UPSC Hindi literature question answer |हिंदी साहित्य के प्रश्न उत्तर
UPSC Hindi literature question answer (हिंदी साहित्य के प्रश्न उत्तर)
UPSC Hindi literature question answer (हिंदी साहित्य के प्रश्न उत्तर)
प्रश्न
हिन्दी कहानियों में प्रेमचन्द का स्थान निर्धारित कीजिए ?
उत्तर -
- प्रेमचन्द का आविर्भाव हिन्दी कहानी युग का एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। सन् 1916 से लेकर सन् 1936 तक उन्होंने लगभग 300 कहानियां लिखीं। डॉ. गोविन्द त्रिगुणायत के अनुसार-प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों में दलित मानवता के प्रति सहानुभूति का भाव प्रदर्शित किया है। उनका आदर्शवाद उनकी इसी सहानुभूति का परिणाम है वह उनकी आत्मा में से निकलता है। कौरा दिखावटी नहीं है। मनोवैज्ञानिक आधार लेकर चलने वाली उनकी आदर्शवादी कहानियां उनकी कहानी कला का चरम सौंदर्य प्रदर्शित करती है। इस दष्टि से प्रेमचन्द की टक्कर का कलाकार हिन्दी में आज तक नहीं जमा है।
प्रश्न
भारतेन्दु हिन्दी नाटक साहित्य पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
- भातेन्दु जी इस युग के सर्वश्रेष्ठ नाटककार थे। उन्होंने अनेक नाटकों की रचना की वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, चंद्रावली, भारतदुर्दशा, विषस्यविषमौसघम, अधेर नगरी आदि। इन्होंने इन नाटकों में इतिहास, समाज एवं राष्ट्रीय विषयों को अपनाया है। भारतेन्दु जी के नाटकों पर संस्कृति तथा बगला नाटकों का प्रभाव है। इनके नाटकों में पूर्व और पश्चिम का समन्वय दिखाई देता है। प्रतापनारायण मिश्र, राधाकृष्णदास श्री निवासदास, प्रेमधन आदि इस युग के मुख्य नाटकार हैं।
प्रश्न
द्विवेदी युगीन हिन्दी नाट्यसाहित्य पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
- महावीर प्रसाद द्विवेदी का युग सुधारवादी युग कहलाता है। नाटक के विकास में इस युग का योगदान तो है किन्तु कथ्य एवं शिल्प की दृष्टि कुछ नया जोड़ने में असमर्थ रहा है। इस युग में मौलिक नाटकों की अपेक्षा विभिन्न भाषाओं का हिन्दी में अनुवाद करने पर अधिक ध्यान दिया गया। किन्तु इस अनुवाद कार्य का विशेष महत्त्व यह है कि इसी कारण पारसी कम्पनियों में अभिनीत नाटकों में उर्दू का स्थान हिन्दी को मिलने लगा। इस काल के नाटककारों में नारायण प्रसाद बेताब राधेश्याम कथावाचक आगाह कश्मीरी, तुलसीदास शैदा और हरिकृष्ण जौहर के नाम अग्रगण्य हैं।
प्रश्न
प्रसाद युगीन हिन्दी नाट्य साहित्य का विवेचन कीजिए?
