हिन्दी साहित्य की विधाओं से संबन्धित प्रश्न उत्तर | Hindi Sahitya Ki Vidhavon Ke Prashn Uttar

हिन्दी साहित्य की विधाओं से संबन्धित प्रश्न उत्तर 
Hindi Sahitya Ki Vidhavon Ke Prashn Uttar 
हिन्दी साहित्य की विधाओं से संबन्धित प्रश्न उत्तर | Hindi Sahitya Ki Vidhavon Ke Prashn Uttar

हिन्दी साहित्य की विधाओं से संबन्धित प्रश्न उत्तर

प्रश्न

डॉ० नगेन्द्र द्वारा रचित रेखाचित्रों का वर्णन कीजिए। 

उत्तर - 

  • डॉ० नगेन्द्र के चेतना के बिम्ब में दस रेखाचित्र संस्मरण है। इन चित्रों में विश्लेषण का प्राधान्य होने के कारण तटस्थता का गुण अपनी छटा बखूबी दिखा सका है। डॉ. नगेन्द्र आलोचक शास्त्रकार और कवि के समन्वय की निष्पत्ति है। अतः उनके रेखाचित्रों में हार्दिकता का आधिक्य कहीं नहीं हैं। वरन कहीं-कहीं तो इसका अभाव भी अनुभव होता है। उनके वर्णनों में स्पष्टता खण्ड-खण्ड बात को समझाने की क्षमता इतनी उम्र है कि लगता उनका अध्यापक रेखाचित्र कार पर हावी हो बैठा है। उनकी यह विशेषता सभी रेखाचित्रों में है।

 

प्रश्न

विष्णु प्रभाकर के रेखाचित्रों का परिचय दीजिए। 

उत्तर 

  • विष्णु प्रभाकर के कुछ शब्द कुछ रेखाएं तथा हंसते निर्झर दहकती भट्टी में रेखाचित्रात्मक रचनाएं हैं। इनमें रेखाचित्रों के अतिरिक्त संस्मरण और यात्रा-वतांत भी हैं। विष्णु प्रभाकर अपने रेखाचित्रों को सामान्यतः प्राकतिक चित्रण से प्रारम्भ करते हैंक्योंकि उन्हें पाठकों को अपने विषय की ओर आकष्ट करने का यही सबसे उचित माध्यम प्रतीत होता है। विष्णु प्रभाकर घटनाओं और स्थितियों को परस्पर जोड़कर देखने के आदी है। वे सामाजिक स्थितियों के पीछे निहित विषमताओं को सामने लाने में दक्ष है।

 

प्रश्न

निर्मल वर्मा के रेखाचित्रों का वर्णन कीजिए। 

उत्तर 

  • निर्मल वर्मा का चीड़ों पर चांदनी यात्रा वतांत न होकर स्मति खण्डों का एलबम है जिसमें अनेक तारों जैसी यादें सर्वत्र झिलमिला रही हैं। वर्मा ने आइसलैण्ड के एक किसान परविार की सांस्कृतिक स्थिति का जो चित्र दिया हैवह उनकी गहरी पैठ और सांस्कृतिक सूझ को ही प्रकट नहीं करता वरन अन्य यूरोपीय देशों की सांस्कृतिक स्थिति को भी तुला पर रख देता है। निर्मल वर्मा अनुभूति के चरण क्षणों में भी सामाजिकता के सूत्र जोड़े रखते हैं।

 

प्रश्न

रिपोर्ताज से क्या तात्पर्य हैं ?

 

  • रिपोर्ताज अंग्रेजी शब्द रिपोर्ट से भिन्न है पर यह उससे सम्बन्धित अवश्य रहा है। सामान्य रूप से रिपोर्ट लिखने या लिखवाने का संबंध सूचक देने या भेजने से जोड़ा जाता है। इसमें केवल तथ्यों पर बल दिया जाता है। रिपोर्ताज में कानों सुनी या आंखों देखी बात को इतने प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाता है कि उसका प्रभाव मन-मस्तिष्क पर गहरा पड़ता है "रिपोर्ताज फ्रांसीसी भाषा का शब्द है। जिस रचना वर्ण्य विषय का आंखों देखा तथा कानों सुना ऐसा विवरण प्रस्तुत किया जाए कि पाठक की हृदय तंत्री के साथ झंकत हो उठे और वह उसे भूल न सकें। उसे रिपोर्ताज कहते हैं।"

