अनुवाद की प्रक्रिया|शब्दबोध - वाक्यबोध संप्रेषण वाक्य |Process of Translation in Hindi
अनुवाद की प्रक्रिया- शब्दबोध - वाक्यबोध संप्रेषण वाक्य
अनुवाद की प्रक्रिया Process of Translation in Hindi
- आपने अनुवाद का सामान्य परिचय और इसका महत्व जान लिया है। अब आप अनुवाद की प्रक्रिया जानेंगे अनुवाद की प्रक्रिया का आशय है कि अनुवाद कैसे होता है। आपने पढ़ा कि अनुवाद ज्ञान को बढ़ाने और प्रसार करने में कितना महत्वपूर्ण है। आप जान गये हैं कि अनुवादक के लिए मूल भाषा या स्रोत भाषा में निहित विचारों को समझना आवश्यक होता है। अनुवाद की प्रक्रिया में जिस भाषा से अनुवाद होता है उसे स्रोत भाषा कहा जाता है और जिस भाषा में अनुवाद होता है उसे लक्ष्यै भाषा कहते हैं अनुवाद की प्रक्रिया के दो चरण होते हैं पहले चरण को हम अर्थबोध या अर्थग्रहण कहते हैं। इसमें हम मूल रचना का अर्थ समझते हैं। दूसरे चरण में संप्रेक्षण होता है जिसमें दूसरे तक पहुँचाने के लिए अपनी भाषा में वही बात कही जाती है। सरल शब्दों में समझना और कहना दो चरण हैं। समझने की प्रक्रिया में पढ़ते समय पाठक जो पढ़ता है उसे समझने की प्रक्रिया भी साथ.साथ चलती रहती है। समझने के कई स्तर हो सकते हैं। सामान्य पाठक या श्रोता मूल पाठ के सभी शब्दों का अर्थ न जानने पर भी एक स्तर तक बात रचना को समझ सकता है और रचना का आनन्द ले सकता है। लेकिन अनुवादक के रूप में हम किसी शब्द को नहीं छोड़ सकते क्योंकि जैसा पूर्व में हमने आपको बताया है अनुवादक या घटाने की को में भी जोड़ने मूल पाठ में कुछ छूट नहीं होती है। भाषिक दृष्टि से इसमें सबसे पहले शब्दबोध फिर वाक्यबोध और अंत में रचनाबोध तक पहुँचना होता है।
शब्दबोध -
- शब्दश रचना की सबसे छोटी इकाई होती है। शब्द किसी भी रचना के अर्थग्रहण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं। कई बार एक ही शब्द के अनेक अर्थ भी होते हैं और एक ही भाव के लिए उसके कई पर्यायवाची भी होते हैं। लेखक या वक्ता शब्द चुनते समय रचना के संदर्भ में उसके अर्थ प्रयोग का ध्यान रखता है और यही ध्यान अनुवादक को भी रखना होता है। इसलिए अनुवादक के रूप में हमें आपको किसी अच्छ शब्दकोश की सहायता लेकर ऐसे शब्दों को स्पष्ट करना होगा। अनुवादक के रूप में शब्दों का अर्थ और प्रयोग समझना बहुत आवश्यक है। जब हम एक भाषा से दूसरी भाषा में शब्दों का अर्थ कर रहे होते हैं तब कई शब्द ऐसे भी होते हैं जिनका लक्ष्यभाषा में अ नहीं मिलता है। उदाहरणार्थ हिन्दी के धोती शब्द का अंग्रेजी में कोई पर्यायवाची शब्द नहीं. ऐसे ही अंग्रेजी के नेकटाइ जिसके लिए टाई शब्द का प्रयोग होने लगा है जिसका कोई सटीक हिन्दी अर्थ नहीं है। ऐसे शब्दों के प्रयोग में अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। इन्हें चिह्नित कर अलग से व्याख्यायित किया जाना चाहिए।
वाक्यबोध -
- मूल पाठ के शब्दों का अर्थ जान और समझ लेने के बाद वाक्यनष् को समझने की प्रक्रिया चलती है। वाक्यों से ही भाषा बनती है। शब्दोंय से अर्थ ज्ञान होता है। वाक्य अर्थ को स्पकष्ट करते हैं। अर्थ प्रत्ये क स्वबतंत्र वाक्यद में भी स्पीष्ट हो सकता है और कई बार एक से अधिक से वाक्यों में भी स्पष्ट होता है। अनुवादक को इसे समझना होता है। वाक्य में आए शब्दों के प्रयोग को समझना भी नितांत आवश्यक है। शब्दो का वाक्य में प्रयोग शब्द के चयन का आधार होता है। एक ही शब्द के अनेक अर्थ होने पर वाक्यों के अनुरूप शब्द का चयन या पर्यायवाची शब्दों में से सही चुनाव वाक्य को सार्थक बनाता है। वाक्य में शब्दों का क्रम भी समझना आवश्यक है। विभिन्न भाषाओं में शब्दों का क्रम भिन्न होता है। वह भाषा विशेष के वाक्यानुक्रम में ही सही अर्थ और भाव प्रकट करता है। इसके लिए अनुवादक को स्रोत-भाषा और लक्ष्य-भाषा दोनों के ही वाक्य विन्यास की जानकारी होना आवश्यक है।
रचनाबोध -
- अभी तक आपने जाना कि अनुवादक के रूप में अनुवादक कोद शब्द के अर्थ को समझना जरूरी होता है फिर वाक्यों में निहितार्थ को समझना होता है। अनुवादक को सम्पूर्ण ना या वक्तव्य का अनुवाद करना होता है इसलिए अनुवादक के लिए सम्पूर्ण रचना और उसमें व्यक्त विषय का जानकार होना आवश्यक है। शब्द बोध वाक्यबोध और रचनाबोध का विशेषज्ञ होने पर ही अनुवादक मूल-भाषा की रचना का अर्थग्रहण कर उसे लक्ष्य भाषा में अभिव्यक्त कर सकता है।
