टेलीविजन लेखन के सिद्धांत |Principles of television writing
टेलीविजन लेखन के सिद्धांत (Principles of television writing)
टेलीविजन लेखन के सिद्धांत
टेलीविजन लेखन के बिंदुओं को विवेचित कीजिए?
टेलीविजन लेखन एक चुनौतीपूर्णकार्य है। अतः उसके लेखन में निम्नलिखित बिंदुओं का ध्यान रखना आवश्यक है
1. चित्रात्मकता
- टेलीविजन में दृश्य की सत्ता है। एक दृश्यात्मक माध्यम होने के कारणउसमें चित्र या दृश्य का सर्वाधिक महत्त्व चाहे वह चित्र या दृश्य स्थिर हो या गतिशील । इसीलिए इसके लेखन के दौरान यह अपेक्षा की जाती है कि उसमें चित्रों अथवा दृश्यों को अधिक-से-अधिक बोलने का अवसर दिया जाए और शब्दों का प्रयोग कम हो। कहा भी गया है कि एक चित्र अनेक शब्दों द्वारा किए गए विवरण को साकार कर देता है। यहां शब्दों को भी दृश्यों का सहवर्ती होकर आना चाहिए। उनका परस्पर संयोजन होना चाहिए। इससे न केवल टेलीविजन के प्रभाव में वृद्धि होती है बल्कि आकर्षण भी होता है। इसके लिए लेखक को लेखन से पूर्व अध्ययन, शोध और तत्परक विश्लेषण पर ध्यान देना उचित रहता है।
2. संभाषणशीलता
- चूँकि टेलीविजन दृश्य-श्रव्य माध्यम है। इसलिए इसके लेखन में चित्र के साथ-साथ ध्वनि के कलात्मक उपयोग पर भी ध्यान देना होता है। वार्तालाप शैली कार्यक्रम को विश्वसनीय ही नहीं बनाती बल्कि रोचक और आकर्षक भी बनाती है। संभाषण शीलता दर्शक के हृदय पर गहराई से असर डालती है, उसकी स्मृति में भी बनी रहती है और इच्छित संप्रेषण भी हो जाता है।
3 टेलीविजन की तकनीक का ज्ञान
- श्री विनोद तिवारी लिखते हैं कि 'तकनीक उस मेकअप के समान है जो कहानी के सौंदर्य को द्विगुणित करके पेश करती है। ' ( विनोद तिवारी, टेलीविजन पटकथा लेखन, पृ0-19) इस दृष्टि से टेलीविजन लेखक के लिए वीडियो तकनीक, साउंड तकनीक, फिल्म तकनीक, रिकार्डों का उपयोग, इलेक्ट्रिकल ट्रांसकिप्सन, स्टिल फोटोग्राफी का उपयोग जानना भी आवश्यक है। नक्शे, चार्टों, डायग्रामों का उपयोग पटकथा को जानदार बना सकता है। उसे कैमरा प्रयोग की विधियों से भी अवगत होना चाहिए ताकि वह पटकथा लेखन करते समय शॉटस के निर्देश दे सके। फोटोग्राफी की तकनीक, उसके महीन-से-महीन पहलुओं की जानकारी, डिजाल्व, फेड इन-फेड आउट, सुपर इंपोजीशन, वाइप जैसी फोटो पत्रकारिता और फिल्म तकनीक की शब्दावली के गहरे ज्ञान से टेलीविजन लेखन प्रभावी, सशक्त और प्राणवान बन जाता हैं। टेलीविजन लेखक को ज्ञात होना चाहिए कि टेलीविजन के लिए चित्र कहाँ से प्राप्त होते हैं? टेलीविजन के लिए चित्र प्राप्ति के स्रोत हैं - वीडियो कैमरा, वीडियो टेपरिकार्डिंग, फिल्म, स्टिल फोटोग्राफ और ग्राफिक्स। इसी प्रकार ध्वनि के निम्नलिखित स्रोत हैं- माइक्रोफोन, वीडियो टेपरिकार्डिंग, ऑडियो टेपरिकार्डिंग, फिल्म और फोटोग्राफ रिकार्ड।