 

प्रश्न

हिन्दी रिपोर्ताज लेखकों का नामोल्लेख कीजिए। 

उत्तर - 

  • प्रकाशचन्द्र गुप्त उपेन्द्रनाथ अश्करामनारायण उपाध्यायभदन्त आनन्द कौसलाल्यायन शिव सागर मिश्रडॉ. धर्मवीर भारती कन्हैयालाल मिश्रा प्रभाकरशमशेर बहादुर सिंहश्रीकान्त वर्माडॉ. भगवान गोयल आदि ने श्रेष्ठ रिपोर्ताज लिखे हैं इनके द्वारा रचित रिपोर्ताजों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कुछ प्रमुख रिपोर्ताज संग्रह - रेखाएं और चित्रदेश की मिट्टी बुलाती हैवे लड़ेंगे हजार सालप्लाट का मोर्चाअपोलो का रथ आदि हैं। इनमें बंगाल का अकालआज़ाद हिन्द फौजविभाजन की स्थितियां और विभिन्न समस्याओं का चित्रण हुआ है। भारत-चीन भारत-पाक युद्धों के अवसरों पर इस विधा के लेखन को विशेष बल मिला था। बाद में बंगलादेश के उन्नयन ने भी इस प्रवति से विशेष बढ़ावा दिया था।

 

प्रश्न

पत्र लेखन साहित्य का परिचय दीजिए। 

उत्तर - 

  • पत्रों का संबंध व्यक्तिगत जीवन से होता है। प्रत्येक व्यक्ति कभी न कभी किसी न किसी को पत्र अवश्य लिखता है दूर बैठे व्यक्ति तक अपने विचार पहुंचाने का यह एक प्रभावी तरीका है। पत्र की कलात्मकता ही उसे साहित्यिक सिंहासन पर बैठा देती है। वैचारिक या भावात्मक दृष्टि से सम्पन्न व्यक्ति के ये पत्र बहुत महत्वपूर्ण हो सकते हैं। देशकाल की परिस्थिति प्रवतियों और इतिहास का ज्ञान भी उसके पत्रों के माध्यम से होता है। जैसे -प्रसिद्ध उर्दू शायर कि मिर्जा गालिब के पत्रों के माध्यम से सन् 1857 की क्रांति का स्वरूपउसके कारण और दिल्ली की बदहाली का पूरा विवरण हमें मिल जाता है।

 

प्रश्न

हिन्दी में साक्षात्कार विधा का उद्भव कैसे हुआ ? 

उत्तर- 

  • हिन्दी में साक्षात्कार विधा के दर्शन दो महायुद्धों के बीच होने लगे थे। इस विधा का आरम्भ बनारसी दास चतुर्वेदी के द्वारा किया गया था। उन्होंने सन 1931 में रत्नाकर से बातचीत कर उसे लिपिबद्ध किया था जो विशाल भारत नामक पत्र में छपी थी। सन् 1932 में प्रेमचन्द के साथ दो दिन नामक साक्षात्कार भी प्रकाशित हुआ था। सन् 1941 में जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी द्वारा लिया गया था मदन्त आनन्द को सल्यायन साक्षात्कार प्रसिद्ध हुआ था।

 

प्रश्न

यात्रावृतान्त से क्या तात्पर्य है ? 

उत्तर -

 

  • यात्रावृतान्त किसी यात्रा का शुद्ध वतान्त नहीं होता बल्कि जिस स्थान की यात्रा की जाती है उसके सौंदर्यप्रकतिसंस्कृतिपरिवेश और जनसंपर्क की अनुभूतियां भी होती है। इसमें जीवन की स्पष्ट और साक्षात् जानकारी होती है। यह सुनी सुनाई क्यों न होकर प्रत्यक्ष दर्शन पर आधारित होती है। यात्रावतान्त की रचना के लिए आवश्यक है कि लेखक ने स्वयं किसी विशेष स्थान की यात्रा की हो उसे इसका निजी अनुभव होना चाहिए एवं क्योंकि यात्रावतान्त में अनुभवों और अनुभूतियों के स्थूल और सूक्ष्म दोनो रूप दिखाई देते हैं।

 

प्रश्न

हिन्दी साहित्य में संस्मरण लेखन कब प्रारम्भ हुआ ? 

