जनसपंर्क, सूचना प्रचार और विज्ञापन में भेद |Difference between public relations, information promotion and advertising
जनसपंर्क, सूचना प्रचार और विज्ञापन में भेद
Difference between public relations, information promotion and advertising
जनसपंर्क, सूचना प्रचार और विज्ञापन में भेद
जनसंपर्क के बहुत सारे अंग होते हैं। लेकिन, उपयुक्त जानकारी के अभाव में अधिकतर व्यक्ति इनमें से किसी भी एक अंग को ही जनसंपर्क मान बैठते हैं। आगे हम जानेंगे कि सामान्यतः जनसंपर्क सदृश प्रतीत होने वाली अन्य विधाओं से इसका क्या संबंध है और यह उनसे किस प्रकार भिन्न होता है।
क. सूचना एवं जनसंपर्क
- जनसंपर्क का आधार सूचनाओं के आदान-प्रदान पर निर्भर करता है। यह सूचना किसी भी विषय, स्थान अथवा कार्य, व्यवहार एवं घटना के सम्बन्ध में हो सकती है। जनसंपर्क का प्रारम्भिक रूप भी सूचना विभाग ही था। भारत में सूचना और प्रसारण मन्त्रालय की स्थापना इस 'सूचना' पक्ष के आधार पर ही की गई है।
- इसी प्रकार अनेक राज्यों ने भी अपने जनसंपर्क निदेशालयों के नाम परिवर्तित करके उनके नाम भी सूचना एवं प्रचार निर्देशालय आदि कर दिए हैं। अनेक सरकारी उपक्रमों में जनसंपर्क अधिकारी के स्थान पर सूचना अधिकारी का पद रखा गया होता । इस दृष्टि से जनसंपर्क के कार्यों से ऐसी धारणा उत्पन्न होती है कि जनसंपर्क का अर्थ सिर्फ सूचनाओं को एकत्रित करके जनता तक विविध माध्यमों के द्वारा पहुँचाना मात्र है। इसी उद्देश्य से सूचना विभाग खोले जाते हैं। लेकिन, वास्तविकता यह है कि सूचना को ज्यों-का-त्यों दे देने से काम नहीं चलता है। यदि इसमें जनसंपर्क का भाव नहीं उपस्थित है तो जनता में सूचना का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता। जनसंपर्क के अभाव में सूचना जहाँ एकपक्षीय एवं अपूर्ण होती है, वहीं प्रभावहीन भी हो जाती है। सूचना जनसंपर्क का आधार है, लेकिन जनसंपर्क नहीं है, क्योंकि इसमें रूचि कम और मस्तिष्क का व्यायाम अधिक होता है।
- सूचना केवल तथ्यों का संयोजन है। इसमें कहीं भी आत्मीयता नहीं होती । वह स्वयं में पर्याप्त होती है, लेकिन पूर्ण अथवा प्रभावी नहीं। वहीं यह भी सत्य है कि जनसंपर्क के अभाव में सूचना का काम चल सकता है, जबकि सूचना के अभाव में जनसंपर्क निरूपाय हो जाता है। जनसंपर्क को गतिशीलता के लिए सूचनाओं पर आश्रित रहना पड़ता है। अतः यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि सूचना एवं जनसंपर्क, दोनों ही एक-दूसरे को पूर्णता देते हैं।
ख. जनसंपर्क और प्रचार
- अधिकतर व्यक्ति जनसंपर्क तथा प्रचार को एक ही विषय मानते हैं। जनसंपर्क का आधार सत्य एवं तथ्यपरक सूचनाओं पर निर्भर होता है, जबकि प्रचार स्वयं में निहित उद्देश्य को विभिन्न प्रकार को लुभावने आवरणों में लपेटे रखता है। प्रचार केवल परिणाम की प्राप्ति नहीं बल्कि विस्तार होता है, जिसका मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों को प्रभावित करना होता है।
