प्रथम विश्व
युद्ध की समाप्ति के बाद,
भारतीय नेताओं को
उम्मीद थी कि अब ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें स्वशासन की अनुमति दी जाएगी, किंतु इसके
विपरीत ब्रिटिश सरकार ने रोलैट एक्ट लागू कर दिया, जिसके मुताबिक ब्रिटिश सरकार किसी भी व्यक्ति
को बिना कोई मुकदमा चलाए किसी भी प्रकार की देशद्रोही गतिविधि में शामिल होने का
आरोप लगाकर गिरफ्तार कर सकती थी। इस अधिनियम के पारित होने से देश भर में व्यापक
विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए और9 अप्रैल, 1919 को रॉलेट एक्ट का विरोध करने के आरोप में पंजाब के दो
लोकप्रिय नेताओं डॉ. सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया।
इनकी गिरफ्तारी के विरोध में 13 अप्रैल, 1919 को बैशाखी के दिन अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक विशाल
सभा का आयोजन किया गया। जनरल डायर ने इसे अपने आदेश की अवहेलना माना तथा सभास्थल
पर पहुँचकर निहत्थे लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। आँकड़ों के अनुसार, मरने वालों की
संख्या 379 थी लेकिन वास्तव
में इससे कहीं ज्यादा लोग मारे गए थे।
इस नरसंहार के विरोध में रवींद्रनाथ टैगोर
ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई ‘नाइटहुड’ की उपाधि त्याग दी थी। इस हत्याकांड की जाँच के लिये
कॉन्ग्रेस ने मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की। ब्रिटिश
सरकार ने इस हत्याकांड की जाँच के लिये हंटर आयोग गठित किया।
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