उत्तर - 

  • हिन्दी में संस्मरण का आरम्भ द्विवेदी युग में प्रकाशित होने वाली पत्रिका सरस्वती से हुआ। डॉ. नगेन्द्र के अनुसार "सरस्वती के विभिन्न अंकों के समय-समय पर अनेक रोचक संस्मरण प्रकाशित होते रहे। स्वयं महावीर प्रसाद द्विवेदी ने अनुमोदन का अंत (फरवरी 1905) सभा दी सभ्यता (अप्रैल 1907) विज्ञानाचार्य बासु का विज्ञान मंदिर (जनवरी 1918) आदि की रचना करके संस्मरण साहित्य की श्री वद्धि की।"

 

प्रश्न

संस्मरण साहित्य का प्रवर्तक किसे मानते हैं ? 

उत्तर - 

  • सस्मरण साहित्य के प्रवर्तक के रूप में भी श्री बनारसी दास चतुर्वेदी का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। पत्रकार होने के नाते ये अनेक महान व्यक्तियों के निकट सम्पर्क में रहे। नेशनल कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में इन्होंने • अफ्रीका की यात्रा थी। इन्होंने इन सबसे संबंधित विशेष प्रकार के संस्करण लिखे हैं। अतः इन्हें संस्मरण लिखने की कला का पथ-प्रदर्शक माना जा सकता है। साबरमती आश्रम में महात्मा गांधी जी जैसे इन्होंने अनेक सुघड़ संस्मरण लिखे हैं।

 

प्रश्न

प्रारम्भिक संस्मरणों लेखकों के नामोल्लेख कीजिए। 

उत्तर

 

  • संस्मरण लेखन करने वाले अन्य स्मरणीय नाम घनश्यामदास बिरला श्रीमन्नारायण अग्रवालभदन्त आनन्द कोसल्यायन रामवत्त बेनीपुरीकन्हैयालाल मिश्रनरहरि विष्णु गाडगिल हैं। बिरला जी ने बापू नामक रचना में गांधी जी के जीवन से संबंधित अनेक संस्मरण प्रस्तुत किए हैं। भदन्त आनन्द कौसल्यायन के जो न भूल सकातथा जो लिखना पड़ा महत्त्वपूर्ण है। रामवक्ष बेनीपुरी की माटी की मूरतें भी बड़े ही सजीव एवं रोचक संस्मरण है। कन्हैयालाल मिश्र ने भूले हुए चेहरे तथा नरहरि विष्णु गाडगिल ने स्मृति शेष लिखकर इस विधा को समद्ध किया है।

 

प्रश्न

श्रीमती महादेवी वर्मा के संस्मरणों का परिचय दीजिए। 

उत्तर 

  • महादेवी वर्मा ने अनेक संस्मरण लिखें। उनके द्वारा रचित 'अतीत के चलचित्र 'स्मति की रेखाएं और पंथ के साथीनामक तीन कतियों को इस विधा में रखा जाता हैपर इनमें से पथ के साथी निश्चय ही एक सर्वाधिक सशक्त संस्मरणात्मक सर्जना है। इसमें इन्होंने अपने समसामयिक कवियों एवं साहित्यकारों के अत्यन्त सजीव संस्मरण प्रस्तुत किए हैं। इनके अतिरिक्त महादेवी जी की मेरे प्रिय संस्मरण और संस्मरणभी इसी प्रकार की रचनाएं हैं।

 

प्रश्न

कुछ प्रसिद्ध संस्मरण रचनाओं का नाम लिखिए। 

उत्तर 

  • वंदावन लाला वर्मा द्वारा रचित कुछ संस्मरण इलाचन्द्र जोशी की मेरे प्राथमिक जीवन की झलकियांमन्मथ नाथ गुप्त जी क्रांति युग के संस्मरण शिव नारायन टण्डन की झलक शिव पूजन सहाय वेदिन सत्यवती मलिक की अमिट रेखाएंदेवेन्द्र सत्यार्थी की रेखाएं बोल उठीशांति प्रिय द्विवेदी की स्मतिया व कतियांराहुल साकत्यायन की बचपन की स्मतियां डॉ. नगेन्द्र की चेतना के बिम्ब कृष्णा सोवती की हम हशमल ज्ञानचंद की कथा शेष घर में आदि प्रमुख संस्मरणात्मक कतियां है।

 

प्रश्न

शोध साहित्य से क्या तात्पर्य है ? 