- लेकिन, किसी भी व्यक्ति को स्वयं में रूचि उत्पन्न कराए बगैर, महज प्रचार के बल पर सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है। प्रचार कुछ समय के लिए लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है, लेकिन इसका दीर्घकालिक उपयोग नहीं होता। इसके विपरीत जनसंपर्क से निरंतरता एवं स्थायी अभिमत का सृजन होता है। इसके अलावा प्रचार एकपक्षीय होता है, जबकि जनसंपर्क द्विपक्षीय सम्प्रेषण है। यद्यपि प्रचार जहाँ तुरंत फल देता है, वहीं जनसंपर्क का प्रभाव लंबे समय के परिणाम देना शुरू करता है। लेकिन, ये परिणाम व्यापक और दीर्घकालिक होते हैं। इसका उद्देश्य लोगों को प्रभावित करके उनके विचारों को पारस्परिक वार्तालाप के द्वारा अपने पक्ष में अभिमत का निर्माण करना होता है और यह तभी संभव है, जबकि हमारी मूल नीतियां सत्य, तथ्यों और पारस्पारिक सहसंबंधों पर केंद्रित हों।
- जनसंपर्क द्वारा हम मिथ्या व कमजोर पक्ष का प्रचार नहीं कर सकते, जबकि प्रचार में ऐसा संभव है। प्रचार में विफलताओं और कमजोरियों पर पर्दा डाल दिया जाता है, जबकि सफल जनसंपर्क अभियान अपनी कमजोरियों को उजागर कर उन पर सफलता प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। जनसंपर्क की नीति सकारात्मक तथा सृजनात्मक होती है। संदेह एवं नकारात्मकता के लिए जनसंपर्क में कोई जगह नहीं होती। प्रचार आकर्षक होता है, लेकिन जनसंपर्क द्वारा हम आकर्षण नहीं, विश्वास अर्जित करते हैं। आधुनिक युग में कोई भी सरकार, उद्यम अथवा संगठन उसकी लक्षित समूह के सहयोग के बिना सफल नहीं हो सकता। यह विशिष्ट लक्ष्य समूह क्रमशः उसके मतदाता, ग्राहक, स्टॉक होल्डर्स अथवा कर्मचारी हो सकते हैं।
- जनसंपर्क और प्रचार के फर्क को आप इस उदाहरण द्वारा भली भांति समझ सकते हैं कि चुनाव में किसी राजनेता या पार्टी द्वारा जनसंपर्क के नाम पर जो किया जाता है, वह प्रचार है। लेकिन वही पार्टी जब सत्ता में आती है तो जनता यह जानना चाहती है कि उसकी सरकार क्या कर रही है, उसकी क्या नीतियाँ हैं, उसके कार्य, प्रगति और गतिविधियां क्या हैं। ऐसे में जनसंपर्क के माध्यम से लोगों में सरकार और उसकी नीतियों के प्रति विश्वास जगाया जाता है। हालांकि इस प्रकार के जनसंपर्क में प्रचार भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। लेकिन, यहां तथ्यहीन प्रचार काम नहीं करता।
- इस प्रकार जनसंपर्क तथा प्रचार में काफी अंतर है। प्रचार का कार्य और उद्देश्य जनता को कुछ तथ्यों की जानकारी प्रदान करना तथा लोगों के समक्ष विशिष्ट सिद्धांत अथवा कार्यक्रमों को प्रस्तुत करना होता है। इसका मुख्य लक्ष्य उस विचार या वस्तु विशेष की ओर होता है, जिसका कि प्रचार किया जा रहा होता है, लेकिन जनसंपर्क इसका अगला चरण होता है। अर्थात प्रचार द्वारा जिस अभिमत अथवा जिस छवि का निर्माण हुआ है या जनता ने जो प्रतिक्रिया व्यक्त की है, उसको सरकार या प्रचार कराने वाले संगठन तक पहुँचाया जाता है तो यह जनसंपर्क हो जाता है। जनसंपर्क द्विपक्षीय प्रक्रिया है जबकि प्रचार एकपक्षीय प्रचार और जनसंपर्क में यह अंतर है कि प्रचार 'क्यों' का उत्तर तो दे देता है, लेकिन शंकाओं का समाधान नहीं करता। उनके प्रभाव और प्रतिक्रिया को नहीं देखता और न ही उन्हें संगठन तक पहुँचाता है। यह कार्य जनसंपर्क द्वारा सम्पन्न किया जाता है।
ग. विज्ञापन एवं जनसंपर्क
- विज्ञापन एवं जनसंपर्क में घनिष्ठ संबंध होता है। विज्ञापन संचार का एक सशक्त माध्यम है, जोकि इतना प्रभावी होता है कि इसे जनसंपर्क विभाग में एक पृथक इकाई का स्थान प्राप्त है। सरकारी संस्थान हो अथवा निजी संगठन, सभी अपने यहाँ विज्ञापन के लिए अलग से धनराशि का प्रावधान रखते हैं। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय के अधीन “विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय' है, जो विभिन्न समाचारपत्र-पत्रिकाओं को विज्ञापन देता है और सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों व उपलब्धियों का प्रचार करता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि जनसंपर्क और विज्ञापन को अलग-अलग रखा जाना चाहिए, क्योंकि विज्ञापन धन देकर प्रचार कराने का साधन है।
