राष्ट्रीय आंदोलन में विदेशी महिलाओं की भूमिका|Role of foreign women in the national movement

 राष्ट्रीय आंदोलन में विदेशी महिलाओं की भूमिका
Role of foreign women in the national movement

 

राष्ट्रीय आंदोलन में विदेशी महिलाओं की भूमिका|Role of foreign women in the national movement

राष्ट्रीय आंदोलन में विदेशी महिलाओं की भूमिका (Role of foreign women in the national movement)


भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर अनेक विदेशी महिलाओं ने भी भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में अपने प्राणों को दाँव पर लगाया। इन विदेशी महिलाओं में एनी बेसेंटमैडम भीकाजी कामासिस्टर निवेदितामैडलिन स्लेड (मीराबेन) आदि विशेष उल्लेखनीय हैं।

 

एनी बेसेंट

 

  • लंदन में जन्मी एनी बेसेंट थिओसोफिकल सोसायटी से जुड़ने के बाद भारत आई थी। एनी बेसेंट थिओसोफिकल सोसाइटी की अध्यक्ष थी। एनी बेसेंट 1917 में भारतीय महिला संघ की पहली अध्यक्ष बनीजो मूलतः महिलाओं के राजनीतिक अधिकारों के लिए माँगों को आगे बढ़ाने का कार्य करता था। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से प्रभावित बेसेंट ने 1898 में बनारस में सेंट्रल हिंदू कालेज की नीव रखीजो 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया गया। एनी बेसेंट ने 'न्यू इंडिया और कामनवील पत्रों का संपादन करते हुए आयरलैंड के 'स्वराज्य लीगकी तर्ज पर सितंबर, 1916 में 'भारतीय होमरूल लीग की स्थापना कीजिसका उद्देश्य स्वशासन प्राप्त करना था। होमरुल आंदोलन के दौरान एनी बेसेंट की गिरफ्तारी के विरोध में देश के कोने-कोने में प्रदर्शन और सभाएं हुई। अपनी लोकप्रियता के कारण 1917 में एनी बेसेंट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हो गई। एनी बेसेंट को 1917 में कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष होने का गौरव भी प्राप्त है।

 

मारग्रेट नोबुल

 

  • आयरलैंड की मूलनिवासी मारग्रेट नोबुल (भगिनी निवेदिता) विवेकानंद के उदात्त दृष्टिकोण और स्नेहाकर्षण से प्रभावित होकर भारत को अपनी कर्मभूमि मान लिया था। भारत आकर भगिनी निवेदिता ने स्त्रियों की शिक्षा और उनके बौद्धिक उत्थान के लिए प्रयास किया तथा भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अपनी सक्रियता दिखाई। भगिनी निवेदिता ने अकाल और महामारी के दौरान पूरी निष्ठा से भारतीयों की सेवा की। कलकत्ता विश्वविद्यालय में 11 फरवरी, 1905 को आयोजित दीक्षांत समारोह में जबवायसराय लार्ड कर्जन के भारतीय युवकों के प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कियातो भगिनी निवेदिता ने बड़ी निर्भीकता से उसका प्रतिकार किया था।

 

मैडम भीकाजी कामा

 

  • भारतीय मूल की फ्रांसीसी नागरिक मैडम भीकाजी कामा ने लंदनजर्मनी और अमेरिका में जाकर भारत की स्वतंत्रता की पुरजोर वकालत की। मैडम कामा का पेरिस से प्रकाशित 'वंदेमातरम्पत्र प्रवासी भारतीयों में बहुत लोकप्रिय था। जर्मनी के स्टुटगार्ट शहर में 22 अगस्त, 1907 में हुई सातवी अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में वंदेमातरम् अंकित भारतीय तिरंगा फहराने का श्रेय मैडम को ही प्राप्त है।

 

मैडेलिन स्लेड

 

  • इंग्लैंड के ब्रिटिश नौसेना के एडमिरल की पुत्री मैडेलिन स्लेड नेजिन्हें गांधीजी ने मीराबेन का नाम दिया थाभी भारत को अपनी कर्मभूमि बनाया था। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मीराबेन गांधीजी के साथ आगा खाँ महल में कैद रही। यद्यपि मीराबेन ने भारत की धरती पर जन्म नहीं लिया थाकिंतु वह सच्चे अर्थों में भारतीय थी। गांधीजी का अपनी इस विदेशी पुत्री पर विशेष अनुराग था।

 

म्यूरियल लिस्टर

 

  • मीराबेन के साथ-साथ ब्रिटिश महिला म्यूरियल लिस्टर भी गांधीजी से प्रभावित होकर भारत आई थी। म्यूरियल लिस्टर ने इंग्लैंड में भारत की स्वतंत्रता का समर्थन किया। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के दौरान गांधीजी इंग्लैंड में म्यूरियल लिस्टर के 'किंग्सवे हाल में ही ठहरे हुए थे। उस दौरान म्यूरियल लिस्टर ने गांधीजी के सम्मान में एक भव्य समारोह भी आयोजित किया था। 


नेली सेनगुप्ता

 

