विज्ञान पत्रकारिता : विभिन्न विधाएं |समाचार और विज्ञान| वैज्ञानिक रिपोर्ताज|वैज्ञानिक लेख| Science Journalism: Various Streams
विज्ञान पत्रकारिता : विभिन्न विधाएं (Science Journalism: Various Streams)
विज्ञान पत्रकारिता : विभिन्न विधाएं (Science Journalism: Various Streams)
- विज्ञान पत्रकारिता के अंतर्गत विभिन्न विधाओं के तहत कार्य किया जा सकता है। इसमें विज्ञान समाचारों के अलावा रिपोर्ताज और लेख, विज्ञान कथाएं, उपन्यास और कविताएं शामिल हैं। विज्ञान नाटक और रूपक, विज्ञान चित्र कथाएं, व्यंग्य चित्र और हास्य व्यंग्य के अलावा हिन्दी में वैज्ञानिक समीक्षाएं शामिल हैं। वैज्ञानिक साक्षात्कार, भेंटवार्ता के अलावा परिचर्चाएं भी इसके तहत कवर की जाती हैं।
समाचार और विज्ञान:
- समाचार शीघ्रता से लिखा जाने वाला इतिहास है। जेजे सिंडलर के अनुसार पर्याप्त संख्या में मनुष्य जिसे जानना चाहे वह समाचार है। पर शर्त यह है कि वह सुरुचि तथा प्रतिष्ठा के नियमों का उल्लंघन न करे। वहीं विज्ञान समाचार वह वैज्ञानिक जानकारी है जिसके बारे में पाठक उसके पहले न जानते हों, विज्ञान संवाददाता को हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि विज्ञान समाचार, विज्ञान व प्रोद्यौगिकी की जानकारी देता है न कि वैज्ञानिक की। वैज्ञानिकों के भाषणों, वक्तव्यों व अन्य कार्यक्रमों पर बहुत से रिपोर्ताज विज्ञान के नाम पर छपते रहते हैं वे वास्तव में विज्ञान समाचार नहीं कहे जा सकते हैं। नार्थ, ईस्ट, वेस्ट व साउथ यानी चारों दिशाओं से कहीं भी विज्ञान के किसी क्षेत्र में जो घटना या दुर्घटना होती है, वह विज्ञान समाचार है। विज्ञान के क्षेत्र में कोई भी खोज, अनुसंधान या आविष्कार विज्ञान समाचार है। अनुसंधान की शुरुआत, प्रगति और उसके परिणाम भी विज्ञान समाचार हैं। अंतरिक्ष के लिए तैयार किए जाने वाले उपग्रह भी विज्ञान समाचार हैं।
- कई सामान्य समाचारों में भी वैज्ञानिकता का पुट देकर उन्हें भी विज्ञान समाचार बनाया जा सकता है। जैसे पुल का निर्माण और उससे जुड़ी विशेष स्थितियां | विज्ञान समाचार प्रायः संक्षिप्त और गठे होने चाहिए। ये किसी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक घटना से आरंभ होते हैं और बाद में घटना का संक्षिप्त वर्णन भी दिया जाता है। अगर पहले से कोई संगत जानकारी मौजूद है तो उसे भी दिया जाता है। विज्ञान समाचारों में उपयुक्त शीर्षक भी दिया जाता है। बड़े समाचार में तो उपशीर्षक भी दिया जाता है। वेस्टली ने शीर्षक की चार खूबियां भी बताई हैं- शीर्षक एकदम स्पष्ट व अर्थपूर्ण हो । उपयुक्त और जानदार सरल शब्दों में लिखा जाए, समाचार के प्रमुख तथ्यों पर आधारित हो और समाचार का अच्छे से अच्छा संक्षिप्त सारांश दे। विज्ञान समाचारों को भी सुर्खियों में स्थान मिलना चाहिए, क्योंकि राजनीतिक और अपराध समाचारों के बीच में विज्ञान समाचार दब जाते हैं।
वैज्ञानिक रिपोर्ताज:
