विज्ञापन के सिद्धान्त |विज्ञापन सिद्धांतों के बारे में |Principles of advertising in Hindi
विज्ञापन के सिद्धान्त, विज्ञापन सिद्धांतों के बारे में
विज्ञापन के सिद्धान्त (Principles of advertising)
विज्ञापन वस्तुओं के लिए बाजार उपलब्ध कराते हैं लेकिन विज्ञापन के विभिन्न साधनों के चुनाव करते समय और विज्ञापन संदेश या इसकी विषय सामग्री तैयार करते समय अपने स्वभाविक ग्राहकों को ठीक से समझ लेना आवश्यक है। साथ ही यह भी समझना आवश्यक होता है कि संभावित ग्राहकों की सामाजिक, आर्थिक व क्षेत्रीय स्थिति क्या है। विज्ञापन करते समय ग्राहकों के रीति-रिवाजों, उनकी भाषाओं व उनके जीवन-यापन करने के तरीकों को विशेष रूप से ध्यान रखना आवश्यक होता है। इन्ही आवश्यक तत्वों को विज्ञापन के सिद्धान्त रूप में अध्ययन किया जाता है।
विज्ञापन के सिद्धान्तों का अध्ययन हम निम्न रूप से कर सकते हैं-
1. भविष्य के ग्राहकों को जानना-
- विज्ञापन के अच्छे परिणाम लेने और उनका अधिक से अधिक प्रभाव डालने के लिए सम्भावित ग्राहकों के विषय में सब कुछ जानना आवश्यक है। जैसे - आसपास की आबादी का सामाजिक व आर्थिक स्तर क्या है तथा फुटकर में वो किस तरह की आवश्यकता खरीदते हैं। साथ ही इसका भी गहन अध्ययन करना पड़ता है कि जिनके लिए विज्ञापन किया जाना है उनकी योग्यता क्या है, उनकी आदतें, रूचि, रीति-रिवाज या परम्पराएं और मान्यताएं क्या हैं? इन सभी का अध्ययन करने के बाद ही विज्ञापन तैयार कर उन्हें वस्तु के प्रति आकर्षित किया जाता है।
2. वस्तुओं के प्रति विज्ञापन द्वार रूचि जगाना -
- उत्पादों व वस्तुओं के प्रति रूचि जगाना विज्ञापन का प्रमुख सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त में विज्ञापनदाताओं को यह ध्यान में रखना चाहिये कि विज्ञापन संदेश या विषय सामग्री या इसके माध्यम जनता की रूचि के हों अर्थात उन्हें सुनने या देखने में अच्छे लगे तभी वे उनकी ओर आकर्षित होंगे। इसके लिए प्रायः विज्ञापन प्रति तैयार करते समय ही ग्राहकों के और नजदीक पहुंचा जा सकता है।
3. ग्राहक समस्याओं का ज्ञान कराना-
- विज्ञापन निर्माताओं को इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है कि जो विज्ञापन वो निर्मित कर रहे हैं, उसकी पूर्ण जानकारी ग्राहकों को दें। साथ ही समाज व ग्राहकों को उत्पाद के गलत तरीकों से सावधान करना तथा उससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं का ज्ञान कराना भी विज्ञापनों का प्रमुख सिद्धान्त है। हम देखते भी हैं कि कई ऐसे उत्पाद जो हमारे लिए दैनिक उपयोग के होते हैं उनके प्रयोग व सावधानियों से हमें विज्ञापनों व उत्पादों में छपे निर्देषों द्वारा अवगत कराया जाता है। जैसे- कूलर, वॉशिग मशीन, दवाएं, कीटनाशक के विज्ञापन, इत्यादि ।
4. प्रभावित करने वाले शीर्षक-
- किसी भी उत्पाद का विज्ञापन बनाने बनाते समय इस बात को विज्ञापन निर्माता विशेष महत्व देता है कि उसका शब्द संयोजन व मुख्य हैडिंग कैसी है। क्योंकि मुख्य शीर्षक ही ग्राहकों को प्रथमदृष्टया प्रभावित करने का काम करता है। विज्ञापन का शीर्षक इतना आकर्षित होना चाहिए कि लक्षित उपभोक्ता इसके ओर बरबस खिचां चला आए । उदाहरण के लिए उत्पादों पर भारी छूट, विशेष पर्वों पर आकर्षित उपहार योजना, एक के साथ एक फ्री योजना।
5. सरल, रोचक व रोमांचकारी भाषा का प्रयोग करना-