उत्तर - 

  • शोध साहित्य के मूल में किसी एक व्यक्ति या विषय को लेकर अनुसंधात्मक ढंग से उसकी समग्र एवं सर्वांगीण समीक्षा प्रवति ही काम किया करती है। इस प्रकार के साहित्य विकास के उच्चतम मान स्थापित करने की प्रवति के कारण ही प्रमुखत हुआ है। किसी विशेष व्यक्ति या विषय के संबंध में अपनी सर्वज्ञता का महत्त्व प्रतिपादित करने की प्रवृति भी शोध-साहित्य के मूल में विद्यमान है। इससे साहित्य एवं साहित्यकारों क संबंध में नव्यक्षितिजों का उद्घाटन भी हो जाता है। इन दिनों इस विधा में विभिन्न विश्वविद्यालयों में बहुत कार्य हो रहा है।

 

प्रश्न

जीवनी विद्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर 

  • जीवनी किसी व्यक्ति की जीवन घटनाओं का विवरण है। अपने आदर्श रूप में यह प्रयत्नपूर्वक लिखा गया इतिहास है जिसमें किसी व्यक्ति के जीवन से संबंधित विवरण मिलता है। जीवनी किसी व्यक्ति के द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति के बारे में लिखी जाती है। जीवनी किसी भूतकाल से संबंधित किसी महान व्यक्ति का समकालीन श्रेष्ठ व्यक्ति से जुड़ी हुई हो सकती है। लेखक जीवनी लिखते समय सम्बन्धित व्यक्ति के मित्रोंसगे-सम्बंधियों पड़ोसियों आदि की सहायता ले सकता है। लेखक सम्बन्धित व्यक्ति की कमियों को उजागर कर सकता है लेकिन उसके जीवन प्रसंग से खिलवाड़ करके उसके चरित्र को धूमिल नहीं कर सकता।

 

प्रश्न

हिन्दी की प्रारम्भिक जीवनी साहित्य का परिचय दीजिए। 

उत्तर : 

  • हिन्दी साहित्य में जीवनी साहित्य की परम्परा भक्तिकाल से मिलती है। नामादास द्वारा रचित भक्तमाल', गोसाई गोकुलनाथ विरचित चौरासी वैष्णव की वार्ता तथा दो सौ वैष्णव की वार्ताइस दिशा में प्रथम प्रयास कहे जा सकते हैं। इनमें संख्याओं के अनुरूप ही अनेक वैष्णव भक्तों के चरित्र अंकित किए गए हैं। इसके पश्चात् वेणी माधव द्वारा रचित गोसाई चरितनामक जीवनी उपलब्ध होती है। अकबर काल में एक कवि बनासीदास ने 'अर्द्धकथानक नाम से अपनी आत्मकथा को भी पद्यबद्ध किया था। इन्हें विशुद्ध जीवनी साहित्य के अन्तर्गत नहीं रखा जा सकता। इसे मात्र ऐतिहासिक प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

 

प्रश्न 

संस्मरण और रेखाचित्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर 

  • संस्मरण प्रायः प्रसिद्ध व्यक्तियों के ही लिखे होते हैं और इनके लेखक भी प्रायः प्रसिद्ध व्यक्ति ही होते हैं। जबकि रेखाचित्र के लिए इस प्रकार का कोई बंधन नहीं होता। इनके प्रधान से भी प्रधान मात्र मी साधारण होते हैं। संस्मरण का संबंध देशकाल एवं पात्र तीनो से होता है जबकि रेखाचित्र का सम्बन्ध देश और काल से न होकर केवल पात्र से ही होता है। संस्मरण में रेखाचित्र की तुलना में आत्मनिष्ठता अधिक होती है। संस्मरण लेखक की • कोई निश्चित शैली नहीं होती। वह किसी भी शैली को अपना सकता है। रेखाचित्रकार को शैली सम्बन्धी स्वतन्त्रता नहींउसे सदैव चित्रात्मक शैली ही अपनानी पड़ती है। चित्रात्मक शैली के अभाव में रेखाचित्र का सजन संभव नहीं है।

 

प्रश्न 

आत्मकथा किसे कहते हैं ? 

