पत्रकारिता के इतिहास पर नजर डालते हैं तो ईसा के पांच शताब्दी पूर्व रोम में संवाद लेखक कार्य करते थे। ईसा पूर्व 60 में जूलियस सीजर ने'एक्टा डार्ना' नामक अखबार निकाला। 1476 ई. में इंग्लैंड में छापाखाना का निर्माण हुआ। 1561 में छपे अखबार'न्यूजआउट ऑफ केंट'का प्रमाण सामने आया। नियमित रूप से 1620 में एम्सटर्डम से पहला समाचार पत्र प्रकाशित हुआ।
भारत में पत्रकारिता की लहर 1557 में पहुंची, जब गोवा में छापा खाना लगाया गया। इसके बाद 1780 में जेम्स आगस्टस हिक्की ने 'कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर' नामक पत्र का प्रकाशन शुरू किया।1816 में गंगाधर भट्टाचार्य ने 'बंगाल गजट' का अंग्रेजी में प्रकाशन शुरू किया। 1818 में भारतीय भाषाओं में 'दिग्दर्शन' मासिक पत्र का सूत्रपात हुआ। 1821 में भारतीय पत्रकारिता के जनक राजा राममोहन राय ने 'संवाद कौमुदी' नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन किया। इसके बाद कानपुर निवासी पं युगल किशोर शुक्ल ने 30 मई 1826 को कोलकाता से ही हिन्दी साप्ताहिक पत्र 'उदंत मार्तंड' का प्रकाशन शुरू किया।
विश्व में विज्ञान पत्रकारिता:
विश्व में विज्ञान पत्रकारिता: ईसा पूर्व 4000 की सुमेरी सभ्यता की चित्रलिपि में अंकगणित का समावेश किया गया है। ईसा पूर्व 1700 की मिट्टी पर गणितीय सारणियां हैं। ईसा पूर्व 500-600 के यूनानी अभिलेखों में वैज्ञानिक उपलब्धियों के प्रमाण हैं। ईसा पूर्व पांचवी सदी में फारस के शाही हकीम डेमोसीड्स ने यूनानी भाषा में औषधि विज्ञान की पहली पुस्तक लिखी। सिकंदर की मौत के बाद सिकंदरिया एकेडमी के गणितज्ञ यूक्लिड (ईसा पूर्व 320-260) ने एलीमेंट्री ऑफ ज्यामेट्री पर 13 भागों में पुस्तक लिखी। आर्कमिडीज ने ईसा पूर्व 287-212 में ग्रीक भाषा में गोला और रंभ तथा वैज्ञानिक अनुसंधान की पद्धति आदि कृतियां लिखीं।
ईसा पूर्व 50 में हीरों ने ‘न्यूमेटिका' में पुस्तक लिखी, इसमें भाप -चलित उपकरण का वर्णन किया गया था। ईसा पूर्व 400 में बेरो ने ऑन फॉर्मिंग नामक कृषि पुस्तक तथा प्लीनी ने नेचुरल हिस्ट्री पर किताब लिखी। यूनान के बाद अरब में तेजी से विज्ञान साहित्य का विकास हुआ। लैटिन और संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद किए गए। सरगियस ने पदार्थ विज्ञान की यूनानी पुस्तक का अरबी अनुवाद किया।
776 ई. में जाबिर ने अनेक रसायन ग्रंथ लिखे। नवीं सदी में अलकिंडी ने विश्वकोष बनाया। अरस्तू के बाद अलफराबी ने विज्ञान के मूल सिद्धांत लिखा । अलमसूरी ने अरबी में 'द बुक ऑफ इंडीकेशन एंड रिवीजन' में पेड़-पौधों, खनिजों और प्राणियों के बारे में विस्तार से लिखा गया। फारस के वैज्ञानिक अलबरूनी (973-1048 ई) ने भारतीय ज्ञान-विज्ञान पर कई किताबें लिखीं। इब्नेशिना ने दस लाख शब्दों का विश्वकोष कानून बनाया। चीन में ईसा पूर्व 'मोचिंग ग्रंथ का पता चला जिसमें कैमरे का उल्लेख मिला। यूनान का विज्ञान अनूदित होकर अरब पहुंचा, जहां आधुनिक विज्ञान पनपा। स्पेन के चिकित्सक आबू मखा हवन जहर ने चिकित्साशास्त्र पर कई पुस्तकें लिखीं।