उत्तर
- जयशंकर प्रसाद का आगमन हिन्दी नाटक के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उनके नाटकों में हिन्दी नाटक कला का विकास अपने यौवन काल को पहुंच चुका था। प्रसादके नाटकों में राष्ट्रीयता का स्वर मुखरित हुआ है। सज्जन, करूणालय, राज्यश्री, अजातशत्रु चन्द्रगुप्त स्कन्दगुप्त ध्रुवस्वामिनी आदि नाटक प्रमुख है। इनमें से अधिकांश ऐतिहासिक हैं। यद्यपि रंगमंच की दृष्टि से प्रसाद के नाटक अधिक सफल नहीं है तथापि इतना अवश्य कहा जा सकता है कि प्रसाद अपने युग के सर्वश्रेष्ठ नाटककार है। लक्ष्मी नाराण मिश्र, गोविन्ददास, हरिकष्णप्रेमी, गोबिन्द बल्लभ पंत आदि इस युग के मुख्य नाटककार हैं। इनके नाटकों पर गांधीवाद का प्रभाव दिखाई पड़ता है।
प्रश्न
प्रसादोत्तर हिन्दी नाटक साहित्य का विवेचन कीजिए।
उत्तर
- प्रसादोत्तर हिन्दी नाटक का बहुमुखी विकास हुआ है। हरिकृष्ण प्रेमी जिन्होंने प्रसाद युग में लिखना आरम्भ किया था किन्तु वे प्रसादोत्तर युग तक लिखते रहे. उन्होंने ऐतिहासिक नाटकों की रचना की है। रक्षाबंधन, स्वप्न भंग, प्रतिशोध आहुति आदि उनके प्रसिद्ध नाटक हैं वदावनलाल वर्मा, उदयशंकर भट्ट, जगदीशचन्द्र माथुर, मोहनराकेश रामकुमार वर्मा, विष्णुप्रभाकर आदि इस युग के प्रमुख नाटककार हैं। इनके नाटकों में विवाह, जाति-पाति भेदभाव, सामाजिक विषमता आदि समस्याओं का यथार्थ चित्रण किया गया है।
प्रश्न
स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी नाटकों का विवेचन कीजिए।
उत्तर -
- स्वातन्त्र्योत्तर प्राप्ति के पश्चात् जहां विभिन्न प्रकार के मौलिक नाटकों की रचना की गई. वहां पंजाबी, बांग्ला, मराठी, कन्नड़ तमिल, अंग्रेजी आदि भाषाओं के नाटकों का हिन्दी अनुवाद करके हिन्दी नाटक साहित्य को समद्ध किया गया है। इस युग में ऐतिहासिक एवं समस्याप्रधान नाटकों के अतिरिक्त भाव प्रधान (नीतिनाट्य) तथा प्रतीक-नाटक भी लिखे गये हैं। विष्णु प्रभाकर, चिरंजीत, प्रभाकर माचवे, गिरिजाकुमार माथुर आदि इस युग के प्रमुख नाटककार हैं।
प्रश्न
ऐतिहासिक हिन्दी नाटक पर टिप्पणी लिखिए।
- नाटककार जयशंकरप्रसाद ने मुख्यतः ऐतिहासिक नाटकों की रचना की थी। प्रसाद ने 1910 से 1933 तक निरन्तर नाटकों की रचना की जिनमें राज्यश्री, स्कन्द गुप्त, चंद्रगुप्त जनमेजय का नागयज्ञ आदि प्रमुख है। इसके साथ ही वंदावन लाल वर्मा, चन्द्रगुप्त विधालंकार, सेठ गोविन्दास, उदयशंकर भट्ट आदि नाटककार भी इसी श्रेणी के हैं। इन्होंने अपने देशवासियों के आत्मगौरव, स्वाभिमान उत्साह और प्ररेणा का संचार करने के लिए अतीत के गौरवपूर्ण सदर्भों को अपनी रचनाओं में चित्रित किया है।
प्रश्न
पौराणिक नाटक साहित्य का विवेचन कीजिए?