4. एस3 का प्रयोग
- टेलीविजन लेखन में प्रोडक्शन के सभी पहलुओं की जानकारी के साथ-साथ हर शॉट, उपयुक्त ध्वनि-प्रभावों, संगीत-प्रभावों, कैमरा मूवमेंट और कैमरा को का उल्लेख होना आवश्यक है। शूटिंग के दौरान शूटिंग सीक्वेंस का क्रम निर्धारित होना चाहिए। वास्तव में टेलीविजन और फिल्म लेखन में शॉट, सीन और सीक्वेंस अर्थात 'एस' 3 की भूमिका और उसके महत्त्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। इसे अनुवादित रूप में प्रतिबिंब, दृश्य और अनुक्रम कहा गया है। इन सभी की महत्ता तभी है जब ये तीनों समन्वित रूप से उभर कर आएं, अलग-अलग स्वतंत्र इकाइयां अनुभूत न हों। तभी ये एक दूसरे के पूरक सिद्ध हो पाएंगे और निंरतरता बनी रहेगी।
- टेलीविजन लेखक को दृश्यों के अनुक्रम का ज्ञान होना चाहिए। उसे यह भी पता होना चाहिए कि दृश्यों के साथ किन-किन संवादों का संबंध होगा या कौन-कौन से संवाद दृश्यों के साथ आएंगे? यह बात ठीक है कि टेलीविजन लेखक का अभिनय, गायन, फिल्मांकन और संपादन आदि से कोई सीधा संबंध नहीं होता लेकिन इतना स्पष्ट है कि लेखक ही सबसे पहले सारी प्रस्तुति को अपने मानस-पटल पर काल्पनिक रूप से अनुभूत करता है। इसीलिए उसे इन तकनीकों का जानकार होना चाहिए। टेलीविजन लेखक को किसी कार्यक्रम या धारावाहिक के विभिन्न सहयोगियों (निर्देशक, कैमरामैन, व्यवस्थापक आदि) से विचार-विमर्श कर प्रस्तुतीकरणको सहज बनाने का प्रयास करना चाहिए और उन कठिनाइयों को दूर करना चाहिए जो प्रस्तुतीकरणको असहज बनाती हैं। चूंकि लेखक को विषय की पूरी जानकारी होती है अतः जब आवश्यकता पड़ती है तब लेखक पटकथा में यथासंभव परिवर्तन करता है। इन्हीं सभी बातों को ध्यान में रखने के कारणटेलीविजन लेखक को टेलीविजन की संपूर्णकार्यप्रणाली से अवगत होना आवश्यक हो जाता है।
5 दर्शक वर्ग की जानकारी
- टेलीविजन लेखक को दर्शक वर्ग की जानकारी होना आवश्यक है। उसे पता होना चाहिए कि वह किस दर्शक वर्ग के लिए लिख रहा है? वह दर्शक वर्ग अविवाहित है, विवाहित है, युवा है, विद्यार्थी है या कामकाजी महिलाएं हैं। उसे अपने दर्शक की मानसिकता, व्यवहार, आयु, स्तर, आदतों, पसंद-नापसंद आदि सभी का ज्ञान होना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि लेखन कई वर्गों की संवेदनाओं को छूता है जिसके परिणामस्वरूप दर्शक वर्ग का विस्तार हो जाता है। एक अच्छे टेलीविजन लेखक के लिए यह लाभदायक तो है ही, साथ ही उसकी लोकप्रियता भी बढ़ाता है। दर्शक वर्ग भले ही परिष्कृत हो या सामान्य, दोनों को ध्यान में रखकर लेखन करना उचित है। अतः लेखक की पसंद और विषय शालीन, स्तरीय और सुनिश्चित होना चाहिए। श्री विनोद तिवारी के अनुसार 'लेखक के तौर पर आप 'रिजिड' अर्थात कठोर रुख अपनाकर नहीं चल सकते। जनसामान्य की रुचि को ध्यान में रखना होगा। आपकी सफलता इसी में होगी कि आप इस तरह का रास्ता अपनाएं जिसमें दोनों बातें हों, जो सस्तेपन से रहते हुए भी इतना भारी न हो कि दर्शक की समझ के स्तर के ऊपर से ही निकल जाए।' (विनोद तिवारी, टेलीविजन पटकथा लेखन, पृ0-90-91) टेलीविजन लेखक के लेखन में संतुलन रहना चाहिए।