उत्तर 

  • हिन्दी की अन्य गद्य विधाओं के समान इस का उद्भव भी आधुनिक काल में हुआ। इसमें लेखक भाषा के माध्यम से अपने जीवन को स्वयं प्रस्तुत करता है। वह स्मरण के आधार पर जीवन के आरम्भ से लेकर लेखन कार्य के क्षणों तक को संस्मरणात्मक रूप में चित्रित करता है। उसमें यथार्थ सदा विद्यमान रहता है। लेखक अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का ही वर्णन नहीं करता अपितु अनेक प्रभावों का वर्णन भी करता है। महापुरुषों द्वारा लिखी गई आत्मकथाएं पाठकों का मार्गदर्शन करती हैं तथा वह प्रेरणा देती हैं। जीवनी और आत्मकथा में यही अन्तर है कि जीवनी में लेखक किसी अन्य पुरुष की कथा लिखता है और आत्मकथा में स्वयं अपनी कहता है।

 

प्रश्न

हिन्दी एंकाकी के उद्भव का परिचय दीजिए। 

उत्तर - 

  • हिन्दी में एकांकी रचना का कार्य सन् 1930 के बाद आरम्भ हुआ था। इनका आधार और आकार प्रकार पश्चिमी स्वरूप के अनुसार था। डॉ. नगेन्द्र ने माना है कि भारतेन्दु युग के बाद यह कार्य आरम्भ हो गया था। महेश चन्द्र प्रसाद देवीप्रसाद गुप्त रूप नारायण पाण्डेयबद्रीनाथ भट्ट बेचन शर्मा उम्र और जयशंकर प्रसाद ने एक-एक एकांकी सम्बन्धी रचना की थी लेकिन इस विधा का वास्तविक लेखन डॉ. रामकुमार वर्मा को हिन्दी एकाकी लेखन का जनक माना जाता है। उपेन्द्रनाथ अश्कउदयशंकर भट्टविष्णुप्रभाकरजगदीशचन्द्र माथुर आदि अनेक मुख्य एकाकीकार है।

 

प्रश्न

भारतीय भाषा में पत्रकारिता का प्रारम्भ कब हुआ ? 

उत्तर 

  • सन् 1816 तक जितने भी भारतीय पत्र प्रकाशित हुए वे सब अंग्रेजी में थेलेकिन सन् 1818 में पहली बार भारतीय भाषा में मासिक पत्र प्रकाशित हुआ थाजिसका नाम था 'दिग्दर्शन'। इसे ईसाई धर्म के प्रचार के लिए छापा गया थाबाद में राजा राममोहनराय के प्रभाव से बंगला गजट नामक पत्रिका छपी थीजिसमें स्वतंत्र और उदार विचारों को प्रकट किया गया था। भारतीय पत्रकारिता में नए अध्याय को जोड़ने का वास्तविक श्रेय राजामोहन राय को ही हैउन्होंने बंगाल में "संवाद कौमुद्दी" नामक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया थाउन्होंने ईसाई धर्म का विरोध करने के लिए इस पत्र को आरम्भ करवाया था. लेकिन अंग्रेज सरकार की विरोधी नीतियों के कारण यह बहुत देर तक चल नहीं पाया था।

 

