विज्ञापन की अवधारणा |Advertising concept in Hindi
विज्ञापन की अवधारणा (Advertising concept in Hindi)
विज्ञापन की अवधारणा Advertising concept in Hindi
- विज्ञापन की मूल अवधारणा उत्पाद के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करना है। विज्ञापन ग्राहकों को उनकी आवष्कता तक पहुँचाने का प्रमुख कार्य करते हैं। विज्ञापन आज के ग्राहकों को केवल उत्पाद खरीदने में ही सहायक नहीं हो रहे हैं बल्कि विज्ञापन आम आदमी को शिक्षित करने का भी काम कर रहे हैं। आज के युग को विज्ञापन का युग भी कहा जा रहा है। और आज विज्ञापन लोगों में समझ पैदा करने में सबसे अधिक सहायक हो रहें हैं। विज्ञापन उन लोगों के लिए सबसे ज्यादा सहायक हैं जो कम पढ़े या निरक्षर हैं। विज्ञापन की यह जादूगरी ही हैं कि आम आदमी भी अपने लिए सही निर्णय लेने में सक्षम हो गया है।
- आज विज्ञापन केवल उत्पाद बेचना या उत्पादक को लाभ पहुँचाने का काम ही नहीं कर रहे हैं बल्कि विज्ञापन कंपनियों, व्यसायियों, उद्योगपतियों से बाहर सरकारी कार्यों में भी सहायक हो रहें हैं। सरकार भी विज्ञापनों के द्वारा जन संदेश देने का काम कर रही है जो सबसे अधिक सुगम्य व प्रभावकारी साबित हो रहें हैं। संचार के हर माध्यम का प्रयोग सरकारी तंत्र कर रहा है। जागो ग्राहक जागो, अपने अधिकार को पहचानो-सूचना का अधिकार, स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारियों के विज्ञापन हमें अक्सर संचार के हर माध्यम में देखने को मिल जाते हैं।
विज्ञापन जिन अवधारणाओं को लेकर बनाये जाते हैं उनको हम निम्न रूप में देख सकते हैं-
1. वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री बढ़ाना-
- विज्ञापनों की मूल अवधारणा यह है कि यह उत्पादों की ओर ग्राहकों व आम जनता का ध्यान खींचता है तथा उसी बिक्री बढ़ाने में सहायता करता है। विज्ञापन किसी भी व्यावसायिक संदेश को सार्वजनिक रूप से लोगों तक पहुँचाने का काम करते हैं। विज्ञापनों एक ही संदेश को कई बार दोहराते हैं जिससे उपभोगता के मन में उत्पाद की पूर्ण जानकारी हो जाये या वो उस उत्पाद की जानकारी लेने के लिए बिक्रेता तक पहुँच जाये। विज्ञापन सामग्री को क्रय करने के लिए ग्राहकों को प्रेरित करने का काम करते हैं।
2. विक्रय कला में सहायक होना
विज्ञापन सामग्री बेचने में विक्रेता के सबसे बढ़े सहायक होते हैं। यह अटूट सत्य है कि विक्रयकला और विज्ञापन का घनिष्ठ सम्बन्ध है। व्यवसाय में सभी अपनी वस्तुओं और सेवाओं को अधिक से अधिक बेच कर लाभ कमाना चाहते हैं जिसके लिए वो विक्रयकला व विज्ञापन का प्रयोग करते हैं। विज्ञापन के द्वारा उत्पादक अपने उत्पाद को लोगों तक विशेष आकर्षण के साथ पहुँचाता है। तद्पश्चात विक्रय कला के द्वारा उत्पाद की ओर आकर्षित हुए व्यक्ति को ग्राहक के रूप में बदलने का काम किया जाता है। यह भी कहा जाता है कि जहाँ से विज्ञापन का काम समाप्त हो जाता है वहाँ से विक्रयकला का कार्य प्रारम्भ हो जाता है।
विज्ञापन व विक्रयकला के भेद को हम निम्न रूप से समझ सकते हैं
- i. विज्ञापन का उद्देश्य होता है समाज को उत्पादक के वस्तु या सेवा के प्रति आकर्षित करना। जबकि विक्रयकला का उद्देश्य ग्राहकों को उनकी रूचि व इच्छा के अनुसार उत्पाद या सेवा उपलब्ध कराना।
- ii. विज्ञापन सम्भावित खरीद के लिए पृष्ठभूमि तैयार करता है जबकि विक्रय कला के द्वारा वस्तुओं को ग्राहकों के द्वारा खरीदने के लिए प्रेरित किया जाता है।
- iii. विज्ञापन में व्यक्तिगत संपर्क की आवश्यकता नहीं होती जबकि विक्रय कला व्यक्तिगत सम्बन्धों द्वारा प्रभावी होती है।
- iv. विज्ञापन वस्तु या सेवा की उपयोगिता को बताता है परन्तु लोगों की शंकाओं का समाधान नहीं करता जबकि विक्रय कला प्रत्येक ग्राहक के प्रश्नों का उत्तर देती है और उनकी जिज्ञासा के अनुसार उनकी शंकाओं का समाधान कर उन्हें ग्राहक बनाने में सहायक होती है।