- वैज्ञानिक समाचार रूपक और रिपोर्ताज में कोई विशेष अंतर नहीं जान पड़ता। रूपक में विषय के विभिन्न पक्षों का विस्तृत विश्लेषण किया जाता है जो कि रिपोर्ताज में संभव नहीं है। रिपोर्ताज पूर्णरूप से समाचार प्रधान होता है और समाचार उद्गम के इर्द-गिर्द घूमता रहता है। इस तरह से समाचारों का विस्तृत प्रस्तुतिकरण ही रिपोर्ताज कहलाता है। वैज्ञानिक रिपोर्ताज प्रायः विज्ञान संगोष्ठी, पुरस्कार, उद्घाटन, विमोचन समारोह या किसी वैज्ञानिक घटना पर तैयार किए जा सकते हैं। रिपोर्ताज के लिए कोई निर्धारित फार्मूला नहीं है, लेकिन लेखक को इसके सभी पहलुओं पर नजर रखनी होगी। रिपोर्ताज के लिए उपयुक्त विषय पर विशेषज्ञों से वार्तालाप कर जानकारी दी जाती है। व्यवस्थागत समालोचना भी रिपोर्ताज में की जाती है। कार्यक्रम के दौरान घटित झलकियां भी रिपोर्ताज में कवर की जाती हैं, जिससे उसमें रोचकता बढ़ जाती है। समाचार और रिपोर्ताज में गहराई से देखने पर ही अंतर पता चलता है कि रिपोर्ताज समाचार के अलावा भी बहुत कुछ है जबकि समाचार केवल चार होता है। सरस विज्ञान पत्रकारिता के लिए रिपोर्ताज एक स्वस्थ परंपरा है और पाठक इसे काफी पसंद करेंगे।
वैज्ञानिक लेख:
- विज्ञान के किसी पहलू पर गहराई से जानकारी देने वाले गद्य लेख को विज्ञान लेख की परंपरा में शामिल कर सकते हैं। मोटे तौर पर इन्हें दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है-शोध लेख व समीक्षा लेख और लोकप्रिय लेख। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अनुसंधान कार्य का ब्योरा देने वाला लेख शोध लेख या शोध पत्र कहलाता है। इसे तकनीकी पत्र भी कहा जाता है। इसके लेखक वे व्यक्ति होते हैं जो अनुसंधान कार्य में सहभागी होते हैं। इसके अलावा समीक्षा (रिव्यू आर्टिकिल) किसी अनुसंधान कार्य की वैज्ञानिक समीक्षा होती है और उस पर अन्य कार्यों की ओर भी संकेत होते हैं। ये लेख प्रायः विशेषज्ञों द्वारा लिखे जाते हैं। शोध लेख सीधे और सपाट लिखे जाते हैं। इनमें नाटकीयता भरे शीर्षक नहीं लिखे जाते हैं।
- शोध पत्र की शुरुआत सूत्र, में ही सारांश दिया जाता है। इसके अलावा इसमें प्रस्तावना, प्रयोग की प्रकृति, सामग्री और सिद्धांत, प्राप्त परिणाम, विवेचना, उपसंहार, कृतज्ञता ज्ञापन, संदर्भ उदाहरण, फुटनोट, सारणी, रेखाचित्र और फोटोग्राफ आदि शामिल किए जाते हैं। लोकप्रिय विज्ञान लेख जो साधारण पढ़े-लिखे पाठकों, विद्यार्थियों, कारीगरों तथा आम जनता के लिए लिखे जाते हैं, जबकि शोध लेख या समीक्षा लेख वैज्ञानिकों या अनुसंधानकर्ताओं के प्रयोग के लिए होते हैं और इसीलिए वे गूढ़ वैज्ञानिक भाषा में लिखे होते हैं। जबकि लोकप्रिय लेख, सरल और आम बोलचाल की भाषा में होते हैं। इनका उद्देश्य विज्ञान की जटिलताओं को सरल बनाकर जनसामान्य के लिए रोचक तरीके से पेश करना हैं। विषयपरक लेख: ऐसे लेख जो किसी व्यावहारोपयोगी वैज्ञानिक अनुसंधान या आविष्कार के वर्णन के रूप में लिखे जाते हैं।
