ई-पत्रकारिता के विविध रूप| Various forms of e-journalism in Hindi

ई-पत्रकारिता के विविध रूप (Various forms of e-journalism in Hindi)

ई-पत्रकारिता के विविध रूप| Various forms of e-journalism in Hindi

ई-पत्रकारिता के विविध रूप

 

ई-पत्रकारिता के विकास में सहायक संचार के विभिन्न माध्यमों की विवेचना के उपरांत अब आपको ई-पत्रकारिता के विविध रूपों से परिचय कराना श्रेयस्कर होगा। ये रूप निम्नलिखित हैं

 

1 रेडियो और टी.वी. पत्रकारिता

 

  • रेडियो और टी.वी. पत्रकारिता आज भी अपना महत्व बनाए हुए हैं जबकि आज अंतरजाल पत्रकारिता काफी फैल चुकी है। रेडियो एक श्रव्य माध्यम है और टी. वी. एक दृश्य-श्रव्य माध्यम है। अतः दोनों माध्यमों में अंतर रहेगा। 
  • रेडियो ओर टी.वी. पत्रकारिता में अनेक विशेषताएं तो वहीं रहती हैं जो मुद्रित माध्यम में होती हैं। मूल रूप से रेडियो पत्रकारिता के अंतर्गत रेडियो से प्रसारित समाचार बुलेटिनसामयिक समीक्षासामयिकीरेडियो न्यूजरीलपरिचर्चाभेंटवार्तावार्ताउद्घोषणा आदि कार्यक्रम सम्मिलित हैं। रेडियो पत्रकारिता में शब्दों का महत्व हैवह भी बोले गए शब्दों का । 
  • शब्द भी ऐसे बोले गए हों जो श्रोता को वार्तालाप जैसे लगे और श्रोताओं को अपनी ओर आकर्षित कर लें। यहां शब्द इस प्रकार प्रयोग किए जाते हैं कि दृश्य का निर्माण श्रोता के मन पर हो सके। संगीत (मंदतीव्रहर्षसूचकविषादसूचकआरंभिकसमाप्तिसूचक तथा दृश्यांतर बोधक) और ध्वनि प्रभाव (जैसेक्रिया ध्वनियां दस्तक देने की आवाजें आदिस्थल ध्वनियां- गाड़ियों की आने की उद्घोषणाएं आदि तथा प्रतीक ध्वनियां ठहाकोंझरनों की आवाजें आदि) का प्रयोग यहां पत्रकारिता में सहायक होता है।
  • यह वार्तालाप की शैली टी.वी. पत्रकारिता में भी अपेक्षित होती है। तात्कालिकतानिकटता और समय का महत्व दोनों में रहता है। वास्तव में टी.वी. पत्रकारिता एक ऐसी कला है जो अत्यंत प्रभावशाली और व्यापक है क्योंकि इसमें कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो अन्य माध्यमों की पत्रकारिता में नहीं मिलतीं। इसमें भी रेडियो पत्रकारिता के समान ही समाचारवार्तापरिचर्चाभेंटवार्तारिपोर्टिंगकॉमेंट्रीसामयिक कार्यक्रमसर्वेक्षण आदि सम्मिलित हैं। 
  • यह पत्रकारिता दृश्य और श्रव्य दोनों गुणों को समाहित किए हुए हैं। इसमें बोले गए शब्द का महत्व तो है, पर उतना नहीं है जितना रेडियो पत्रकारिता में होता है बल्कि दृश्य का अत्यधिक महत्व है। दृश्य भी ऐसा जो जीवंत हो, लोगों को सब कुछ समझा दें। इस माध्यम में आप समाचार देख भी सकते हैं, पढ़ भी सकते हैं और सुन भी सकते हैं। रेडियो में आपके पास केवल सुनने को छोड़कर अन्य कोई सुविधा नहीं है। 
  • टेलीविजन पत्रकारिता में आपको घटनास्थल पर लेकर संवाददाता जाता है जिससे किसी घटना की गंभीरता और व्यापकता से व्यक्ति परिचित होता है यह सुविधा प्रिंट पत्रकारिता और रेडियो पत्रकारिता में उपलब्ध नहीं है। 