- विज्ञापनों का प्रमुख सिद्धान्त यह भी है कि उनकी भाषा क्लिष्ट न हो। जिस भी उत्पाद के लिए विज्ञापन तैयार किया जाता है उसके लक्षित उपभोक्ता समाज के प्रत्येक आर्थिक वर्ग में हो सकते हैं। उनका शैक्षिक स्तर भी भिन्न-भिन्न हो सकता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए विज्ञापनों की भाषा सरल व अधिक प्रभावी होनी चाहिए, जिससे ग्राहक यह जान ले कि जो उत्पाद वो खरीद रहा है वह उसके लिए कितना उपयोगी है। भारत के संदर्भ में यह बात और भी प्रासंगिक हो जाती है क्योंकि भारत बहुभाषी व सर्वधर्म सम्भाव वाला देश है। ऐसे विविधता वाले देश में विज्ञापन निर्माताओं के लिए प्रत्येक प्रांत की भाषा को ध्यान में रखकर भी विज्ञापन का निर्माण करना आवश्यक हो जाता है। जैसे- कोकाकोला का विज्ञापन हर क्षेत्र व हर भाषा में हमें देखने को मिल जाता है। आजकल आइडिया का विज्ञापन जिसमें पंचलाइन में कहा जाता है कि कोई भी किसी भी भाषा में बात कर सकता है, सबसे अधिक चर्चा में है।
6. सुन्दर व आकर्षक चित्रों को सही प्रयोग
- विज्ञापन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है जो उत्पाद वो ग्राहक के सामने प्रस्तुत कर रहा है उसके विज्ञापन का प्रस्तुतिकरण कैसा है। आजकल इस क्षेत्र में उत्पादों के पैकेजिंग को भी विशेष स्थान दिया जा रहा है। जो उत्पाद जितने आकर्षित विधि से पैक होगा व सुगम्य होगा उसे उपभोक्ता को ले जाने में असुविधा का सामना नहीं करना पड़ेगा, ऐसे उत्पादों को ग्राहक पहले खरीदना चाहता है। साथ ही आकर्षक चित्रों, मॉडलों, खिलाड़ियों के उत्साहित कर देने वाले चित्रों से उस उत्पाद को सजाया गया होगा तो वह उत्पाद ग्राहकों की पहली पसंद बनता है। इस बात का भी विज्ञापनदाता व उत्पादक विशेष ध्यान देते हैं। ताकि उत्पाद की अधिकतम खरीद हो । विभिन्न दैनिक घरेलू उत्पादों को इस श्रेणी में रखा जा सकता है।
7. उत्पाद की गुणवत्ता व उपयोगिता को बताना
- विज्ञापनदाता इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि जिस उत्पाद का विज्ञापन दिया जा रहा है उस उत्पाद की विशेषता को ही सम्भावित ग्राहक के सामने रखा जाए। साथ ही उत्पाद ग्राहक के लिए कितना उपयोगी हो सकता है इसको विज्ञापन में विशेष आकर्षण के साथ प्रस्तुत किया जाए। कुछ वस्तुओं के विज्ञापन लोग उत्पाद की उपयोगिता को समझ कर ही पढ़ते हैं। ग्राहक जिस उत्पाद को खरीदने का मन बनाता है उससे सम्बन्धित उत्पादों के समस्त विज्ञापनों पर गंभीरता के विश्लेषण करता है, तद्पश्चात निर्णय लेकर वो अपनी उपयोगिता के अनुसार उत्पाद को खरीदने का अंतिम फैसला लेता है। जैसे विभिन्न बीमा कम्पनियों द्वारा नई-नई बीमा योजनाओं के विज्ञापन इत्यादि।
8. संक्षिप्त विज्ञापन-
- किसी भी विज्ञापन की विषय सामग्री बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए। उत्पाद के विषय में सम्पूर्ण जानकारी और उपयोगिता बताना सबसे अधिक महत्व रखता है ताकि ग्राहक अपनी इच्छा और उत्पाद की उसके जीवन में उपयोगिता का त्वरित निर्णय ले सके और उसको खरीदने के लिए मन बना ले। पत्रिका, अखबारों व टी0वी0 जैसे माध्यमों में संक्षिप्त व प्रभावकारी विज्ञापन का विशेष महत्व है।
9.विज्ञापन में मनोविज्ञान का उपयोग
- कोई भी विज्ञापन करने से पहले मनोवैज्ञानिक तथ्यों को अच्छी प्रकार प्रयोग में लेना चाहिए। उत्पाद के विज्ञापन इतना आकर्षक होना चाहिए जिससे ग्राहक उस उत्पाद को पाने के लिए उत्सुक हो जाये । उत्पाद को बाजार में उतारने से पहले विज्ञापनदाता उत्पाद से सम्बन्धित ग्राहकों के मनोविज्ञान को जॉच लेते हैं। जैसे- उत्पाद में कुछ नवीनता का अहसास होना, महंगी वस्तु की कल्पना जगाना या किसी अलौकिक आन्नद की अनुभूति ग्राहकों को दिलाना आदि। इन सब प्रयोगों के बाद उत्पाद को बाजार में उतारा जाता है।
- विज्ञापनों का वैज्ञानिक प्रभाव को हम अक्सर अपने जीवन में देखते हैं जैसे- बच्चों के चॉकलेट का विज्ञापन जो बच्चों को इतना आकर्षित करता है कि बच्चे चॉकलेट लेने के लिए जिद करने लगते हैं। इसी प्रकार घरेलू उत्पाद जो आम जीवन में रोज ही प्रयोग हो रहे हैं। बीमा पोलिसी, बैंकों की ऋण योजनाएं इत्यादि।
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