मध्यप्रदेश की अनुसूचित जनजाति : अगरिया जनजाति के बारे में जानकारी | MP Anusuchit Janjaati
मध्यप्रदेश की अनुसूचित जनजाति : अगरिया जनजाति के बारे में जानकारी
अगरिया की मध्यप्रदेश में जनसंख्या
- अगरिया की जनसंख्या 41,243 है जो प्रदेश की कुल जनसंख्या का 0.057 प्रतिशत है।
- अगरिया की जनसंख्या 41,243 है जो प्रदेश की कुल जनसंख्या का 0.057 प्रतिशत है।
अगरिया का निवास क्षेत्र
- शहडोल, मंडला, डिण्डौरी, उमरिया, अनूपपुर, सीधी एवं सिंगरौली।
अगरिया के गोत्र
- इनके प्रमुख गोत्र बघेल, धुुरवा, मरकाम, उइका, तेकाम, सोनवानी, मरावी, मराई, मसराम,करेआम, नाग, तिलाम, बेसरा आदि हैं। प्रत्येक गोत्र के टोटम पाये जाते हैं।
अगरिया जनजाति का रहन-सहन
- इनके घर मिट्टी के होते हैं। उन पर घास-फूस या देशी खपरैल का छप्पर होता है। घर में दो-तीन कमरे होते हैं। दीवारों पर सफेद या पीली मिट्टी की पुताई करते हैं। फर्श मिट्टी की होती है।
अगरिया जनजाति का खान-पान
- इनका मुख्य भोजन चावल, कोदो, कुटकी का भात, पेज, मक्का की रोटी, उड़द, मूँग, कुल्थी की दाल व मौसमी सब्जी है। माँसाहार में मछली, मुर्गा, बकरा, हिरण, जंगली सुअर, खरगोश आदि खाते हैं।
अगरिया जनजाति का वस्त्र-विन्यास
- वस्त्र-विन्यास में पुरुष पंछा (छोटी धोती) तथा अगंरखा (बंडी) पहनते हैं। स्त्रियाँ लुगड़ा पहनती हैं।
अगरिया जनजाति में गोदना
- महिलाएँ हाथ, पैर, चेहरे, कपोल मस्तक व ठुड्डी पर गुदना गुदवाती हैं।
तीज-त्यौहार
- इनके प्रमुख त्यौहार नवाखानी, दशहरा, दीपावली, होली, करमापूजा आदि हैं।
अगरिया जनजाति का नृत्य
- इस जनजाति के लोग कर्मा पूजा के अवसर पर करमा नृत्य, दीवाली में पड़की नृत्य, विवाह के अवसर पर विवाह नृत्य करते हैं। करमा गीत, वदरिया गीत, सुआगीत, फाग, भजन आदि वाद्य यंत्रों के साथ नाचते-गाते हैं, जिसमें स्त्री-पुरुश दोनों भाग लेते हैं। नृत्य के समय रंग-बिरंगे परिधानों व आभूशणों से शृंगार करते हैं।
कला-
अगरिया जनजाति का व्यवसाय
- अगरिया जनजाति का मुख्य व्यवसाय लौह अयस्क से लोहा बनाना तथा इस लोहे से हँसिया, फावड़ा, कुल्हाड़ी, कुदाली, नागर (हल) का लोहा, तीर की नोक आदि बनाना है। इनके वंशज आग से आजीविका मिलने के कारण अगरिया कहलाये।
अगरिया जनजाति में जन्म-संस्कार
- प्रसव स्थानीय बुजुर्ग महिलाएँ घर में ही कराती हैं। प्रसव उपरांत बच्चे की नाल हँसिया या चाकू से काटते हैं तथा नाल वहीं पर गाड़ते हैं। प्रसूता को महुआ, जामुन तथा तेंदू की छाल, अतिगन, पोपोड, गुड़ आदि का काढ़ा बनाकर पिलाते हैं। तीसरे दिन से भात और अरहर की दाल खाने को देते हैं। छठे दिन प्रसूता व शिशु को नहलाकर नये कपडे़ पहनाते हैं। देवी-देवता को प्रणाम कराते हैं।
अगरिया जनजाति में विवाह-संस्कार
- विवाह की उम्र लड़कों की 16 से 18 वर्ष तथा लड़कियों की 15 से 17 वर्ष मानी जाती हैं। विवाह प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से होता है। वर के पिता वधू के पिता को चावल, दाल, हल्दी, तेल, गुड़, कपड़ा व रुपये नगद कुछ “खर्ची” (वधू धन) के रूप में देते हैं। विवाह-संस्कार बुजुर्ग व्यक्तियों या परधान द्वारा सम्पन्न कराया जाता है। घर जमाई, गुरावंट मामा या बुआ की लड़की से विवाह को सामाजिक मान्यता है। ढुकु (घुसपैठ), उठरिया (सहपलायन) में कुछ सामाजिक दण्ड लेकर विवाह के रूप मेें सामाजिक मान्यता देते हैं। विधवा, परित्यक्ता का पुनर्विवाह होता हैं।
अगरिया जनजाति में मृत्यु संस्कार
- मृत्यु होने पर मृतक को दफ़नाते है। तीसरे दिन तीज नहावन करते हैं। इस दिन परिवार व रिश्तेदार पुरुष सिर तथा दाढ़ी मूँछ के बाल कटवाते हैं। घर तथा कपड़ोें की स्वच्छता की जाती है। 10 वें दिन मृत्यु-भोज देते हैं।
अगरिया जनजाति के देवी-देवता
- अगरिया जनजाति के प्रमुख देवी-देवता बूढ़ादेव, लोहासुर, ठाकुरदेव, दुल्हादेव, शीतलामाता, बाघदेव, जोगनी, घुरलापाट आदि हैं। इसके अतिरिक्त हिन्दू देवी-देवता, सूरज, चन्द्रमा, वृक्ष, पहाड़, नदी, सर्प, आदि को भी देवी-देवता मानते हैं।
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