- विषय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की किसी भी शाखा के तकनीकी पक्ष से संबंधित हो सकता है। इनका विषय जनरूचि का कोई पुराना या नया विषय हो सकता है। जैसे- बायोटेक्नोलॉजी, उपग्रह, परिवहन, कार्बन, प्रशीतन, परिवहन तंत्र आदि। ऐसे लेखों में पाठकों को किसी नए विज्ञान समाचार से अवगत कराना है, ताकि पाठक उसके बारे में और अधिक जानना चाहें। यह भी बताना जरूरी है कि लेख में वर्णित विज्ञान लोगों को किस तरह से प्रभावित करेगा। उसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या होंगे, इसकी भी चर्चा आगे की जाती है। विशेष जानकारी वाले लेखों को बाक्स में देते हैं और उनमें ग्राफ तथा चित्रों का प्रयोग भी किया जाता है। वैज्ञानिक उपकरणों, विधियों, कार्यों आदि पर लिखे जाने वाले लेख भी इसी श्रेणी में आते विज्ञान लेखन की इस सशक्त विधा का प्रयोग आज काफी हो रहा है।
- विचारपूर्ण लेख ऐसे लेख विज्ञान के तकनीकी पक्ष पर कम उसके सहयोगी पक्ष पर ज्यादा आधारित होते हैं। इनमें वैज्ञानिक व्याख्यानों, वक्तव्यों, टिप्पणियों का समावेश होता है। जैसे-वन संरक्षण की जरूरत, विज्ञान शिक्षा की दिशा, प्रतिभा पलायन, विज्ञान का प्रभाव, वैज्ञानिक अभिरूचि आदि। इनमें योजनाओं का ब्योरा होता है जबकि विज्ञान गौण होता है।
खोजी विज्ञान पत्रकार
खोजपूर्ण लेख -
- खोजी विज्ञान पत्रकार का कार्य है कि वह विज्ञान के उन क्षेत्रों में हाथ डाले जहां ढेरों गड़बड़ियां हैं जैसे-वैज्ञानिकों की आत्महत्या, प्रतिभा दमन, प्रतिभा पलायन, उपकरणों का पैसा न मिलना, अनुसंधान परियोजना का लंबा खिंचना, नियुक्तियों और पदोन्नैतियों में धांधली, वैज्ञानिकों को प्रताड़ना, अरुचिकर कार्य सौंपना, विदेश यात्राओं और पुरस्काबरों में गड़बड़ी, बेदम अनुसंधान परियोजनाएं आदि । विज्ञान के क्षेत्र में भला-बुरा जो भी हो रहा है, उसे केवल में विज्ञान पत्रकार ही खोजकर सामने ला सकता है।
वैज्ञानिक जीवनी-
- किसी वैज्ञानिक की जीवनी में केवल उसके जन्मु, मरण, शिक्षा, परिवार या व्यवसाय का विवरण देना ही काफी नहीं बल्कि उसके उन पहलुओं पर खास कर फोकस किया जाना चाहिए जिन्हेंक पढ़कर पाठक आत्मनसात कर सके। विज्ञान के क्षेत्र में वह वैज्ञानिक कैसे आगे आया और किस तरीके से आगे बढ़ा इसका वर्णन जरूरी है।
- संपादकीय, अग्रलेख व टिप्पणियां- कुछ लोग अग्रलेख को पत्र-पत्रिका का प्रथम लेख मानते हैं तो कुछ प्रमुख लेख को ही अग्रलेख कहते हैं। कुछ लोग पाठकों का नियमित दिशा निर्देशन करने वाले लेख को ही अग्रलेख कहते हैं । अग्रलेख संपादक या संपादकीय कर्मियों द्वारा लिखा जाता है। लगभग सभी समाचार पत्र किसी घटना विशेष पर संपादकीय लिखते हैं। संपादकीय टिप्पणी पत्र-पत्रिका की नीति रीति स्पोष्टह करती है। इसमें भ्रम पैदा करने वाली बातें न लिखी जाएं। बहुत महत्वपूर्ण और लोकहित का विषय ही संपादकीय में उठाना चाहिए। टिप्पणियों को संक्षिपत लिखा जाए और उनका निरर्थक विस्तार न किया जाए।
विज्ञान के विशेष लेख-