  • हरीश करमचंदाणी लिखते हैं कि 'समाचारपत्र विवरण सहित सचित्र समाचार प्रकाशित करते हैं, किंतु एक तो वहां समय कारक कार्य करता है, तुरंत आप तक नहीं पहुंच पाता, उसकी आवृत्ति निर्धारित होती है। फिर उसमें मानवोचित गुण-दोष भी संभव हैं। यह विवरण भेजने वाले व्यक्ति की दक्षता पर निर्भर है कि समाचार किस अंदाज व संप्रेषणीयता तक पाठक तक पहुंचता है। एक ही घटना या समाचार अक्सर अलग-अलग रूप, रंग और कथ्य के साथ छप सकता है, जबकि टीवी पर दर्शक सीधा घटना को देखता है, वहां विवरण देने की एक सीमा होती है, वर्णन कम होता है, दृश्य ज्यादा होते है, जो अपनी बात खुद बोलते हैं।


  • रेडियो पर भी घटना और समाचार तुरंत प्रसारित हो जाते हैं और श्रोता को संवाददाता सीधे घटना स्थल पर भी ले जाता है लेकिन श्रव्य मात्र होने के कारण यह उस आनंद या प्रभाव को प्रदान नहीं कर पाता जो टी. वी. पत्रकारिता में संभव है। अनेक चीजें देखने से ही स्पष्ट होती हैं, केवल सुनने से ही नहीं। रेडियो का महत्व इस बात में तो है कि वह त्वरित सूचना प्रदान कर सकता है और उसकी पहुंच भी दूरदराज तक होती है तथा वह बिना बिजली के भी बैटरी व सेल से कार्य कर सकता है लेकिन दृश्य से जो विश्वसनीयता टी. वी. पत्रकारिता में पैदा होती है वह रेडियो पत्रकारिता में नहीं हो पाती।

 

रेडियो और टी. वी. पत्रकारिता हेतु कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है जो इस प्रकार हैं- 

 

  • किसी जाति, धर्म, नस्ल, संप्रदाय, रंग का आक्षेप नहीं होना चाहिए। 
  • किसी की मानहानि व निंदा नहीं होनी चाहिए। 
  • न्यायालय की अवमानना नहीं होनी चाहिए। 
  • संविधान का अनादर या उसमें परिवर्तन के लिए हिंसा का समर्थन नहीं करना चाहिए।
  • संवैधानिक पदों की मर्यादा पर निंदापूर्ण टिप्पणियां नहीं होनी चाहिए। 
  • मित्र राष्ट्रों की आलोचना से भी बचना चाहिए। 
  • केन्द्र या राज्य सरकार की आलोचना नहीं होनी चाहिए।

 

रेडियो और टी.वी. समाचारों के लिए वाचन

  • रेडियो और टी.वी. समाचारों के लिए एक उत्तम वाचन की आवश्यकता होती है। वाचक की आवाज प्रभावशाली और शुद्ध हो, जो प्रस्तुतीकरण के साथ सामंजस्य बिठा सके। ऐसी अपेक्षा खासतौर पर टी.वी. में होती है। 
  • वाचन में आत्मविश्वास, भावानुरूप स्वर का आरोह-अवरोह, कथ्य सामग्री के अनुसार गति तथा प्रसंगानुसार ओज और माधुर्य होना चाहिए। इसी प्रकार इन दोनों प्रकार की पत्रकारिता मे काम करने वाले पत्रकार को समाचारों की पृष्ठभूमि और विविध विषयों की जानकारी होनी चाहिए। समाचारों का संपादन भी कुशलता से करना चाहिए और दक्ष संपादकों को यह काम करना चाहिए। 
  • भाषा भी सरल और संप्रेषणीय होनी चाहिए। प्रभावी और त्रुटिहीन भाषा का प्रयोग करना चाहिए, पुनरावृत्ति से बचना चाहिए। वाक्य संक्षिप्त हों क्योंकि छोटे-छोटे वाक्य सरलता से बोले जा सकते हैं और शीघ्रता से समझे जा सकते हैं। एक वाक्य में एक ही प्रकार की सूचना होनी चाहिए। बार-बार नाम के साथ-साथ पद के उल्लेख से बचना चाहिए। यही नहीं ध्वनि-साम्य शब्दों का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए। 
  • रेडियो समाचारों और कायक्रमों के संबंध में यह आवश्यक है कि क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग न हो क्योंकि श्रोता के पास शब्दकोश देखने का समय नहीं होता और दूसरे वहां चित्र सामने नहीं होता जो सब कुछ बता दे । उपर्युक्त, उक्त, निम्नलिखित, निम्नांकित, किंतु, परंतु, तथापि आदि शब्दों का लिखित महत्व हो सकता है लेकिन रेडियो पत्रकारिता में बोलने की दृष्टि से इनका महत्व नगण्य है। इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए। 