- पौराणिक विषय को आधार बनाकर अनेक नाटककारों ने नाटकों का प्रणयन किया। प्रसाद, सुदर्शन, गोबिन्द बल्लम पंत माखनलाल चतुर्वेदी आदि पौराणिक नाटककार हैं। इन्होंने अपने नाटकों के माध्यम से समाज पर कटु व्यंग्य किए हैं। मेघनाथ, उर्मिला सीता की मां, सुदामा आदि प्रमुख पौराणिक नाटक हैं। उदयशंकर भट्ट को पौराणिक नाटककारों में प्रतिनिधि नाटककार कहा जा सकता है। इनके अम्बा और सागर विजय प्रमुख पौराणिक नाटककार हैं।
प्रश्न
- अनुदित नाट्य साहित्य का विवेचन कीजिए।
उत्तर-
- अनूदित नाटकों की जो परम्परा भारतेन्दु और द्विवेदी युग से चली आई थी वह भी अक्षुण्ण से चल रही है। अन्य भारतीय भाषाओं के नाटकों का हिन्दी में अनुवाद करके हिन्दी के नाटक साहित्य को समद्ध किया जा रहा है। बंगला मराठी कन्नड आदि का भारतीय भाषाओं के अनेक नाटकों का हिन्दी अनुवाद किया गया है। भारतेन्दु ने विद्यासुन्दर, पाखण्ड विडज्ञम्बना धनजय विजय, कर्पूर मंजरी आदि अनूदित नाटकों की रचना की जीत शर्मा, अनिल कुमार मुखर्जी, कृष्ण बलदेव आदि ने विदेशी नाटकों का हिन्दी में अनुवाद किया है।
प्रश्न
मार्क्सवादी या प्रगतिवादी उपन्यास साहितय पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए?
उत्तर
- जीवन के आर्थिक असंतुलन, वर्ग संघर्ष, मजदूर तथा शोषित वर्ग का यथार्थ चित्रण तथा शोषक वर्ग की भर्त्सना इन उपन्यासों की कथावस्तु होती है। यशपाल इस क्षेत्र में अग्रणी कथाकार हैं। उनके दादा कामरे 'मनुष्य के रूप तथा 'देशद्रोही' इस प्रवति के प्रमुखतम उपन्यास हैं। नागार्जुन इस प्रवति के दूसरे बड़े लेखक हैं। उनके कुंभीपाक, बाबाबटेश्वरनाथ प्रसिद्ध उपन्यास है। इनके अतिरिकत भैरवप्रसाद गुप्त, अमतराय, रामेश्वर शुक्ल, अंचल इस श्रेणी में आते हैं।
प्रश्न
मनोवैज्ञानिक हिन्दी उपन्यास साहित्य का निरूपण कीजिए।
उत्तर
- मानव की हीन मानसिक ग्रन्थियों, कुण्ठाओं, प्रति क्रियाओं एवं मनोविश्लेषण की चर्चा इन उपन्यासों का प्रमुख विषय होता है। ऐसे साहित्य पर फ्रॉयड के सिद्धान्तों की छाप स्पष्ट है। जैनेन्द्र के उपन्यास हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ अन्तश्चेतनावादी उपन्यास है। परख, सुनीता, त्यागपत्र, सुखदा, विवर्त, अनामस्वामी मुम्बिोध उनकी प्रसिद्ध रचनाएं है। इसके अतिरिक्त इलाचन्द्र जोशी, अज्ञेय, नरेश मेहता, डॉ. देवराज, आदि के मनोवैज्ञानिक उपन्यास हैं।
प्रश्न
राजनैतिक उपन्यास साहित्य पर टिप्पणी लिखिए?