  • इंग्लैंड में जन्मी नेली सेनगुप्ता की भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए जाना जाता है। जब चटगाँव (बंगाल) के निवासी जतीद्रमोहन सेनगुप्ता पढ़ने के लिए इंग्लैंड गयेतो वही वर्ष 1909 में नेली से उनका विवाह हो गया। जतीद्र के भारत आने पर नेली भी उनके साथ भारत आ गई। 1921 में असहयोग आंदोलन में अपने पति जतीद्रमोहन सेनगुप्ता के साथ नेली भी सुख-सुविधा का जीवन त्यागकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ी। असम-बंगाल की रेल हड़ताल के सिलसिले में जब जतीद्रमोहन गिरफ्तार कर लिये गये तो नेली ने मोर्चा संभाला और प्रतिबंधित खादी बेचने के आरोप जेल गई। जब 1933 में कोलकाता अधिवेशन के लिए निर्वाचित अध्यक्ष मालवीय गिरफ्तार कर लिये गयेतो नेली को ही कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया था। कोलकाता के कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष पद से भाषण देने पर नेली को भी गिरफ्तार कर लिया गया था। नेली सेनगुप्ता वर्ष 1940 और 1946 में निर्विरोध बंगाल असेंबली की सदस्य चुनी गई। 1947 के बाद नेली सेनगुप्ता पूर्वी बंगाल में ही रही और 1954 में पूर्वी पाकिस्तान असेंबली की निर्विरोध सदस्य बनी। भारत की आजादी में योगदान देनेवाली नेली सेनगुप्ता की मृत्यु 23 अक्टूबर, 1973 को कोलकाता में हुई।

 

राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं की भूमिका का मूल्यांकन

 

  • भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं ने देशभक्ति व विदेशी शासन से मुक्ति के भाव से ओतप्रोत होकर राष्ट्र के प्रति अपने कत्र्तव्यों का निर्वाह किया और घरेलू व सार्वजनिक जीवन की जिम्मेवारियों को एक साथ निभाया। किंतु भारत के स्वाधीनता आंदोलन में महिलाओं की भूमिका कई अर्थों में विरोधाभासी थी। महिलाओं के अधिकारों और राष्ट्रीय आंदोलन में उनकी भागीदारी में कोई सीधा संबंध नहीं था। अपने देश व मातृभूमि से अत्यंत प्रेम करने के कारण स्त्रियां स्त्री मुक्ति को विशेष प्रमुखता न देकर राजनीतिक मुक्ति के लिए संघर्ष करती रही। जहाँ गांधी जैसे नेताओं ने महिलाओं को घरों से बाहर निकलकर राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होने का आह्वान कियावही आंदोलनों के दौरान उनकी भूमिका का निर्धारण सांस्कृतिक और पितृसत्तात्मक सीमाओं के अंदर ही किया गया। दरअसल महिलाओं से 'स्त्रियोचित व्यवहारकी ही अपेक्षा की जाती थी। फिर भीस्वाधीनता आंदोलन के दौरान भारत की महिलाओं ने पहली बार समानता और स्वतंत्रता के मूल्यों को जाना और समझा। सरलादेवी चौधरानीसरोजिनी नायडूसुचेता कृपलानी जैसी महिलाओं ने राजनीतिक-मुक्ति के साथ-साथ मताधिकारसमान अधिकारचुनावी राजनीति में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका के लिए भी संघर्ष किया।

 

  • किंतु राष्ट्रीय आंदोलन और इसके नेताओं ने कभी लैंगिक समानता जैसे मुद्दे नही उठाये और न ही पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था को चुनौती दी। राष्ट्रवादी नेताओं ने परिवार के भीतर होनेवाले स्त्रियों के उत्पीड़न पर भी ध्यान नही दिया। 1947 में भारत को राजनीतिक मुक्ति तो मिल गईकिंतु कुछ राष्ट्रवादियों की पुरुषवादी मानसिकता के कारण महिला उद्धार के - प्रश्नों को अपेक्षित महत्त्व नहीं मिल सका। राष्ट्रीय आंदोलन के विभिन्न चरणों में स्वयं महिलाओं ने भी पितृसत्ता को चुनौती नही दी। यद्यपि पंडिता रमाबाई जैसी कुछेक महिलाओं ने ब्राह्मणवादी पितृसत्ता पर गहरे आघात कियेकिंतु उनका प्रयास सफल नही हो सका। राष्ट्रवादी अभिजन वर्ग ने महिलाओं को सीमित सीमाओं में रहकर सार्वजनिक गतिविधियों में भाग लेने की छूट दीकिंतु पितृसत्ता की पकड़ कभी कमजोर नही होने दी।

 

  • गांधीजी ने स्वयं महिलाओं के लिए घरेलू क्षेत्र को ही सर्वोच्च बताया थातथापि गांधीवादी आंदोलनों में महिलाओं की सार्वजनिक भागीदारी प्रशंसनीय रही। महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर भारतीय स्वतंत्रता के सपने को अपनी आँख में संजोये आगे बढ़ रही थी। क्रांतिकारी व कम्युनिस्ट आंदोलनों में भी छात्राओं व महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका थीकिंतु यहाँ भी पितृसत्ता का थोड़ा कमकिंतु स्पष्ट प्रभाव था। महिला संगठनों ने महिला मताधिकार पर तो विशेष जोर दियालेकिन पितृसत्ता की संरचना पर कोई प्रभावशाली प्रहार नही किया। इस प्रकार महिलाओं ने पितृसत्ता की जकड़न के बावजूद राष्ट्रीय आंदोलन में अपनी हिस्सेदारी का निर्वाह किया. 

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