12वीं शताब्दी में सिसली के सम्राट फैड्रिक द्वितीय ने अरस्तू और इबनरशीर का साहित्य अनूदित करके पेरिस विवि को भेंट किया। उसने स्वयं पक्षीशास्त्र पर ग्रंथ लिखा। भारतीय शून्य अरब से अनूदित होकर यूरोप पहुंचा। 1316 में ज्योति विज्ञान पर इंग्लैंड के जॉन होलीवुड ने किताब लिखी। कार्डीनल निकोलस (1401-1464) ने भार व समय मापन के लिए तुला और जलघड़ी पर ग्रंथ लिखा। 14वीं शताब्दी में ग्रीक के वैज्ञानिक ग्रंथों का सीधे लैटिन में अनुवाद करने का बड़ा आंदोलन चला।
1476 में छापाखाना आने के बाद 15वीं शताब्दी में पश्चिमी जगत आधुनिक विज्ञान और साहित्य का केन्द्र बन गया। 1540 में वानाशियो और विरन गुशियो ने धातु शोधन पर ग्रंथ लिखा। 1546 में जॉर्ज अगरीकोला ने खनिज विज्ञान पर कइ ग्रंथ लिखे। 1543 में बेसेलियस ने 'ऑन दि फैब्रिक ऑफ ह्यूमन बॉडी' नामक ग्रंथ लिखा। 1600 में रानी एलिजाबेथ के निजी चिकित्सक विलियम गिल्बर्ट ने चुंबकीय सिद्धांत पर लैटिन में पुस्तक लिखी जो इंग्लैंड की पहली विज्ञान पुस्तक बनी। 1632 में गैलीलियो ने 'जगत की दो पद्धतियों का संवाद' नामक पुस्तक तैयार की। गैलीलियो ने 1610 में दूरवीक्षण पर 24 पृष्ठों की किताब लिखी जो विज्ञान साहित्य की सबसे छोटी पुस्तक है। आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित काने का श्रेय इंग्लैड के फ्रांसिस बेकन (1561-1626) को जाता है, जिन्होंने रॉयल सोसायटी की स्थापना की और कई किताबें भी लिखीं। 1665 में दुनिया की पहली विज्ञान पत्रिका 'जर्नल दैस स्कैवान' मासिक को फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंसेज के द्वारा निकाला गया। इसी समय इंग्लैंड की रायल सोसायटी ने भी फिलॉसफिकल ट्रांजेक्शन नामक विज्ञान पत्रिका आरंभ की और तभी से पूरी दुनिया में विज्ञान की पत्रिकाएं निकल रही हैं।
भारतीय विज्ञान पत्रकारिता: Indian Science Journalism
डॉ ओमप्रकाश शर्मा के अनुसार चरक द्वारा रचित चरक संहिता को ही भारत का प्रथम शुद्ध वैज्ञानिक ग्रंथ कह सकते हैं। वराहमिहिर ने 500 ई. में वृहत्संहिता लिखा। नागार्जुन रचित 'रस रत्नाकर' 7-8वीं शताब्दी में लिखा गया है। इसमें रासायनिक विधियों का वर्णन मिलता है। अग्नि पुराण ज्ञानकोश का एक वृहत ग्रंथ है। आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय के अनुसार ‘रसार्णव' 12वीं शताब्दी में लिखा गया। हमारे वैदिक और पौराणिक ग्रन्थों में अनेक वैज्ञानिक प्रकरण समाहित हैं। 13वीं सदी में यशोधर ने 'रसप्रकाश सुधाकर' लिखा । 14वीं सदी में ‘रसरत्नसमुच्चय' वाग्भट्ट ने लिखा। ये दोनों ग्रंथ आचार्य प्रुफल्लचंद्र राय ने बंगाल की एशियाटिक सोसायटी से छपाए। रसायन शास्त्र में इस अवधि में अनेक ग्रंथ लिखे गए इनमें ‘रस कौमुदी' और 'रस प्रदीप' शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के भावमिश्र ने 'भाव प्रकाश' में विस्तृत सूचनाएं दीं। 16वीं सदी में धातु क्रिया लिखा गया। इसी वक्त विस्फोटकों पर आकाश भैरवकल्प लिखी गई।