उत्तर-
- समाज में फैले भ्रष्टाचार शासन की पैंतरे बालियां तथा उस पिसती जनता का प्रतीकात्मक व्यंग्यात्मक चित्रण ही इन उपन्यास का आम तत्व है। श्रीलाल शुक्ल का रागदरबारी, भगवतीचरण वर्मा का सबहिं न चावत राम गोसाई, "शिव प्रसाद सिंह का अलग-अलग वैतरणी, बदीउज्जमां का एक चूहे की मौत, गुरुदत का दो लहरों की टक्कर मणि मधुकर का सफेद मेमने इस प्रवति की श्रेष्ठ कतिया है।
प्रश्न
'आलोचना' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके स्वरूप का विवेचन कीजिए ।
उत्तर-
- आलोचना शब्द लोच' धातु से बना है जिसका अर्थ होता है- 'देखना किसी वस्तु' या कति की सम्यक् (भली प्रकार) व्याख्या उसका मूल्यांकन आदि करना आलोचना है। भारतीय साहित्य में आलोचना की प्राचीन परिपाटी है। संस्कत साहित्य में इसका चरम विकास हुआ है। जिनकी आलोचना का आरम्भ हम भक्तिकाल से मान सकते हैं। आधुनिक युग में प्रैस के विकास तथा गद्य के विकार से प्राचीन आलोचना में पाश्चात्य प्रणाली का मिश्रण हुआ। आधुनिक आलोचना का वास्तविक आरम्भ गद्यकाल की देन है। गद्य के आविर्भाव से अनेक पत्र-पत्रिकाएं निकलने लगीं। इन्हीं पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आधुनिक आलोचना का श्री गणेश माना जाता है।
प्रश्न
भारतेन्दु युगीन हिन्दी आलोचना पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
- आधुनिक काल के जनक भारतेन्दु ने हिन्दी की प्रत्येक विद्या की शुरुआत की समीक्षा की इसका अपवाद नहीं है। भारतेन्दु ने पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आलोचनात्मक लेख लिखे। उन्होंने कवि वचन सुधा तथा हरिश्चन्द्र मैगजीन में कुछ नोट समालोचना के नाम से निकाला करते थे। श्री निवासदास के 'संयोगिता स्वयंवर' नाटक पर बालकृष्ण भट्ट ने हिन्दी प्रदीप पत्रिका में एक छोटी समालोचना लिखी। इसके अतिरिक्त बद्रीनाथ चौधरी, गंगाप्रसाद अग्निहोत्री आदि इस युग के आलोचक हैं।
प्रश्न
द्विवेदीयुगीन हिन्दी आलोचना पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
- महावीर प्रसाद द्विवेदी के महान् प्रयासों से आलोचना विधा के रूप में प्रतिष्ठित हुई। सरस्वती पत्रिका के माध्यमसे उन्होंने हिन्दी आलोचना के स्वरूप को व्यवस्थित किया एवं अपने युग के आलोचकों का मार्गदर्शन कर उन्हें नई दिशा प्रदान की।
- इस युग की आलोचना को पांच भागों में बांट सकते हैं। शास्त्रीय आलोचना 2. तुलनात्मक आलोचना 3. अनुसंधानपरक आलोचना 4 परिचयात्मक आलोचना 5. व्याख्यात्मक आलोचना द्विवेदी जी के संबंध आचार्य शुक्ल ने कहा है- "द्विवेदी जी ने नई पुस्तकों की भाषा की खरी आलोचना करके हिन्दी साहित्य का बड़ा उपकार किया।" डॉ. श्यामसुन्दरदास, पदमसिंह, कृष्ण बिहारी मिश्र आदि इस युग के मुख्य आलोचक हैं।
प्रश्न
शुक्ल युगीन आलोचना साहित्य पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आलोचना के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्हें हिन्दी का प्रथम प्रौढ़ आलोचक माना जा सकता है। शुक्ल एक सुनिश्चित मानदण्ड तथा विकसित समीक्षा पद्धति लेकर आलोचना के क्षेत्र में आए।
- इनकी आलोचना के तीन रूप हैं सैद्धातिक, ऐतिहासिक, व्यवहारिक आलोचना डॉ. श्याम सुंदरदास, पदमलाल बुन्नालाला बख्शी, गुलाबराय आदि इस युग के मुख्य आलोचक हैं।
प्रश्न
भारतीय सैद्धान्तिक आलोचना का विवेचन कीजिए।
उत्तर
