POCSO Act, 2012 in Hindi |बाल यौन शोषण संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act, 2012 )
POCSO Act, 2012 in Hindi
बाल यौन शोषण संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act, 2012 )
POCSO Act, 2012 in Hindi (बाल यौन शोषण संरक्षण अधिनियम, 2012)
- बच्चे समाज का कमज़ोर वर्ग होने के कारण शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और यौन संबंधी दुरुपयोग के लिए शीघ्र प्रभावित होने वाले होते हैं। भारत सरकार ने बच्चों के विरुद्ध यौन अपराधों की रोकथाम हेतु एक विशेष कानून “बाल यौन शोषण संरक्षण अधिनियम, 2012” (POCSO Act, 2012) बनाया है.
- POCSO Act का मुख्य उद्देश्य बच्चों को विभिन्न यौन संबंधी अपराधों से बचना है तथा त्वरित निर्णय के लिए विशेष अदालत का गठन करना है, ताकि यौन अपराधियों को सख्त सज़ा मिल सकें। इस अधिनियम के तहत कोई भी व्यक्ति जिसकी उम्र 18 साल से कम है बच्चे की श्रेणी में रखा गया है।
इस अधिनियम के अंतर्गत 5 प्रकार के यौन अपराध माने गए हैं।
- जिनमें भेदन यौन हमला (Penetrative Sexual Assault) (धारा 3),
- उत्तेजित भेदन यौन हमला (Aggravated Penetrative Sexual Assault) (धारा 5),
- यौन हमला (Sexual Assault) (धारा 7),
- उत्तेजित यौन हमला (Aggravated Sexual Assault) (धारा 9) व
- यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment ) (धारा 11) हैं।
- अधिनियम की धारा 11 के अनुसार बार-बार या लगातार पीछा करना, निगरानी रखना, सीधा इलेक्ट्रोनिक व अंकीय या किसी साधन से बालक से संबंध स्थापित करना, यौन उत्पीड़न है जो कि इस अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है। इसी प्रकार किसी बालक को अश्लील सामग्री के लिए प्रयुक्त करना जैसे यौन अंगों का प्रदर्शन करना, उत्तेजित यौन कार्य में बालक को संलिप्त कर प्रयोग करना, बालक का अभद्र एवं अश्लील प्रदर्शन करना भी इस अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत अपराध है।
POCSO Act में सजा का प्रावधान
- अधिनियम की धारा 4 के तहत भेदन संबंधी यौन आक्रमण के लिए कम से कम 7 वर्ष व अधिकतम आजीवन कारावास की सजा तथा जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
- इसी प्रकार धारा 6 के अंतर्गत उत्तेजित भेदन यौन हमलों के लिए कम से कम 10 वर्ष की कैद से लेकर आजीवन कारावास व जुर्माने का प्रावधान है।
- धारा 8 के अंतर्गत यौन हमला करने वाले पर कम कम 3 वर्ष व अधिक से अधिक 5 वर्ष की सजा और जुर्माना प्रस्तावित है।
- धारा 10 के तहत उत्तेजित यौन हमला करने वाले को कम से कम 5 वर्ष व अधिकाधिक 7 वर्ष व जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है।
- अधिनियम की धारा 12 के तहत यौन उत्पीड़न से संबन्धित अपराधी को 3 साल तक की सजा व जुर्माने का प्रावधान है।
- इस अधिनियम की धारा 28 के तहत विशेष अदालत का गठन किए जाने का प्रावधान है जो बाल मैत्रीपूर्ण वातावरण में मुकदमों की त्वरित सुनवाई करती है। इस अधिनियम के अंतर्गत मुकदमे की कार्यवाही करने के लिए राज्य सरकार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की मंत्रणा के अनुसार प्रत्येक जिले की सत्र अदालत को विशेष अदालत के रूप में गठित करती है।
- बाल मैत्रीपूर्ण वातावरण तैयार करना जिसमें परिवार के सदस्य को, संरक्षक को, मित्र व रिश्तेदार को जिसमें की बच्चे का विश्वास हों, इजाजत देना सम्मिलित है।
- बच्चे को बीच-बीच में विराम देना।
- बच्चे की गवाही के लिए बार-बार अदालत में न बुलाना।
- आक्रामक एवं चरित्र हनन वाले प्रश्न बच्चे से ना पूछे जायें।
- बच्चे की इज्ज़त को बरकरार रखा जाये ।
- बच्चे की पहचान सार्वजनिक ना की जाये।
- माता-पिता व अन्य व्यक्ति जिसमें बच्चे को विश्वास हों की मौजूदगी में मुकदमे की सुनवाई कैमरे में होनी चाहिए।
- बच्चों से हुये यौन अपराध के मामले केवल महिला सब-इंस्पेक्टर ही देखेगी।
- बच्चों से पूछताछ ठाणे के अंदर नहीं की जाएगी।
- पुलिस बच्चों से जब भी मिलेगी पुलिस वर्दी मेन नहीं होगी।
- बच्चों के मामलों में बेहद संवेदनशीलता और गोपनीयता से काम लिया जाएगा।
- कोर्ट का माहौल बच्चों के अनुकूल होना चाहिए।
- बच्चों के प्रारम्भिक उपचार, दवाइयों और पोषक आहार के लिए कोर्ट द्वारा अन्तरिम मुआवजा भी दिया जाएगा।
- जब भी बच्चे के लिए जरूरत होगी सामाजिक और मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता भी उपलब्ध कराये जाएंगे।
यदि उपर्युक्त सभी रक्षात्मक उपायों का कड़ाई और सख्ती से पालन किया जाता है तो पीड़ित या पीड़िता के लिए जांच और सुनवाई एक डरावना अनुभव नहीं होगी और इससे पीड़ित या पीड़िता की गरिमा को भी कायम रखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त आवश्यकता है कि ऐसा समाज में ऐसा संवेदनशील माहौल का निर्माण किया जाए जिससे इस प्रकार के अपराधों को कम किया जा सके तथा रोका जा सके।
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