इसके बाद 1800 ई. में बंगाल में श्रीरामपुर प्रेस मिशन ने अंग्रेजी, बंगला और हिन्दी में विज्ञान की पुस्तकों की छपाई आरंभ की। 1817 में बंगाल में स्कूल बुक सोसायटी बनी जिसमें विज्ञान की पुस्तकें तैयार की गईं। 1819 में फेनलिक्स ने बंगला में शरीर क्रिया विज्ञान पर पुस्तकें लिखीं। 1823 में राजा राममोहन राय ने गवर्नर रग्महर्स्ट को यूरोपीय विज्ञान भारतीयों को उपलब्ध कराने को कहा। बंगाल में वैज्ञानिक साहित्य के विकास में राजशेखर बोस का अप्रतिम योगदान रहा है। मराठी में पहली विज्ञान पुस्तक औषधि कल्पना अनुवाद कर 1815 में लिखी गई. 1834 में कलकत्ता की एशियाटिक सोसायटी ने सर्वप्रथम वैज्ञानिक पत्रिका 'एशियाटिक सोसायटी जर्नल' अंग्रेजी त्रैमासिक का प्रकाशन किया।
हिन्दी विज्ञान पत्रकारिता: Hindi Science Journalism
वैसे तो हिन्दी विज्ञान लेखन की शुरुआत उन पुराग्रंथों से मानी जा सकती है, जिनमें चिकित्सा, रसायन, खगोल और गणितीय प्रकरणों का समावेश है। लेकिन आधुनिक हिन्दी विज्ञान पत्रकारिता की शुरुआत 19वीं शताब्दी से ही मानी जाती है। हिन्दी पत्रकारिता पर पुस्तकों का प्रकाशन तो काफी बाद में हुआ, लेकिन पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञान के लेख आलेख और समाचार पहले से ही प्रकाशित होने लगे। वैसे यूं कहा जाए कि जैसे-जैसे हिन्दी पत्रकारिता परवान चढ़ी वैसे-वैसे हिन्दी विज्ञान पत्रकारिता की शुरुआत हुई।
अप्रैल 1818 में श्रीरामपुर जिला हुगली से बंगाल के बैपटिस्ट मिशनरियों ने बंगला और अंग्रेजी में मासिक दिग्दर्शन शुरू किया। इसके संपादक क्लार्क मार्शमैन थे, बाद में इसका हिन्दी रूपांतर भी प्रकाशित किया जाने लगा। इसके पहले अंक में दो विज्ञानपरक लेख छपे। पहला, अमेरिका की खोज और दूसरा, बैलून द्वारा आकाश यात्रा । दूसरे अंक में दो और लेख छपे जिसमें भारत में उगने वाले तथा इंग्लैंड में न उगने वाले वृक्ष और दूसरा भाप की शक्ति से चलने वाली नाव (स्टीमबोट) के बारे में। उन दिनों किताबों की कमी होने के कारण कलकत्ता स्कूल बुक सोसायटी ने दिग्दर्शन के बहुत से अंक खरीदकर स्कूलों में बंटवाए। क्योंकि इनमें विज्ञान से जुड़ी के जानकारियां थीं। इस प्रकार दिग्दर्शन ही हिन्दी और बंगला में ऐसा अखबार था जिसमें सबसे पहले हिन्दी विज्ञान पत्रकारिता का प्रादुर्भाव हुआ। कुछ लोग उदंत मार्तंड को हिन्दी पत्रकारिता का पहला अखबार मानते हैं, लेकिन उसमें विज्ञान प्रकरणों के उल्लेख नहीं मिलते।
उन्नीसवीं शताब्दी विज्ञान पत्रकारिता
आगरा की स्कूल बुक सोसायटी ने 1847 में 'रसायन प्रकाश प्रश्नोत्तर नामक पुस्तक का प्रकाशन किया। 1860 में 'सरल विज्ञान विटप' पुस्तक प्रकाशित हुई. 1875 में से कुंज बिहारी लाल की 'सुलभ बीजगणित' प्रकाशित हुई. बनारस के पं लक्ष्मीशंकर प्रयाग मिश्र ने 1885 में ‘गति विज्ञान' पर पुस्तक लिखी। 1883 में मुंशी नवल किशोर ने एक लेख रसायन पर अपने प्रेस से छपवाया। 1896 में विशंभरनाथ शर्मा ने 'रसायन संग्रह' नामक पुस्तक कलकत्ता से प्रकाशित की। 1862 में अलीगढ़ में साइंटिफिक सोसायटी नामक संस्था बनी जिसका कार्य यूरोपीय विज्ञान साहित्य को यूरोपीय से हिन्दी, उर्दू और फारसी में अनुवाद करना था।