  • टी. वी. पत्रकारिता में आंकड़ों का प्रयोग चल सकता है क्योंकि वहां श्रव्य और दृश्य दोनों होता है लेकिन रेडियो पत्रकारिता में आंकडों का प्रयोग अत्यल्प करना चाहिए अन्यथा रोचकता के समाप्त होने का डर रहता है। टी. वी. पत्रकारिता के लिए पत्रकार को लेखन, शब्द, ध्वनि, टी.वी. तकनीक, टी.वी. कैमरा आदि का ज्ञान होना चाहिए।

 

  • आज रेडियो पत्रकारिता में शालीनता और नैतिकता पर अपेक्षित बल है लेकिन टी.वी. पत्रकारिता में शालीनता और नैतिकता की सीमाएं टूट रहीं हैं। दर्शकों को बांधे रखने के लिए नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं। कई देशों (कनाडा, रूस) मे नेकेड समाचार प्रसारण होता है और ऐसी पत्रकारिता ही आज श्रेष्ठ मानी जाने लगी है और अच्छी पत्रकारिता आज घाटे का व्यापार हो गया है। सनसनी और मसालेदार खबरें टी.वी. पर विभिन्न चैनलों पर बार-बार दिखाई जाती हैं। अपराध के समाचार देखना, उन पर आधारित विशेष रिपोर्ट देखना आज लोगों की रुचि में सबसे ऊपर है। टी. वी. पत्रकारिता इसे लगातार परोस रही है। 
  • प्रतिस्पर्धा और टी. आर. पी. (टेली रेटिंग प्वाइंट) के इस दौर में सब जायज हो गया है और यह सब कार्यक्रम बच्चे भी देखते हैं, बड़े भी और बूढ़े भी। इसी पर प्रकाश डालते हुए दीनानाथ मिश्र लिखते है कि असल में पश्चिमी पत्रकारिता नशेड़ी हो गई है। जब तक ऐसी रोमांस भंडाफोड़ कथाएं उसे न मिले तब तक यह पत्रकारिता छटपटाती रहती है....... अब अखबारों को तो लत हो गई है। ऐसे समाचारों की पाठकों को भी लत हो गई है। सो कोई न कोई स्कैंडल इस व्यवस्था के चालू रहने के लिए जरूरी है। कोई तबाह हो जाए, उनकी बला से। कोई मर जाए, मरा करे। इन्हें तो चटपटे सैक्स मसाले की चाट का धंधा करना है। इससे दुनिया भर के लोगों की मानसिकता पर असर पड़ता है। पड़ा करे, इनके ठेंगे से। यह अपनी तरह की पत्रकारिता करते जाएंगे क्योंकि इनके ख्याल से बाजार की यह मांग है। हालांकि यह मांग इन्होंने ही बनाई है।


  • आज टी.वी. पत्रकारिता में ऐसी ही पत्रकारिता ही अधिक मुख है। अब रेडियो और टी.वी. पत्रकारिता पर बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों का कब्जा है हालांकि दूरदर्शन और आकाशवाणी अभी भी इन सबसे काफी बचे हुए हैं।

 

2 वीडियो पत्रकारिता

 

  • इस पत्रकारिता की शुरूआत 19 वीं सदी के नवें दशक में हुई जिसका परिणाम यह हुआ कि यह पत्रकारिता लोगों के मन को आकर्षित करने लगी। भारत में इसका उदय वीडियो पत्रकारिता के रूप में हुआ। 