6. भाषा
- टेलीविजन लेखक को भाषा का ध्यान भी लेखन के स्तर पर करना पड़ता है। उसकी भाषा का निर्धारणदर्शक वर्ग के अनुसार होगा। दर्शक वर्ग की प्रकृति और परिस्थिति के अनुसार विन्यास लेखन को न केवल प्रभावशाली बना देता है बल्कि उसकी पटकथा उत्कृष्ट हो जाती है और एक बहुत बड़े दर्शक - वर्ग का वह प्रिय हो जाता है। उदाहरणस्वरूप 'बालिका वधू, 'उतरन', 'न आना इस देश लाडो' और 'प्रतिज्ञा' जैसे धरावाहिकों की भाषा को इस संबंध में देखा जा सकता है। सामान्यतः टेलीविजन की भाषा आम बोलचाल की भाषा होती है लेकिन क्षेत्रीय और आंचलिक शब्द भी आज लेखन में प्रयोग किए जा रहे हैं और दर्शकों को भी ग्राह्य हैं। साहित्यिक कार्यक्रम या किसी विशिष्ट कार्यक्रम की भाषा उस कार्यक्रम के अनुसार होगी न कि आम बोलचाल की भाषा के करीब। हां, इतना अवश्य है कि उस भाषा का स्वरूप ऐसा हो कि दर्शक सामंजस्य बिठा सके।
7 विविध विधाओं की जानकारी
- टेलीविजन के लिए लेखन करने वाले व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि उसे टेलीविजन की विभिन्न विधाओं टेलीविजन नाटक, टेलीविजन फीचर, धारावाहिक, वृत्तचित्र आदि की जानकारी हो। इन सभी कार्यक्रमों के लेखन और प्रस्तुतीकरण आदि का विशिष्ट ढंग होता है, विशिष्ट अपेक्षाएं होती हैं जिनका ध्यान टेलीविजन लेखक को रखना उचित रहता है। उसे अपना आलेख विधागत विशेषताओं को ध्यान में रखकर निर्मित करना पड़ता है। उसे कार्यक्रम की प्रकृति का ज्ञान होना चाहिए क्योंकि प्रत्येक कार्यक्रम के अनुसार पटकथा में अंतर आएगा।
8 नवीनता
- नवीनता मनुष्य को अच्छी लगती है। चाहे कोई नवीन सूचना या कोई नवीन विषय | यही नवीनता को बनाए रखना टेलीविजन पटकथा के लिए आवश्यक है। जब टेलीविजन पर विषय विविधता और रोचकता लिए हुए नवीनतम जानकारी प्रस्तुत की जाती है तो दर्शक मंत्रमुग्ध हो जाता है और उसकी रुचि कार्यक्रम में होने लगती है। पुराने विषय या घिसी-पिटी बासी चीजें दर्शकों को तभी आकर्षित करती है जब वे उसे रुचिकर पाते हैं। अक्सर फिल्मी कार्यक्रम दर्शक अनेक बार देखते हैं लेकिन ऐसा हर कार्यक्रम के संबंध में सही नहीं है। वास्तव में चाहे कोई भी कार्यक्रम (नाटक, , फीचर, धारावाहिक आदि) हो नवीनता का समावेश उसे प्रभावी बना देता है और रुचिकर भी।
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