- वस्तुतः विज्ञापन जनसंपर्क का एक सशक्त अंग भी है। क्योंकि बाहरी दुनिया से जनसंपर्क में विज्ञापन का आश्रय लिया जाना आवश्यक हो जाता है। दूसरे, विज्ञापनों को रोचक और लालित्यपूर्ण ढंग से तैयार किया जाता है, जिससे इनमें पाठकों/दर्शकों की रुचि उत्पन्न होती है। विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य किसी उत्पाद अथवा सेवा की बिक्री करना है, लेकिन इसके साथ ही कोई भी संगठन प्रतिष्ठा और सम्मान की छवि भी निर्मित करना चाहता है, इसके लिए विज्ञापन पर्याप्त नहीं होता। क्योंकि रुचिकर होने के बावजूद यह भी एकपक्षीय ही होता है, जिसकी वजह से उसकी विश्वसनीयता हमेशा संदेह के दायरे में रहती है। ऐसे में जनसंपर्क काफी काम आता है। विभिन्न राज्य सरकारों एवं सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में विज्ञापन विभाग जनसंपर्क अधिकारी के अधीन होता है। वह अपने संस्थान की जिस प्रकार की छवि जिन लोगों में स्थापित करना चाहता है, उनके बीच उसी प्रकार का विज्ञापन प्रसारित कराता है। दोनों विधाओं में एक स्वस्थ सामंजस्य होना संस्थान के लिए काफी हितकारी होता है।
- जनसंपर्क और विज्ञापन में बहुत बड़ा अन्तर भी है। विज्ञापन को स्वयं को जीवित रखने और सक्रिय रखने के लिए सदैव धन की आवश्यकता रहती है। आर्थिक सहायता और सहयोग के अभाव में विज्ञापन कभी नहीं चल सकता। जबकि जनसंपर्क के कार्यों और गतिविधियों के प्रचार और प्रसार में धन की उतनी अधिक आवश्यकता नहीं पड़ती। जिन संस्थानों में विज्ञापन और जनसंपर्क का कार्य एक ही व्यक्ति/विभाग के अधीन होता है, वहाँ जनसंपर्क का कार्य अत्याधिक व्यवस्थित तरीके से सम्पन्न होता है तथा संस्थान का प्रचार कार्य तेज गति से होता है।
- जनसंपर्क और विज्ञापन में एक और मुख्य अंतर यह है कि विज्ञापन पर तिथि, प्रकाशन, स्थान, समय आदि के प्रतिबंध होते हैं, जबकि जनसंपर्क द्वारा जो सूचना और प्रचार प्रेस और रेडियो के समाचारों के अनुकूल तैयार किए गए है, वह शीघ्र प्रकाशित और प्रसारित हो जाते हैं। उन पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं होता है और न ही उन पर अधिक धन का व्यय होता है।
- सरकारी विज्ञापन का कार्य नीतियों और कार्यक्रमों का प्रचार प्रसार होता है, जबकि निजी संगठनों और उद्योगों के विज्ञापन का कार्य बिक्री में वृद्धि होता है। सम्मान और संगठन की छवि निर्माण के लिए विज्ञापनों अथवा संस्थागत विज्ञापनों को जनसंपर्क विभाग द्वारा किया जाना उचित होता है, जबकि द्वितीय प्रकार का विज्ञापन बिक्री वृद्धि विभाग द्वारा किया जाना उचित होता है।यद्यपि यह कोई स्थायी नियम नहीं है। कुछेक अंतर के बावजूद विज्ञापन एवं जनसंपर्क में जहाँ गहरा पारस्परिक संबंध होता है।
- सच तो यह है कि सूचना, प्रचार और विज्ञान जनसंपर्क के ही सहयोगी मित्र हैं, इनमें जनसंपर्क मुखिया की भूमिका निभाता है क्योंकि इसमें सत्य सूचनाओं एवं तथ्यों पर आधारित जनकल्याण की भावना प्रमुख होती है।
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