  • अंग्रेजी में 'इनसाइट' और 'न्यूज ट्रैक' और हिंदी में 'कालचक्र' जैसी वीडियो समाचार पत्रिकाएं बाजार में आई। 'लहरें' शीर्षक से फिल्मी मनोरंजन और समाचारों से भरी वीडियो भी काफी सराही गईं। इनकी सफलता से प्रेरित प्रभावित होकर चेन्नई की 'गणभूमि विजन' ने गणभूमिवीडियो पत्रिका प्रारंभ की। यह रामायण, महाभारत, वेद, पुराण आदि से संबंधित थी और लोगों की आध्यात्मिक चेतना को विकसित कर रही थी। अनंत पै ने 'अमर चित्रकथा' 'टूट्विंकल' जैसी बाल वीडियो पत्रिकाएं निकालीं जो बच्चों के स्वस्थ मनोरंजन को केन्द्र में रखे हुए थीं। 'ट्विंकल टाइम विद अंकल पै' नामक शृंखला इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम थी। अयोध्या कांड, महम कांड, मंडल आयोग और खाड़ी युद्ध के परिणामस्वरूप इस पत्रकारिता ने काफी लोकप्रियता हासिल की। लोगों ने रुचि के साथ इन पर आधारित पत्रिकाओं को देखा जिसका व्यापक प्रभाव लोगों पर पड़ा। वीडियो पत्रकारिता का सबसे बड़ा लाभ यह था कि इसमें समाचार वाचक समाचार तो पढ़ता ही था, बल्कि अपनी टिप्पणी स्वतंत्र रूप से भी दे सकता था। उसका चेहरा भारतीय दूरदर्शन के समाचार वाचक के समान भावहीन तथा तटस्थ नहीं था। इसमें श्रोताओं से संवाद स्थापन की गुंजायश थी और चेहरे की भाव-भंगिमा, आवाज के उतार-चढ़ाव से अतिरिक्त संप्रेषण की अपेक्षा भी थी।

 

3 अंतरिक्ष पत्रकारिता

 

  • इसे 'स्पेस जर्नलिज्म' या 'उपग्रह पत्रकारिता' भी कहा जाता है। इसमें उपग्रह के द्वारा प्रेषित संवाद दिन-रात रेडियो और दूरदर्शन से सुना और देखा जा सकता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि लंबे लेख, समाचार आदि एक स्थान से दूसरे स्थान भेजना न केवल सुगम और तीव्र हो गया बल्कि मुद्रण हेतु सांचों की प्रतिच्छाया भी एक केंद्र से दूसरे केंद्र पर भेजना सुगम हो गया। इस प्रकार एक ही समाचारपत्र के कई संस्करण एक ही साथ अनेक स्थानों पर प्रकाशित होना संभव हो गया। दृश्य, संपादन, पृष्ठ सज्जा, लेखन सभी एक ही स्थान पर बैठे व्यक्तियों के द्वारा इलेक्ट्रॉनिक विधियों द्वारा होने लगा और दूसरे देशों, स्थानों के लोगों को उसका लाभ मिलने लगा। 


  • फोटो ट्रांसमीटर से यह लाभ मिला कि एक देश में खेले जा रहे मैच के चित्र कुछ ही घंटों में दूसरे देशों के समाचारपत्रों में प्रकाशित होने लगे और टी. वी. पर प्रसारित होने लगे। रंगों, गलेज्ड पेपर और ग्राफिक्स का विभिन्न संचार माध्यमों में प्रयोग होने लगा। नवीनता का समावेश समाचारपत्रों में विभिन्न रूपों में होने लगा।

 

4 वेब या अंतरजाल पत्रकारिता

 

  • यह पत्रकारिता 21 वीं सदी की विशिष्ट देन है। इसे ऑनलाइन पत्रकारिता या इंटरनेट पत्रकारिता भी कहा जाता है। इसमें काम करने के लिए पत्रकार को न केवल वेब लेखन में पारंगत होना चाहिए बल्कि वेब प्रकाशन में भी दक्ष होना चाहिए। अंतरजाल पत्रकारिता के लिए पामटॉप, लैपटॉप, डिजीटल कैमरा, बेतार उपकरणों, मल्टी मीडिया, सर्चटूल्स आदि की प्रयोगात्मक जानकारी होनी चाहिए। 


  • आज अधिकांश समाचारपत्र ऑनलाइन समाचारपत्र प्रकाशित प्रसारित करते हैं। अंतरजाल पत्रकारिता इंटरनेट पर आधारित है जिसमें तकनीक की प्रधानता है। इसी तकनीक का उपयोग कर पत्रकार समाचार लेखन कर सकता है और पाठक आसानी से कोई भी समाचार पढ़ सकता है और तत्काल प्रतिक्रिया दे सकता । आज विभिन्न समाचारपत्र और टी. वी. न्यूज चैनल निःशुल्क सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। इस प्रकार के समाचारपत्र को इलेक्ट्रॉनिक समाचारपत्र कहा जाता है। डॉ. अर्जुन तिवारी लिखते हैं कि 'ज्ञान के साथ-साथ प्रतिदिन की घटनाओं को पाठकों तक पहुंचाने की महत्वाकांक्षी योजना का नाम ही 'इलेक्ट्रॉनिक अखबार' है।