- सैद्धान्तिक आलोचना में समस्त काव्य अंग, काव्यतत्व, काव्य प्रयोजन, काव्यहेतु काव्य के लक्षण आदि का मूल्यांकन किया जाता है। इस युग के नए तत्व चिंतकों ने नई आलोचना नाम लिखना आरम्भ करदिया। इनके मूल विदेशी आलोचना साहित्य का प्रभाव दिखाई पड़ता है। इनकी भाषा जटिल है, पाठक जान ही नहीं पाता कि आलोचक क्या कहना चाहता है। इन आलोचकों में अस्पष्टता एवं भ्रांति सर्वत्र है। डॉ. नगेन्द्र डॉ. देवराज, डॉ. लीलाधर बाबू गुलाबराय आदि इस श्रेणी के आलोचक हैं।
प्रश्न
मनोविश्लेषणवादी आलोचना का परिचय दीजिए।
उत्तर
- हिन्दी में मनोविश्लेषण वादी आलोचना भी प्रभुत्व में आई फ्रॉयड एडलर मंग आदि माना है कि समाज भय से मन में उत्पन्न होने वाली कामवासना तथा अनेक अन्य प्रकार की इच्छाएं मन के भीतर ही भीतर उमड़ती-घुमडती रहती है और कुछ समय के पश्चात वहीं कुण्ठाओं को जन्म देती है। यही कुण्ठाएं साहित्यकारों के साहित्य में दिखाई देती है। अज्ञेय, इलाचंद्र जोशी धर्मवीर भारती आदि ने अपने साहित्य में इसे स्थान दिया है और साथ ही आलोचनाएं लिखकर इस सिद्धांत का समर्थन किया। अज्ञेय का त्रिशंकु और आत्मेनपद तथा इलाचन्द्र जोशी का साहित्य चिंतन विवेचना, विश्लेषण साहित्य चिंतन आदि रचनाओं में मनोविश्लेषणवादी आलोचना का रूप मिलता
प्रश्न
प्रयोगवादी आलोचना पद्धति का परिचय दीजिए।
उत्तर -
- प्रयोगवादी कवियों ने अपनी पुस्तकों का मूल्यांकन करने के लिए एक भिन्न आलोचना पद्धति का आरम्भ किया जो इलियट आदि पश्चिमी विचार को से प्रभावित है। आलोचकों ने इस आलोचना को नई आलोचना का नाम दिया है। इसमें कलाकार के अनुभूति और सामाजिक पक्ष को महत्व न देकर रूप विधान को अधिक महत्त्व दिया जाता है इसमें परम्परागत मूल्यों के प्रति विद्रोह भावना है और भाषा शैली विषयवस्तु आदि के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग किए गए हैं जिसका मूल मंत्र व्यक्ति स्वतंत्रता है। अज्ञेय, लक्ष्मीकांत वर्मा, रामस्वरूप चतुर्वेदी, धर्मवीर भारती, डॉ. जगदीश गुप्त आदि इस श्रेणी के मुख्य आलोचक है।
प्रश्न
शौष्ठववादी आलोचना पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
- इसमें वैयक्तिकता पर आधारित तटस्था के साथ-साथ मूल्यांकन और निर्णय को महत्त्व दिया गया है। इस पद्धति के आरम्भिक रूप के दर्शन पंत, निराला, महादेवी वर्मा आदि के काव्य संग्रहों की भूमिकाओं के रूप में लिखे गए आलोचनात्मक निर्बंध हैं। नंद दुलारे वाजपेयी, शांतिप्रिय द्विवेदी, गंगाप्रसाद पाण्डेय आदि ने इसी पद्धति को अपनाया है। ये पद्धति भी बहुत प्रचलित नहीं हुई थी। वर्तमान युग में ऐसी आलोचना कभी कभी दिखाई दे जाती है।
प्रश्न
प्रगतिवादी आलोचना साहित्य पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
- इस युग में एक ऐसी समीक्षा पद्धति का उदय हुआ है जो काफी सशक्त बनी रही है। इसे मान सेवाएं या प्रगतिवादी पद्धति कहते हैं। इनका दष्टिकोण पूर्ण रूप से समाजवादी है। ऐसे जन-जीवन से जुड़े हुए साहित्य के समर्थक हैं जिसमे शोषण, अन्याय, अत्याचार आदि का मार्मिक चित्रण किया गया हो। इन्होंने व्यक्तिवाद या आदर्श वाद का विरोध करते हुए साहित्य जगत् में एक निराला जैसे छायावादी कवि भी प्रगतिवादी कविताएं लिखने लगे। ये बाद में प्रगतिवादी आलोचक दो वर्गों में विभाजित हो गए थे। एक वर्ग ने प्राचीन साहित्य की प्रशंसा की तथा दूसरे ने उसका बहिष्कार करने की बात की।
प्रश्न
रेखाचित्र किसे कहते हैं ?
