गोत्र धुरवे, मरकाम, परतेती, नेताम आदि हैं। प्रत्येक गोत्र में टोटम पाये जाते हैं।
मध्य प्रदेश की बैगा जनजाति का रहन-सहन
इनके घर पहाड़ी ढलान या कृषि योग्य भूमि के पास होते है। घर
बाँस, लकड़ी, मिट्टी के बने
होते हैं। उन पर घास पत्ते या देशी खपरैल की छप्पर होती है। घरों में अनाज रखने की
मिट्टी से बनी कोठी, धान कूटने की
ओखली मूसल, पीसने का जाता, बाँस की टोकरी, सूपा मिट्टी के
बर्तन ओढने-बिछाने के कपड़े,
तीर, धनुष, टंगिया, मछली पकड़ने के
जाल, ढोल, नगाड़ा, रिसकी आदि होते
हैं।
मध्य प्रदेश की बैगा जनजाति का खान-पान
बैगा जनजाति के भोजन में कोदों, कुटकी, मक्का और सांवा
का पेय मुख्य होता है। इनके भोजन में जंगली पत्तों की मात्रा अधिक होती है, जिन्हें भाजी के
रूप में उपयोग किया जाता है। बरसात के दिनों में नरम बाँस जिसे ये लोग करील कहते
हैं, का प्रयोग भाजी
के रूप में किया जाता है। इसी प्रकार पिहरी (मशरूम) एक प्रकार की वनस्पति का उपयोग
सब्जी के लिए करते हैं। इस जनजाति के लोगों की माँस खाने में अधिक रुचि रहती है।
मध्य प्रदेश की बैगा जनजाति के वस्त्र
बैगा पुरुषों की वेषभूषा बहुत साधारण होती है। सिर पर साफे
जैसा एक कपड़ा बाँधते हैं। आभूषण के नाम पर बायी कलाई में गिलट का कड़ा कानों में
छोटी छोटी बालियाँ पहनते हैं। बैगा स्त्रियाँ चौखाना धोती के नाम से तीन तरह के
लुगड़ा पहनती हैं। मूंगी धोती, चगदरिया धोती एवं बिगरा धोती।
बैगा जनजाति में गोदना
गुदना इनमें प्रमुख अंलकार होता है। इनका विश्वास है कि
गुदना मृत्यु के पश्चात भी साथ जाता है।
बैगा जनजाति में तीज-त्यौहार
इनके प्रमुख त्यौहार होली, पोला, नवाखाई, बिदरी पूजा, दशहरा, करमा पूजा आदि हैं।
बैगा जनजाति में नृत्य
पुरुष व महिलाँं दो समूहों में बंटकर नाचते हैं। नगाड़े, मादल, चुरकी आदि बाजों
के साथ आस-पास घूम-घूम कर नाचते है। इनके करमा, लहकी, रीना, सैला आदि नृत्य तथा करमा, ददरिया, झरपट आदि पारंपरिक गीत प्रमुख हैं। इनके प्रमुख पारंपरिक
नृत्य, करमागीत, ददरिया, सुआ गीता, विवाहगीत, मातासेवा गीता, फाग आदि हैं।
इनके प्रमुख वाद्ययंत्र, ढोल, टिमकी, नगाड़ा किन्नरी, टिसकी आदि हैं।
बैगा जनजाति में कला
चित्रकला, मुखौटे, काष्ट-शिल्प
बैगा जनजाति मेँ व्यवसाय
बैगा जनजाति मुख्यतः वन और कृषि पर आधारित है। मक्का, ज्वार, धान, कोदो, कुटकी, सांवा, राई, तिवड़ा, रमतिला, मूंग, झुझरू, अरहर, उड़द, गेहूँ, चना, मसूर इत्यादि
फसले पैदा करते हैं।
बैगा जनजाति मेँ जन्म-संस्कार
बैगा जनजाति में प्रसव सामान्यतः घर में ही स्थानीय सुनमाई
(दाई) तथा परिवार की बुजुर्ग महिलाएँ कराती हैं। प्रसूता को सोंठ, पीपल, अजवाइन, गुड़ आदि से बना
लड्डू खिलाते हैं। छठे दिन छठी मनाते हैं।
बैगा जनजाति मेँ विवाह-संस्कार
विवाह की उम्र लड़कों की 14-18 तथा लड़कियों की 12-16 वर्ष के बीच
मानी जाती है। सामान्यतः इस उम्र में विवाह कर दिया जाता है। वर पक्ष द्वारा
वधूपक्ष को खर्ची के रूप में चावल, दाल,
हल्दी, तिल, गुड़ व कुछ नगद
रकम दी जाती है। लमसेना, चोरी (सहपलायन), पैठू (घुसपैठ), गुरावट (विनिमय), को समाज की
स्वीकृति है। खड़ोनी (पुनर्विवाह) भी प्रचलित है।
बैगा जनजाति मेँ मृत्यु संस्कार
मृत्यु होने पर मृतक को दफनाया जाता है। तीसरे दिन घर व
कपड़ों की सफाई करते हैं। पुरुष दाढ़ी मूँछ और सिर के बाल कटवाते हैं। 10 वें दिन दशकरम
करते हैं और मृत्यु-भोज देते हैं।
बैगा जनजाति के देवी-देवता
बैगा जनजाति बहुदेववादी है। देवधामी केा बैगा दो भागों में बाँटते हैं। ग्राम देवी-देवता ठाकुर देव, नारायण देव, खैरमाई, मनपती माई तथा गृह देवी-देवताओं में बूढ़ी बंजारी, दुल्हादेव आदि
हैं।
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