 

  • अंतरजाल पत्रकारिता में विज्ञापन अनिवार्य रूप से सामने आता है। लेकिन आप उसे हटा सकते हैं और अपना पूरा ध्यान समाचार, फीचर, लेखों आदि पर लगा सकते हैं। अंतरजाल पत्रकारिता में पहले यह दिक्कत थी कि पेज का नवीकरण मंद गति से होता था लेकिन आज ऐसी स्थिति नहीं है। बाजार का दबाव, विज्ञापनों की अधिकता, सनसनी और मसालेदार सामग्री ऑनलाइन समाचारपत्रों में अक्सर देखने को मिलती है।


  • अंतरजाल पत्रकारिता के उदय होने से समाचारपत्रों के प्रसार-प्रचार पर प्रभाव तो अवश्य पड़ा है तथापि उनका महत्त्व कम नहीं हुआ है। वर्तमान में दोनों परस्पर पूरक बन गए हैं। इस देश में अभी भी अधिकांश जनता अखबार इंटरनेट पर देखने की अपेक्षा खरीदकर पढ़ती है। डॉ. वीणा गौतम लिखती हैं कि 'अखबार आज भी सस्ते हैं, भविष्य में भी सस्ते रहेंगे। आज भी इनकी पहुंच सर्वहारा वर्ग के उस आखिरी आदमी तक है, जो सूचना पाने की पिपासा में पंक्ति के आखिरी छोर पर खड़ा है और भविष्य में भी उसी आखिरी बिंदु के अंत्यज तक अगर सूचना पहुचाने का कार्य कोई बखूबी कर सकेगा, तो वे अखबार ही होंगे, प्रिंट मीडिया ही होगा।

 

  • वास्तव में फैक्स और टेलीफोन की अपेक्षा इंटरनेट ने पत्रकारिता को तीव्रता दी है, गति दी है। 'इंटरनेट' आज पत्रकारों को वह सामग्री भी उपलब्ध करवा रहा है जिसकी कल्पना तक पत्रकारों को नहीं थी। समय की बचत और अनुवाद करने में सुविधा आज इंटरनेट की महत्त्वपूर्ण देन है। ई पत्रकारिता में अब पत्रकार विभिन्न संचार संसाधनों से युक्त है। अब उसके पास मोबाइल फोनफैक्स, लेपटॉप, पेजर, इंटरनेट, ईमेल की सुविधा है। डॉ. अर्जुन तिवारी के अनुसार 'कुछ दिन पहले तक साइकिल पर दौड़ते संवाददाता दृष्टिगत होते थे। गांव-गांव, तहसील, कस्बे से लिफाफे आते थे, संपादकीय विभाग पोस्ट ऑफिस बना रहता था जहां पत्रों की छंटनी होती थी। कुछ वरिष्ठ पत्रकार चिल्ला-चिल्लाकर, ट्रंककाल पर समाचार भेजते तो कुछ टेलीग्राफ करते थे। असुविधाओं वाला संपादकीय कार्यालय होता था, कंपोजिंग कक्ष तो काजल की कोठरी होती जो वहां से निकलता कालिख लगाए रहता था। खुरदुरे मटमैले कागज पर उपसंपादकों की टोली साधनारत रहती थीं। '  इन सारी स्थितियों को चमत्कारी ढंग से ई-पत्रकारिता ने बदलकर रख दिया है। अब कलम और स्याही का स्थान कंप्यूटर ने ले लिया है, उसी पर प्रूफ रीडिंग हो जाती है और उसी पर पेज मेंकिग और उसी से समाचार, फीचर आदि प्रकाशित होने के लिए मुद्रण वाले स्थान पर भेज दिए जाते हैं। अन्यत्र वे लिखते हैं कि अब 'मानव अपने विचारों को ईमेल से प्रेषित कर सकेगा। 