1898 में काशी की नागरी प्रचारिणी सभा ने विज्ञान के विविध विषयों पर वैज्ञानिक शब्द निर्माण के लिए एक समिति बनाई. इससे विज्ञान साहित्य के सृजन में काफी मदद मिली। 1852 में आगरा से 'बुद्धिप्रकाश' नामक पत्र शुरू हुआ जिसमें अन्य विषयों के अलावा विज्ञान पर भी काफी रोचक सामग्री प्रकाशित होती थी। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 1873 में 'हरिश्चंद्र मैगजीन’ शुरू की जिसका नाम बाद में 'हरिश्चंद्र चंद्रिका' हो गया था। इसमें भी तमाम वैज्ञानिक जानकारियां मिलती थीं। 1877 में प्रयाग से 'हिन्दी प्रदीप' निकाला गया, जिसमें भी विज्ञान से जुड़े समाचार छपते थे।
1854 में कलकत्ता से प्रकाशित समाचार सुधावर्षण' को हिन्दी का प्रथम दैनिक पत्र होने का गौरव है। लेकिन 1885 में कालाकांकर, प्रतापगढ़ यूपी के राजा रामपाल सिंह ने हिन्दी दैनिक ‘हिन्दोस्तान’ को प्रकाशित किया था। इसका संपादन मालवीय जी ने किया था। इसमें विशुद्ध विज्ञान तो नहीं छपता था, लेकिन ग्रामीण, शारीरिक उन्नति और शैक्षिक विषयों का समावेश था। 1879 में मेवाड़ से प्रकाशित 'सज्जनकीर्ति सुधाकर' में पुरातत्व विषयों पर लेख छपते थे। 1871 में ‘अल्मोड़ा अखबार' निकाला गया जिसमें वन प्रबंध, बाल शिक्षा और मद्य निषेध पर खबरें छपा करती थीं। अलीगढ़ से 1877 में बाबू तोताराम ने साप्ताहिक 'भारत बंधु' नामक पत्र का प्रकाश आरंभ किया, जिसमें विज्ञान की भरपूर जानकारियां छपती थीं। इसके मास्टहेड में लिखा रहता था-ए वीकली जर्नल ऑफ लिटरेचर, साइंस न्यूज एंड पॉलिटिक्स। 1900 में सरस्वती पत्रिका के प्रकाशन में बाबू श्यामसुन्दर दास फोटोग्राफी पर एक लेख लिखा। इसी अंक में कई एक विज्ञान के लेख प्रकाशित हुए। 1866 में अलीगढ़ से अलीगढ़ इंस्टीट्यूट गजट' नामक साप्ताहिक पत्र शुरू किया गया, जिसमें कृषि विज्ञान पर काफी सामग्री छपती थी । 1882 में पं लक्ष्मीशंकर मिश्र ने 'काशी पत्रिका' का प्रकाशन शुरू किया। इसमें भी हिन्दी विज्ञान के क्षेत्र काफी कार्य हुआ। लेकिन सही मायनों में संपूर्ण हिन्दी विज्ञान पत्रिका का स्वप्न बीसवीं सदी के आरंभ में 1915 में विज्ञान परिषद प्रयाग से शुरू की गई पत्रिका 'विज्ञान' के प्रकाशन से पूरा हो सका।
स्वतंत्रता पूर्व बीसवीं शताब्दी: विज्ञान पत्रकारिता
सबसे पहले 1900 में गुरुकुल कांगड़ी ने हिन्दी में विज्ञान को अपनाया। इसमें गणित, रसायन, भौतिकी और चिकित्सा आदि विधाओं पर लेखनी चलाई गई. वहीं काशी की नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा विज्ञान की कई पुस्तकें लिखी गई। इसमें महेश शरण द्वारा लिखी रसायन शास्त्र (1909), विद्युत शास्त्र (1912), गुणात्मक विश्लेषण (1919) और गोवर्धन द्वारा भौतिकी (1910) लिखी गई. 1910 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने हिन्दी विज्ञान साहित्य में खासा काम किया। 1913 में प्रयाग में विज्ञान परिषद की स्थापना हुई. 1916 1932 में नगेन्द्र नाथ बसु ने हिन्दी विश्वकोश प्रकाशित किया। 1925 में बनारस हिन्दू विवि ने वैज्ञानिक शब्दकोश प्रकाशित किया। 