उत्तर
- रेखाचित्र कहानी से मिलता-जुलता साहित्यिक रूप है। इसे 'शब्द-चित्र' भी कहते हैं। अंग्रेजी में इसका नाम 'स्केच' है। रेखाचित्र में किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या भाव का कम से कम शब्दों में मर्मस्पर्शी भावपूर्ण एवं सजीव अंकन किया जाता है। रेखाचित्र में सांकेतिकता अधिक रहती है। लेखक कम से कम शब्दों में किसी व्यक्ति या वस्तु की मुख्यतः विशेषता कोउभार देता है। संस्मरण में चित्र-शैली का प्रयोग किया जाता है। रेखाचित्रों में कल्पना की प्रधानता एवं घटनाओं की समग्रता रहती है। रेखाचित्राकार शब्दों और वाक्यों के सकेतों से बहुत कुछ कह डालता है।
प्रश्न
रेखाचित्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर
- विभिन्न विद्वानों ने रेखाचित्र की परिभाषा दी है। श्री भगीरथ मिश्र के अनुसार" शब्द चित्र में किसी व्यक्ति की यथार्थ तथा वास्तविकता चारित्रिक विशेषताओं को उभारने का प्रयत्न होता है।" डॉ. नगेन्द्र के शब्दों में- "रेखाचित्र में उसे कहते है। जिसमें रेखाएं हो पर मूर्त अर्थात् उतार-चढ़ाव दूसरे शब्दों में कथानक का उतार चढाव आदि न हो, तथ्य का उद्घाटन मात्र हो।" श्री विनय मोहनशर्मा का मत है- "रेखाचित्र में व्यक्ति, घटना या दश्य का अंकन होता है। इन विभिन्न भाषाओं से स्पष्ट होता है कि रेखाचित्र में किसी व्यक्ति वस्तु अथवा घटना का शब्दों के माध्यम से मर्मस्पर्शी चित्रण किया जाता है।
प्रश्न
रेखाचित्र की विशेषताएं स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
- रेखाचित्र में किसी व्यक्ति अथवा वस्तु की विशिष्टताओं का प्रभावशाली ढंग से चित्रण किया जाता है। इसमें सूक्ष्म चित्रण एवं विश्लेषण का होना आवश्यक है। इसके वर्ण्य विषय में यथार्थता होती है, साथ ही कल्पना का भी थोड़ा सा पुट विद्यमान रहता है। इसमें संवेदनशीलता, सहृदयता तथा प्रभावोत्पादकता का होना भी जरूरी है। रेखाचित्र की भाषा सांकेतिक भावविशमयी, वर्णनात्मक व्यावहारिक, काव्यमयी, बोधगम्य तथा सरस होती है। इनमें निम्नलिखित शैलियों का प्रयोग मिलता है। -कथात्मक, निबंध तरंग, वर्णनात्मक समवाद, सूक्ति, डायरी सम्बोधन,आत्मकथात्मक।
प्रशन
'निराला जी के रेखाचित्रों का परिचय दीजिए।
उत्तर -
- सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के 'कुल्ली भाट' और 'बिल्लेसुर बकरिहा का उपन्यास और रेखाचित्र के अर्न्तगत स्वीकृति प्रदान की गई है। निराला के उपन्यासों की अपेक्षा रचनाओं की मौलिक भिन्नता इस बात से सिद्ध है कि इसमें निराला जी ने यथार्थव्यक्तियों को अपनी लेखनी का उद्देश्य बनाया है। इन रेखाचित्रों में निराला की भाषा लोक संस्कृति के तत्त्वों से ओतप्रोत तथा मुहावरेदार है। जिसमें गजब की शक्ति तथा स्वभाविकता भरी हुई है। शब्द अनायास एवं सहज रूप में आगे-आगे चलते है। भाषा में न कत्रिमता है और न प्रयत्न शीलता.
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