- इसे आवरण लेख भी कहा जाता है। इसमें किसी वैज्ञानिक विषय या घटना को लेकर उसके विविध पहलुओं का विश्लेषण किया जाता है। ये लेख तीन से दस पृष्ठों के होते हैं। इनके विषय विस्तार या विशेषता के कारण इसे फीचर लेख भी कहा जाता है। पूरे लेख में कई तरह के लघु लेख समाहित किए जाते हैं। लेख की प्रकृति बहुआयामी होती है।
- स्तंभ-पाठकों की रुचियां भिन्न होती हैं, जिसके चलते वे अपनी रुचि की सामग्री को अखबार या पत्रिका में एक निर्धारित स्थाहन पर पढ़ना चाहते हैं। कुछ पत्र-पत्रिकाएं एक निश्चित शीर्षक के साथ नियमित स्तंभों का प्रकाशन करती हैं। इनमें काफी रोचक सामग्री होती है। हिन्दीं अखबारों में विज्ञान, कृषि और स्वास्थविषयों पर अनेक स्तंकभ प्रकाशित किए जाते हैं। स्तंभों में प्रकाशित होने वाली सामग्री ज्यादातर बाहर के लेखकों द्वारा प्राप्त होती है। अगर बाहर से सामग्री नहीं मिली तो उसे संपादकीय विभाग खुद तैयार करेगा। क्योंकि नियमित स्तं भ न छपने से पाठकों को बेचैनी हो जाती है। इससे अखबार या पत्र-पत्रिका की साख भी खतरे में पड़ जाती में है। ऐसे में पत्र-पत्रिका के कर्ताधर्ताओं को सोच समझकर ही कदम उठाने चाहिए।
- विज्ञान कथा, उपन्यास और कविताएं- विज्ञान कथाएं समाज में न केवल विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए बल्कि सामाजिक परिवर्तनों और भविष्य की तस्वीर उतारने में भी उपयोगी हैं। केवल विज्ञान जानने वाले ही इन कथाओं की ओर आकर्षित नहीं हो रहे हैं, विज्ञान न जानने वाले भी इसका मजा ले रहे हैं। विज्ञान कथाओं का सामाजिक उद्देश्य व्या पक एवं उत्तरदायित्विपूर्ण है, क्योंकि इनमें भविष्य का दर्शन किया जा सकता है। विज्ञान कथा लेखन में पृष्ठभूमि और पात्रों के चारित्रिक विकास को लेकर दिक्कतें बनीं रहती हैं।
- हिन्दीं वैज्ञानिक उपन्यासों की शुरुआत वर्ष 1888 से मानी जाती है, जब देवकी नंदन खत्री ने “चंद्रकांता” लिखा । आधुनिक विज्ञान उपन्यास की शुरुआत वर्ष 1935 से हुई जब डॉ. संपूर्णानंद ने “पृथ्वी से सप्तरर्षि मंडल” नामक लघु उपन्यास लिखा। 1956 में विज्ञान पत्रकार डॉ. ओम प्रकाश शर्मा ने मंगल यात्रा नामक उपन्यास लिखा। निस्संदेह यह हिन्दी का पहला वैज्ञानिक उपन्यास है।
- काफी समय पहले मौसम के पूर्वानुमान को लेकर कवि भड्डरी ने कई कविताएं लिखीं। इन्हें हिन्दी में वैज्ञानिक कविता की शुरुआत करने वाला मान सकते हैं। बाद में 1966 में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद ने बच्चों के लिए विज्ञान विनोद पुस्तक माला का प्रकाशन किया। इसमें कई विषयों की कुल 13 पुस्तकों का प्रकाशन किया गया। इनमें जल का चमत्कार, वायुयान की कथा, टीवी की कथा आदि शामिल हैं। कविता के माध्यम से बच्चों और नवसाक्षरों में विज्ञान का प्रचार-प्रसार आसानी से किया जाता है। अनेक पत्र-पत्रिकाएं जैसे विज्ञान प्रगति, चकमक, पराग, विज्ञानपुरी में काफी विज्ञान कविताएं छपती रहती हैं। विज्ञान कविताओं के रचनाकारों में अखिलेश कुमार सिंह, रमेश