  • डिजीटल नई तकनीक है जिससे मशीन और मनुष्य के बीच संवाद स्थापित हो सकता है। 'बाइट' अब सूचना प्रेषण की महत्वपूर्ण इकाई है। 'बाइटस' द्वारा मानव से मानव, मशीन से मानव, मशीन से मशीन के मध्य संवाद हो सकेगा। कंप्यूटर अब भारी-भरकम नहीं होगा। इसे रूमाल की तरह जेब में रखा ओर वाल पेपर' की तरह लटकाया जा सकेगा। पत्रकार अब तकनीकी दृष्टि से सक्षम, साधन संपन्न हो चला है।


  • आज सूचनाओं का मंथन कर उपभोक्ता के लिए उपयुक्त सूचना निकालना अब सरल नहीं है। तकनीक के प्रयोग ने इसे जटिल बना दिया है। सूचना पाने, संभालने और उसे समाचार के रूप में ढालना अब एक व्यक्ति के हाथ में नहीं है, बल्कि यह काम संस्थानों ने संभाल लिया है। अब अलग-अलग विशेषज्ञ चाहिए, अलग-अलग विश्लेषक चाहिए और अलग-अलग संपादक चाहिए, जो खेल, अर्थ, राजनीति आदि पर अपनी सशक्त और बेबाक टिप्पणी दे सकें। अब समाचार को जल्दी से जल्दी वस्तुनिष्ठ रूप में पाठक तक, संग्राहक तक पहुंचाने की जिम्मेदारी संवाददाताओं, संपादकों और प्रबंध संपादकों की है। अब शीघ्रता, नवीनता और त्वरा का महत्व है, समय का सर्वाधिक महत्व है। ई-पत्रकारिता के मूल में कंप्यूटर है जिससे सूचना, आंकडें, चित्र, गीत-संगीत सभी में अद्भुत बदलाव आया है। प्रकाशन, चित्रण और विश्लेषण-संपादन में कंप्यूटर का योगदान नकारा नहीं जा सकता। अब इंटरनेट पर समाचारपत्र पढ़ने और उसे डाउनलोड करने की सुविधा है जिसने पत्रकारिता को गतिशील बना दिया है।

 

