क्लोनिंग की विधियां| Method of Cloning in Hindi

 क्लोनिंग की विधियां (Method of Cloning in Hindi)

क्लोनिंग की विधयां| Method of Cloning in Hindi



क्लोनिंग की विधियां (Method of Cloning in Hindi)


डीएनए क्लोनिंग (DNA Cloning)

  • एक डीएनए से उसी प्रकार के अन्य डीएनए का प्रयोगशाला में निर्माण ही डीएनए . क्लोनिंग है। इसे आणुविक क्लोनिंग और जीन क्लोनिंग के नाम से भी जाना जाता है।
  • डीएनए क्लोनिंग के लिये प्रयोग में लायी जाने वाली तकनीक को रिकाम्बीनेंट डीएनए तकनीक ( Recombinant DNA Technology) कहते हैं। 
  • 70 के दशक में प्रकाश में आयी यह तकनीक आज आणुविक विज्ञान में सबसे अधिक प्रयोग में लायी जाने वाली एक सफल तकनीक है।
  • इस तकनीक में इच्छित डीएनए को कि जीवाणु के प्लामिड (Plasmid) के साथ जोड़ के दूसरी स्वगुणन करने वाली कोशिका में प्रतिस्थापित कर देते हैं। अब जितनी बार कोशिका गुणन करेंगीउतनी बार इच्छित डीएनए का भी गुणन होता जायेगा। इस तकनीक का प्रयोग दवा के टीकों से लेकर रोग प्रतिरोध एवं संकर पौधों के निर्माण में कुशलता से किया जाता है।

 
क्लोन भेड़ "डॉली" (1997-2003) की उत्पत्ति: 

  • समकालीन ऐतिहासिक खोज "डॉली" की उत्पत्ति जननिक क्लोनिंग विधि के द्वारा ही की गयी थी जिसमें केंद्रक स्थानान्तरण विधि का उपयोग किया गया था।

 

  • डॉली क्लोनिंग द्वारा उत्पन्न प्रथम स्तनधारी थी जिसकी उत्पत्ति विज्ञान के क्षेत्र में एक क्रांति लेकर आया। डॉली के प्रयोगशाला में अप्राकृतिक निर्माण से प्रकृति के बनाये उन समस्त जैविक क्रियाओं एवं रहस्यों से पर्दा उठाने की बात सच साबित होने लगी थी। परंतु जन्म के मात्र 6 वर्ष के उपरांत डॉली की असामयिक मृत्यु ने यह स्पष्ट कर दिया कि क्लोनिंग के क्षेत्र में अभी और शोध होने बाकी हैं। 


  • यद्यपि वैज्ञानिकों का यह मानना था कि क्लोनिंग की यह विधि पूर्णरूप से सही एवं सफल हैडाली की मृत्यु क्लोनिंग में किसी गड़बड़ो की वजह से नहीं वरन् सामान्य तरीके से रोग के चपेट में आने के कारण हुयी जो किसी भी भेड़ को हो सकती है। डॉली की मृत्यु होना महज एक संयोग था। 


  • सन् 1997 में प्रथम स्तनधारी क्लोन भेंड़ 'डॉलीकी मृत्यु 14 फरवरी 2003 को फेफड़े के कैंसर एवं 'क्रीपलिंग आथ्रीइटिसके कारण हुयी थी। स्काटलैण्ड के रासलिन इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिकों द्वारा क्लोन 'डॉलीने 6 बच्चों को जन्म दिया था।

 

2. जननिक क्लोनिंग (Reproductive Cloning) 

  • यह क्लोनिंग की सबसे प्रचलित विधि है। इस विधि में अण्डाणु से उसके खुद के केंद्रक को पूरी तरह से नष्ट अथवा हटा दिया जाता है। अब इसी अण्डाणु में इच्छित कोशिका के केंद्रक को स्थानांतरित कर दिया जाता है। इस कोशिका को दाता कोशिका (donar cell) तथा वह जीव जिससे कोशिका ली गयी दाता जीव (donar animal) कहलाता है। 


  • अब इस अण्डाणु को रसायनों अथवा वैद्युत धारा द्वारा लगातार विभाजन के लिये उकसाया जाता है। लगातार कोशिकीय विभाजनों के कारण अब यह अण्डाणुकई कोशिकाओं के समूह वाला भ्रूण बन जाता हैजिसे पूर्ण विकास के लिये मादा के गर्भाशय में प्रतिस्थापित कर दिया जाना है। यद्यपि इस तरह पैदा होने वाली संतान को उसके दाता जीव का सत्य क्लोन (True clone) नहीं कहा जाता है क्योंकि उत्पन्न संतान के केंद्रक का डीएनए ही दाता जीव के केंद्रक के डीएनए के समान होता है। आगे शोधों से यह ज्ञात हो चुका है कि कोशिका में मौजूद माइट्रोकाण्ड्रिया का अपना अलग डीएनए होता है जो कि जीव के बुढ़ापे के कारणों में से एक प्रमुख कारण मैं महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

 

3. उपचारिक क्लोनिंग (Therapeutic Cloning) 

  • इस विधि का उपयोग शोधों के लिये मानव भ्रूण निर्मित करने में किया जाता है। अतः इसे भ्रूण क्लोनिंग (Embryo Cloning) भी कहा जाता है। 
  • इस तकनीक से क्लोनिंग का उद्देश्य संपूर्ण मानव अथवा जीव का निर्माण करना नहीं परंतु स्टेम कोशिकाओं की प्राप्ति के लिये मानव भ्रूण का निर्माण करना है। लम्बी अवधि तक लगातार विभाजन की क्षमता रखने वाली ये अविभेदित कोशिकायें जिनको किसी भी अंग की कोशिकाओं में परिवर्तित किया जा सकता है स्टेम कोशिकायें | (stem cells) कहलाती हैं। 
  • भ्रूण की कोशिकाओं में विभाजन की अद्भुत क्षमता होती है जिसके चलते एक ही प्रकार की कोशिकाओं द्वारा नवजात शिशु के भिन्न प्रकार के अंगों का निर्माण करती है। स्टेम कोशिकाओं का उपयोग अनेकानेक घातक बीमारियों के इलाज में किया जा सकता है।

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