प्रश्न

हिन्दी के प्रारम्भिक समाचार पत्रों का वर्णन कीजिए। 

उत्तर 

  • हिन्दी में प्रकाशित पहला साप्ताहिक पत्र उदण्ड मार्तण्डहैजिसे युगल राजशुक्ल ने 30 मई, 1826 को कलकता से प्रकाशित किया। सन 1845 में राजा शिव प्रसाद सितारे हिन्द ने बनारस अखबार नामक साप्ताहिक पत्र आरम्भ किया था। लगभग इसी समय राजा राममोहनराय ने हिन्दी में बंगदूतका आरम्भ किया था। मार्तण्ड' 'मालवा', 'जगदीपभास्करसुधाकर, 'सामदण्ड मार्तण्ड', 'बुद्धि प्रकाश शिमला आखबार आदि ऐसी पत्र-पत्रिकाए है जो सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पहले भारतीय जनमानस में अपना स्थान बना चुके थे। 
  • भारतेन्दु की  पत्रिका 'कविवचन सुधाका प्रकाशन सन 1867 को हुआ था। सन् 1854 में कलकता से हिन्दी का पहला दैनिक समाचार पत्र समाचार सुधावर्षण प्रकाशित हुआ था।


प्रश्न 

स्वतन्त्रता के पश्चात भारत में प्रकाशित होने वाले दैनिक पत्रों के नाम लिखिए।

उत्तर -

  • जहां 19वीं शताब्दी के अंत तक हिन्दी में केवल तीन दैनिक पत्र प्रकाशित होते थेवहां स्वाधीनता के बाद इनकी संख्या हजारों तक पहुंच गई है। नवभारत टाइम्सजागरणस्वतन्त्र भारत अमर उजालावीर प्रतापवीर अर्जुनपंजाब केसरीदैनिक ट्रिब्यूनहिन्दुस्तानजनसत्तादैनिक भास्कर नई दुनियांराजस्थान पत्रिका आदि हजारों समाचार पत्र हैजिनका यहां नामोल्लेख करना असंभव सा है।

 

प्रश्न

साप्ताहिक पत्रों का नामोल्लेख कीजिए जो स्वतंत्रता के बाद छपने लगे थे। 

उत्तर 

  • हिन्दी में साप्ताहिक पत्रिकाओं का आरम्भ उदण्ड मार्तण्डसे हुआ था। तब से अब तक अनेक महान् पत्रकारों ने हिन्दी साहित्य को श्रेष्ठ पत्रिकाएं प्रदान की है। स्वतंत्रता के बाद ही कुछ प्रमुख पत्रिकाएं हैं-धर्मयुगसाप्ताहिक - हिन्दुस्तान दिनमानुरविवार आदि हैं। डॉ. धर्मवीर भारती के सम्पादन में छपने वाले धर्मयुग ने जो प्रतिष्ठा अर्जित की थीवह हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में अपूर्व हैं।

 

प्रश्न

गद्य गीत किसे कहते हैं ? 

उत्तर 

  • गद्य में काव्य जैसा प्रभाव उत्पन्न करके भावों को अभिव्यक्त करने की प्रवति ने विधा को जन्म दिया। भावावेश के सुख-दुखात्मक क्षणों मानव की वाणी में काव्यमयता का संचार होने लगता है यदि इसमें ताल लय एवं संगीत का भी समन्वय हो जाता हैतब तो यह गीति-काव्य के नाम से अभिहित किया जाता है और यदि भावावेश की यह अभिव्यक्ति तरलायित गद्य में ही रहती है तो इसे गद्य-गीत या गद्य-काव्य के नाम से अभिहित किया जाता है।

 

प्रश्न

हिन्दी में रचित बाल्किशेर साहित्य का परिचय दीजिए। 

उत्तर

 

  • हिन्दी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल) हिन्दी में बाल्किशोर साहित्य रचने का सामान्य प्रवत्ति स्वतन्त्रता पूर्व युग में भी दिखाई देती है। तब अक्सर इस तरह की पत्र-पत्रिकाओं के लिए ही ऐसा साहित्य लिखा जाता था। बालसखा 'सुमन सौरभ परागचंदामामाचमक आदि पत्रिकाओं ने इस रूचि को निश्चय ही विशेष विकास प्रदान किया था पर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद साक्षरता का अधिकाधिक प्रचार करने और हो जाने से इस प्रकार की सजनात्मक प्रक्रिया को विशेष महत्त्व मिला है। आज इस प्रकार का साहित्य तात्विक एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विशेष महत्त्व प्राप्त करता जा रहा है और इसकी रचना भी खूब हो रही है।


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