संप्रेषण -
- मूल पाठ को अच्छी तरह समझने के बाद उसे लक्ष्य भाषा में संप्रेषित किया जाता है। यही एक भाषा स्रोत- भाषा में कही गई बात को दूसरी भाषा, लक्ष्य-भाषा में फिर से कहना होगा। जब हम किसी रचना को पढ़ते हैं तब उसे समझने का प्रयास करते हैं। समझकर ही रचना का आनन्द लिया जा सकता है या उसके उद्देश्य तक पहुँचा जा सकता है। इसमें लिखने वाले की बात सीधे पढ़ने वाले तक पहुँचती है। अनुवाद करते समय यह अनुवादक का दायित्व होता है कि वह मूल लेखक की बात को पाठक तक ज्यों का त्यों पहुँचाए । अतः वह हर प्रकार से समतुल्यता का प्रयास करता है। यही समतुल्यता मूल पाठ के भाव को पाठक तक पहुँचाने में सफल होती है।
शब्द की समतुल्यता -
सम्प्रेषण की दृष्टि से भाषा की सबसे छोटी इकाई शब्द है। आप मूल पाठ के - अर्थग्रहण की प्रक्रिया में यह जान चुके हैं कि सबसे पहले अनुवादक को रचना में आये शब्दों के में अर्थ समझने होते हैं। अनुवाद करते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि शब्द के अर्थ का चयन विषय के अनुरूप हो अंग्रेजी में एक शब्द है Right जिसके विविध संदर्भों में प्रयुक्ति होती है यथा -
Right Direction - दाहिनी दिशा
Right Answer – सही उत्तर
Right Angle – 90° (डिग्री) का कोण
Right Conduct- उचित आचरण
Rightist - दक्षिणपंथी
- अनुवाद करते समय मूल भाव के अनुरूप प्रयोग किया जायेगा । यहाँ पर शब्द के अर्थ के स्थान पर प्रतिशब्द का प्रयोग करेंगे। शब्द के अर्थ का सीधा अर्थ है एक भाषा का शब्द दूसरी भाषा में। लेकिन आपने शब्दकोश का प्रयोग करते समय पाया होगा कि एक ही शब्द के अनेक अर्थ होते हैं. यह अर्थ भी अनेक शब्द हैं। उनमें से हमें उस शब्द अर्थ का चयन करना होता है जो रचना में सटीक बैठता हो यही प्रतिशब्द है। सही प्रतिशब्द का चुनाव अच्छे अनुवाद का आधार है।
वाक्य -
- अभिव्यक्ति में सम्प्रेषण का दूसरा चरण वाक्य निर्माण के रूप में सामने आता है। वाक्य सही और सार्थक होना आवश्यक है। वाक्य व्याकरण की दृष्टि से भी सही होने चाहिए और मूल भाषा का प्रभाव डालने वाले भी इसके लिए शब्दों का प्रयोग और चुनाव बदलना पड़ सकता है। कभी मूल पाठ के एक वाक्य को एकाधिक वाक्यों में तोड़ना या एकाधिक वाक्यों को एक वाक्य में संकुचित करना पड़ सकता है। के मूल भाषा को लक्ष्य-भाषा के शब्दानुक्रम में प्रस्तुत करना होता है। प्रत्येक भाषा का अलग व्याकरण होता है। उसी के अनुरूप वाक्य संरचना होती है। अत: इस बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है कि जिस भाषा में अनुवाद किया जा रहा हो व्याकरण की दृष्टि से वह सही हो क्योंकि वही वाक्य-संरचना पाठक को सहज रूप में मूल पाठ का बोध करायेगी। इसके साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि मूल पाठ में व्यक्त विचार व भाव पूरी तरह आ जाये।
रचना -
- अनुवाद की प्रक्रिया में अब तक आपने जाना कि पहले मूल रचना का बोध किया जाता है जिसमें बोधन की प्रक्रिया मूल भाषा के शब्दों, वाक्यों की व्याकरणनिष्ठा और रचना के सही-सही बोधन से होती है। जब अनुवादक तीनों स्तरों पर मूल रचना को समझ लेता है तब वह लक्ष्य-भाषा में सही प्रतिशब्दों का चयन करता है वाक्य संरचना करता है अंततः मूल रचना की लक्ष्य-भाषा में पुनरर्चना, प्रतिरचना करता है। यही अनुवादक का उद्देश्य है। सफल अनुवाद वह है जिसमें मूल रचना का पूरा-पूरा भाव आ जाए और प्रतिरचना, अनुवादित रचना के रूप में उसमें सहज प्रवाह और ग्राह्यता हो ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि अनुवाद की पूरी प्रक्रिया में अनुवादक को कई सोपानों से गुजरना पड़ता है और उसे अलग-अलग भूमिका निभानी पड़ती है। सबसे पहले वह पाठक की भूमिका में होता है और मूल पाठ का पाठन व विश्लेषण करता है। अनुवाद करते समय बहुभाषिए के रूप में होता है और अनूदित पाठ या प्रतिरचना प्रस्तुत करते हुए लेखक की भूमिका में होता है। इन सभी भूमिकाओं में दक्षता के स्तर पर ही अनुवादक अनुवाद का स्तर निर्मित करता है।
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