1930-31 में प्रयाग की विज्ञान परिषद ने 4821 शब्दों का विज्ञान कोश बनाया। 1939 में कृष्णबल्लभ द्विवेदी के संचालन में ज्ञान-विज्ञान को हिन्दी विश्व भारती नामक विश्वकोश बनाया गया। हिन्दी का यह पहला संदर्भ ग्रंथ है। हिन्दी वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रकाशन निर्देशिका 1966 के अनुसार स्वतंत्रता पूर्व बीसवीं शताब्दी में अनेक विज्ञान की पुस्तकें लिखी गई। 1901 में हेमचन्द्र मिश्र की कृषि दर्शन कलकत्ता से छपी। 1921 में हिन्दी साहित्य सभा राजपूताना ने व्यावहारिक विज्ञान प्रकाशित की। विज्ञान की विचित्र कहानी 1941 में कलकत्ता से छपी। 1925 में सृष्टि जीव विज्ञान, श्री सत्यपाल द्वारा लिखी गई. वैसे राहुल सांकृत्यान द्वारा लिखी गई पुस्तक विश्व विज्ञान, हिन्दी में लोक विज्ञान की आरंभिक पुस्तक मानी जाती है।
1928 में इंडियन प्रेस इलाहाबाद से प्राकृतिक विज्ञान छपी। 1942 में महाजनी गणित कलकत्ता से छपी। रवीन्द्र नाथ ठाकुर की पुस्तक 'विश्व परिचय' का हिन्दी अनुवाद डॉ। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने किया, जो 1947 में इंडियन प्रेस इलाहाबाद से प्रकाशित किया गया। इसके अलावा इंडियन प्रेस इलाहाबाद ने कई विज्ञान की पुस्तकें प्रकाशित कीं। इनमें 1934 में होम्योपैथिक की मैटेरिया मेडिका, 1944 में श्रीनाथ सिंह द्वारा लिखित आविष्कारों की कथा छापी। 1919 में हरिद्वार से गुणात्मक विश्लेषण का प्रकाशन किया गया। 1940 में कृष्णकांत गुप्ता की कहानी वैज्ञानिक साहित्य मंदिर इलाहाबाद ने प्रकाशित की। एलोपैथिक सार संग्रह झांसी से प्रकाशित हुई.परमाणु बम 1947 में वाराणसी से छापा गया | हिन्दी साहित्य सम्मेलन, नागरी प्रचारिणी सभा, हिन्दुस्तान एकेडमी और विज्ञान परिषद प्रयाग, इन चार संस्थाओं की आरंभिक विज्ञान साहित्य के निर्माण में उल्लेखनीय भूमिका रही।
1913 में अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मेलन ने दिल्ली से मासिक आयुर्वेद महासम्मेलन पत्रिका आरंभ की। इसे हिन्दी की प्रथम विज्ञान पत्रिका माना जाता है। पर पहली विज्ञान पत्रिका होने का श्रेय 'विज्ञान' को जाता है जो विज्ञान परिषद प्रयाग से 1915 में आरंभ की गई. इसके बाद 1924 में धन्वंतरि अलीगढ़ से, 1946 में भोपाल से कृषि जगत, 1947 में इंडियन मिनरल्स प्रकाशित हुईं। 1942 में झांसी से प्रकाशित दैनिक जागरण में भी विज्ञान लेख छपते थे। 1947 में कानपुर से पूर्णचंद्र गुप्त ने दैनिक जागरण का प्रकाशन किया, जिसमें विज्ञान लेखों का समायोजन किया जाता था। 1934 में बड़ौदा व इंदौर से प्रकाशित हिन्दी शिक्षण पत्रिका में विज्ञान लेख छपते थे। 1919 में नागपुर से उद्यम मासिक पत्रिका निकाली गई जिसमें प्रचुर विज्ञान सामग्री छपती थी।1914 में विद्यार्थी पत्रिका में विज्ञान लेखों का समायोजन किया जाता था। स्वतंत्रता पूर्व लगभग 250 हिन्दी विज्ञान की पुस्तकें प्रकाशित की गई। इससे पूरे देश में हिन्दी विज्ञान लेखन में एक नया वातावरण तैयार हो सका।
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