंबों पर वसा के निक्षेपण को उद्दीपित करता है। आईस्ट्रोजन निषेचित अंडे को धारण करने के लिए गर्भाशय की भित्ति को तैयार करता है।
- प्रोजेस्टेरॉन का स्राव पीतक पिंड (कॉर्पस ल्यूटियम) (अंडाणु के निर्मोचन के बाद बचा हुआ पुटक) द्वारा होता है। यह हॉर्मोन गर्भावस्था के दौरान गर्भ को गर्भाशय में बने रहने के लिए तथा उसकी वृद्धि के लिए गर्भाशय की भित्ति में अंतिम परिवर्तन लाता है।
8. अपरा (Placenta)
- गर्भवती स्त्री का अपरा कुछेक हॉर्मोन उत्पन्न करता है। इसमें से एक हॉर्मोन होता है मानव कोरिओनिक गोनैडोट्रोपिन (Human Chorionic Gonadotropin) (HCH), जो कॉपर्स ल्यूटियम की प्रोजेस्टेरॉन का लगातार स्राव करने की क्रिया को बनाए रखता है।
9. आमाशय और छोटी आंत से स्रावित होने वाले हॉर्मोन
(i) गैस्ट्रिन का स्राव आमाशय के पाइलोरिक सिरे की श्लेष्मा झिल्ली से होता है। जठर ग्रंथियों को जठर रस का स्राव करने के लिए उद्दीपित करता है।
(ii) सेक्रेटिन का
स्राव ग्रहणी के अस्तर द्वारा होता है। यह अग्न्याशय के उत्पादन को उद्दीपित करता
है, जबकि एक अन्य
हॉर्मोन, कॉलीसिस्टोकाइनिन, पित्ताशय से
पित्त के निर्मोचन को उद्दीपित करता है।
9 पुनर्भरण प्रणाली (हॉर्मोनों के प्रवण का नियंत्रण )
- किसी अंतःस्रावी ग्रंथि द्वारा मोचन हॉर्मोन की मात्रा का निर्धारण इस बात पर निर्भर होता है कि किसी एक निर्दिष्ट समय पर शरीर में उस हॉर्मोन की कितनी आवश्यकता है। लक्ष्य ऊतक से निकलने वाला पदार्थ अपनी विशिष्ट अंतःस्रावी ग्रंथि पर प्रभाव डालता है। यह प्रभाव सकारात्मक (अधिक स्रवण करो) अथवा नकारात्मक ('स्रवण बंद अथवा कम करो') हो सकता है। इस कथन की व्याख्या थायरॉयड ग्रंथि का एक उदाहरण लेकर की जा सकती है।
थॉयरॉयड सक्रियता की पुनर्भरण प्रणाली -
- हाइपोथैलैमस एक हॉर्मोन TSHRH (TSH अधश्चतेक मोचक हॉर्मोन) का स्राव करता है जो अग्र पीयूष ग्रंथि को TSH (थॉयरॉयड उद्दीपक हॉर्मोन) का स्राव करने का आदेश देता है। यह थायरॉयड को थायरॉक्सिन मोचन करने को उद्दीपित करता है। यह रुधिर में थॉयरॉक्सिन का स्तर बढ़ जाता है तो वह पीयूष ग्रंथि द्वारा TSH-मोचन को बंद करता है।
- यदि थॉयरॉक्सिन का स्तर घट जाता है तो थाइरॉयड उद्दीपित हो जाता है और इसका स्रवण अधिक हो जाता है पुनर्भरण क्रियाविधि में सक्रियता की आरंभिक स्थिति में इसे सूचना प्राप्त होती है कि स्रवण जानी रखना है, या बढ़ाना है या कम करना अथवा बंद कर देना है।
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