  • इंटरनेट के आगमन से अब संवाददाताओं पर निर्भरता कम होने लगी है। साथ ही भ्रामक समाचारों से बचना संभव हो पाया है। इसी प्रकार समाचारों के संकलन एवं विश्लेषण में पाठक की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं होती थी जबकि आज व्यक्ति इंटरनेट करोड़ों लोगों के साथ मिलकर सूचना-समुद्र (में गोता लगाकर अपनी मनचाही सूचनाएँ प्राप्त कर सकता है। अब संवाददाता को अधिक सचेत रहना पड़ता है। कारण, आज का पाठक इंटरनेट पर सूचनाओं से निरंतर संपर्क में रहता है। इंटरनेट के माध्यम से किसी भी पाठक को विश्व की अनेकानेक घटनाएँ विभिन्न स्रोतों से निरंतर प्राप्त होती रहती हैं जबकि संवाददाता निश्चित समय-सीमा में बँधकर कार्य करने के लिए बाध्य है। 
  • उसे निर्धारित स्थान के अनुरूप ही अपना समाचार लिखना होता है। उसे अपने पूरे पाठक वर्ग की रुचि को भी ध्यान में रखना पड़ता है। समाचारपत्रों का प्रकाशन भी एक नियत समय पर नियमित रूप से करना आवश्यक है। दूसरी ओर इंटरनेट के लिए कोई समय-सीमा नहीं है। यही कारण है कि अब प्रातः काल समाचारपत्र आने से पूर्व ही अधिकांश पाठकों को उन समाचारों की जानकारी इंटरनेट अथवा दूरदर्शन के माध्यम से मिल चुकी होती है। 
  • इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव के कारण संपादकीय विभाग पर भी पाठकों की रुचि को बनाए रखने के लिए निरंतर दबाव बढ़ रहा है। इसी कारण आजकल समाचार पत्रों के कलेवर, साज-सज्जा, स्तंभ आदि में व्यापक परिवर्तन दिखाई देने लगा है। कम्प्यूटर और इंटरनेट के आविष्कार से पूर्व अधिकतर पत्रकारों को अपने दिन-प्रतिदिन के समाचारों की पृष्ठभूमि लिखने के लिए मुख्यतः अपनी स्मरण शक्ति पर निर्भर रहना पड़ता था। कई बार वे अनुमान का सहारा लेते थे लेकिन आज इंटरनेट के कारण सब कुछ सहज और सर है। किसी भी घटना से संबंधित तथ्य और आँकड़े डाटा बैंक से सहज ही उपलब्ध हो जाते हैं। 
  • इस समय इंटरनेट विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का सर्वाधिक प्रभावशाली माध्यम है और धीरे-धीरे इसने घर-घर में स्थान बनाना प्रारंभ कर दिया है। अब इंटरनेट पर समाचारपत्रों में मुद्रित समाचार पढ़े जा सकते हैं। अनेक संवाद समितियाँ अब अपने स्तंभ लेखकों एवं संवाददाताओं पर निर्भर रहने की अपेक्षा इंटरनेट के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान कर रही हैं। विभिन्न केंद्रों को परस्पर जोड़कर समाचार समितियाँ सहज ही अपने ग्राहकों को त्वरित सेवा उपलब्ध करवा सकती हैं। इंटरनेट का एक लाभ यह भी हुआ है कि अब विभिन्न सोशल साइट्स, जैसे फेसबुक, ट्विटर आदि पर लोग अपनी बात कहने लगे हैं समाचारों को देने लगे हैं। अब लोगों के पास अपनी न्यूज वेबसाइट बनाने का विकल्प भी उपलब्ध है। 
  • इस प्रकार इंटरनेट ने एक वैकल्पिक पत्रकारिता को जन्म देकर लोगों को अभिव्यक्ति का एक विशाल आकाश प्रदान किया है। जो समाचार रेडियो, टी.वी., समाचारपत्रों द्वारा छिपा लिए जाते हैं वे सोशल साइट्स पर उजागर हो जाते हैं। अभिषेक मनु सिंघवी की सीडी से जुड़ा मामला इस संदर्भ में जीवंत उदाहरण है। विकिलीक्स की साइट ने अंतरजाल पत्रकारिता को एकदम से सारे संसार के केन्द्र में ला खड़ा कर दिया। विकिलीक्स ने न केवल आश्चर्यजनक सूचनाएं विश्व-समाज को प्रदान कीं बल्कि परंपरागत पत्रकारिता और रेडियो व टी.वी. पत्रकारिता को भी पीछे छोड़ दिया। विश्व की संचार व्यवस्था में पहली बार ऐसा हुआ कि परंपरागत पत्रकारिता और रेडियो और टी.वी. पत्रकारिता अंतरजाल पत्रकारिता का अनुवर्ती बनी। अंतरजाल पत्रकारिता ने विभिन्न जनांदोलनों को गति दी है और समाज को विभिन्न मुद्दों पर एक किया है। मिस्र का तख्तापलट, लीबिया की रक्त क्रांति, अन्ना का आंदोलन, टयूनीशिया का शांतिपूर्वक तख्तापलट सभी में यह समाज का सहयोगी और घटनाओं का तत्काल साक्षी बना है। अंतरजाल पत्रकारिता में सबसे बड़ी परेशानी यह है कि वेबसाइट और इंटरनेट पर किसी भी सूचना को पाने, पकड़ने, प्रसारित करने के लिए लंबे समय तक अवांछित एवं अनावश्यक सूचनाओं के रोल को घुमाना पड़ता है। 


  • स्क्रीन पर सूचनाएं आंधी की तरह, टिड्डी दल की तरह उमड़ने लगती हैं, उनमें से अपने मतलब की सूचना को पाने-पकड़ने में जरा-ज्यादा आंख-मिचौली, माथापच्ची करनी पड़ती है, उंगलियों को माउस पर तथा टंकण बटनों पर जरा-ज्यादा ही घुमाना पड़ता है। स्पष्ट है कि अंतरजाल पत्रकारिता में अपार सूचनाएं उपलब्ध होती हैं और तेज गति से उपलब्ध होती है कि पाठक उनका पूरी तरह आनंद नहीं ले पाता लेकिन एक सूचना को बार बार देख कर पढ़ने का आनंद अवश्य अंतरजाल पत्रकारिता में होता है। संवेदनात्मक संबंध इस प्रकार की सूचनाओं में नहीं बन पाता, कभी सूचनाएं कृत्रिम, अधूरी और आधारहीन भी होती हैं जो पाठकों को भ्रमित कर देती हैं। यही कारण है कि आज इंटरनेट पर सेंसर की बात की जाने लगी है।

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