- v. विज्ञापन एक सामान्य सेवा है इसके द्वारा समाज के एक बड़े भाग को आकर्षित करने का प्रयास किया जाता है जबकि विक्रय कला अलग-अलग रूचि वाले ग्राहकों को उनकी इच्छानुसार संतोष प्रदान कर उनकी सहायता करता है तथा उत्पाद व सेवा को खरीदने के लिए वातावरण तैयार करता है। विज्ञापन संदेश संचार के किसी भी माध्यम से दिया जा सकता है जबकि विक्रयकला का कार्य सिर्फ मौखिक होता है।
3. विक्रय संवर्द्धन को बढ़ावा देना
- अमेरिकन मार्केटिंग एसोसियेशन के अनुसार - “विक्रय संवर्द्धन में व्यक्तिक विक्रय विज्ञापन तथा प्रचार के साथ-साथ वे सब क्रियाएं आती हैं जो उपभोक्ता क्रय और विक्रेता की तत्परता को प्रेरित करती है। जैसे-सजावट, तमाशे, नुमाइश या प्रदर्शन आदि ।” इस प्रकार विज्ञापन भी विक्रय संवर्द्धन का एक भाग है, क्योंकि वे सभी क्रियाएं जो व्यक्तिगत विक्रय और विज्ञापन को जोड़ती हैं, उनमें सहयोग करती हैं और इन्हें अधिक प्रभावशाली बनाती हैं, विक्रय में संवर्द्धन की क्रियाएं कहलाती हैं।
इन दोनों का ही उद्देश्य यद्यपि विक्रय में वृद्धि करना होता है फिर भी दोनों के अन्तर को हम निम्न रूप से देख सकते हैं-
- i. आज के व्यावसायिक युग में विज्ञापन एक आवश्यकता बन चुका है क्योंकि इसके बिना कोई भी उत्पाद बाजार में अपनी जगह नहीं बना पाता है। आज उत्पाद की सफलता में विज्ञापन अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन दूसरी तरफ विक्रय संवर्द्धन के साधनों की आवश्यकता गौण होती है क्योंकि इसक बिना भी छोटे और बीच के व्यापारी अपनी बिक्री कर लेते हैं।
- ii. विज्ञापन का कार्य सामुहिक रूप लोगों को वस्तु खरीदने के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित करना होता है जबकि विक्रय संवर्द्धन का उद्देश्य विज्ञापन और विक्रय के बीच कड़ी बनाना है।
- iii. विज्ञापन नियमित रूप से किया जाता है जबकि विक्रय संवर्द्धन की क्रियाएं विशेष अवसरों, त्योहारों पर ही की जाती हैं। इसके अतिरिक्त विज्ञापन के अन्तर्गत केवल डाक विज्ञापन को छोड़कर शेष माध्यमों का नियंत्रण हमारे देश में प्रायः अन्य संस्थाओं के हाथों में होता है जबकि विक्रय संवर्द्धन का नियंत्रण प्रायः उत्पादक के हाथों में होता है क्योंकि इसकी सभी क्रियाएं उत्पादक खुद ही तय करते हैं।
- iv. विज्ञापन करते समय उत्पादक या विक्रेता से ग्राहकों का प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं हो पाता है जबकि विक्रय संवर्द्धन की क्रिया में उत्पादक या विक्रेता का ग्राहकों से सीधा सम्बन्ध स्थापित होता है और उत्पादक व विक्रेता यह प्रयास करते हैं कि यह सम्बन्ध हमेशा बना रहे।
विज्ञापन के उद्देश्य
- विज्ञापन के उद्देश्य स्पष्ट होना भी विज्ञापन की मूल अवधारणा - है। विज्ञापन के उद्देश्यों को कमदर्स, ह्यूजी और मिश्चल ने इस प्रकार से परिभाषित किया है- विज्ञापन का उद्देश्य माल, सेवाओं या विचारों को सम्भावित क्रेताओं को बड़े समूहों को बेचना है। किसी भी उत्पाद के लिए विज्ञापन का निर्माण करने के लिए विज्ञापनकर्ता विज्ञापन के उद्देश्यों को तय कर लेते हैं। इसके साथ ही विज्ञापन से पढ़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। इस बात को जांचा जाता है कि विज्ञापन से समाज में पड़ने वाले प्रभाव अल्पकालिक है या दीर्घकालिक । तद्पश्चात विज्ञापनों को तैयार करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है। आज के विज्ञापन युग में जहाँ विज्ञापन समाज पर प्रत्यक्ष रूप प्रभाव डाल रहे हैं उनके कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्य है जिनका अध्ययन निम्न रूप से किया जा सकता है।
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