दत्तन शर्मा, निशीत अग्निहोत्री व नरविजय सिंह प्रमुख हैं। लखनउ निवासी रसायन शास्त्रि में पीजी कर चुके निशीत ने वर्ष 2005 में "विज्ञान चालीसा” लिखी जो विज्ञान प्रगति में प्रकाशित हुई. इसके बाद वर्ष 2007 में उन्होंने “विज्ञान शिक्षारंजन” नामक कविता संकलन लिखा, जिसमें हाईस्कू ल स्तमर के भौतिक विज्ञान के पाठ शामिल हैं जैसे- कार्य, बल, उर्जा, सामर्थ्य, त्वरण, उत्लालिख वन बल आदि । डॉ सुबोध कुमार के संपादन में छपी इस किताब का पेटेंट भी हो चुका है। विज्ञान नाटक और रूपक विज्ञान नाटक दरअसल विज्ञान कथा का ही बदला रूप है। विज्ञान कथा में जहां पात्र, घटनाक्रम और देशकाल कथा की निरंतर भाषा का हिस्साव होते हैं वहीं नाटक में देशकाल, घटनाक्रम और अन्य परिस्थितियों का वर्णन कोष्ठ क के अंदर करके बातचीत सीधे कथोपकथन द्वारा दर्शाई जाती है। जबकि रूपक दोनों ही प्रकार के हो सकते हैं, निरंतर भाषाई तथा नाटकीय कथोपकथन। वैसे नाटक या कथा जहां कल्पना आधारित होते हैं वहीं रूपक किसी भी वास्त विक सच के रोचक उद्घाटन के लिए होता है।
- विज्ञान चित्र कथाएं, व्यंग चित्र और हास्य व्यंग - विज्ञान चित्र कथा अंग्रेजी के कॉमिक शब्द का हिन्दी रूपान्तिर है। इसका उद्देश्य लोगों को विशेषकर बच्चों को मनोरंजक ढंग से विज्ञान की जानकारी देना तथा उनमें वैज्ञानिक अभिरुचि विकसित करना। वर्तमान में ये चित्रकथाएं काफी लोकप्रिय हैं। हंसाने और कटाक्ष करने वाले रेखाचित्र कार्टून कहलाते हैं। एक व्यंग चित्र हजारों शब्दों के बराबर होता है। कार्टून में विज्ञान नामक व्यंग चित्र विज्ञान प्रगति में 1977 में छापे गए थे। हालांकि यह विधा विज्ञान में अभी तक पूरी तरह विकसित नहीं हो पाई है।
- हास्य व्यंग का विज्ञान पत्रकारिता में खास महत्व है। हालांकि इसका प्रचार-प्रसार कम होने से शायद विज्ञान लेखन आज भी उबाउ और नीरस बना हुआ है। वैज्ञानिक पुस्तक समीक्षा से भी पाठकों को अमुक किताब के बारे में काफी कुछ रोचक जानकारियां मिल जाती हैं। इसके अलावा आकाशवाणी से भी विज्ञान की कृति की समीक्षा समय-समय पर प्रसारित होती रहती है।
वैज्ञानिक साक्षात्कार या भेंटवार्ता और परिचर्चा-
- समाज के लिए हुई बड़ी खोज या किसी आपदा- दुर्घटना के वक्त वैज्ञानिक विषयों पर विशेष टिप्पणी या नई जानकारियों की जरूरत होती है। यह कार्य विज्ञान पत्रकार द्वारा किया जाता है। भाषा की बड़ी भूमिका अहम होती है और विज्ञान पत्रकार वैज्ञानिक से अंग्रेजी में बात करके सभी जरूरी सूचनाएं इकट्ठा करके उन्हें बाद में हिन्दी में लिखकर पाठकों तक पहुंचाता है। पत्रकार को साक्षात्कार के लिए पूरी तैयारी करके जाना चाहिए, जिससे कोई बिंदु छूट न जाए। परिचर्चा में किसी विषय विशेष पर कई विशेषज्ञों द्वारा चर्चा की जाती है। इस विधा में ज्वलंत विषय पर ही विशेषज्ञों के विचार सुनने को मिलते हैं। वैसे विशषज्ञों के आपस में विचार भिन्न हो सकते हैं।
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